
05/01/2025
वो मुख़ालिफ़ हैं पैरों से ज़मी निकालते हैं
आप अपने हैं उल्फ़त में कमी निकालते हैं
बुरा ना माना हमने आपकी इस बात का कभी
हम ही ने बसाया दिल में, हम ही निकालते हैं
रखते हैं दिखाने को, आप आंख में पानी
हम समझ रहे थे , बअरफ़ जमी निकालते हैं
हम जो डूबे तो साहिल पे पूछते हैं वो
किस का ग़म था हमें, कैसी ग़मी निकालते हैं
जीने को अब हम यहां सौ सौ मौत मरते हैं
'सांसें' , निभाने को दुनिया, थमी निकालते हैं
दीपक भी कौन सा जलने का शौक़ रखते हैं
दिनों के रोये हैं , रातों नमी निकालते हैं
~ दीपक