
03/04/2025
हम इतने लाचार और बेबस कैसे हो गए..?
आज हालात ऐसे हैं कि हमारे पास लाखों एकड़ वक्फ़ संपत्तियाँ होने के बावजूद कुछ नहीं बचा, कौम आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर खड़ी है। क्या हमने कभी सोचा कि हमारी इस दुर्दशा का ज़िम्मेदार कौन है? क्या यह सिर्फ़ बाहरी ताकतों की साज़िश है, या फ़िर हमने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है..?
अगर हम खुद से सवाल करें, तो जवाब साफ़ मिलेगा हमारी लाचारी और बेबसी का सबसे बड़ा कारण हमारी खुद की गलतियां हैं, हमारी हरामखोरी, जमाखोरी, दलाली और चमचागीरी है।
वक्फ़ संपत्तियाँ एक ऐसी दौलत थीं, जो अगर सही से इस्तेमाल होती तो कौम आज किसी पर निर्भर नहीं होती। लेकिन हुआ क्या..? इन संपत्तियों पर कब्ज़े हो गए, भ्रष्टाचार ने इन्हें खोखला कर दिया और हमने आंखें मूंद लीं। अगर हम ख़ुद ही अपने हक़ के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो कौन उठाएगा..?
हम मदरसों और सरकारी स्कूलों तक सीमित रह गए। जबकि दुनिया आगे बढ़ रही थी हमने अपने नौजवानों को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक और बिजनेसमैन बनाने के बजाय उन्हें सिर्फ़ रोटी कमाने में उलझाए रखा।
हमने अपनी कौम के रहनुमाओं को बिना सवाल किए अपना नेता मान लिया, लेकिन क्या उन्होंने हमें सही दिशा दिखाई? क्या उन्होंने हमारी बुनियादी समस्याओं को हल करने की कोशिश की? या फिर वे सिर्फ़ अपनी राजनीति चमकाने, अपनी गद्दी बचाये रखने और सत्ता के करीब पहुंचने में लगे रहे?
जब भी हमे एकता की ज़रूरत पड़ी, हम फिरकों, जातियों और क्षेत्रीय पहचान में उलझ गए। यह बिखराव ही हमारी बड़ी कमज़ोरी बनी और उसी का फ़ायदा हुक़ूमत ने उठाता।
पहले ट्रिपल तलाक़, फ़िर CAA और अब वक्फ़ और आगे UCC ये सब हमारी बेबसी का सबूत हैं। यह समय सिर्फ़ शिकायत करने का नहीं, बल्कि ख़ुद को बदलने का है। अपनी कमजोरियों को पहचानकर उसपर बात करने का है, उसे दूर करने का है, अपने हक़ के लिए संगठित होकर मज़बूती से खड़ा होने का है। अगर हम अब भी नहीं संभले तो हमारी दुर्दशा का सिलसिला यूँही चलता रहेगा, और हम हर मोर्चे पर पीटते और रुसवा होते रहेंगे और खुद को यूँही लाचार और बेबस महसूस करते रहेंगे।
Anwer ✍️