19/09/2025
शिव और रावण
रावण भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था। एक बार उसने अपनी भक्ति से शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत को उठा कर ले जाने का प्रयास किया। जब रावण कैलाश पर्वत उठा रहा था, तो पर्वत हिलने लगा। यह देखकर माता पार्वती भयभीत हो गईं।
तब शिव जी ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत पर हल्का सा दबाव डाला। रावण इतना भारी दबाव सहन नहीं कर पाया और उसके हाथ पर्वत के नीचे दब गए। दर्द से व्याकुल होकर रावण जोर-जोर से रोने लगा। उसकी दहाड़ से तीनों लोक कांप उठे। रावण ने अपनी पीड़ा को शांत करने के लिए शिव स्तुति करना शुरू किया। रावण की भक्ति और स्तुति सुनकर शिव जी प्रसन्न हुए और उसे दर्द से मुक्ति दिलाई। रावण की चीख से ही शिव का एक नाम 'महादेव' और रावण का नाम 'रावण' पड़ा, जिसका अर्थ है 'जो दहाड़ता है'।शिव और नंदी
नंदी, जो शिव के प्रिय वाहन हैं, उनकी कथा शिव जी की करुणा और भक्ति का प्रतीक है। नंदी का जन्म ऋषि शिलाद की कठोर तपस्या के बाद हुआ था। ऋषि शिलाद ने शिव से अमर और तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा था। शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें नंदी के रूप में पुत्र दिया।
नंदी ने अपने जीवन का हर क्षण शिव की सेवा में समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने नंदी को अपना सबसे प्रिय गण और वाहन बना लिया। नंदी को यह वरदान भी मिला कि जो कोई भी उनके कान में अपनी मनोकामना कहेगा, शिव उसे अवश्य पूरा करेंगे। इसलिए आज भी भक्त मंदिरों में नंदी के कान में अपनी इच्छाएं बोलते हैं।शिव और गणेश
एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी की रचना की और उन्हें अपने कक्ष के द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। जब शिव जी वापस लौटे, तो गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। शिव जी ने बहुत समझाया, लेकिन गणेश नहीं माने। इस बात पर शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब पार्वती जी को यह बात पता चली, तो वे बहुत दुखी हुईं। उनका दुःख देखकर शिव जी ने गणेश को पुनर्जीवित करने का वचन दिया। उन्होंने अपने गणों से कहा कि वे जिस भी दिशा में जाएं, उन्हें पहला जो भी जीवित प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसका सिर लाकर उन्होंने शिव को दिया। शिव ने हाथी का सिर गणेश जी के धड़ पर लगा दिया और उन्हें एक नया जीवन दिया। इस तरह गणेश जी गजानन कहलाए। यह कथा शिव के प्रेम और करुणा को दर्शाती है।अर्धनारीश्वर
एक बार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का कार्य शिव जी को सौंपना चाहा, लेकिन शिव ने मना कर दिया। तब ब्रह्मा ने स्वयं सृष्टि की रचना की। उन्होंने सभी जीवों को जन्म दिया, पर वे अपनी संख्या नहीं बढ़ा पा रहे थे। तब ब्रह्मा जी ने शिव से मदद मांगी। शिव जी ने तुरंत ही अपनी शक्ति पार्वती जी को अपने भीतर समाहित कर लिया और अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया। इस रूप में शिव का आधा शरीर पुरुष का था और आधा स्त्री का।
यह रूप दर्शा रहा था कि सृष्टि को बढ़ाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का मिलन आवश्यक है। यह देखकर ब्रह्मा जी ने अपनी तपस्या से पुरुष और स्त्री, दोनों की रचना की और उनसे सृष्टि का विस्तार हुआ। यह कथा बताती है कि शिव और शक्ति एक ही हैं और दोनों के बिना सृष्टि अधूरी है।त्रिशूल और डमरू
शिव का त्रिशूल तीन गुणों - सत, रज, और तम - का प्रतीक है, जो सृष्टि के संचालन के लिए आवश्यक हैं। वहीं, डमरू ध्वनि और सृष्टि के जन्म का प्रतीक है। जब शिव डमरू बजाते हैं, तो ब्रह्मांड में ऊर्जा और जीवन का संचार होता है। यह दोनों वस्तुएं शिव के सृजन और संहार दोनों रूपों को दर्शाती हैं।गंगा का अवतरण
एक बार राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का निश्चय किया। गंगा का वेग इतना अधिक था कि अगर वह सीधे पृथ्वी पर आतीं, तो प्रलय आ जाती। इसलिए भागीरथ ने शिव से प्रार्थना की। शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया, जिससे उनका वेग कम हो गया। इसके बाद शिव ने अपनी जटा से गंगा की एक धारा को पृथ्वी पर प्रवाहित किया। इस घटना के कारण शिव को 'गंगाधर' भी कहा जाता है। ji