16/08/2025
अगर बिहार की राजनीति ईमानदार होती, तो आज पटना सिर्फ “ट्रैफिक जाम” के लिए नहीं बल्कि सिलिकॉन वैली ऑफ ईस्ट के नाम से जाना जाता।
अगर राजनीति सचमुच जनता की सेवा होती, तो “बेरोज़गारी भत्ता” का वादा करने के बजाय हर घर में नौकरी होती।
अगर नेता वादों पर चलते, तो गंगा किनारे दुनिया की सबसे आधुनिक यूनिवर्सिटीज़ खड़ी होतीं, और हमारे बच्चे दिल्ली–मुंबई का टिकट कटवाकर भागते नहीं।
पर अफसोस!
सच तो ये है कि बिहार में चुनाव हर पाँच साल में “रोज़गार बनाम जाति” के नाम पर लड़ा जाता है… और जीत हमेशा जाति की होती है।
राजनीति अगर ईमानदार होती, तो शायद अब तक हर गांव में सड़क, बिजली, पानी और अस्पताल होता… लेकिन यहां तो नेता “पुल बनवाने” का श्रेय लेने में इतने व्यस्त हैं कि जनता अब भी नाव और बैलगाड़ी से सफ़र कर रही है।
आज भी युवा नेता के मंच पर “नौकरी चाहिए” चिल्लाता है… और नेता हंसकर कहता है – “अरे भाई, पहले वोट दो, नौकरी बाद में देखेंगे।”
सच मानिए, अगर राजनीति ईमानदार होती तो बिहार देश को सिर्फ IAS–IPS ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के CEO भी देता।
लेकिन क्या करें?
बिहार की राजनीति तो वैसी है जैसे शादी में मिठाई का वादा और थाली में सिर्फ मुरमुरा! 🍛