Patna Book Fair

Patna Book Fair CRD Patna Book Fair 5-16 December, 2025 at Gandhi Maidan, Patna CRD promotes reading and books in Bihar and Jharkhand. PBF is a mega event of activity.

To read is to empower
To empower is to write
To write is to influence
To Influence is to change
To change is to live. Centre for Readership Development is an organization of volunteers working since 1985.CRD is an organization that involves technocrats, social scientists, journalists, bureaucrats, writers, book lovers and enthusiasts. Towards this CRD regularly organizes book fairs in Patna, Ranch

i, Gaya and Bhagalpur. Our Patna Book Fair is amongst the top ten Book Fairs of the world in terms of size and footfall. CRD is organizing Patna Book Fair (PBF) from last 37 years. It attracts public attention and media patronage like no other event in this part of the country. Patna Book Fair is a mega event which includes Street Play, Drama, Essay, Elocution, Quiz, JAM, Dance, Talent Hunt and Painting.

संस्थापक  श्री नरेंद्र कुमार झा (NK Jha )Patna Book Fair के डेस्क से  : आप  पटना में रहकर भी पटना में नहीं हैंप्रशंसकों ...
29/11/2025

संस्थापक श्री नरेंद्र कुमार झा (NK Jha )Patna Book Fair के डेस्क से :

आप पटना में रहकर भी पटना में नहीं हैं

प्रशंसकों के नज़र से :

*संस्मरण: शुक्रवार ३१ अक्तूबर २०२५*

*ADMIRERS ADMIRE*

*पटना पुस्तक मेला : अवधि- शुक्रवार १३ से बुधवार २५ नवम्बर, १९९२*
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*याददाश्त: कतिपय चर्चित प्रतिक्रियाएं*
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*'आज' पटना, मंगलवार १७ नवम्बर १९९२*
*पटना पुस्तक मेला : राजधानी पटना के शैक्षिक जगत का हसीन नजारा*
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*"....हाँ, हम पटना मे रहकर भी पटना में नहीं हैं...आप चौंकिए मत। अगर आप भी यहाँ हैं तो आप भी पटना में रहकर पटना में नहीं हैं...और सच तो यह है कि आए ही यहाँ हैं इसलिए कि कुछ ही पल, कुछ ही घंटे के लिए आप यह अहसास कर सकें कि आप पटना में रहकर भी पटना में नहीं हैं....यह अहसास कितना सुकून दे रहा है आपको....अचानक आपमें इतनी तब्दीली क्यों आ गईं है....आप पूरे पटना से अलग इस टुकड़े पर चहलकदमी करते हुए अपने आप में क्या महसूस कर रहे हैं....आप पटना शहर या उसके बाहर और किसी जगह पर थे तब और जब यहाँ पर आप हैं तो देखिए कितना अन्तर महसूस कर रहे हैं आप अपने आप में..... जहाँ कभी पाकेटमार टहलते थे, और फिर टहलेंगे, जहाँ जोशीले भाषणों से आप छले जाते थे और फिर छले जाएंगे.... जहाँ कभी सूअर स्वच्छन्द विचरण करते थे‌ और फिर विचरण करेंगे वहाँ आप कितनी निश्चितता, कितनी ललक और कितनी चाहत के साथ टहल रहे हैं....आप सोच रहे हैं और हैरत में हैं कि यह कौन सी जगह है जहाँ हम टहल रहे हैं और यह जगह पटना शहर से बाहर है...तो हाँ जनाब। ७० हजार स्क्वायर वर्गफीट में यह जगह है पटना पुस्तक मेला..... देखिए अब आप भी महसूस करने लगे न कि आप पटना शहर में रहकर भी पटना से बाहर हैं और अब आप यह भी महसूस करने लगे कि 'इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार' और आप आ भी रहे हैं बार-बार......."*

*शनिवार १४ नवम्बर १९९२*
*THE HINDUSTAN TIMES, PATNA*

*SIDELIGHTS:"...Patna Book Fair also has its therapeutic value. You see, it is a magnificent equaliser. We saw Mrs NK Jha's wife and children queueing up for [Entrance Fee] tickets. Mr Jha, as is known, is the General Secretary........*
*Then Mr Ram Sundar Das was seen sauntering nonchalantly by and the DGP, Mr Arun Kumar Chowdhury flipping over pages at the British Council stall.*
*Mr Ram Chandra Purve, Mr Jiya Lal Arya, IGs and other officials come and go like commoners. It is really significant in a city where there are more VIPs than none. Of course, the flag was kept flying at a three-star official's staff car. Everyone was impressed till a white Gypsy drove in to take the officer's son away. Then everyone was truly impressed.......*

*'आज', पटना: बृहस्पतिवार २६ नवम्बर १९९२*
*एक बेटी की तरह विदा हो गया 'पटना पुस्तक मेला'*
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*"...... पटना पुस्तक मेले का आखिरी दिन.....मेला परिसर लगभग ५० हजार पुस्तक प्रेमियों से गुलजार है....हर स्टाल पर भीड़ उमड़ आई है.... पुस्तकों 📚 के देखने और खरीदने का क्रम जारी है.... लोगों के साझा अनुभव, विचार और सुझाव और हर अनुभव से जो एक बात निकलती है या एक धारा समान रूप से बहती है वह यह कि इस पुस्तक मेले से बिहार के शैक्षिक जीवन में एक रचनात्मक हलचल आई है और यह कि ऐसा आयोजन हर वर्ष होना चाहिए..... मेला आयोजन समितिके महासचिव एन०के० झा मेलेमें सर्वाधिक व्यस्त रहनेवाले व्यक्ति हैं।‌ इनके पहाड़ जैसे कठोर श्रमका परिणाम है पटनामें आयोजित होनेवाला पुस्तक मेला। मेला समाप्तिके दिन (बुधवार २५ नवम्बर) मेले की समाप्तिपर अपना अनुभव बताते वक्त श्री झा का गला भर आता है। वे कहते हैं 'बेटी की विदाईका जो अनुभव होता है वही अनुभव हमें हो रहा है।' कहते हैं 'एक संयोग है कि आज ही बेटीको विदा किया हूँ और दो वर्ष के लिए पुस्तक मेलेको भी।' ........ फिलहाल एक बेटीकी तरह विदा हो गया इस शहरसे पुस्तक मेला....."*
*[महर्षि वाल्मीकि का संदेश: 'हताश न होना सफलताका मूल मन्त्र है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्यको कर्मों में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्मको सफल बनाता है।"]*

*दृष्टिकोण: कतिपय अतिथियों/दर्शनार्थियों की बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं*
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*शनिवार २१ नवम्बर १९९२*
*Mr N.K. Jha deserves all the praise for organising the Patna Book Fair. The office bearers have done their best to make the fair as representative and attraction as possible under the existing circumstances. It is hoped they will do still better next time.*
-- Dr Chetakar Jha, Ex-Vice Chancellor, LN Mithila University, Darbhanga

*शनिवार २१ नवम्बर १९९२*
*श्री नरेन्द्र कुमार झा इस पुस्तक 📚 📖 मेले के प्रमुख आयोजक हैं। इस पुस्तक मेले का आयोजन देखकर मैं दंग हो गया।‌ "पुस्तकी भवति पण्डित:" यह उक्ति भारत प्रसिद्ध है। परन्तु आज के युग में मेला लगाना खेल नहीं है। युवक युवतियाँ विभिन्न विचारधारा के आते हैं। सही सलामत वे मेला देखकर लौट जाएं,कम नहीं है। मैं इस मेले को बिहार का गौरव मानता हूँ।*
-- प्रोफेसर हरिशंकर त्रिपाठी, राँची

*रविवार २२ नवम्बर १९९२*
*I am heartily thankful to Mr N.K. Jha for organising such an educative fair in order to boost up the morale of teachers, students, intellectuals and scholars of the backward state. This fair seemed to me highly educative and intellectually entertaining. This fair symbolises the shining of education even in Bihar. It is not much of less glory that a book 📚 fair is held in Bihar every year. The fair has amalgamised the glory of Bihar.*
-- S.S. Yadav, Research Scholar, Patna

*मंगलवार २४ नवम्बर १९९२*
*आदरणीय झाजी,*
*स्मारिका का नरनाभिराम आवरण पृष्ठ बाँधनेवाला है। पटना पुस्तक मेला के सांस्कृतिक इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। इसे पूरे राज्य के सांस्कृतिक उत्थान के लिए की जा रही है एक सार्थक पहल के रूप में देखा जाएगा। आपने इसे सफल बनाने में जितना परिश्रम किया है उसे भी नहीं भुलाया जा सकता है। इसी कारण यह मेला इतना प्रभावशाली और सार्वदेशिक महत्त्व का प्रमाणित हुआ।*
-- अमर कुमार सिंह, निदेशक, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना

*मंगलवार २४ नवम्बर १९९२*
*पटना पुस्तक मेला इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि अब जो पाटलिपुत्र का इतिहास लिखा जाएगा उसमें बिना पुस्तक मेला को जोड़ें यह पूर्ण नहीं माना जाएगा। बिहार में शैक्षिक और सांस्कृतिक वातावरण के निर्माण में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाएगी। आयोजन समिति के सभी सदस्य आयोजन में सक्रिय दिखते हैं किन्तु नरेन्द्र कुमार झा इस दृष्टि से विलक्षण हैं कि परिश्रम करने में उनका मुकाबला परिश्रमी से परिश्रमी मजदूर भी नहीं कर सकता। इतनी कम उम्र, इतनी मेधा, इतना परिश्रम वंदनीय है। इस पुस्तक मेला में श्री नरेन्द्र कुमार झा को काफी करीब से देखने का मौका मिला है और उसकी आयोजन शक्ति का लोहा मानना ही पड़ेगा। इस पुस्तक मेले के सफल आयोजन के लिए तमाम सदस्यों और विशेषतः श्री नरेन्द्र कुमार झा को हार्दिक बधाई। भविष्य में ऐसे आयोजनों द्वारा वे सामाजिक चेतना को विस्तार दें। यही मेरी भावना और परिकल्पना की स्वर्ण-गंधा है।*
-- अमर कुमार सिंह, निदेशक, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना

*बुधवार २५ नवम्बर १९९२*
*Dear Narendrajee,*
*As Patna Book Fair 1992 glides down into the pages of history now, its time to thank you for giving us yet another successful Book 📚📖 Fair. The credit primarily goes to the book lovers of Patna who have made it possible. However, the indefatigable efforts, which have gone into its organisation were indeed commendable. The meticulous details were worked out, which is why the fair has been a success. I would be failing in my duties if I don't acknowledge your kind co-operation. I on behalf of my team thank you profoundly.*
-- A.S. Raghunath, Advt. Manager, The Hindustan Times, Patna

*बृहस्पतिवार २६ नवम्बर १९९२*
*There is no word to express the grand and successful arrangement of the Patna Book Fair 1992 organised by the.... association under the able and painstaking guidance of Sri N.K. Jha, Secretary-General of the association. I am compelled to express that without his untiring efforts and personal supervision, the Fair 📚 could never have been successful. I wish him every success in such organisations of Book Fair in future.*
-- Vishwanath Chatterjee-Pabitra Chakravarthy, Assistants, Patna High Court

*शुक्रवार २४ दिसम्बर १९९२*
*पटना पुस्तक मेला १९९२ अभूतपूर्व माना जाएगा। विशेषकर इसके सचिव श्री नरेन्द्र कुमार झा की श्रमशीलता और कलात्मक रुचि प्रकट रूप में सर्वत्र देखने को मिली। पुस्तकें 📚 ज्ञान की स्रोत होती है। निश्चय ही इस बार के मेले में आए प्रकाशकों और उनके स्टाल पर सभी पुस्तकों ने- मुझे समवेत रूप में आभिभूत किया है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् स्वयं एक प्रकाशन संस्थान है और इस आयोजन में परिषद् ने विचार-गोष्ठी, कवि सम्मेलन आदि के माध्यम से जो कुछ किया है - निश्चय ही उसके लिए एक अच्छा अवसर इस पुस्तक मेला ने ही प्रदान किया। परिषद् की ओर से हर सम्भव सहयोग का आश्वासन देता हूँ।*
-- महेन्द्र प्रसाद यादव, निदेशक, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना

*शुक्रवार ०१ जनवरी १९९३*
*मतप्रिय श्री नरेन्द्रजी,*
*पटना पुस्तक मेला १९९२ की उत्कृष्ट सफलता का मुख्य श्रेय आपको प्राप्त है। आप जिस तत्परता, लगन एवं समर्पण की भावना से ओत-प्रोत होकर इस 'महायज्ञ' को ठानते हैं और इसे सम्पन्न करते हैं वह आपकी प्रबल संगठनात्मक प्रतिभा का परिचायक है और उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह थोड़ी होगी। विगत चन्द वर्षों से इस पुस्तक 📚मेला का आयोजन आप पटना में करके जहाँ एक ओर सरस्वती के साधकों को असीम प्रेरणा प्रदान करते हैं तथा उनमें विभिन्न विषयों पर अद्यतन रचना के प्रति जागरुकता एवं जिज्ञासा जगाते हैं वहाँ दूसरी ओर बिहार एवं इसकी राजधानी पाटलिपुत्र की लुप्तप्राय पर चार चान्द लगाते हैं। बिहार जिसने विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़ापन का दारुण प्रतीक का नामवरी अर्जित कर रखा है, को पुस्तक मेला ने शिक्षा क्षेत्र में नव कीर्तिमान स्थापित करने की प्रतिष्ठा प्रदान किया है एवं उसका मुख्य श्रेय आपको एवं समर्पित साथियों को है।‌आपसे पत्र द्वारा या सद्य: साक्षात्कार होते ही सहसा मानस पटल पर आपके प्रतिष्ठित पिताजी स्वर्गीय तारा बाबू - जिनसे मुझे अति सान्निध्य प्राप्त था - का स्मरण जाग उठता है। योग्य पिता के योग्य पुत्र की भांति आपका अव्यवसायिक प्रवृत्ति एवं सेवोन्मुख प्रतिभा श्लाधनीय है। किसी भी पुनीत कार्य के लिए मेरी सेवा सदैव उपलब्ध है और आगे भी रहेगी।*
-- जयशंकर दास, स्वतन्त्रता सेनानी, सदस्य, बिहार राज्य कार्यान्वयन समिति, पटना

*शुक्रवार ०१ जनवरी १९९३*
*प्रिय नरेन्द्रजी,*
*आपके कुशल नेतृत्व में आपकी संस्था द्वारा आयोजित हो रही पुस्तक मेला से वैचारिक रूप से जड़ किन्तु राजनीतिक रूप से प्रभावशाली वर्ग भी पुस्तक 📚 प्रेमी हो गए हैं। कम प्रसन्नता की बात नहीं है। इसके लिए साधुवाद !*
-- डॉ रामानन्द झा 'रमण', पटना

*सोमवार ०४ जनवरी १९९३*
*मान्यवर नरेन्द्रजी,*
*पटना पुस्तक 📚 मेला आपके यश-कीर्ति और रचनात्मक सक्रियता का ही सफल परिणाम है। हमारी बधाई एवं मंगलकामनाएं ग्रहण करें।*
-- प्रदीप कुमार, नई दिल्ली

*मंगलवार ०५ जनवरी १९९३*
*प्रिय झाजी,*
*पटना पुस्तक 📚 मेला १९९२ की अभूतपूर्व सफलता के लिए बधाई स्वीकार करें।*
-- गजेन्द्र नारायण, सेवानिवृत्त आरक्षी महानिदेशक, बिहार, पटना

*मंगलवार ५ जनवरी १९९३*
*मान्यवर झाजी,*
*आपने पटना में'पटना पुस्तक मेला' आयोजित कर बिहार की जनता के लिए ही नहीं, पूरे देश की जनता के लिए देश-विदेश में प्रकाशित पुस्तकों📚के उपलब्ध होने का एक स्थान बना दिया है।*
-- जुग्गीलाल गुप्त, इलाहाबाद

*शनिवार ०९ जनवरी १९९३*
*Dear Sir,*
*Please accept our best wishes for the excellent arrangements at the Patna Book 📚 Fair. We are sure that the Patna Book Fair 1992 was a great success and the credit for that goes to you.*
-- P.C. Vaish, New Delhi

*शनिवार ०९ जनवरी १९९३*
*Respected Sir,*
*We are very grateful to you and the management of the Patna Book Fair, Patna for the valuable co-operation extended to us during the Book 📚 Fair.*
-- Bharat Mediratta, Delhi

*बृहस्पतिवार १४ जनवरी १९९३*
*प्रियवर श्री नरेन्द्रजी*,
*पटना पुस्तक मेला के माध्यम से आपकी कार्यकुशलता का प्रमाण हमें मिल चुका है। आगे आनेवाले वर्षों में आपको और यश मिले, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें त‌था प्रगति के पथ पर अग्रसर हों। यही मेरी कामना है।*
-- डॉ बैकुण्ठ नाथ ठाकुर, सेवानिवृत्त निदेशक, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना

*रविवार ३१ जनवरी १९९३*
*प्रिय महोदय,*
*पटना पुस्तक मेला के माध्यम से आप इस राज्य ही नहीं, पूरे देश में शिक्षा, संस्कृति एवं प्रकाशन-उद्योग 📚 के विकास में जो योगदान कर रहे हैं, उसके लिए मैं आपका वर्धापन करता हूँ।*
-- डॉ कुमार विमल, कुलपति, नालन्दा खुला विश्वविद्यालय, नालन्दा

*बुधवार १० फरवरी १९९३*
*आदरणीय,*
*प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद पटना पुस्तक मेला '९२ का आयोजन अत्यन्त सफल और अनुकरणीय रहा। इस अद्भुत सफलता के लिए आपके मार्गदर्शन में पटना पुस्तक 📚 मेला आयोजन समिति और संघ/संस्थान से जुड़े तमाम सजग और सचेत मित्रों, गुरुजनों को मेरी अशेष सराहना और शुभकामनाएं।*
-- ऋषिकेश,सम्पादक, समकालीन परिभाषा,सीतामढ़ी

*बृहस्पतिवार ११ फरवरी १९९३*
*प्रिय नरेन्द्रजी,*
*मेरी, मेरे परिवार और मेरे मित्र एवं बांधुवों की भी निश्च्छल कामना है कि आप अपने परिवार एवं मित्र-बांधवों के साथ असीम आनन्द एवं अगाध प्रगति के पथ पर अपनी लम्बी आयु में निरन्तर सफलता के सोपानों पर चढ़ते रहें। जहाँ तक शैक्षिक संघ/संस्थान की ओर से पटना पुस्तक मेला के आयोजन का प्रश्न है उसे पहली बार लगभग दो घंटे देखने का सुअवसर मिला। दो बार चार स्टालों का ही गहन परीक्षण कर सका। मेले का परिदृष्य, साज-सज्जा तो बड़ा ही मनोरम और चुस्त था। बिहार की वर्तमान अराजक स्थिति में पुस्तक-विक्रय 📚 के अन्य बौद्धिक एवं सांस्कृतिक कार्य का सफलतापूर्वक समायोजन करना वास्तव में प्रशंसनीय साहस और असीम उत्साह का कार्य है। इसके लिए आपका एवं अन्य आयोजकों को जितनी ही बधाई दी जाए, उतनी ही थोड़ी है।*
-- डॉ आदित्य नाथ मिश्र, इतिहास विभाग, बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर

*पटना पुस्तक मेला १९९४ : अवधि बृहस्पतिवार १५ से सोमवार २६ दिसम्बर*

*रविवार १८ दिसम्बर १९९४*
*श्री नरेन्द्र झा ने भव्य पुस्तक मेले का आयोजन कर न केवल अपनी असीम क्षमता का परिचय दिया है बल्कि बिहार के निवासियों को एक नया संस्कार प्रदान किया है। इस सफलता के लिए मेरी ओर से श्री झा एवं अन्य कार्यकर्त्ता को बधाई।*
-- उमेश मिश्र, वाणिज्य महाविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय

*मंगलवार २० दिसम्बर १९९४*
*पुस्तक मेला की एक समृद्धि ही श्री नरेन्द्र कुमार झा ने बिहार में स्थापित कर दी। श्री झा, पुस्तक-प्रचार-प्रसार की दृष्टि से निसंदेह बिहार के गौरव हैं।* ‌ -- डॉ भगवती शरण मिश्र, ४५/६० बेली रोड, पटना - ८०० ००१

*बुधवार २१ दिसम्बर १९९४*
*पटना पुस्तक मेला देखने से अनायास यह अनुभव किया कि यही मात्र एक 📚 📖 मेला बिहारवासियों के लिए घुप्प अंधेरे में रोशनी का काम करेगा।‌प्रत्येक वर्ष नियमित एवं सुनियोजित तरीके से आयोजित यह मेला बिहार के समय विकास में अपना अमूल्य छाप छोड़कर जाता है।‌ इसके आयोजक विशेष रूप से श्री नरेन्द्र झा बधाई के पात्र हैं जो निरन्तर मन-प्राण से इस भव्य मेले के आयोजन में सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। मैं उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।* -- उपेन्द्र नारायण विद्यार्थी, बजरंग निकेतन, पीरमुहानी, पटना - ८०० ००३

*बृहस्पतिवार २२ दिसम्बर १९९४*
*बिहार के निवासियों (खासकर पटनावासियों के) मानस-पटल पर पुस्तक 📚मेला की स्मृतियाँ चिर-काल तक अंकित रहेंगी। निस्संदेह हमारे बौद्धिक जीवन में पुस्तकों का सर्वाधिक महत्त्व है और शैक्षिक माहौल को ठीक करने के लिए यह अचूक रामवाण है। इसके आयोजक श्री नरेन्द्र कुमार झा बधाई के पात्र हैं।*
-- गोपालजी झा 'गोपेश', जानकीनगर, हनुमान नगर, पटना - ८०० ००१

*बृहस्पतिवार २२ दिसम्बर १९९४*
*पटना में यह पुस्तक मेला लोकोपयोगी एवं शिक्षा जगत खासकर पुस्तकालयों के लिए सिद्ध करता है कि जन-जन में पढ़ने, पुस्तक 📚 खरीदने की लालसा स्वत: हो रही है। यह सराहनीय कार्य है, इसके सभी आयोजकों तथा खासकर नरेन्द्र झा जी को बार-बार धन्यवाद।*
-- नारायण मिश्र, महासचिव, बिहार राज्य पुस्तकालय संघ, पटना

*बृहस्पतिवार २२ दिसम्बर १९९४*
*श्री नरेन्द्र कुमार झा जी का हम हार्दिक आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने पुस्तक प्रेमियों, प्रकाशनों एवं पुस्तक-विक्रेताओं का यह वृहद् समागम पटना में इस मेले के माध्यम से कराया। यह मेला साक्षरता के प्रचार-प्रसार में विशेष सहयोग देगा।‌ उत्तर प्रदेश के समस्त पुस्तक व्यवसायी उत्तर प्रदेश में पुस्तकों में 'कर लगने के आन्दोलन' में बिहार के पुस्तक विक्रेताओं की सहानुभूति एवं सहयोग के लिए भी हार्दिक आभारी हैं।*
-- अध्यक्ष: नवीन जोशी /उपाध्यक्ष: ओ०पी० वोहरा/सचिव: राजकुमार अहूजा, उत्तर प्रदेश पुस्तक व्यवसायी परिषद्, लखनऊ - २२६ ००१

*बृहस्पतिवार २२ दिसम्बर १९९४*
*पटना पुस्तक मेला बिहारवासियों के लिए तीर्थ स्थल बन चुका है।‌ पूरे बिहार से छात्र, शिक्षक एवं अन्य पुस्तक प्रेमी हजारों की संख्या में यहाँ आते हैं और इस पुस्तक📚 कुम्भ में अपना समागम करते हैं। श्री नरेन्द्र कुमार झा एवं मेला के उनके आयोजक साथी धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने कठिनाईयों के बावजूद इस मेले का पाँचवां आयोजन पटना में किया है। निश्चित रूप से पुस्तक संस्कृति यहाँ के लोगों में पैदा हुई है। कवियों, लेखकों एवं प्रकाशकों को भी प्रोत्साहन मिला है। प्रयास अभिनन्दनीय है। सफलता भी हमलोगों के सामने हैं।*
-- डॉ रामचन्द्र पूर्वे, शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार

*शनिवार २४ दिसम्बर १९९४*
*पुस्तक मेला जनसाधारण के साथ-साथ विद्वानों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। इतने बड़े पुस्तकों 📚 के संग्रह को एक साथ पाकर हम सभी बहुत ही उपकृत हुए हैं।‌ इस मेले के संयोजक सर्वश्रेष्ठ बधाई के पात्र हैं।*
-- डॉ जनार्दन झा, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET: बिहार शिक्षा परियोजना), मुरौली, ढोली, मुजफ्फरपुर - ८४२ ००१

*पटना पुस्तक मेला १९९६ : अवधि रविवार १ दिसम्बर से रविवार १५ दिसम्बर*
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*रविवार ०८ दिसम्बर १९९६*
*पटना पुस्तक मेला की ख्याति पहले भी सुनी थी। आज पहली बार इस मेले को देखने का सुअवसर मिला। बिहार के पाठकों की पुस्तकें पढ़ने की भूख को मैं जानता हूँ। यहाँ यह प्रत्यक्ष देखने को मिली। मेले का प्रबन्ध बहुत ही अच्छा है- दिल्ली में आयोजित ऐसे मेलों से भी बेहतर।*
-- गुणाकर मुले पाण्डव नगर, दिल्ली - ११० ९२
[टीका: श्री गुणाकर मुले भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी को लात मारकर स्वतन्त्र‌ पत्रकारिता व विज्ञान लेखन से १९५४-५५ से जुड़े हैं। लगभग ३६ वर्षों तक वे लगातार *'साप्ताहिक हिन्दुस्तान'* व *'धर्मयुग'* में विज्ञान लेखन करते रहे हैं। विज्ञान को हिन्दी माध्यम से लोकप्रिय बनाने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है। *श्री मूले* ने देश के प्रमुख वैज्ञानिकों व वैज्ञानिक शोध केन्द्रों को आड़े हाथों लेते हुए कहा, *"उन्हे डर है कि भारतीय भाषाओं खासकर हिन्दी में लोगों को जानकारी देंगे तो आप लोग जान जाएंगे कि वे कुछ नहीं कर रहे हैं।‌"* श्री मुले की राय में *उन लोगों ने एक ऐसी किलाबंदी कर ली है कि जिसमें भारतीय भाषा प्रवेश नहीं कर सके। धनबाद स्थित CSIR का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि बिहार में अवस्थित होने के बावजूद यहाँ से एक भी जानकारी हिन्दी में नहीं दी जाती है। इसके निदेशक पर अंग्रेजियत का भूत सवार है। जबकि बिहार के लोगों को 'खान‌‌ व तेल', नमक के सम्बन्ध में अद्यतन जानकारी हिन्दी में उपलब्ध करानी चाहिए।* संस्थान के निदेशक विदेशों से ऐसे शब्द आयातित कर लाते हैं जिसका हिन्दी अनुवाद काफी कठिन है। 'आकाश‌ दर्शन', 'अंतरिक्ष यात्रा' व 'नक्षत्र लोक' जैसी प्रसिद्ध विज्ञान पुस्तकों के जाने-माने प्रख्यात विज्ञान लेखक *श्री गुणाकर मुले पटना पुस्तक मेला १९९६ में उपस्थित होकर चकित थे। उन्होंने कहा, "हिन्दी विज्ञानको पूरी तरह व्यक्त करनेमें सक्षम है लेकिन जानबूझ कर यहाँ अंग्रेजी का वर्चस्व बना दिया गया है। यहाँ संस्थानों द्वारा बाहरके लोगोंको दिखानेके लिए अंग्रेजीमें काम किया जाता है। ऐसा जानबूझ कर किया जाता है क्योंकि यदि वे चीजें हिन्दी में आ गईं तो आम लोग सच्चाई जान जाएंगे कि कुछ काम नहीं हो रहा है। श्री मुले बिहार के लोगोंकी पठनीयता पर अभिभूत थे। उन्होंने कहा कि यह एक सुखद आश्चर्य है कि मेरे सबसे ज्यादा पाठक बिहारमें हैं। दिल्लीके पुस्तक मेलामें मुझे कोई नहीं पहचानता लेकिन पटना पुस्तक मेलामें लोग मुझे पहचान गए और मुझसे बातें की। दिल्लीने पटना, बनारस और इलाहाबाद को कंगाल किया है। दिल्लीके पुस्तक मेला की अपेक्षा पटना पुस्तक मेलाकी व्यवस्था अच्छी है।* अपनी रचना प्रक्रियाके बारेमें कहा कि ४० साल पहले उनका पहला लेख वाराणसीसे प्रकाशित 'आज' में छपा था।‌ तब विज्ञान लेखन अनिवार्य नहीं था। बादमें पत्र-पत्रिकाओंमें विज्ञानपर लेखों का छपना अनिवार्य हो गया। उन्होंने नई पीढ़ीके विज्ञान लेखकोंके बारे में कहा कि परिश्रम करना नहीं चाहते। इसलिए *जिस दृष्टिकोणसे विज्ञान लेखक होना चाहिए, वह अब समाप्त हो गया है। इस देश में वैज्ञानिकोंका माफिया है। यहाँ पदोंके लिए भाई-भतीजावाद होता है।*]

*शनिवार १४ दिसम्बर १९९६*
*अद्भुत- चमत्कारी ! पूर्णत: सुनियोजित ! पुस्तकों 📚के प्रति जनता के अपार प्रेम की‌ अर्निध्य धारा को प्रावाहित करते रहने का श्रेय पटना पुस्तक मेला के समस्त आयोजकों, समस्त प्रतिबद्ध सहयोगियों एवं प्रत्येक उस व्यक्ति को जिसने इसे सफल बनाने में किसी भी रूप में अपना सहयोग दिया। मैं नि:संदेह यह कह सकता हूँ कि श्री नरेन्द्र झा एवं उनकी टीम में इतनी प्रबल इच्छाशक्ति एवं कर्मनिष्ठा है कि यह टीमवर्क 'विश्व पुस्तक मेला' का आयोजन कर सकती है। आमीन ऐसा ही हो।*
-- देवकांत शुक्ला,रामकृष्ण प्रकाशन, विदिशा - ४६४ ००१ (मध्यप्रदेश)

*मंगलवार २४ दिसम्बर १९९६*
*आज पुस्तक पढ़ने की रुचि लोगों में खासकर विद्यार्थी एवं शिक्षकों में घटती जा रही है लेकिन ऐसे पुस्तक 📚मेले के आयोजन ने पुस्तकों के प्रति उत्साह बढ़ाने का काम किया है। पुस्तक तो सबसे अच्छा एवं सच्चा मित्र होता है। इसके प्रति लोगों में आस्था होनी चाहिए। ऐसा आयोजन बिहार एवं झारखण्ड जैसे अशिक्षित लोगों में उत्साहवर्धन का काम किया है। भविष्य में ऐसे मेले का आयोजन बराबर होता रहे, खासकर मेरा सहयोग रहेगा।‌ झारखण्ड क्षेत्र में ऐसे मेले का आयोजन अवश्य करें। खासकर राजनीतिज्ञों को पुस्तक अध्ययन अवश्य करना चाहिए, इससे समाज को सही शिक्षा मिलेगी।*
-- प्रशांत कुमार, विधायक, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, पोड़ैयाहाट, गोड्डा - ८१४ १३३
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*[राँची पुस्तक मेला: छोटानागपुर के प्रथम राष्ट्रीय हस्ताक्षर का दृष्टिकोण: उपरोक्त कतिपय बिन्दुओं के आधार पर ही वर्तमान झारखण्ड की राजधानी राँची में प्रथम बार वर्ष १९९७ में शुक्रवार २८ नवम्बर से ७ दिसम्बर की अवधि में जिला स्कूल मैदान में 'राँची पुस्तक मेला' आयोजित करने में हम सफल ही नहीं हुए बल्कि यही एक लक्ष्य बना नवसहस्त्राब्दि (२००१ से प्रारम्भ) में इस शैक्षणिक-सांस्कृतिक महोत्सव को बिहार के बंटवारे के उपरान्त कम-से-कम एक दशक तक जारी रखने का भी, जो हम वर्ष २०१० तक करते रहे।]*

प्रेषक:
नरेन्द्र कुमार झा
(संस्थापक, पटना-रांची पुस्तक मेला)

*संसूचित सम्पर्क डाक पता*

वरिष्ठ निदेशक
मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी
ताराभवन, अशोक राजपथ
फ्लाईओवर पिलर संख्या ४७ के सामने
पटना - ८०० ००४

Attention : All School, Colleges, Educational Institutions of Bihar2000 प्रकाशक/ Publishers 6 लाख पुस्तक प्रेमी /Booklov...
29/11/2025

Attention : All School, Colleges, Educational Institutions of Bihar

2000 प्रकाशक/ Publishers
6 लाख पुस्तक प्रेमी /Booklovers
25 लाख किताबें /Books

स्कूल , कॉलेज लाइब्रेरी के लिए किताबें खरीदने का सुनहरा मौका
तारीख नोट करें 5 -16 दिसंबर, 2025

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे महँगा ग्रंथ कौन-सा है और वह कितने का है? मैं बताता हूँ. दुनिया का सबसे महँगा ग्रंथ '...
29/11/2025

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे महँगा ग्रंथ कौन-सा है और वह कितने का है?
मैं बताता हूँ. दुनिया का सबसे महँगा ग्रंथ 'मैं' है. इसकी छपी हुई कीमत पंद्रह करोड़ रुपये है.
तो आइये, दुनिया के सबसे महंगे ग्रंथ से रू-ब-रू होने का अवसर मिलने वाला है 5-16 दिसंबर, सीआरडी पटना पुस्तक मेला, गाँधी मैदान, पटना में.
'smostexpensivescripture Ratneshwar Singh

क्या आपको पता है.. नुक्कड़ नाटक शुरू करने श्रेय किसको जाता है? कमैंट्स में लिखें जनमानस की आकांक्षाएं, आक्रोश,परिवर्तन और...
28/11/2025

क्या आपको पता है.. नुक्कड़ नाटक शुरू करने श्रेय किसको जाता है? कमैंट्स में लिखें
जनमानस की आकांक्षाएं, आक्रोश,परिवर्तन और क्रांतिकारी विचार को प्रस्तुत करने का अनोखा माध्यम.. आइये पुस्तक मेला... 5 से 16 दिसंबर, गाँधी मैदान पटना

Work in Progress - Location - Gandhi Maidan, Patna Book Fair, Patnaकार्य प्रगति पर है - स्थान, गाँधी मैदान - पटना7 Days ...
28/11/2025

Work in Progress - Location - Gandhi Maidan, Patna Book Fair, Patna
कार्य प्रगति पर है - स्थान, गाँधी मैदान - पटना
7 Days to Go.. Entry from Gate No. 10
Anupam Amlendu Ravi Kant Singh Amarendra Kumar Amit Jha
Photo Courtesy : .jha

देखिये! पटना पुस्तक मेले के कुछ पुराने पन्नों में क्या मिला..क्या आप इन्हे पहचानते हैं?कमैंट्स में लिखें उनका नाम ..    ...
28/11/2025

देखिये! पटना पुस्तक मेले के कुछ पुराने पन्नों में क्या मिला..
क्या आप इन्हे पहचानते हैं?
कमैंट्स में लिखें उनका नाम ..
Amit Jha

ll बाल मन में सृजन की क्षमता अत्यधिक होती है, बस उन्हें सींचना होता है ll Budding Minds are The Most Creative Ones..Need...
28/11/2025

ll बाल मन में सृजन की क्षमता अत्यधिक होती है, बस उन्हें सींचना होता है ll Budding Minds are The Most Creative Ones..Needs Nurturing..

डॉक्टर से ज्यादा आपका फ़ोन आपको चेक करता है क्या ?
28/11/2025

डॉक्टर से ज्यादा आपका फ़ोन आपको चेक करता है क्या ?

ll तेरी मेरी प्रेम कहानी ll संगीत के सुरों में पिरोई अमर प्रेम कहानियाँ ll                     डॉ कुमार विमलेन्दु सिंह
27/11/2025

ll तेरी मेरी प्रेम कहानी ll संगीत के सुरों में पिरोई अमर प्रेम कहानियाँ ll डॉ कुमार विमलेन्दु सिंह

बस आठ दिन पटना पुस्तक मेला को शुरू होने को ll तैयारी भी पूरी जोर शोर है ll
27/11/2025

बस आठ दिन पटना पुस्तक मेला को शुरू होने को ll तैयारी भी पूरी जोर शोर है ll

Work in Progress - Location - Gandhi Maidan, Patna Book Fair, Patnaकार्य प्रगति पर है - स्थान, गाँधी मैदान - पटना8 Days ...
27/11/2025

Work in Progress - Location - Gandhi Maidan, Patna Book Fair, Patna
कार्य प्रगति पर है - स्थान, गाँधी मैदान - पटना
8 Days to Go.. Entry from Gate No. 10


Amarendra Kumar Amit Jha
Photo Courtesy : Akshat Jha

मीठी यादेंअतीत के पन्नों से..Nitish KumarNitish Mishra
27/11/2025

मीठी यादें
अतीत के पन्नों से..

Nitish Kumar
Nitish Mishra

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Patna Book Fair , C/o Novelty & Company, Tara Bhawan, Ashok Rajpath
Patna
800004

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