29/09/2025
“पत्नी के गुजर जाने के 15 दिन बाद, जब आखिरी रिश्तेदार भी लौट गया और घर फिर से वैसा ही सूनसान हो गया जैसा वो खुद… तभी उसे एक अलमारी के पुराने कागजों में लिपटा एक पत्र मिला – और वो सिर्फ एक पत्र नहीं था, उसकी पूरी दुनिया थी।”
पत्र का पहला शब्द ही दिल चीर देने वाला था — ‘प्रिय पतिदेव’।
हाथ काँपने लगे, आंखें नम हो गईं… और जब उसने पढ़ना शुरू किया, तो जैसे बीते सालों की हर स्मृति, हर स्पर्श, हर आंसू उसी कमरे में लौट आया।
पत्र में लिखा था:
"मुझे पता है, मैं अब ज़्यादा दिन की मेहमान नहीं। डॉक्टर ने तो कुछ नहीं कहा, पर तुम्हारे चुपचाप गिरे हुए चेहरे ने सब कह दिया। कैंसर ने मेरे शरीर को तोड़ दिया है, पर मेरा मन… अब भी तुम्हारे लिए जीना चाहता है।
मैं जानती हूं, मेरे इलाज में तुमने सब कुछ लुटा दिया। वो छोटी सी जमापूंजी, हमारे सपनों का प्लॉट, मम्मी की आखिरी दी हुई चूड़ियाँ — सब मेरी दवाओं में घुल गया। और तुम... सब चुपचाप करते रहे, बिना कोई शिकायत किए।"
"क्या तुम सोचते थे मैं कुछ नहीं जानती थी? मैं सब जानती थी, मेरे हमसफ़र।
जब तुम मेरी रजाई की आड़ में छुपकर रोते थे, मैं करवट लेकर अपने आंसुओं को तकिये में छुपा लेती थी।
तुम मुझे हिम्मत देते थे, लेकिन खुद अंदर से टूटते जा रहे थे… और फिर भी मेरी हिम्मत बनते रहे।"
"तुमने मुझसे कहा था, ‘तू बड़ी डरपोक है’। देखो, अब वही डरपोक औरत मौत से आंख मिलाकर मुस्कुरा रही है।
क्योंकि अब डर इस बात का नहीं है कि मैं जा रही हूं — डर इस बात का है कि तुम्हें मेरे बिना कैसे रहना होगा?
घर आओगे, और मैं नहीं मिलूंगी। चाय ठंडी होगी, बिस्तर ठंडा होगा, और सबसे ज़्यादा — तुम्हारा मन ठंडा हो जाएगा।
लेकिन मेरी एक बात याद रखना — मैं हमेशा रहूंगी, तुम्हारी आदतों में, तुम्हारे कपड़ों की सिलवटों में, बच्चों की हँसी में और तुम्हारे सपनों में।"
"बच्चों से कहना, मम्मी भगवान के पास गयी है — थोड़ी देर में वापस आएगी।
पर तुम जानो, मैं अब लौटूंगी नहीं।
इसलिए मेरी ज़िम्मेदारी अब तुम्हारी है। बच्चों के साथ-साथ खुद का भी ख़्याल रखना।"
"तुम्हें अब समय पर नहाना होगा, खाना होगा — क्योंकि तुम्हें टोकने के लिए अब कोई नहीं होगा।
अब रूठना छोड़ देना, क्योंकि मनाने वाली भी तो मैं ही थी।
अब बीमार पड़ना भी मत, क्योंकि माथे पर हाथ रखने वाला कोई नहीं होगा।
और हाँ, अब बच्चा बनने की ज़िद मत करना — क्योंकि अब तुम्हें अकेले पिता और माँ दोनों की भूमिका निभानी है।"
"आज रात मैं तुम्हारे सीने से कान लगाकर सोना चाहती हूं — शायद ये मेरी आखिरी रात हो।
कल सुबह मेरी सांस चले या ना चले, ये ऊपर वाला जाने।
पर इस पल, इस आखिरी स्पर्श में, मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपनी धड़कन सौंप देना चाहती हूं।
जब कभी भी बहुत अकेला महसूस करना, आसमान की ओर देख लेना।
मैं वहां चमकती एक तारे में तुम्हें मुस्कुराते हुए दिखूंगी।
अब लिखने की ताकत नहीं रही...
बस तुम्हारी गोद में सिर रखकर, एक बार फिर उस प्यार को महसूस करना चाहती हूं — जो शब्दों से कभी नहीं कहा, मगर हर साँस में जिया।"
पत्र खत्म हुआ… लेकिन उसकी आँखें घंटों उस खाली जगह को देखती रहीं, जहां कभी उसकी पत्नी बैठा करती थी।
अब वो सिर्फ एक याद थी —
पर इतनी जीवित कि हर धड़कन में उसकी आहट थी।
"सच्चा प्यार शरीर के जाने से खत्म नहीं होता —
वो तो हर उस सांस में जिंदा रहता है,
जहां दो आत्माएं बिना कहे सब कह जाती हैं।" 💔
🙏 अगर ये कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो उसे औरों से जरूर बाँटिए —
क्योंकि हो सकता है किसी और के आंसू भी इस शब्दों में पनाह पा लें।
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(साभार सोशल मीडिया कॉपीपेस्ट 🖋️ 🖍️ 🖋️)