29/03/2024
मेरे अजनबी हमसफ़र एक बेहतरीन कहानी दिल को छू गई
वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी.
उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो
कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही।
शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी।
देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था।
मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा
पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...
फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...
लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया।
कहाँ जाना है बेटा अंकल दिल्ली तक जाना है
टिकट है नहीं अंकल जनरल का है लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा ओह अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं
ये तो गलत बात है बेटा पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी सॉरी अंकल मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं
कुछ परेशानी आ गयी इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई …
और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीटी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी टीटी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर
हंस तो नहीं रहा था..
थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं दिल्ली स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी...
मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी
तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था दिल कर रहा था कि उसे पैसे देदूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो और रो मत लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था...
उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे
बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगे जिससे मैं उसकी म