CartoonBox05

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17/02/2025

यह पूरी तरह से अराजकता और अस्वीकार्य व्यवहार है! सार्वजनिक संपत्ति, जिसे आम जनता के टैक्स के पैसे से बनाया और मेंटेन किया जाता है, उसे इस तरह से नष्ट करना न सिर्फ अपराध है, बल्कि देश के विकास में बाधा डालने जैसा है। रेलगाड़ियाँ करोड़ों यात्रियों के सफर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उनकी तोड़-फोड़ करना देश के संसाधनों का दुरुपयोग है। ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह की हरकत करने की हिम्मत न करे। कानून-व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है, और जनता को भी ऐसी घटनाओं का विरोध करना चाहिए।
Ministry of Railways, Government of India Narendra Modi Amit Shah

30/10/2024

Whenever you see the Stars icon, you can send me Stars!

रात के करीब ढाई बज रहे होंगे। नाइट शिफ्ट करने के बाद मैं पैदल ऑफ़िस से घर की और लौट रहा था। वाहन न होने के कारण बीते एक-...
02/08/2024

रात के करीब ढाई बज रहे होंगे। नाइट शिफ्ट करने के बाद मैं पैदल ऑफ़िस से घर की और लौट रहा था। वाहन न होने के कारण बीते एक-डेढ़ साल से महानगर की सूनी बियावान और लंबी सड़कें हमसाया बनकर मेरे साथ चलती रही हैं। बाप रे! इतनी लंबी-लंबी और भूतिया सड़कें। खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं। बस, चलती रहती हैं, चलती रहती हैं। रुकने का नाम ही नहीं लेतीं। कहीं ऐसा घनघोर अंधेरा कि पैर कहां पड़ रहे हैं पता ही न चले, तो कहीं खंभों की लाइट से फूटते सफेद झिलमिलाते प्रकाश में नहाती सड़कों की खूबसूरती देखते ही बनती है। रोज़ाना का रूटीन होने के कारण अब इन सूनी और अंधेरी सड़कों से डर नहीं लगता! इन्हीं सूने और बियावान रास्तों पर दिन भर इतना हैवी ट्रैफिक और चहल-पहल रहती है कि एक कदम पैदल चलना भी दूभर हो जाए।

मई की बेरहम गर्मी... माथे से चुहता पसीना और ऐसे में अचानक हल्की-हल्की ठंडी चलने लगे। माथे के पसीने से टकराती ठंडी हवा कितनी शीतलता प्रदान करती है। ऐसे में कौन बेवकूफ़ होगा, जिसका मन गुनगुनाने को नहीं करेगा। गुनगुनाते हुआ मैं आगे बढ़ ही रह था कि अचानक आँखें एक जगह पर जाकर ठिठक गईं। सड़क किनारे एक सभ्य सी अधेड़ महिला खड़ी दिखाई दी। करीब सौ-सवा सौ फिट की दूरी रही होगी। कंधे पर छोटा सा बैग लटका था वहीं पैरों के पास भी एक ब्रीफकेस ज़मीन पर रखा दिखाई दिया। सफेद प्रिंट वाली साड़ी से जिस करीने से उसने अपना सिर ढंक रखा था, उससे तो वो किसी भले घर की ही गृहणी ही लग रही थी। लेकिन, इतनी रात गए! वो भी शहर के भीतर से गुजरने वाले हाईवे पर। कुछ अजीब सा लगा। हो सकता है मायके या ससुराल वालों ने बस में बिठा दिया हो और किसी कारण बस लेट होने पर महिला को देर रात यहां उतरना पड़ा हो। शायद, उसका घर यहीं कहीं आसपास ही होगा। या फिर शायद, सवारी ऑटो या रिक्शे का इंतजार कर रही हो। लेकिन इतनी रात गए रिक्शा कहां मिलेगा। शायद, घर का कोई परिजन गाड़ी लेकर आ रहा होगा। शायद, शायद, शायद...सोचते हुए मैं उसके बहुत करीब आ गया। नज़रों से नज़रें टकराई...मगर वो ज़रा भी नहीं झेंपी। मेरी आँखों में बराबर देखती रही। भय का नामो-निशान तक नहीं, वरना इतनी अंधेरी और सूनी रात में एक अकेली महिला। कम से कम मुझ जैसे मवाली सरीखे इंसान को देखकर तो डर ही जाए। लेकिन वो तो लगातार घूरती रही, चेहरे पर न कोई हाव न कोई भाव! हां, होठों पर मुस्कान बराबर जमी रही। मैं ही झेंप गया। मुझे ही नज़रें हटाना पड़ीं। कहीं ऐसी-वैसी तो नहीं। फिर एकदम से सिर झटक दिया। होगी कोई, मुझे क्या लेनादेना। मैं तेज़ी से कदम बढ़ाता हुआ अनजान महिला को क्रास कर गया। अनजाने डर और शर्म के मारे मैंने फिर पलटकर नहीं देखा! न जाने वो क्या सोच बैठे...! चलते-चलते मैं दूसरी सड़क पर आ पहुंचा। अब वो सड़क और महिला पूरी तरह से ओझल हो चुकी थी। कहीं कोई भूत-वूत तो नहीं थीं। थोड़ी देर पहले भला लगने वाला रास्ता अब भयभीत करने लगा था। मैं जल्द-जल्द अपने घर पहुंच जाना चाहता था। इसी तारतम्य में चाल में गज़ब की तेजी आ गई और बड़े-बड़े डग भरने लगा।

करीब पौना किमी ही चला था कि अचानक मुंह से चीख से निकल गई। वो महिला करीब सौ गज दूर उसके सामने सड़क किनारे ठीक उसी ढंग से खड़ी दिखाई दी। कंधे पर बैग और ज़मीन पर ब्रीफकेस। यह कब यहां आ गई। एक ही रास्ता तो है। न कोई गाड़ी निकली और न ही वह पैदल दौड़ती हुई मुझसे आगे निकल गई। मेरा पूरा शरीर मारे डर के पसीने से तर-बतर हो गया। लगा, कि आज की रात आखिरी रात है। वो भूतिया औरत कुछ देर में मुझे चबा-चबाकर खा जाएगी। मैं बेतहाशा भागा। इतनी तेज़ की पता ही नहीं चला कि वो औरत कब पीछे रह गई। भागता रहा, भागता रहा और सीधे घर पर जाकर ही रुका। सांसें धौंकनी सी चल रही थीं। घर के बाहर ही कुछ पल खड़ा रहकर अपनी सांसों पर कंट्रोल किया।

अगले दिन शाम करीब पांच बजे ऑफ़िस पहुंच गया। एक बुजुर्ग कर्मचारी को रात का सारा घटनाक्रम सुना डाला। हँसते हुए बोले रामू चचा, अरे...कहीं बूचडख़ाने के पास की बात नहीं कर रहा। बूचडख़ाना...मैं बुदबुदाया! हां, हां, बूचडख़ाना...स्लाटर हाउस। जहां जानवर कटते हैं। बेटा, वो सड़क बहुत खतरनाक है! बहुत हादसे होते हैं वहां। तेज रफ्तार बड़ी गाड़ियों ने बहुत सारे लोगों को कुचला है! सुना है कि कई साल बस का इंतजार कर रही एक औरत को भी एक ट्रक ने रौंद डाला था। तुझे ही नहीं, बहुत सारे लोगों को दिख चुकी है। लेकिन बेटा, भली औरत की रूह लगती है। कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती। मैं हैरान था और परेशान भी। अब कैसे निकलूंगा उस रास्ते से रात में पैदल। और, एक आत्मा, औरत की रूह से आमना-सामना हुआ है मेरा। वो भी भली औरत की रूह।
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