
24/06/2025
महाभारत काल के वो हथियार जो आज की आधुनिक मिसाइल्स से भी अत्यधिक विनाशक थे। ऐसे कौन-कौन से प्रमुख अस्त्र थे आइए जानते हैं!
महाभारत केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा महासंग्राम था जिसमें धर्म, अधर्म, राजनीति, नीति-अनीति, और सबसे महत्वपूर्ण — दिव्य अस्त्रों की शक्ति की परीक्षा हुई थी। उस काल में युद्ध केवल तलवारों और बाणों से नहीं लड़ा जाता था, बल्कि ऐसे दिव्य अस्त्रों का प्रयोग होता था, जो मंत्रों और तप के बल पर प्राप्त किए जाते थे। ये अस्त्र अत्यंत विनाशकारी थे और इनमें ब्रह्मांड को प्रभावित करने की क्षमता थी। आइए विस्तार से जानते हैं महाभारत काल के सबसे खतरनाक और दिव्य अस्त्रों के बारे में — कौन से अस्त्र किसके पास थे, उन्हें कैसे प्राप्त किया गया, और उन्होंने किस पर इनका प्रयोग किया।
1. ब्रह्मास्त्र
ब्रह्मास्त्र सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली अस्त्रों में से एक था। यह ब्रह्मा जी का दिव्य अस्त्र था। इसे छोड़ने के बाद कोई भी अस्तित्व सुरक्षित नहीं रह सकता था — भूमि, जल, वायु, आकाश सब नष्ट हो सकते थे। इसकी मारक क्षमता इतनी थी कि यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा जाएं तो पूरी पृथ्वी का विनाश संभव है।
किसके पास था: अर्जुन, अश्वत्थामा, कर्ण
कैसे मिला: यह अस्त्र वेदों और मंत्रों के गहन अध्ययन व तप से प्राप्त किया जाता था। अर्जुन को यह अस्त्र भगवान शिव की कृपा से और उनके निर्देश पर महर्षि व्यास तथा अन्य गुरुओं से प्राप्त हुआ। अश्वत्थामा को यह अस्त्र अपने पिता द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था। कर्ण ने भी परशुराम से इसे प्राप्त किया।
कब प्रयोग हुआ: युद्ध के अंतिम चरण में, जब अश्वत्थामा ने घटोत्कच की मृत्यु के बाद पांडवों को मारने के लिए इसे छोड़ दिया, परंतु अर्जुन ने भी प्रत्युत्तर में ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। तब ऋषि व्यास प्रकट हुए और उन्होंने दोनों को उसे वापस लेने को कहा, अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा न कर सका। उसने ब्रह्मास्त्र को उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र पर निर्देशित कर दिया। फलस्वरूप परीक्षित मरा, लेकिन बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पुनः जीवन दिया।
2. पाशुपतास्त्र
यह भगवान शिव का सबसे प्रलयंकारी अस्त्र माना जाता है। यह अस्त्र इतना शक्तिशाली था कि इसे केवल चरम स्थिति में ही प्रयोग किया जा सकता था, अन्यथा सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता था। इस अस्त्र को छोड़ने से पहले साधक को पूर्ण संयम, तप और भक्ति का पालन करना होता था।
किसके पास था: केवल अर्जुन
कैसे मिला: अर्जुन ने कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब शिव जी ने स्वयं अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात रूप में आकर युद्ध किया। अर्जुन ने अपने पराक्रम और भक्ति से शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया।
कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध में अर्जुन ने इसे प्रयोग में नहीं लिया, क्योंकि इसका प्रयोग केवल आपात स्थिति में किया जा सकता था और इससे बड़े स्तर पर हानि हो सकती थी।
3. नारायणास्त्र
यह अस्त्र भगवान विष्णु से संबंधित था और इसका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता था। यह अस्त्र मन की भावना के अनुसार स्वयं कार्य करता था। यदि शत्रु समर्पण कर दे तो यह अस्त्र उसे क्षमा कर देता था, लेकिन यदि प्रतिरोध करे, तो वह अस्त्र उसे निश्चित रूप से भस्म कर देता था।
किसके पास था: अश्वत्थामा
कैसे मिला: अश्वत्थामा को यह अस्त्र भगवान विष्णु के ध्यान से और अपने पिता द्रोणाचार्य से मंत्रों द्वारा प्राप्त हुआ था।
कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने क्रोध में पांडवों के शिविर पर आक्रमण किया, तब उसने नारायणास्त्र का प्रयोग किया। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर अस्त्र का प्रतिरोध नहीं किया और अपने शस्त्र नीचे रख दिए, जिससे उनकी रक्षा हो गई।
4. अग्न्यास्त्र
यह अग्निदेव से संबंधित अस्त्र था। इसे छोड़ने से शत्रु पक्ष में भयंकर अग्नि प्रज्वलित हो जाती थी जो सबकुछ जला सकती थी।
किसके पास था: अर्जुन, द्रोणाचार्य, कर्ण
कैसे मिला: यह अस्त्र गुरु से दीक्षा में प्राप्त होता था। अर्जुन ने यह अस्त्र द्रोणाचार्य से सीखा था।
कब प्रयोग हुआ: अर्जुन ने कई बार युद्ध में इसका उपयोग किया, विशेष रूप से कौरव सेना के रथों और वाहनों को जलाने में।
5. वायव्यास्त्र
यह वायु देव का अस्त्र था जो तूफान और भयंकर वायु से शत्रु पक्ष को तहस-नहस कर सकता था। इससे शत्रु का संतुलन बिगड़ जाता था और वो लड़ने में असमर्थ हो जाते थे।
किसके पास था: अर्जुन
कैसे मिला: यह अस्त्र अर्जुन को गुरु द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था।
कब प्रयोग हुआ: जब अर्जुन को भारी सेना से घिरा गया, तब उसने इस अस्त्र का उपयोग कर चारों ओर आंधी-तूफान मचाया और सेना को तितर-बितर कर दिया।
6. नागास्त्र
नागों के राजा वासुकी के नाम पर यह अस्त्र बनाया गया था। यह अस्त्र एक विशाल नाग रूप में जाकर शत्रु पर प्रहार करता था।
किसके पास था: कर्ण
कैसे मिला: कर्ण को यह अस्त्र अपनी तपस्या और नाग वंश के सहयोग से प्राप्त हुआ था। कुछ कथाओं में उल्लेख है कि यह उसे एक नाग से प्राप्त हुआ जिसने अर्जुन से बदला लेने की इच्छा से कर्ण की सहायता की।
कब प्रयोग हुआ: कर्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध में इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन के विरुद्ध किया। परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने इसे अपनी छाती पर झेल लिया और अर्जुन को बचा लिया।
7. त्वष्टास्त्र और इंद्रास्त्र
ये अस्त्र इंद्र और अन्य देवताओं से संबंधित थे। इन्हें अमोघ माना जाता था। त्वष्टा देव ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता देवता माने जाते हैं और उनके द्वारा दिया गया अस्त्र सर्जनात्मक और विध्वंसात्मक दोनों होता था।
किसके पास था: अर्जुन, कर्ण, भीष्म
कैसे मिला: यह अस्त्र दिव्य ध्यान और गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ था।
कब प्रयोग हुआ: विशेष रूप से महाभारत के प्रारंभिक दिनों में जब भीषण संहार आवश्यक होता था।
8. शंख, चक्र और गदा से जुड़े दिव्यास्त्र
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सुदर्शन चक्र और कौमोदकी गदा के धारक थे। उन्होंने युद्ध में सक्रिय रूप से हथियार नहीं उठाए थे, लेकिन जब अर्जुन संकट में पड़ा, तब उन्होंने चक्र उठाकर भीष्म पितामह पर प्रहार करने की चेतावनी दी थी।
विशेष क्षमताएं: सुदर्शन चक्र का वेग और नियंत्रण मंत्रों द्वारा होता था। यह जहाँ से गुजरता था, वहाँ शत्रु का विनाश निश्चित था।
9. ब्रह्मशिरा अस्त्र
यह ब्रह्मास्त्र का एक और रूप था जो उससे भी अधिक विनाशकारी था। इसका प्रयोग करने से चारों दिशाओं में अग्नि, वायु और जल में विकृति आ जाती थी।
किसके पास था: अर्जुन और अश्वत्थामा
कब प्रयोग हुआ: युद्ध समाप्ति के बाद, जब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश को समाप्त करने के लिए इसका प्रयोग किया और अर्जुन ने भी इसका प्रत्युत्तर दिया। तब व्यास जी ने हस्तक्षेप करके दोनों को रोका। अर्जुन ने तो इसे वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा नहीं ले सका।
महाभारत का युद्ध केवल बाहुबल का नहीं, बल्कि दिव्य अस्त्रों, मंत्र शक्ति, और मानसिक सामर्थ्य का संग्राम था। हर एक अस्त्र के साथ जुड़ी थी उसकी साधना, उसकी मर्यादा और उसकी विनाशक शक्ति। पांडवों और कौरवों के पास समान प्रकार के अस्त्र थे, लेकिन उनका प्रयोग कैसे और किस भावना से किया गया — यही निर्णायक बना।
इन दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति केवल गुरु कृपा, तप और योगबल से ही संभव थी। आज के विज्ञान के युग में ये अस्त्र केवल कल्पना जैसे लग सकते हैं, लेकिन उस युग में ये वास्तविक अस्त्र थे, जिनका प्रयोग पूरी जिम्मेदारी और मर्यादा के साथ किया जाता था। यही महाभारत की सबसे गूढ़ और चमत्कारिक विशेष हैं!!