26/09/2025
एक गाँव के कोने में मिट्टी की झोपड़ी में रहने वाली एक बूढ़ी औरत रहती है। उसके चेहरे पर झुर्रियाँ हैं, लेकिन आँखों में आस्था की रोशनी चमकती है। जीवन भर संघर्ष करने के बाद भी उसके होंठों पर माँ दुर्गा का नाम रहता है। वह रोज सुबह उठकर अपनी कमजोर काया के बावजूद आँगन को बुहारती है, मिट्टी का छोटा सा दीया जलाती है और माँ दुर्गा की तस्वीर के सामने बैठ जाती है। उसका पूरा जीवन श्रद्धा और भक्ति में डूबा हुआ है।
उस बूढ़ी औरत का विश्वास है कि माँ दुर्गा हर रूप में उसकी रक्षा करती हैं। चाहे संकट हो, भूख हो, या अकेलापन—माँ के चरणों में बैठते ही उसे लगता है कि उसके चारों ओर दिव्य आभा फैल गई है। वह धीरे-धीरे मंत्र उच्चारित करती है: “या देवी सर्वभूतेषु…” और उसका मन शांति से भर उठता है।
एक दिन गाँव में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है। चारों ओर डमरू, ढोल, शंख और घण्टियाँ बजती हैं। लोग नए वस्त्र पहनकर पंडाल जाते हैं। परंतु उस बूढ़ी औरत के पास अच्छे कपड़े नहीं हैं। फिर भी वह अपने पुराने, धुले हुए सफेद कपड़े पहनकर, नंगे पाँव पंडाल की ओर चल पड़ती है। उसके कदम धीमे हैं, लेकिन भीतर उमंग तेज है।
जब वह पंडाल पहुँचती है, तो उसकी आँखें मूर्ति की ओर ठहर जाती हैं। माँ दुर्गा सिंह पर सवार हैं, हाथों में शस्त्र हैं, लेकिन मुख पर करुणा और स्नेह झलकता है। बूढ़ी औरत दूर से folded हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। लोग सोचते हैं कि शायद वह कमजोर है, पर असल में वे आँसू मिलन और समर्पण के हैं।
अचानक उसे ऐसा अनुभव होता है मानो माँ दुर्गा स्वयं मुस्कुराकर उसे देख रही हों। पंडाल की भीड़ में उसे कोई धक्का देता है, लेकिन अगले ही पल उसे लगता है कि किसी ने उसके कंधे को थाम लिया है। वह समझ जाती है—यह माँ की ही छाया है।
रात में जब वह घर लौटती है, तो उसके झोपड़े में दीया अब भी टिमटिमा रहा होता है। वह थकी हुई खाट पर बैठ जाती है और माँ दुर्गा का स्मरण करते हुए सोचती है कि शक्ति केवल बाहरी नहीं होती। माँ दुर्गा भीतर की शक्ति भी हैं—जो दुख सहने, भूख झेलने, और अकेलेपन को पार करने का साहस देती हैं।
उसकी झुर्रियों से भरा चेहरा चमक उठता है, मानो किसी ने उस पर दिव्य आभा बिखेर दी हो। गाँव वाले कहते हैं कि जब भी वह बूढ़ी औरत पूजा करती है, उसके आसपास का वातावरण बदल जाता है—हवा में मिठास और मन में शांति उतर आती है।
इस प्रकार, वह बूढ़ी औरत माँ दुर्गा की जीवित भक्ति का प्रतीक बन जाती है। उसकी साधना यह सिखाती है कि माँ दुर्गा केवल शस्त्रधारी देवी नहीं हैं, बल्कि हर माँ, हर स्त्री, हर बूढ़ी औरत के