15/11/2025
डॉक्टर सरवर जमाल
(मुख्य संपादक)
रोजनामा इंडो गल्फ,हिंदी दैनिक की क़लम से!
जनादेश ने कहा मुख्यमंत्री बनो नीतीश
बीजेपी ने किया खेल तो हो जाएगा खेला
बिहार के चुनाव नतीजे ने सबको हतप्रभ कर दिया है। देश की राजनीति के मौजूदा चाणक्या कहे जाने वाले अमित शाह को भी इन नतीजे ने हक्का-बक्का कर दिया है। सेहत का सामना कराकर नीतीश को कमज़ोर कराने की रणनीति से जेडीयू के समापन की पटकथा लिखने वालों को भी इन नतीजे ने पूरी तरह और बुरी तरह चौंका दिया है। नीतीश कुमार फिर से एक नायक के तौर पर बिहार की राजनीति के खेवनहार साबित हुए हैं।
नीतीश ने अपनी कौशल, रणनीति और उमदा सियासी सोच के बल पर बिहार की सियासत के साथ-साथ अपनी राजनीतिक सेहत को एक मुक़ाम दिया है। और यह साबित कर दिया है कि बिहार के असली चाणक्या नीतीश कुमार ही हैं, अमित शाह नहीं। नीतीश ने बिहार के परिणाम को आगे करके बता और जता दिया कि अमित शाह को चाणक्या मानना है, तो बिहार के बाहर का चाणक्य मानें। अब इकलौता बिहार का चाणक्या मैं ही हूं।
यह परिणाम जितना भी विशाल और वैभवपूर्ण बीजेपी के लिए रहा हो, लेकिन इतना तय है कि इसकी निर्भरता और उस विशाल परिणाम नीतीश कुमार के विवेक पर ही अटका है। नीतीश कुमार अगर एक बार बीजेपी से बेरुख़ हो जाएं, तो बिहार के नतीजे में नंबर वन की पार्टी यानी बीजेपी के लिए यह नतीजा ख़ाक़ छानने वाला बन सकता है। नीतीश कुमार चाहें, तो अपनी एक पलटी से ‘गर्दा’ उड़ा सकते हैं। और बीजेपी जिस तरह से नंबर वन पर आने के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, को लेकर संशय चुनावी नतीजों तक बनाए रखा, उससे साफ़ था कि बीजेपी के मन में कहीं न कहीं नीतीश कुमार को लेकर बेईमानी थी। लेकिन इस बेईमानी भरी मंशा को नतीजों ने थाम लिया।
एक तरह से आप कह सकते हैं कि इस बार का परिणाम ‘हंग असेंबली’ भी साबित हो सकता है। अगर बीजेपी, नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने से चुकती है, तो फिर नीतीश कुमार पलटने से नहीं चुक सकते हैं। और अगर बीजेपी ने नीतीश कुमार के साथ षडयंत्र की शुरूआत की, तो नीतीश कुमार पलटने की शुरूआत कर सकते हैं।
2025 में बीजेपी का मक़सद था नीतीश कुमार को निपटाना। और जेडीयू को हाशिए पर लाकर खड़ा कर देना। इसी के मद्देनज़र और इसी मक़सद से नीतीश कुमार को बड़ा भाई मानकर चलने वाली बीजेपी ने अपना दोस्त कहकर अपनी बराबरी में ला दिया। नीतीश कुमार ने इस दर्द को सीने में छुपा लिया। वो इस इंतज़ार में रहें कि वे अपनी हैसियत को एक बार फिर बड़ी कर लेंगे, और बीजेपी को जेडीयू के सामने घुटने टेकने ही पड़ेंगे।
अगर बीजेपी ने अब नीतीश कुमार के साथ खेला शुरू किया, तो नीतीश कुमार अब चुकने वाले नहीं हैं। वे अब बीजेपी के सामने सीट बंटवारे की तरह झुकने वाले नहीं है। वे अब बीजेपी के दिए गए जख़्म को अपने सीने में दबाने वाले नहीं है। वे अब एक-एक पैतरे का हिसाब करने वाले हैं। बस वे बीजेपी की एक चूक का इंतज़ार कर रहे हैं। बीजेपी जहां अपने दल के किसी नेता को मुख्यमंत्री का ओहदा देने का ऐलान करेगी, नीतीश कुमार बिना किसी देर किए सीधे राजभवन पहुंच जाएंगे, अपनी सरकार के गठन के लिए।
नतीजे बीजेपी के जितने भी बेहतर रहे हों, लेकिन नीतीश बिन सब सुन है। नीतीश अगर मुख्यमंत्री के लिए अड़ जाएं, तो बीजेपी की बाध्यता होगी, उनको इस पद के लिए सहर्ष स्वीकार करना। क्योंकि बीजेपी के पास अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए जनता-जनार्दन ने जनमत नहीं दिया है।
इसकी भी वजह है। नीतीश को छोड़कर एनडीए बहुमत के आंकड़ा को पार नहीं कर पा रहा है। बीजेपी को 89 सीटें मिली हैं। उसके बाद चिराग़ पासवान की पार्टी का नंबर आता है। चिराग़ के दल के 19 उम्मीदवार जीते हैं। जीतन राम मांझी के दल को 05 सीटें मिली हैं। और कुशवाहा की पार्टी को 04 सीटें मिली हैं। कुल मिलाकर बग़ैर नीतीश एनडीए का आंकड़ा 117 पर जाकर ठहर जाता है। इस बार निर्दलीय की तादात इकदम नगण्य रही है। बीएसपी को 01 सीट मिली है। और आईआईपी को एक सीट मिली है। इसे भी जोड़ दें, तो बग़ैर नीतीश एनडीए के पास आंकड़ा बहुमत से 03 कम ही रहता है।
अब उन्हें ओवैसी तो खुलकर समर्थन देने से रहे। उनके 05 विधायक किसी भी हाल में बीजेपी में नहीं जा सकते हैं। लेकिन नीतीश कुमार के साथ आ सकते हैं। महागठबंधन में लेफ़्ट को, जो सीटें मिली हैं, वे भी विचारधारा के तौर पर बीजेपी को बाहर से भी समर्थन नहीं दे सकती हैं। ऐसे में उन्हें कांग्रेस में सेंध डालनी होगी, तो क्या ऐसा संभव लगता है। क़तई नहीं। आरजेडी के विधायकों को तोड़ना भी कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने के मंसूबों पर पानी फेरने जैसा ही है। लेकिन नीतीश कुमार बीजेपी के बग़ैर बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। बिहार ने उन्हें जो जनादेश दिया है, वह मुख्यमंत्री बनाने के लिए ही।
नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने मुख्यमंत्री बनने के लिए 85 सीटें दी हैं। कांग्रेस की 06 सीटें हैं। आरजेडी की 25, लेफ़्ट की 03 और एआईएएम की 05 सीटें आपस में जुड़ने के साथ बहुमत का जादुई आंकड़ा पार कर जाता है। यानी 122 से 02 सीटें ज़्यादा। और ऐसे में बीएसपी भी नीतीश कुमार के पक्ष में जब आ जाएगी तो फिर एक अन्य दल आईआईपी नीतीश कुमार को समर्थन देने के लिए बाध्य होगी। तब नीतीश कुमार का आंकड़ा बहुमत से बढ़कर 4 हो जाएगा। और फिर उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश के साथ आने की जुगलबंदी करेंगे। ऐसा इसलिए कि उपेंद्र कुशवाहा ही एनडीए के ऐसे घटक दल हैं, जो केंद्र सरकार में शामिल नहीं हैं। उन्हें केंद्र से कुछ खोने का मलान नहीं रहेगा। और तब नीतीश खेमें में बहुमत का आंकड़ा 122 से 130 हो जाएगा। और जब मांझी इस नीतीश की तरफ़ ललायित नज़र आएं, तो बीजेपी के लिए बिहार ही नहीं केंद्र की सरकार भी ख़तरे में नज़र आएगी। और तब नीतीश कुमार की सरकार जादुई आंकड़ा से 13 सीटे आगे रहेगी, जिससे उन्हें भविष्य में कोई चुनौती का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। जोड़-तोड़ की स्थिति में भी उनकी कुरसी टस से मस नहीं होगी।
इस जनादेश ने बीजेपी को नंबर वन पार्टी बनाकर भी उसे बेबस, मजबूर और नीतीश के रहमोकरम पर शासन करने वाला बनाकर रख दिया है। इस बात को अब बीजेपी को समझते हुए नीतीश को मुख्यमंत्री पद से पदच्यूत करने की भावना का त्याग करना पड़ेगा। और अपना मुख्यमंत्री बनाने के सपने को विराम देकर बिहार में विकास के रास्ते को विकसित करना होगा। यही इस जनादेश का बीजेपी लिए पैग़ाम है।
(लेखक- डॉक्टर सरवर जमाल,मुख्य संपादक।)