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महाभारत काल के वो हथियार जो आज की आधुनिक मिसाइल्स से भी अत्यधिक विनाशक थे। ऐसे कौन-कौन से प्रमुख अस्त्र थे आइए जानते हैं...
24/06/2025

महाभारत काल के वो हथियार जो आज की आधुनिक मिसाइल्स से भी अत्यधिक विनाशक थे। ऐसे कौन-कौन से प्रमुख अस्त्र थे आइए जानते हैं!

महाभारत केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा महासंग्राम था जिसमें धर्म, अधर्म, राजनीति, नीति-अनीति, और सबसे महत्वपूर्ण — दिव्य अस्त्रों की शक्ति की परीक्षा हुई थी। उस काल में युद्ध केवल तलवारों और बाणों से नहीं लड़ा जाता था, बल्कि ऐसे दिव्य अस्त्रों का प्रयोग होता था, जो मंत्रों और तप के बल पर प्राप्त किए जाते थे। ये अस्त्र अत्यंत विनाशकारी थे और इनमें ब्रह्मांड को प्रभावित करने की क्षमता थी। आइए विस्तार से जानते हैं महाभारत काल के सबसे खतरनाक और दिव्य अस्त्रों के बारे में — कौन से अस्त्र किसके पास थे, उन्हें कैसे प्राप्त किया गया, और उन्होंने किस पर इनका प्रयोग किया।

1. ब्रह्मास्त्र

ब्रह्मास्त्र सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली अस्त्रों में से एक था। यह ब्रह्मा जी का दिव्य अस्त्र था। इसे छोड़ने के बाद कोई भी अस्तित्व सुरक्षित नहीं रह सकता था — भूमि, जल, वायु, आकाश सब नष्ट हो सकते थे। इसकी मारक क्षमता इतनी थी कि यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा जाएं तो पूरी पृथ्वी का विनाश संभव है।

किसके पास था: अर्जुन, अश्वत्थामा, कर्ण

कैसे मिला: यह अस्त्र वेदों और मंत्रों के गहन अध्ययन व तप से प्राप्त किया जाता था। अर्जुन को यह अस्त्र भगवान शिव की कृपा से और उनके निर्देश पर महर्षि व्यास तथा अन्य गुरुओं से प्राप्त हुआ। अश्वत्थामा को यह अस्त्र अपने पिता द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था। कर्ण ने भी परशुराम से इसे प्राप्त किया।

कब प्रयोग हुआ: युद्ध के अंतिम चरण में, जब अश्वत्थामा ने घटोत्कच की मृत्यु के बाद पांडवों को मारने के लिए इसे छोड़ दिया, परंतु अर्जुन ने भी प्रत्युत्तर में ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। तब ऋषि व्यास प्रकट हुए और उन्होंने दोनों को उसे वापस लेने को कहा, अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा न कर सका। उसने ब्रह्मास्त्र को उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र पर निर्देशित कर दिया। फलस्वरूप परीक्षित मरा, लेकिन बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पुनः जीवन दिया।

2. पाशुपतास्त्र

यह भगवान शिव का सबसे प्रलयंकारी अस्त्र माना जाता है। यह अस्त्र इतना शक्तिशाली था कि इसे केवल चरम स्थिति में ही प्रयोग किया जा सकता था, अन्यथा सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता था। इस अस्त्र को छोड़ने से पहले साधक को पूर्ण संयम, तप और भक्ति का पालन करना होता था।

किसके पास था: केवल अर्जुन

कैसे मिला: अर्जुन ने कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब शिव जी ने स्वयं अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात रूप में आकर युद्ध किया। अर्जुन ने अपने पराक्रम और भक्ति से शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया।

कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध में अर्जुन ने इसे प्रयोग में नहीं लिया, क्योंकि इसका प्रयोग केवल आपात स्थिति में किया जा सकता था और इससे बड़े स्तर पर हानि हो सकती थी।

3. नारायणास्त्र

यह अस्त्र भगवान विष्णु से संबंधित था और इसका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता था। यह अस्त्र मन की भावना के अनुसार स्वयं कार्य करता था। यदि शत्रु समर्पण कर दे तो यह अस्त्र उसे क्षमा कर देता था, लेकिन यदि प्रतिरोध करे, तो वह अस्त्र उसे निश्चित रूप से भस्म कर देता था।

किसके पास था: अश्वत्थामा

कैसे मिला: अश्वत्थामा को यह अस्त्र भगवान विष्णु के ध्यान से और अपने पिता द्रोणाचार्य से मंत्रों द्वारा प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने क्रोध में पांडवों के शिविर पर आक्रमण किया, तब उसने नारायणास्त्र का प्रयोग किया। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर अस्त्र का प्रतिरोध नहीं किया और अपने शस्त्र नीचे रख दिए, जिससे उनकी रक्षा हो गई।

4. अग्न्यास्त्र

यह अग्निदेव से संबंधित अस्त्र था। इसे छोड़ने से शत्रु पक्ष में भयंकर अग्नि प्रज्वलित हो जाती थी जो सबकुछ जला सकती थी।

किसके पास था: अर्जुन, द्रोणाचार्य, कर्ण

कैसे मिला: यह अस्त्र गुरु से दीक्षा में प्राप्त होता था। अर्जुन ने यह अस्त्र द्रोणाचार्य से सीखा था।

कब प्रयोग हुआ: अर्जुन ने कई बार युद्ध में इसका उपयोग किया, विशेष रूप से कौरव सेना के रथों और वाहनों को जलाने में।

5. वायव्यास्त्र

यह वायु देव का अस्त्र था जो तूफान और भयंकर वायु से शत्रु पक्ष को तहस-नहस कर सकता था। इससे शत्रु का संतुलन बिगड़ जाता था और वो लड़ने में असमर्थ हो जाते थे।

किसके पास था: अर्जुन

कैसे मिला: यह अस्त्र अर्जुन को गुरु द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: जब अर्जुन को भारी सेना से घिरा गया, तब उसने इस अस्त्र का उपयोग कर चारों ओर आंधी-तूफान मचाया और सेना को तितर-बितर कर दिया।

6. नागास्त्र

नागों के राजा वासुकी के नाम पर यह अस्त्र बनाया गया था। यह अस्त्र एक विशाल नाग रूप में जाकर शत्रु पर प्रहार करता था।

किसके पास था: कर्ण

कैसे मिला: कर्ण को यह अस्त्र अपनी तपस्या और नाग वंश के सहयोग से प्राप्त हुआ था। कुछ कथाओं में उल्लेख है कि यह उसे एक नाग से प्राप्त हुआ जिसने अर्जुन से बदला लेने की इच्छा से कर्ण की सहायता की।

कब प्रयोग हुआ: कर्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध में इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन के विरुद्ध किया। परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने इसे अपनी छाती पर झेल लिया और अर्जुन को बचा लिया।

7. त्वष्टास्त्र और इंद्रास्त्र

ये अस्त्र इंद्र और अन्य देवताओं से संबंधित थे। इन्हें अमोघ माना जाता था। त्वष्टा देव ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता देवता माने जाते हैं और उनके द्वारा दिया गया अस्त्र सर्जनात्मक और विध्वंसात्मक दोनों होता था।

किसके पास था: अर्जुन, कर्ण, भीष्म

कैसे मिला: यह अस्त्र दिव्य ध्यान और गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: विशेष रूप से महाभारत के प्रारंभिक दिनों में जब भीषण संहार आवश्यक होता था।

8. शंख, चक्र और गदा से जुड़े दिव्यास्त्र

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सुदर्शन चक्र और कौमोदकी गदा के धारक थे। उन्होंने युद्ध में सक्रिय रूप से हथियार नहीं उठाए थे, लेकिन जब अर्जुन संकट में पड़ा, तब उन्होंने चक्र उठाकर भीष्म पितामह पर प्रहार करने की चेतावनी दी थी।

विशेष क्षमताएं: सुदर्शन चक्र का वेग और नियंत्रण मंत्रों द्वारा होता था। यह जहाँ से गुजरता था, वहाँ शत्रु का विनाश निश्चित था।

9. ब्रह्मशिरा अस्त्र

यह ब्रह्मास्त्र का एक और रूप था जो उससे भी अधिक विनाशकारी था। इसका प्रयोग करने से चारों दिशाओं में अग्नि, वायु और जल में विकृति आ जाती थी।

किसके पास था: अर्जुन और अश्वत्थामा

कब प्रयोग हुआ: युद्ध समाप्ति के बाद, जब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश को समाप्त करने के लिए इसका प्रयोग किया और अर्जुन ने भी इसका प्रत्युत्तर दिया। तब व्यास जी ने हस्तक्षेप करके दोनों को रोका। अर्जुन ने तो इसे वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा नहीं ले सका।

महाभारत का युद्ध केवल बाहुबल का नहीं, बल्कि दिव्य अस्त्रों, मंत्र शक्ति, और मानसिक सामर्थ्य का संग्राम था। हर एक अस्त्र के साथ जुड़ी थी उसकी साधना, उसकी मर्यादा और उसकी विनाशक शक्ति। पांडवों और कौरवों के पास समान प्रकार के अस्त्र थे, लेकिन उनका प्रयोग कैसे और किस भावना से किया गया — यही निर्णायक बना।

इन दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति केवल गुरु कृपा, तप और योगबल से ही संभव थी। आज के विज्ञान के युग में ये अस्त्र केवल कल्पना जैसे लग सकते हैं, लेकिन उस युग में ये वास्तविक अस्त्र थे, जिनका प्रयोग पूरी जिम्मेदारी और मर्यादा के साथ किया जाता था। यही महाभारत की सबसे गूढ़ और चमत्कारिक विशेष हैं!!

देश के करोड़ों बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली खबर है! केंद्र सरकार ने 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरि...
02/06/2025

देश के करोड़ों बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली खबर है! केंद्र सरकार ने 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त यात्रा की ऐतिहासिक सौगात दी है। 15 जून 2025 से लागू होने वाली इस योजना के तहत बुजुर्ग अब ट्रेन, राज्य की बसों और कुछ घरेलू फ्लाइट्स में मुफ्त सफर कर सकेंगे।यह फैसला रिटायरमेंट के बाद सीमित आमदनी में जीवन जी रहे बुजुर्गों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
अब वे बिना किसी आर्थिक बोझ के अपने बच्चों से मिलने, तीर्थ यात्रा करने या देश घूमने का सपना पूरा कर सकेंगे।

जनरल और स्लीपर क्लास में बिल्कुल मुफ्त टिकट। न टिकट का पैसा, न कोई चार्ज!

सभी लोकल और इंटरसिटी सरकारी बसों में फ्री यात्रा की सुविधा।

कुछ चुनिंदा सरकारी और बजट एयरलाइंस की फ्लाइट्स में फ्री या रियायती टिकट उपलब्ध होंगे, खासकर धार्मिक और आवश्यक रूट्स पर।

60 साल या उससे अधिक उम्र होनी चाहिए।केवल भारतीय नागरिक पात्र होंगे।पहचान के लिए आधार कार्ड, पेंशन बुक या सीनियर सिटीजन ID जरूरी होगी।पति-पत्नी दोनों (यदि दोनों 60+ हैं) को अलग-अलग लाभ मिलेगा।हर वरिष्ठ नागरिक को हर महीने 4 बार मुफ्त यात्रा की अनुमति होगी।

IRCTC की वेबसाइट/ऐप पर 'वरिष्ठ नागरिक योजना' विकल्प चुनें। आधार से उम्र की पुष्टि होगी।

बस स्टैंड पर आधार कार्ड दिखाकर मुफ्त टिकट लिया जा सकेगा।

एयरलाइंस की वेबसाइट पर 'Senior Travel Scheme' सिलेक्ट करें। मोबाइल OTP की जरूरत होगी - बुजुर्गों को इस प्रक्रिया में परिवार की मदद जरूर लेनी चाहिए।

आर्थिक तंगी के बिना सफर का सपना होगा साकार।बच्चों और रिश्तेदारों से मिलने में आसानी होगी।तीर्थ यात्रा और धार्मिक आयोजनों में भाग लेना आसान होगा।मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान में सुधार आएगा।समाज को बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील और जागरूक बनाने का जरिया बनेगा।

योजना 15 जून 2025 से लागू होगी।फ्लाइट की सीटें सीमित हो सकती हैं - अग्रिम बुकिंग करें,सफर के दौरान ID कार्ड साथ में रखना अनिवार्य होगा।

सरकार की यह पहल न सिर्फ बुजुर्गों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए संवेदना और सम्मान की एक नई सोच है।

2013 को पनडुब्बी INS सिंधु रक्षक डूब गयी और उसमे हमारे 18 नौजवान नाविक डूब के शहीद हो गये।कारण क्या था ?जिस पनडुब्बी को ...
26/05/2025

2013 को पनडुब्बी INS सिंधु रक्षक डूब गयी और उसमे हमारे 18 नौजवान नाविक डूब के शहीद हो गये।

कारण क्या था ?

जिस पनडुब्बी को 2010-13 मे 80 मिलियन डॉलर के खर्चे से अपग्रेड करवाया गया था उसकी बैट्री 70 करोड़ में चेंज करनी थी l नौसेना ने तीन बार भारत सरकार से बैटरी चेंज करने को कहा लेकिन किसी ने नौसेना के पत्र पर ध्यान नहीं दिया गया था।

पैसे की कमी की वजह से समय पर नहीं हुई, सिंधु रक्षक मे धमाका हुआ और वो 18 नौजवानो की कब्रगाह बन गयी, देश विचलित हुआ मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

देश को शायद याद भी नहीं है l

जबकि वो बड़ा गुनाह था हमने खुद अपने सैनिकों को मारा था वहां क्योंकि पैसा नहीं था जिस सरकार की ये जिम्मेदारी थी उसको कोई फर्क नहीं पड़ा।

पूर्व रक्षा मंत्री एंथनी ने फरवरी 2014 मे साफ कहा की राफेल खरीदने की बात मत करो पैसा कहां है।

मनमोहन सिंह जी साफ कह चुके थे पैसा पेड़ो पर नहीं लगता, मतलब साफ था ऐसी कोई बात मत करो जिसमे पैसा लगता हो, पैसा नहीं है।

गिरते हुए रूपये को संभालने के लिए चिदंबरम ने दिवालिये लोगों वाला ही तरीका अपनाया, दो लाख करोड़ के विदेशी भारतीयों के डॉलर 7.50% पे डीपोजीट लेके उसको 2.50% पे अमेरिकी बॉन्ड्स मे डाल दिया।
देश को 10000 करोड़ रुपए का ब्याज के अन्तर का भार हर साल लगा दिया।

इस दो लाख करोड़ का भुगतान मोदी सरकार ने चुपचाप किया क्योंकि ख़बर बाहर जाने से भारत के रूपये पे दबाव बढ़ सकता था।

इसके अलावा ईरान से उधारी पे तेल लिया 32000 करोड़ का जिसका चुकाना भी इसी सरकार के जिम्मे आया और इस सरकार ने उसको भी किया।

ईस तरह से चारों तरफ़ से कर्जे लेकर भी सरकार पैसा नहीं हे कहती थी।

वहीं मोदी सरकार ने काम संभाला तो बैंकों की हालत इतनी खराब थी की सही हालत बाहर आने पर देश पर बहुत बड़ा संकट आ सकता था
मोदी सरकार ने बैंकों को पैसा दिया, ईरान का कर्ज़ चुकाया और आज तक प्रधान मंत्री या किसी भी मंत्री को मैंने कहते हुऐ नहीं सुना की कोई भी योजना पैसा नहीं हे इस लिए रुकी हुई हे।

जो काम सबने सोचा की कितनी भी बात करो असल मे होगा कभी नहीं और इस काम मे पैसा लगाना फालतू हे वो हे गंगा की सफाई का प्रोजेक्ट. आखि़र करोड़ो लोगों ने इस बार असम्भव को संभव होता हुआ देखा। गंगा साफ होते कुंभ मे लोगों ने अपनी आंखों से देखा और देश को बताया।

ये ना आसान था ना बिना 20-30000 करोड़ खर्च किए बिना हो सकता था इसके अलावा भी भव्य कुंभ हो रहा था और हर आदमी चकित था की इस देश मे इतना बड़ा आयोजन इतनी अच्छी तरह हो सकता है!

बोगीबील का पुल हो या उत्तर पूर्व मे रेल्वे लाइन बिछाने का काम हो या जोजिला पास के बजाए आल वेदर 9000 करोड़ रुपए की टनल हो या लद्दाख को नेशनल ग्रिड से जोड़ने का काम हो या 6 करोड़ घरों को मुफ्त मे गैस देने का काम हो या सब गरीब को मुफ्त मे घर देने का काम हो सब तीव्र गति से हो रहा है।

इसके बाद भी जैसे कुबेर का खज़ाना हाथ लग गया हो तो 12 करोड़ किसानो को 72000 करोड़ रुपए हर साल सहायता देने का काम चालू कर दिया।

दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य बीमा का 50 करोड़ लोगों की जिम्मेदारी का काम शुरू हो गया हे लाखों लोगों ने फायदा उठा लिया हे कहीं कोई गड़बड़ी या हास्पिटल को पैसा नहीं मिलने की शिकायत नहीं दिखी आज तक।
20000 से 40000 करोड़ का खर्च आएगा, पैसे की दिक्कत का नामो निशान नहीं है।

सबसे बड़ी बात की प्रोजेक्ट पे प्रोजेक्ट कंप्लीट हो रहे हैं और नए प्रोजेक्ट चालू हो रहे हैं। सब सही वक़्त पे चल रहा है मतलब सरकार के कांट्रेक्टर को भी पैसा टाईम पे मिल रहा है।

गिनती करते हुए एक के बाद एक ऐसी चीज़ आएगी जिससे लगेगा की जैसे देश को पैसे की कोई दिक्कत नहीं है S 400 डिफेंस सिस्टम, राफेल, ड्रोन, मिसाइल का कमाल तो आपसे छिपा नहीं होगा।

इस समय पर दुनिया का सबसे ज्यादा मेट्रो का काम भारत मे हो रहा है कुछ ही दिन पहले पटना मेट्रो के 13000 करोड़ के प्रोजेक्ट को हरि झंडी दी गयी। पटना मे मेट्रो होगी ये दस साल पहले कोई सोच नहीं सकता था ऐसी हालत हो गयी की रोज प्रधान मंत्री को कोसने वाले शत्रुघ्न सिन्हा को भी तारीफ करनी पड़ी।

सबसे बड़ा वित्तीय प्रबंधन तो GST मे हुआ है अब सब राज्यों का पैसा GST के माध्यम से केन्द्र की जवाबदेही है किसी भी राज्य चाहे वो ममता बनर्जी का बंगाल हो कोई शिकायत नहीं की है की उनका पैसा एक दिन भी लेट हो रहा हैं।

ये सब कैसे हो रहा हे अस्त व्यस्त रहने वाला भारत एकदम चुस्त दुरुस्त कैसे हो गया।

नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी राख उनके परिवार वालों को नहीं सौंपी गई थी...!!जेल अधिकारियों ...
26/05/2025

नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी राख उनके परिवार वालों को नहीं सौंपी गई थी...!!

जेल अधिकारियों ने अस्थियों और राख से भरा मटका रेल्वे पुल के उपर से घग्गर नदी में फ़ेंक दिया था। दोपहर बाद में उन्हीं जेल कर्मचारियों में से किसी ने बाजार में जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह खबर एक स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई... इन्द्रसेन उस वक्त “द ट्रिब्यून” के कर्मचारी भी थे...!!

शर्मा ने तत्काल दो महासभाईयों को साथ लिया और दुकानदार द्वारा बताई जगह पर पहुँचे... उन दिनों नदी में उस जगह सिर्फ़ छ्ह इंच गहरा ही पानी था, उन्होंने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर स्थानीय कॉलेज के एक प्रोफ़ेसर ओमप्रकाश कोहल को सौंप दिया, जिन्होंने आगे उसे डॉ एलवी परांजपे को नाशिक ले जाकर सुपुर्द किया...!!

उसके पश्चात वह अस्थि-कलश 1965 में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे तक पहुँचा दिया गया, जब वे जेल से रिहा हुए। फ़िलहाल यह कलश पूना में उनके निवास पर उनकी अन्तिम इच्छा के मुताबिक सुरक्षित रखा हुआ है...!!

गोपाल गोडसे अक्सर कहा करते थे कि, यहूदियों को अपना राष्ट्र पाने के लिये 1600 वर्ष लगे, हर वर्ष वे कसम खाते थे कि “अगले वर्ष यरुशलम हमारा होगा...”

गत कुछ वर्षों से गोड़से की विचारधारा के समर्थन में भारत में लोगों की संख्या बढ़ी है, जैसे-जैसे लोग नाथूराम और गाँधी के बारे में विस्तार से जानते हैं, उनमें गोडसे धीरे-धीरे एक “आइकॉन” बन रहे हैं...!!

वीर सावरकर जो कि गोडसे और आपटे के राजनैतिक गुरु थे, के भतीजे विक्रम सावरकर कहते हैं, कि उस समय भी हम हिन्दू महासभा के आदर्शों को मानते थे, और “हमारा यह स्पष्ट मानना है कि गाँधी का वध किया जाना आवश्यक था…”, समाज का एक हिस्सा भी अब मानने लगा है कि नाथूराम का वह कृत्य सही था। हमारे साथ लोगों की सहानुभूति है, लेकिन अब भी लोग खुलकर सामने आने से डरते हैं...!!

डर की वजह भी स्वाभाविक है, गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लोगों ने पूना में ब्राह्मणों पर भारी अत्याचार किये थे, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने संगठित होकर लूट और दंगों को अंजाम दिया था, उस वक्त पूना पहली बार एक सप्ताह तक कर्फ़्यू के साये में रहा। बाद में कई लोगों को आरएसएस और हिन्दू महासभा का सदस्य होने के शक में जेलों में ठूंस दिया गया था (कांग्रेस की यह “महान” परम्परा इंदिरा हत्या के बाद दिल्ली में सिखों के साथ किये गये व्यवहार में भी दिखाई देती है)...!!

गोपाल गोडसे की पत्नी श्रीमती सिन्धु गोडसे कहती हैं, “वे दिन बहुत बुरे और मुश्किल भरे थे, हमारा मकान लूट लिया गया, हमें अपमानित किया गया और कांग्रेसियों ने सभी ब्राह्मणों के साथ बहुत बुरा सलूक किया... शायद यही उनका गांधीवाद हो...”

सिन्धु जी से बाद में कई लोगों ने अपना नाम बदल लेने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने दृढ़ता से इन्कार कर दिया। “मैं गोडसे परिवार में ब्याही गई थी, अब मृत्यु पर्यन्त यही मेरा उपनाम होगा, मैं आज भी गर्व से कहती हूँ कि मैं नाथूराम की भाभी हूँ...”।

चम्पूताई आपटे की उम्र सिर्फ़ 14 वर्ष थी, जब उनका विवाह एक स्मार्ट और आकर्षक युवक “नाना” आपटे से हुआ था, 31 वर्ष की उम्र में वे विधवा हो गईं, और एक वर्ष पश्चात ही उनका एकमात्र पुत्र भी चल बसा... आज वे अपने पुश्तैनी मकान में रहती हैं, पति की याद के तौर पर उनके पास आपटे का एक फ़ोटो है और मंगलसूत्र जो वे सतत पहने रहती हैं, क्योंकि नाना आपटे ने जाते वक्त कहा था कि “कभी विधवा की तरह मत रहना...”।

वह राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानतीं, उन्हें सिर्फ़ इतना ही मालूम है गाँधी की हत्या में शरीक होने के कारण उनके पति को मुम्बई में हिरासत में लिया गया था।

वे कहती हैं कि “किस बात का गुस्सा या निराशा? मैं अपना जीवन गर्व से जी रही हूँ, मेरे पति ने देश के लिये बलिदान दिया था.!!”

12 जनवरी 1948 को जैसे ही अखबारों के टेलीप्रिंटरों पर यह समाचार आने लगा कि, पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये सरकार पर दबाव बनाने हेतु गाँधी अनशन पर बैठने वाले हैं, उसी वक्त गोडसे और आपटे ने यह तय कर लिया था कि अब गाँधी का वध करना ही है...!!

इसके पहले नोआखाली में हिन्दुओं के नरसंहार के कारण वे पहले से ही क्षुब्ध और आक्रोशित थे। ये दोनों, दिगम्बर बड़गे (जिसे पिस्तौल चलाना आता था), मदनलाल पाहवा (जो पंजाब का एक शरणार्थी था) और विष्णु करकरे (जो अहमदनगर में एक होटल व्यवसायी था), के सम्पर्क में आये...!!

पहले इन्होंने गांधी वध के लिये 20 जनवरी का दिन तय किया था, गोड़से ने अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी में बदलाव किये, एक बार बिरला हाऊस जाकर उन्होंने माहौल का जायजा लिया, पिस्तौल को एक जंगल में चलाकर देख लिया, लेकिन उनके दुर्भाग्य से उस दिन बम तो बराबर फ़ूटा, लेकिन पिस्तौल न चल सकी...!!

मदनलाल पाहवा पकड़े गये (और यदि दिल्ली पुलिस और मुम्बई पुलिस में बराबर तालमेल और खुफ़िया सूचनाओं का लेनदेन होता तो उसी दिन इनके षडयन्त्र का भंडाफ़ोड़ हो गया होता), बाकी लोग भागकर वापस मुम्बई आ गये...!!

लेकिन जब तय कर ही लिया था कि यह काम होना ही है, तो तत्काल दूसरी ईटालियन मेड 9 एमएम बेरेटा पिस्तौल की व्यवस्था 27 जनवरी को ग्वालियर से की गई। दिल्ली वापस आने के बाद वे लोग रेल्वे के रिटायरिंग रूम में रुके...!!

शाम को आपटे और करकरे ने चांदनी चौक में फ़िल्म देखी और अपना फ़ोटो खिंचवाया, बिरला मन्दिर के पीछे स्थित रिज पर उन्होंने एक बार फ़िर पिस्तौल को चलाकर देखा, वह बेहतरीन काम कर रही थी...!!

गाँधी वध के पश्चात उस समय समूची भीड़ में एक ही स्थिर दिमाग वाला व्यक्ति था, नाथूराम गोड़से...!!

गिरफ़्तार होने के पश्चात गोड़से ने डॉक्टर से उसे एक सामान्य व्यवहार वाला और शांत दिमाग होने का सर्टिफ़िकेट माँगा, जो उसे मिला भी...!!

बाद में जब अदालत में गोड़से की पूरी गवाही सुनी जा रही थी, पुरुषों के बाजू फ़ड़क रहे थे, और स्त्रियों की आँखों में आँसू थे।

अखण्ड हिन्दू राष्ट्र के लिए संग्राम पुन: होगा ये निश्चित है वो दिन भी आएगा जब गोडसे जी के स्वप्न को पूर्ण करने में देशप्रेमी सफल हो जायेंगे... सिन्धु नदी स्वतंत्र रूप से भारत के ध्वज तले बहने लगेगी और तब महान गोड़से का अस्थि विसर्जन संभव हो पाए #वन्देमातरम्

25/05/2025

ELECTRIC SHORT MAGIC PRANKS

दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी करने वैभव तनेजा इन दिनों खूब चर्चा में है. चर्चा उनके सैलरी पैकेज को लेकर हो रही ह...
24/05/2025

दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी करने वैभव तनेजा इन दिनों खूब चर्चा में है. चर्चा उनके सैलरी पैकेज को लेकर हो रही है. सैलरी के मामले में उन्होंने गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला को भी पछाड़ दिया है.
दरअसल टेस्ला के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति ने वैभव तनेजा को सबसे बड़ा सैलरी पैकेज दिया है.

सबसे बड़ी कमाई

एलन मस्क की कंपनी टेस्ला के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर वैभव तनेजा को साल 2024 में कुल 139.5 मिलियन डॉलर यानी करीब 1157 करोड़ रुपये की सैलरी मिली है. सिर्फ 4 लाख डॉलर के बैस सैलरी वाले वैभव तनेजा से बीते साल अपनी सैलरी से सबके हैरान कर दिया. उनकी सैलरी का बड़ा हिस्सा टेस्ला के शेयर स्टॉक ऑप्शन और इक्विटी अवॉर्ड के जरिये आया है.

वॉल स्ट्रीट की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 में वैभव तनेजा ने सैलरी के मामले में गूगल के CEO सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्य नडेला की को भी पीछे छोड़ दिया है. जहां साल 2024 में सत्य नडेला ने 79.1 मिलियन डॉलर की कमाई की तो वहीं सुंदर पिचाई को सैलरी के तौर पर 10.73 मिलियन डॉलर मिले. दरअसल टेस्ला के शेयरों में तेजी की वजह से वैभव की कमाई बढ़ी है.

कौन हैं वैभव तनेजा?

एलन मस्क की कंपनी से इतना बड़ा पैकेज पाने वाले वैभव भारतीय हैं. साल 1999 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कॉमर्स की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने साल 2000 में चार्टर्ड अकाउंटेंट की डिग्री हासिल की. साल 2006 में वो पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने CPA की डिग्री हासिल की. साल 2017 में उन्होंने टेस्ला ज्वाइंन किया. वैभव तनेजा टेस्ला के सीएफओ के साथ-साथ टेस्ला इंडिया मोटर्स एंड एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर भी हैं . भारत में टेस्ला के विस्तार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है.

₹21000 करोड़ का निश्वार्थ दान :जयपुर जिले के पास रींगस (सीकर ) के रहने वाले दुनियाँ में मेटल किंग के नाम से मशहूर  #वेदा...
22/05/2025

₹21000 करोड़ का निश्वार्थ दान :
जयपुर जिले के पास रींगस (सीकर ) के रहने वाले दुनियाँ में मेटल किंग के नाम से मशहूर #वेदांता_ग्रुप' के मालिक #अनिल_अग्रवाल ने अपने जीवन की सारी कमाई का 75 प्रतिशत शैक्षणिक कार्यों के लिए दान करने का एलान किया है। लन्दन में बसे अग्रवाल का ये दान भारतीय करेंसी के अनुसार 21000 करोड़ रूपए है। यह अब तक किसी भी भारतीय के द्वारा दान की जाने वाली सबसे बड़ी रकम है।

#पटना में ही 24 जनवरी 1954 को जन्मे और स्थानीय 'सर जी डी पाटलिपुत्रा हाई स्कूल' के छात्र रहे श्री अनिल अग्रवाल ने कल लन्दन में अपने परिवार की सहमति के बाद एलान किया कि वे यह रकम भारत में नि:शुल्क शिक्षा के बड़े प्रोजेक्टों में दान देना चाहते हैं और यहाँ ऑक्सफ़ोर्ड से भी बड़ी यूनिवर्सिटीज बनाना चाहते हैं जो 'नो प्रॉफिट नो लॉस' के आधार पर चलेगी!!

दुनिया भर की फ़ौजों का एक अलिखित नैतिक कोड है - ड्यूटी पर खड़े सिपाही को अगर मौत या समर्पण में से किसी एक को चुनना हो तो उ...
22/05/2025

दुनिया भर की फ़ौजों का एक अलिखित नैतिक कोड है - ड्यूटी पर खड़े सिपाही को अगर मौत या समर्पण में से किसी एक को चुनना हो तो उसने मौत को तरजीह देनी चाहिए जब तक देह में जान हो उसने दुश्मन से लड़ना नहीं छोड़ना है

जापान के लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा की कहानी इस फ़ौजी कोड पर डटे रहने की अविश्वसनीय मिसाल है

दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था. तेईस साल के हीरू को फ़ौज में भरती हुए तीन बरस हो चुके थे बचपन में तलवारबाजी के गुर सीख चुके पांच फुट चार इंच लम्बे इस सिपाही को गुप्तचर गतिविधियों की ट्रेनिंग मिली थी दिसंबर 1944 के शुरू में उसे आदेश मिला कि उसकी ड्यूटी फिलिपीन्स की राजधानी मनीला के नज़दीक लुबांग नाम के द्वीप में लगाई गयी है जहाँ उसका काम था अमेरिकी जहाज़ों को न उतरने देने के लिए हरसंभव प्रयास करना. कुछ ही दिनों में वह लुबांग में था

28 फरवरी 1945 को अमेरिकी फौजों ने जब इस द्वीप पर हवाई आक्रमण किया, तमाम जापानी सैनिक या तो मारे गए या वहां से भागने की जुगत में लग गए उधर जंगल में छिपे लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा को उसके अधिकारी मेजर योशिमी तानीगुची का लिखित आदेश मिला – “जहाँ हो वहां खड़े रहकर लड़ते रहो हो सकता है इस युद्ध में तीन साल लग जाएँ या हो सकता है पांच साल लग जाएँ कुछ भी हो जाय हम तुम्हें वापस ले जाने ज़रूर आएँगे”

मेजर का यह वादा हीरू ओनोदा के लिए जीवनदायी औषधि साबित हुआ और उसने अपने तीन साथियों के साथ जंगल में अपनी ड्यूटी निभाना जारी रखा

उधर हिरोशिमा-नागासाकी घटने के बाद सितम्बर 1945 में जापान ने अमेरिका के सामने हथियार डाल दिए इस के बाद हज़ारों जापानी सैनिक चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी पैसिफिक जैसे इलाकों में बिखर गए इनमें से कईयों को गिरफ्तार कर वापस देश भेजा गया सैकड़ों ने आत्महत्या कर ली, कई सारे बीमारी और भूख से मारे गए. जापान के हार जाने की खबरें लगातार रेडियो पर प्रसारित की जाती रहीं और इस आशय के पर्चे हवाई जहाजों से गिराए जाते रहे

लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा और उसके तीन साथियों को भी ऐसे पर्चे मिले लेकिन उन्होंने उन पर लिखे शब्दों पर यकीन नहीं किया उन्होंने सोचा कि यह दुश्मन के गलत प्रचार का हिस्सा था

चारों सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त गुरिल्ले थे और कठिन से कठिन परिस्थितियों में जीना जानते थे जंगल में करीब दस माह रहने के बाद उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि लड़ाई लम्बी चलने वाली है उन्होंने अपने तम्बुओं की बगल में बांस की झोपड़ियां बनाईं और पेट भरने के लिए आसपास के गाँवों से चावल और मांस की चोरी करना शुरू किया जंगल में बेतहाशा गर्मी पड़ती थी और मच्छरों और चूहों के कारण रहना बहुत मुश्किल होता था

धीरे-धीरे उनकी वर्दियां फटने लगीं उन्होंने तार के टुकड़ों को सीधा कर सुईयां बनाईं और पौधों के रेशों से धागों का काम लिया तम्बुओं के टुकड़े फाड़कर वर्दियों की तब तक मरम्मत की जब तक कि वे तार-तार नहीं हो गईं

कभी-कभी कोई अभागा ग्रामीण उनकी चौकी की तरफ आ निकलता तो उनकी गोलियों का शिकार बन जाता फिलीपीनी सेना की टुकड़ियां भी गश्त करती रहती थीं उन्हें चकमा देना भी बड़ी मुश्किल का काम होता था

पांच साल बीतने पर बुरी तरह आजिज़ आ गए हीरू ओनोदा के एक साथी सैनिक ने फिलीपीनी सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया यह बेहद निराशा पैदा करने वाली घटना थी लेकिन बचे हुए सैनिकों ने हिम्मत नहीं खोई और किसी तरह जीवित रहे चार साल और बीते जब विद्रोहियों की तलाश में निकली स्थानीय पुलिस के हाथों उनमें से एक की मौत हो गई

1954 से लेकर 1972 तक लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा और उसका साथी किनशीची कोजूका ने अगले अठारह साल साथ बिताये इस बीच 1959 में जापानी सेना ने दोनों को आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया था 1972 में कोजूका भी पुलिस के हाथों मारा गया

जंगलों में छिपा हीरू ओनोदा उस समय तक पचास साल का हो चुका था. इन पचास में से सत्ताईस साल उसने ड्यूटी पर रहते हुए काटे थे. उसने अभी दो साल और इसी तरह काटने थे

1970 के दशक में टोक्यो यूनीवर्सिटी में शोध कर रहे नोरियो सुजुकी नाम के एक सनकी छात्र को यकीन था कि जापान के कुछ सिपाही फिलीपींस में छिपे मिल सकते हैं इस सिलसिले में वह अनेक इत्तफाकों के चलते 1973 के आख़िरी महीनों में में हीरू ओनोदा से मिल सका

कई गुप्त मुलाकातों के बाद ही वह उसका विश्वास जीत सका उसने उससे कहा वापस जापान चले हीरू ने उत्तर दिया कि वह अपने अधिकारियों के आदेशों का इंतज़ार करेगा

कुछ समय बाद सुजुकी लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा के सगे भाई और एक सरकारी प्रतिनिधिमंडल के साथ वापस लौटा इसके बावजूद हीरू ओनोदा नहीं माना और उसने सुजुकी से कहा कि जब तक उसका कमांडर आदेश नहीं देगा वह अपनी पोस्ट से नहीं हिलेगा

आखिरकार उसी बूढ़े मेजर योशिमी तानीगुची को लुबांग द्वीप लाया गया जिसने दिसम्बर 1944 में हीरू को लड़ाई जारी रखने का आदेश दिया था मेजर साहब तब तक रिटायर हो चुके थे और अपने गृहनगर में किताबों की दुकान चला रहे थे

मेजर को देखते ही ओनोदा उन्हें पहचान गया उसने उन्हें सैल्यूट किया आँखों में आंसू भरे मेजर बोले, “लेफ्टिनेट हीरू ओनोदा, तुम अपनी ड्यूटी छोड़ सकते हो! जापान युद्ध हार गया है!”

साथ लगी तस्वीर में अपने मेजर का आदेश सुनते लेफ्टिनेंट हीरू ओनोदा को देखा जा सकता है उनकी वर्दी में लगी एक-एक थेगली और एक-एक टांका अपनी दास्तान कह रहे हैं. उनकी आँखों की चमक में क्या इबारत लिखी हुई है बताने की जरूरत नहीं

बहुत बाद में पूरी तरह बदले हुए अपने देश जापान पहुँचने के बाद, जहाँ उसका स्वागत करने को हर नगर में हज़ारों-हज़ार लोग सडकों पर खड़े थे, एक पत्रकार ने उससे पूछा, “जंगल में इस तरह तीस साल रहते हुए आपके मन में कौन सी बात रहती थी?”

हीरू ओनोदा का जवाब था, “इस बात के सिवा कुछ ख़ास नहीं कि मुझे अपनी ड्यूटी निभानी थी”

16 जनवरी 2014 को बयानवे साल की आयु में मरने से पहले इस बहादुर सामुराई को दूसरे विश्वयुद्ध के इकलौते जापानी महानायक के तौर पर जाना जाने लगा था

उनकी जीवनी जापान में बेस्टसेलर बनी और मेरे फेवरेट फिल्म निर्देशक वर्नर हर्ज़ोग ने पिछले ही साल उनकी बायोपिक रिलीज की है

आज जब डिस्कवरी जैसे चैनलों में दो-चार रात जंगल में अकेले रह जाने वालों को सर्वाइवल एक्सपर्ट कहकर प्रचारित किया जाता है, हीरू ओनोदा के लगभग तीस साल यानी दस हज़ार दिनों के अकल्पनीय संघर्ष को परिभाषित करने के लिए शायद ही किसी शब्दकोश में कोई विशेषण मिले

9 मार्च 1974 की उस दोपहर मेजर का आदेश सुनने के बाद में चीथड़े पहने हुए हीरू ओनोदा ने अपनी बंदूक जमीन पर रखी और फूट-फूट कर रोने लगा

वह तीस सालों में पहली बार रो रहा था ।

कोडक कंपनी याद है……1997 में, कोडक के पास लगभग 160,000 कर्मचारी थे।और दुनिया की लगभग 85% फोटोग्राफी कोडक कैमरों से की जात...
20/10/2024

कोडक कंपनी याद है……
1997 में, कोडक के पास लगभग 160,000 कर्मचारी थे।
और दुनिया की लगभग 85% फोटोग्राफी कोडक कैमरों से की जाती थी। पिछले कुछ सालों में मोबाइल कैमरों के उदय के साथ, कोडक कैमरा कंपनी मार्केट से बाहर हो गई है। यहाँ तक कि कोडक पूरी तरह से दिवालिया हो गई और उसके सभी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया।

उसी समय कई और मशहूर कंपनियों को अपने आप को रोकना पड़ा। जैसे

(घड़ी)
(स्कूटर)
(TV)
(रेडियो)
(मोबाइल)
(बाइक)
(कार)

उपरोक्त कंपनियों में से किसी की भी गुणवत्ता खराब नहीं थी। फिर भी ये कंपनियाँ बाहर क्यों हो गईं? क्योंकि वे समय के साथ खुद को बदल नहीं पाईं।

वर्तमान क्षण में खड़े होकर आप शायद यह भी न सोचें कि अगले 10 सालों में दुनिया कितनी बदल सकती है! और आज की 70%-90% नौकरियाँ अगले 10 सालों में पूरी तरह से खत्म हो जाएँगी। हम धीरे-धीरे "चौथी औद्योगिक क्रांति" के दौर में प्रवेश कर रहे हैं।

आज की मशहूर कंपनियों को देखिए-

UBER सिर्फ़ एक सॉफ्टवेयर का नाम है। नहीं, उनके पास अपनी कोई कार नहीं है। फिर भी आज दुनिया की सबसे बड़ी टैक्सी-फ़ेयर कंपनी UBER है।

Airbnb आज दुनिया की सबसे बड़ी होटल कंपनी है। लेकिन मज़ेदार बात यह है कि दुनिया में उनके पास एक भी होटल नहीं है।

इसी तरह, Paytm, Ola Cab, Oyo rooms आदि जैसी अनगिनत कंपनियों के उदाहरण दिए जा सकते हैं।

आज अमेरिका में नए वकीलों के लिए कोई काम नहीं है, क्योंकि IBM Watson नामक एक कानूनी सॉफ्टवेयर किसी भी नए वकील से कहीं बेहतर वकालत कर सकता है। इस प्रकार अगले 10 सालों में लगभग 90% अमेरिकियों के पास कोई नौकरी नहीं होगी। शेष 10% बच जाएँगे। ये 10% विशेषज्ञ होंगे।

नए डॉक्टर भी काम पर जाने के लिए बैठे हैं। Watson सॉफ्टवेयर कैंसर और दूसरी बीमारियों का पता इंसानों से 4 गुना ज़्यादा सटीकता से लगा सकता है। 2030 तक कंप्यूटर इंटेलिजेंस मानव इंटेलिजेंस से आगे निकल जाएगा।

अगले 20 सालों में आज की 90% कारें सड़कों पर नहीं दिखेंगी। बची हुई कारें या तो बिजली से चलेंगी या हाइब्रिड कारें होंगी। सड़कें धीरे-धीरे खाली हो जाएंगी। गैसोलीन की खपत कम हो जाएगी और तेल उत्पादक अरब देश धीरे-धीरे दिवालिया हो जाएंगे।

अगर आपको कार चाहिए तो आपको उबर जैसे किसी सॉफ्टवेयर से कार मांगनी होगी। और जैसे ही आप कार मांगेंगे, आपके दरवाजे के सामने एक पूरी तरह से ड्राइवरलेस कार आकर खड़ी हो जाएगी। अगर आप एक ही कार में कई लोगों के साथ यात्रा करते हैं, तो प्रति व्यक्ति कार का किराया बाइक से भी कम होगा।

बिना ड्राइवर के गाड़ी चलाने से दुर्घटनाओं की संख्या 99% कम हो जाएगी। और इसीलिए कार बीमा बंद हो जाएगा और कार बीमा कंपनियाँ भी बाहर हो जायेंगी।

पृथ्वी पर ड्राइविंग जैसी चीजें अब नहीं बचेंगी। जब 90% वाहन सड़क से गायब हो जाएँगे, तो ट्रैफ़िक पुलिस और पार्किंग कर्मचारियों की ज़रूरत नहीं होगी।

जरा सोचिए, 10 साल पहले भी गली-मोहल्लों में STD बूथ हुआ करते थे। देश में मोबाइल क्रांति के आने के बाद ये सारे STD बूथ बंद होने को मजबूर हो गए। जो बच गए वो मोबाइल रिचार्ज की दुकानें बन गए। फिर मोबाइल रिचार्ज में ऑनलाइन क्रांति आई। लोग घर बैठे ऑनलाइन ही अपने मोबाइल रिचार्ज करने लगे। फिर इन रिचार्ज की दुकानों को बदलना पड़ा। अब ये सिर्फ मोबाइल फोन खरीदने-बेचने और रिपेयर की दुकानें रह गई हैं। लेकिन ये भी बहुत जल्द बदल जाएगा। Amazon, Flipkart से सीधे मोबाइल फोन की बिक्री बढ़ रही है।

पैसे की परिभाषा भी बदल रही है। कभी कैश हुआ करता था लेकिन आज के दौर में ये "प्लास्टिक मनी" बन गया है। क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड का दौर कुछ दिन पहले की बात है। अब वो भी बदल रहा है और मोबाइल वॉलेट का दौर आ रहा है। पेटीएम का बढ़ता बाजार, मोबाइल मनी की एक क्लिक।

जो लोग उम्र के साथ नहीं बदल सकते, उम्र उन्हें धरती से हटा देती है ओर जीवन नीचे दिये हुए इस चित्र में जहाज की तरह हो जाता है...
इसलिए जमाने के साथ बदलते रहें।

हम आप लोगो के लिए ऐसे ही मजेदार ओर ज्ञाननवर्धक कंटेंट बनाते रहें, वक्त के साथ चलते रहिये ओर हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये..
ओर हाँ हमे follow जरूर कर लीजिए, ताकि अगला पोस्ट आप तक सबसे पहले पहुंचे....और हाँ शेयर जरुर करना..







इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था कि, विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी ह...
16/10/2024

इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था कि, विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।

भारतीय इतिहास का प्रारम्भ तथाकथित रूप से सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।

पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है।

इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।

आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है।

सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए। भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर नकारात्मकता से ग्रस्त स्वयं सिद्ध इतिहासकारों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।

क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?

अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे...

1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और उन इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।

2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और स्वयं सिद्ध द्वारा फैलाये गए आर्य द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।

3. अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा।

कुछ इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।

सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है...

सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। ये निष्कर्ष लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद निकला।

भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है।

सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में संस्कृत आदि भाषाओं में लिखे गए और भारत में लगाये गए।

सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया ।

सुभाष काक ने तो बहुत शोध पत्र तैयार किया एवम सिंधु घाटी की लिपि को लगभग हल कर लिया था, परंतु प्रकाशित करने के एक दिन पहले रहस्यमय मृत्यु हो गई। ये भी शास्त्री जी वाली कहानी थी।

सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा।

बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।

इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।

ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे; श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।

निष्कर्ष यह है कि...

1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।

2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।

3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।

4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे।

5. वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है।

वैदिक सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, यहां के लोगों का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो।

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