14/08/2025
"लाश पर लाइट, कैमरा… और नेता जी का एक्शन" परंतु आर्थिक मदद अब तक शून्य
मैनाटाड (बेतिया)।
उत्तराखंड में हाल ही में आई भीषण आपदा ने मैनाटाड प्रखंड के पुरुषोत्तमपुर गांव के एक परिवार को गहरे शोक में डुबो दिया। इस हादसे में परिवार के दो भाई और पिता की दर्दनाक मौत हो गई। घर में मातम का माहौल है, लेकिन हालात और भी कड़वे तब हो गए जब यह पीड़ित परिवार संवेदना का केंद्र कम और ‘राजनीतिक एवं डिजिटल फोटोशूट का मंच’ ज्यादा बन गया।
पीड़ित परिवार के अनुसार, घटना के बाद से अब तक लगभग 50 यूट्यूबर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता उनके घर का ‘दौरा’ कर चुके हैं। इनमें छोटे-बड़े सभी स्तर के राजनीतिक चेहरे शामिल हैं। हर कोई परिवार के साथ खड़ा होने का दावा कर रहा है, कैमरे के सामने ‘दुख साझा’ करने की तस्वीर खिंचवाता है,और फिर तुरंत निकल जाता है। लेकिन इन मुलाकातों के बाद अब तक परिवार को एक रुपये की भी सीधी आर्थिक मदद नहीं मिली है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परिवार अब नेताओं और सोशल मीडिया एक्टिविस्टों के लिए ‘फोटो कंटेंट’ बनकर रह गया है। फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर दर्जनों पोस्ट इन तस्वीरों के साथ वायरल हैं, जिनमें संवेदना के शब्द भरे पड़े हैं, लेकिन आर्थिक सहयोग के नाम पर कुछ भी नहीं। गांव के एक बुजुर्ग ने तंज़ करते हुए कहा, “यहां हर कोई दुख खरीदने नहीं, दुख बेचने आता है — फोटो के दाम पर।”
गुरुवार को ‘बिहार बदलने’ का दावा करने वाले प्रशांत किशोर भी इस परिवार से मिलने पहुंचे। पीड़ित के घर पर मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि उनका दौरा भी पूरी तरह फोटो सेशन केंद्रित था। उन्होंने परिवार से बात की, फोटो खिंचवाई और आगे बढ़ गए। गांव वालों का कहना है कि ऐसी मुलाकातों से परिवार को न तो राहत मिल रही है, न ही उनका दर्द कम हो रहा है, बल्कि यह उनकी बेबसी का मज़ाक बनकर रह गया है।
पीड़ित ने बताया कि वे अपनी ओर से यथासंभव आर्थिक मदद करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन परिवार को फिर भी बड़ी सहायता की जरूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार स्तर से जल्द उन्हें राहत राशि और पुनर्वास सहायता मिलेगी।
गांव के लोगों में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर नाराज़गी है। उनका कहना है कि यह घटना नेताओं और यूट्यूबरों की संवेदनहीनता की जीती-जागती मिसाल है। एक ग्रामीण ने कहा, “राजनीति अब सेवा नहीं, बल्कि कैमरे के लिए बनाया गया नाटक हो गई है। जो लोग मदद करने आए थे, वो मदद नहीं, अपनी इमेज चमकाने आए थे।”
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या आज की राजनीति में पीड़ित की पीड़ा सिर्फ वोट, प्रचार और सोशल मीडिया ‘रीच’ बढ़ाने का साधन बनकर रह गई है?