
24/07/2025
“प्यासा शहर, दरियादिल पार्षद: रक्सौल की जल-त्रासदी में उम्मीद बने सोनू गुप्ता
रक्सौल:
जहां एक ओर सूर्य की गर्मी 40 डिग्री के पार तप रही है, वहीं धरती की कोख से पानी 200 फीट नीचे चला गया है। आकाश और धरती, दोनों ने रक्सौल को झुलसा दिया है। नगर में हर कोने से एक ही आवाज़ आ रही है — “पानी चाहिए!”
बूढ़े हों या बच्चे, महिलाएं हों या युवा – हर वर्ग पानी की तलाश में रोज़ाना संघर्ष कर रहा है। जिन घरों की महिलाएं कभी चौखट नहीं लांघती थीं, आज वो भी बाल्टी-बोतल लेकर गलियों में दौड़ रही हैं। यह 21वीं सदी के भारत के विकासशील चेहरे पर एक करारी चोट है।
सरकार ने करोड़ों की योजना बनाई – "हर घर नल-जल"। लेकिन हकीकत में यह योजना सिर्फ कागजों पर ही पूरी हुई। रक्सौल नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड संख्या 19 की स्थिति इसका जीता-जागता उदाहरण है।
वार्ड पार्षद सोनू गुप्ता के अनुसार, नल-जल योजना के तहत उनके वार्ड में 507 घरों में कागजों पर नल लग चुके हैं, लेकिन हकीकत यह है कि एक भी घर में पानी नहीं पहुंचा। योजना के नाम पर लगभग 40 लाख की वैधानिक निकासी हो चुकी है, लेकिन धरातल पर न पाइपलाइन है, न मोटर, न पानी!
जब पार्षद ने इसकी शिकायत की और बोर्ड की बैठक में मामला उठाया, तो उन्हें पानी की टैंकर सेवा से वंचित कर दिया गया – सिर्फ इसलिए कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई।
स्थिति भयावह हो चुकी थी। जनता प्यास से बेहाल थी। पार्षद सोनू गुप्ता ने हार नहीं मानी – पश्चिम चंपारण के बेतिया से निजी खर्चे पर पानी के टैंकर मंगवाए।
आज उनके वार्ड की गलियों में टैंकर घूम-घूमकर घर-घर तक पानी पहुँचा रहा है। यह केवल एक जनप्रतिनिधि का कर्तव्य नहीं, मानवता की मिसाल है।
जहां तमाम सामाजिक संगठन, अधिकारी और संपन्न लोग चुप बैठे हैं, वहां एक साधारण वार्ड पार्षद ने जो किया, वह एक बड़ा संदेश है। यह केवल जल संकट से जूझते लोगों के लिए राहत नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन के लिए एक आईना भी है।
रक्सौल की जनता आज भीषण गर्मी और जलसंकट से त्रस्त है, लेकिन इस अंधेरे में सोनू गुप्ता जैसा एक दीपक जल रहा है – जो अपने वार्ड नहीं, पूरे शहर के लिए संवेदनशील नेतृत्व और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक बन चुका है।
ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, ये रक्सौल की हकीकत है। जब सरकार सोई, तब इंसान ने इंसान के लिए रास्ता बनाया। सोनू गुप्ता सिर्फ एक वार्ड पार्षद नहीं, एक मानवीय संघर्ष की मिसाल।