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समाज के लिए काम करने वाले लोग ही याद किए जाते हैं : नंद किशोर यादव नई दिशा परिवार का २९वाँ स्थापना दिवस समारोह मनाया गया...
11/01/2025

समाज के लिए काम करने वाले लोग ही याद किए जाते हैं : नंद किशोर यादव

नई दिशा परिवार का २९वाँ स्थापना दिवस समारोह मनाया गया,
पुस्तक 'एक और दधीचि: कमलनयन श्रीवास्तव' का हुआ लोकार्पण

पटना, ११ जनवरी। देश और समाज के लिए कार्य करने वाले लोग सदा जीवित रहते हैं। मनुष्य अपनी कीर्ति में जीवित रहता है। ऐसे ही लोग याद किए जाते हैं और ऐसे ही लोगों और संस्थाओं से समाज का निर्माण होता है।

यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सांस्कृतिक संस्था 'नई दिशा परिवार' के २९वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नन्द किशोर यादव ने कही। इस अवसर पर उन्होंने सुप्रसिद्ध समाजसेवी कमलनयन श्रीवास्तव के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित, डा आरती कुमारी द्वारा संपादित पुस्तक 'एक और दधीचि:कमलनयन श्रीवास्तव' का लोकार्पण भी किया।

श्री यादव ने कहा कि कमलनयन जी संकल्प के धनी व्यक्ति हैं। इनकी विशेषता यह है कि जो ठान लेते हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेते हैं। कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी आए, वे अपने लक्ष्य पर अडिग रहते हैं। ये सांस्कृतिक चेतना के सफल संवाहक हैं। नई दिशा परिवार नयी पीढ़ी को मंच और प्रशिक्षण दे रहा है।

समारोह के मुख्य अतिथि और सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि नई दिशा परिवार और कमल नयन श्रीवास्तव दोनों ही सबके हित का कार्य कर रहे हैं। जन-जन के कल्याण के लिए इस संस्था और कमल जी के कार्यों को लोग याद रखेंगे।

स्थानीय सांसद और पूर्व मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि कमल नयन श्रीवास्तव समाज के लिए 'वन मैन आर्मी' की तरह काम करते रहे है। समाज को बनाने वालों में ऐसे लोगों की बड़ी भूमिका होती है। ये निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले विरले लोगों में हैं।

सभा की अध्यक्षता करते हुए साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि 'नई दिशा परिवार' ने नई पीढ़ी को नई दिशा देने का कार्य कर रही है। विगत २८ वर्षों में संस्था के द्वारा छात्र-छात्राओं और माहिलाओं को रचनात्मक क्षेत्रों में प्रशिक्षण देने और उनके उत्साह-वर्धन के उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। उन्होंने कमल नयन श्रीवास्तव के सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों को महत्त्वपूर्ण बताते हुए, उन्हें एक मूल्यवान संस्कृति-सेवी बताया। पद्मश्री डा गोपाल प्रसाद, पटना की उप महापौर रेशमी चंद्रवंशी, वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी, राजेश वल्लभ, कवि प्रेम किरण तथा सूर्य प्रकाश ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर, कुमार देवांशु, रमेश कुमार, संजीत यादव तथा डा ज्योति प्रकाश को 'बिहार गौरव अवार्ड', डा सुमेधा पाठक, सागरिका राय, डा मीना कुमारी परिहार, डा सत्येंद्र शर्मा, ई रूपेश कुमार, राकेश कुमार, प्रेम कुमार तथा राजीव कुमार को 'बिहार शिक्षा रत्न' सम्मान से अलंकृत किया गया। तरुण राय को 'माँ देवपति मेमोरियल अवार्ड' दिया गया। अतिथियों का स्वागत संस्था के संरक्षक शिव प्रसाद मोदी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन संस्था के सचिव राजेश राज ने किया।

संस्था की ओर से एक कवि-सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें डा भगवती प्रसाद द्विवेदी, आराधना प्रसाद, डा आरती कुमारी, डा नीलम श्रीवास्तव, मधुरेश नारायण, डा सुनील कुमार उपाध्याय, श्वेता ग़ज़ल, बच्चा ठाकुर आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। संस्था के कलाकारों द्वारा गीत, नृत्य और संगीत की भी अनेक प्रस्तुतियाँ की गयीं।

विश्व भर में हिन्दी का ध्वज लहराएगा, शीघ्र ही यह राष्ट्रभाषा भी होगी : राम नाथ ठाकुर /साहित्य सम्मेलन में आहूत विश्व हिन...
10/01/2025

विश्व भर में हिन्दी का ध्वज लहराएगा, शीघ्र ही यह राष्ट्रभाषा भी होगी : राम नाथ ठाकुर /

साहित्य सम्मेलन में आहूत विश्व हिन्दी दिवस समारोह में 'हिन्दी रत्न' अलंकरण से विभूषित हुए २० मनीषी,

विद्यार्थियों को दिया गया 'डा शैलेंद्र नाथ सिन्हा मेधावी छात्र सम्मान ।

पटना, १० जनवरी। भारत की आत्मा की भाषा है हिन्दी। इसका ध्वज एक दिन विश्व भर में लहराएगा । यह शीघ्र ही भारत की 'राष्ट्रभाषा' भी होगी। यह एक अत्यंत वैज्ञानिक और सरल भाषा है। पूरी दुनिया में यह तेज़ी से फैल रही है। भारत के प्रत्येक नागरिक को हिन्दी को प्रेम और श्रद्धा के भाव से देखना और अपनाना चाहिए।

यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विश्व हिन्दी दिवस पर आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, भारत के कृषि राज्यमंत्री राम नाथ ठाकुर ने कही। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी भारत की ऊन्नति की बड़ी बाधा है। अंग्रेज चले गए। अंग्रेज़ी को भारत से जाना चाहिए। किसी भाषा से विरोध नहीं, सबका सम्मान हो। किंतु अपनी भाषा से सबसे अधिक प्यार होना चाहिए।

इस अवसर पर श्री ठाकुर ने हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में मूल्यवान योगदान देने वाले २० साहित्यकारों; डा कुमार वीरेंद्र, डा सत्येन्द्र अरुण, डा सुरेंद्र कुमार मिश्र, डा राजीव कुमार सिंह 'परिमलेन्दु', डा ममता मेहरोत्रा, डा क़ासिम खुरशीद, डा पूनम कुमारी, डा रेखा मिश्र, डा सुनील कुमार प्रियबच्च्न', डा राज किशोर राजन, डा बलिराज ठाकुर, डा जंग बहादुर पाण्डेय, सुनील वाजपेयी, डा गीता पुष्प शॉ, डा शंकर मोहन झा, डा रमेश शर्मा, अरविन्द कुमार सिंह, डा तलत परवीन, विजय व्रत कंठ तथा मुशर्रफ़ परवेज़ को 'हिन्दी-रत्न' अलंकरण से विभूषित किया। उन्होंने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ लेखिका डा पूनम कुमारी की पुस्तक 'स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाएँ एवं बिहार की माहिलाओं का योगदान' , युवा नाटककार आचार्य अनिमेश के नाटक ' जान है तो--' तथा सम्मेलन दिन-पत्री का लोकार्पण भी किया। इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्री ठाकुर को सम्मेलन की उच्च उपाधि 'विद्या-वारिधि' देकर सम्मानित किया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डा सुलभ ने कहा कि विश्व के स्वतंत्र १९५ देशों में से भारत जैसे कुछ ही ऐसे देश हैं, जिनकी अपनी कोई 'राष्ट्र-भाषा' नहीं है। चीन जैसे बहुभाषी देश की भी अपनी एक राष्ट्रभाषा है, जहाँ दर्जन-दो दर्जन नहीं, सैकड़ों स्थानीय भाषाएँ हैं। संसार में ऐसा कोई भी छोटा से छोटा देश भी नहीं है, जहां कि केवल एक ही भाषा हो। ४३ वर्ग किलो मीटर का संसार के सबसे छोटे देश 'रोम' में भी अनेक भाषाएँ हैं, जहां के शासक ख्रीस्तीय समुदाय के महाधर्माध्यक्ष 'पोप' होते हैं। ऐसे में यह कहना उचित नहीं है कि भारत जैसे बहुभाषी देश की कोई एक राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती। एक राष्ट्रभाषा पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ती है। हिन्दी में वह गुण है। इसलिए भारत सरकार को शीघ्र ही हिन्दी को 'राष्ट्रभाषा' घोषित करनी चाहिए।

समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के सूचना आयुक्त ब्रजेश मेहरोत्रा ने कहा कि भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत थी, जिसमें वेद-उपनिषद लिखे गए। बाद में भारत पर जिन समुदायों की सत्ता रही यहाँ की भाषा वही होती गयी। 'भाषा' राज की होती है। वही जन की भी हो जाती है। हमें सभी भाषाओं का आदर करते हुए अपनी हिन्दी को बढ़ाना चाहिए।

पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि भाषा को उन्नत करना है तो अपने विचारों को उन्नत कीजिए। हमारे विचार ओछे होंगे तो हमारा साहित्य भी ओछा होगा। एक भाषा जितनी दूर तक फैलायी जाए वह व्यापक संवाद के लिए उतना ही लाभ कारी होगी। यदि विश्व की कोई एक भाषा हो जाए तो इससे बड़ी बात कोई और नहीं हो सकती। सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य तथा बिहार सरकार के पूर्व विशेष सचिव और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्रनाथ पाण्डेयने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर २०२४ की बोर्ड परीक्षा में हिन्दी विषय में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित करने वाले छात्र-छात्राओं को, विश्व हिन्दी दिवस के प्रस्तावक 'डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव स्मृति मेधावी छात्र सम्मान' से पुरस्कृत किया गया। प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं, मुस्कान कुमारी, अंकिता शैलोनी तथा प्रकाश गांधी को क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्हें स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक के साथ क्रमशः पाँच हज़ार एक सौ रूपए, दो हज़ार एक सौ रूपए तथा ग्यारह सौ रूपए की पुरस्कार राशि, डा श्रीवास्तव के पुत्र पारिजात सौरभ के द्वारा प्रदान की गयी। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने किया।
आरंभ में मंचस्थ अतिथियों का रोड़ी-तिलक, वन्दन-वस्त्र, पुष्प-गुच्छ और आरती के साथ अभिनन्दन किया गया। वरिष्ठ कवयित्री और मधुबनी-कला की विशेषज्ञा सुजाता मिश्र ने केंद्रीय मंत्री को एक सुंदर और भव्य मधुबनी-पेंटिंग भेंट की। डा अभय कुमार सिंह, डा पूनम आनन्द, प्रो सुशील कुमार झा, ई अशोक कुमार, कृष्ण रंजन सिंह, प्रवीर पंकज, अर्चना त्रिपाठी, डा सुषमा कुमारी आदि ने अतिथियों का सम्मान किया । सम्मेलन की कलामंत्री और सुप्रसिद्ध कलानेत्री डा पल्लवी विश्वास ने वाणी-वंदना की।

सम्मान-समारोह के बाद सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' की अध्यक्षता में एक भव्य राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें सम्मानित कवियों के अतिरिक्त डा रत्नेश्वर सिंह, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, आराधना प्रसाद, आरपी घायल, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, शमा कौसर 'शमा', बच्चा ठाकुर, सागरिका राय, सुनील कुमार उपाध्याय, सिद्धेश्वर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, शुभचंद्र सिन्हा, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा सीमा रानी, सुनीता रंजन, विद्या चौधरी, डा पंकज प्रियम, नीता सहाय, प्रेम लता सिंह राजपुत, शंकर शरण आर्य, जय प्रकाश पुजारी, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने विविध भावों की अपनी रचनाओं से इसे एक चिर-स्मरणीय कवि-सम्मेलन बना दिया।

ब्रेल लिपि के आविष्कार से नेत्रहीन दिव्यांगों के सपनों का द्वार खुला लूई ब्रेल की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित हुआ सम...
03/01/2025

ब्रेल लिपि के आविष्कार से नेत्रहीन दिव्यांगों के सपनों का द्वार खुला

लूई ब्रेल की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित हुआ समारोह, मेधावी नेत्रहीन दिव्यांगों को किया गया पुरस्कृत

पटना, ३ जनवरी। 'ब्रेल-लिपि' का आविष्कार आधुनिक संसार के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है, जिसने न केवल विश्व भर के नेत्रहीनों के सपनों के बंद दरवाज़े को खोला था बल्कि उनकी शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति उत्पन्न की। इसलिए इस लिपि के जन्म-दाता महान नेत्रहीन विज्ञानी लूई ब्रेल पूजा के योग्य हैं। उनको स्मरण करना किसी तीर्थाटन के समान पावन है।

यह बातें शुक्रवार को लूई ब्रेल की जयंती की पूर्व संध्या पर, बिहार नेत्रहीन परिषद और पटना प्लैटिनम राउण्ड टेबुल २४७ के संयुक्त तत्त्वावधान में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित मेधावी नेत्रहीन दिव्यांग सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि मात्र तीन वर्ष की आयु में ही एक दुर्घटना के कारण अपने नेत्रों की ज्योति खो चुके डा ब्रेल एक महान शिक्षाविद तथा अन्वेषक थे। उन्होंने अपने महान और दृढ़ संकलप से यह सिद्ध किया कि किसी भी प्रकार की अपंगता मनुष्यों के संकल्प और उसकी इच्छाशक्ति को पराजित नहीं कर सकती। मन की शक्तियों से बड़ी और कोई शक्ति नही होती।

परिषद के वरीय उपाध्यक्ष और सुप्रसिद्ध उद्यमी रामलाल खेतान की अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मान समारोह में ३० से अधिक प्रतिभाशाली नेत्रहीन छात्र-छात्राओं एवं विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त मेधावी नेत्रहीन दिव्यांगों को प्रशस्ति-पत्र, पदक और एन आई ई पी वी डी ब्रेल कैलेंडर-२०२५ देकर सम्मानित किया गया। इसके पूर्व मंचस्थ अतिथियों द्वारा कैलेंडर का लोकार्पण किया गया।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए परिषद के महासचिव और सुप्रसिद्ध नेत्रहीन दव्यांग डा नवल किशोर शर्मा ने लूई ब्रेल के जीवन और व्यक्तित्व के साथ उनके अवदानों की विस्तार से चर्चा की तथा नगर में उनकी एक मूर्ति लगाने की मांग की। उन्होंने सरकार से यह मांग भी की कि दिव्यांगों की पेंशन राशि चार सौ से बढ़ाकर कमसेकम तीन हज़ार की जाए।

इस अवसर पर, सुप्रसिद्ध समाजसेवी कमल नोपानी, पटना राउण्ड टेबुल के अध्यक्ष विकास चंद्रा, नीतीश खेतान, डा अश्विनी कुमार, जीतेन्द्र कुमार, योगेन्द्र कुमार और श्रवण कुमार सुधांशु ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन दिव्यांग युवक राकेश कुमार ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन संजय कुमार ने किया। परिषद के स्वयंसेवक आकाश कुमार, शिवानी कुमारी तथा प्रियांशु राज नेत्रहीनों की सहायता में निरन्तर सक्रिए रहे।

मैंने चाहा था तुमसे हँस कर मिलूँ/ पर ये आँसू हमारे छलक ही पड़े!साहित्य सम्मेलन में स्मृतिशेष कवयित्री डा सुभद्रा वीरेन्द...
15/12/2024

मैंने चाहा था तुमसे हँस कर मिलूँ/ पर ये आँसू हमारे छलक ही पड़े!
साहित्य सम्मेलन में स्मृतिशेष कवयित्री डा सुभद्रा वीरेन्द्र के ग़ज़ल-संग्रह 'हम सफ़र' का हुआ लोकार्पण।

पटना,१५ दिसम्बर। विदुषी कवयित्री सुभद्रा वीरेंद्र की प्रत्येक रचना में कोई न कोई स्वप्नदर्शी क्षण अवश्य लक्षित होता है। उनके शब्द और संवेदनाएँ पाठकों के हृदय को सहज ही द्रवित करती हैं। वो एक ऐसी तपस्विनी काव्य-साधिका थीं, जिन पर हिन्दी और भोजपुरी भाषाएँ गर्व करती हैं। उनको देखना और सुनना किसी वैदिक-कालीन ऋषिका के मुख से सामवेद की ऋचाओं को सुनने के जैसा पावन हुआ करता था। वो संगीत की एक सिद्धा आचार्या थीं। इसलिए उनके काव्य-पाठ में मर्म-स्पर्शी अनुगूँजभरी भाव-राशि का आनन्द था।

यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्मृतिशेष कवयित्री डा सुभद्रा वीरेंद्र के ग़ज़ल-संग्रह 'हम सफ़र' के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, नारी-मन की व्यथा की अत्यंत सघन अनुभूति को अभिव्यक्त करती उनकी ग़ज़लें नयी पीढ़ी का मार्ग-दर्शन भी करती हैं। उनकी रचनाओं का मूल धर्म उदात्त प्रेम और समर्पण है। उनकी भाव-संपदा कैसी है, उसे उनकी इन पंक्तियों से समझा जा सकता है कि - “मैंने चाहा था तुमसे हँस कर मिलूँ/ पर ये आँसू हमारे छलक ही पड़े!”

कवयित्री के विद्वान पति और सुप्रसिद्ध समालोचक प्रो कुमार वीरेंद्र ने कहा कि सुभद्रा जी की इन ग़ज़लों, जिन्हें मैंने 'गजलिका' कहा है, में सन्निहित विषय नितान्त वैयक्तिक न होकर सामाजिक स्थिति की वास्तविकताओं की ईमानदार अभिव्यक्ति है। सुभद्रा जी मंच की अत्यंत लोकप्रिय कवयित्री थीं। देश के कोने-कोने से उनको बुलाबा आता था और वो सभी मंचों की शोभा होती थी। यह संग्रह उनकी उन ग़ज़लों का है, जिन्हें उन्होंने पन्नों पर लिखकर यत्र-तत्र छोड़ दिया था। उनके निधन के पश्चात उनके बिस्तर के नीचे, रसोई घर के किसी ताखे से उनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हुई हैं, जिनका क्रमशः प्रकाशन किया जा रहा है।

इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि सुभद्रा जी के साहित्य में समाज का सभी पक्ष प्रमुखता से आया है। समाज का सारा तबका उनका विषय है। चिकित्सक और चिकित्सा भी। सुभद्रा जी का कंठ अत्यंत मधुर था। उनके शब्द भी मनोहर हैं।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा प्रेम नारायण सिंह, डा रत्नेश्वर सिंह, डा पुष्पा जमुआर, डा सुमेधा पाठक, कुमार अनुपम तथा सुधा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। गीत के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन, वरिष्ठ कवि डा सुनील कुमार उपाध्याय, डा मीना कुमारी परिहार, डा शालिनी पाण्डेय, डा ऋचा वर्मा, डा रेणु मिश्रा, मृत्युंजय गोविन्द, सिद्धेश्वर, डा रमाकान्त पाण्डेय, उत्तरा सिंह, डा आर प्रवेश आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपने गीत और ग़ज़लों के मधुर पाठ से आयोजन को तरल और स्पंदित किया।

मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

आयुष्मान योजना' विश्व की सबसे बड़ी योजना : मंगल पाण्डेय सत्तर पार के नागरिकों को आयुष्मान-कार्ड देने के लिए प्रधानमंत्री...
08/12/2024

आयुष्मान योजना' विश्व की सबसे बड़ी योजना : मंगल पाण्डेय

सत्तर पार के नागरिकों को आयुष्मान-कार्ड देने के लिए प्रधानमंत्री के प्रति किया गया कृतज्ञता-ज्ञापन, हिन्दी गौरव सम्मान से विभूषित हुए बिहार के ३५ वरीय हिन्दी-सेवी , पूनम आनन्द की तीन पुस्तकों 'सूरजमुखी', 'चुनमुनिया' तथा 'कहावत के बतरस' का हुआ लोकार्पण ।

पटना, ८ दिसम्बर। भरत सरकार की आयुष्मान योजना जनहित की संसार में सबसे बदी योजना है, जिसने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़द पूरे विश्व मेन ऊँचा किया है। इस योजना के अंतर्गत केवल बिहार राज्य में पंद्रह लाख से अधिक लाभार्थियों को दो हज़ार चौरासी करोड़ रूपए से अधिक का उपचार-लाभ दिया गया है। बिहार के नागरिकों को अपने स्वास्थ्य पर होने वाले इतने बड़े व्यय से बचाया गया है। यह राशि उनके लिए उनके उपचार पर नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सरकार ने व्यय किया है। यह योजना ग़रीबों और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए संचालित है। किंतु सत्तर वर्ष की आयु पार कर चुके भारतीय नागरिकों के लिए 'वय-वंदना आयुष्मान योजना' सबके लिए है, जिसके अंतर्गत पाँच लाख रूपए तक के उपचार हेतु राशि सरकार दे रही है।

यह बातें प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने, एजुकेशनल रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट संस्थान, पटना के तत्त्वावधान में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित कृतज्ञता-ज्ञापन तथा सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए कही। उन्होंने डा पूनम आनन्द की तीन पुस्तकों “सूरज मुखी”, “चुनमुनिया” तथा “कहावत के बतरस” का लोकार्पण तथा प्रदेश के ३५ वरीय हिन्दी-सेवियों को सम्मानित भी किया।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए, समेलन के आध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि लोकहित के मूल्यवान कार्यों के लिए कर्त्ता के प्रति समाज के मन में कृतज्ञता का भाव होना ही चाहिए। इसलिए आयोजक संस्था ने प्रधानमंत्री के प्रति धन्यवाद-गोष्ठी का आयोजन कर उचित ही किया है। उन्होंने इस अवसर पर सम्मानित हुए विद्वानों और विदुषियों को बधाई दी तथा लोकार्पित पुस्तकों की लेखिका डा पूनम आनंद को शुभकामनाएँ देते हुए आशा व्यक्त की कि पूनम जी की लेखनी इसी प्रकार निर्बाध चलती रहे।

इंडियन मेडिकल ऐसोशिएशन के पुर्रव अध्यक्ष डा सहजानन्द सिंह, सुप्रसिद्ध समाचार विश्लेषक डा संजय कुमार, आयोजन समिति के स्वागताध्यक्ष डा विनोद शर्मा तथा जनार्दन शर्मा योगी ने भी अपने विचर व्यक्त किए।

इस अवसर पर वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', भगवती प्रसाद द्विवेदी, किरण सिंह, डा कल्याणी कुसुम सिंह, आरपी घायल तथा रमेश कँवल समेत बिहार के ३५ वरीय हिन्दी-सेवियों को 'साहित्य गौरव सम्मान' से विभूषित किया गया। सम्मानित होने वाले अन्य हिन्दी-सेवियों में,मधुरेश नारायण, डा मेहता नगेंद्र सिंह, बाँके बिहारी साव, कुमार अनुपम, ई अशोक कुमार, डा रमाकान्त पाण्डेय, सदानन्द प्रसाद, पं गणेश झा,चितरंजन लाल भारती, कमल किशोर वर्मा 'कमल', डा आर प्रवेश, डा मीना कुमारी परिहार, डा पूनम आनंद, डा पुष्पा जमुआर, डा पूनम देवा,विभा रानी श्रीवास्तव, अनीता मिश्रा सिद्धि, डा प्रतिभा रानी, यशोदा शर्मा , डा ऋचा वर्मा, सुजाता मिश्रा, उत्तरा सिंह ,डा विद्या चौधरी, अम्बरीष कान्त, ई आनन्द किशोर मिश्र, कृष्ण रंजन सिंह, प्रो सुशील कुमार झा, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता तथा चंदा मिश्र के नाम सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त भानु प्रताप सिंह, संगीता सिंह, सुनील कुमार सिन्हा, अशोक कुमार पाठक आदि वरीय नागरिकों को भी सम्मानित किया गया। मंच का संचालन कृष्णा शगुन ने किया ।

विश्व विकालांग दिवस की पूर्व संध्या पर निकाली गई जागरूकता रैलीपटना, १ दिसम्बर । "अंग नहीं तो क्या ग़म है, हम किसी से क्य...
01/12/2024

विश्व विकालांग दिवस की पूर्व संध्या पर निकाली गई जागरूकता रैली

पटना, १ दिसम्बर । "अंग नहीं तो क्या ग़म है, हम किसी से क्या कम हैं! ----- "दया नहीं अधिकार चाहिए, हमें थोड़ा सा प्यार चाहिए।" , “भिक्षा नहीं, शिक्षा दो!”, "हम पर तुम हँसो नहीं, थोड़ा सा सहयोग करो!" आदि नारों के साथ आज दिव्यांगजनों एवं पुनर्वासकर्मियों ने नगर में जागरूकता रैली निकाली। यह रैली विश्व विकलांग दिवस की पूर्व संध्या पर, रविवार को, इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च,बेउर के तत्त्वावधान में, संजय गांधी जैविक उद्यान से आरंभ हुई और शहीद-स्मारक होते हुए, जगजीवन राम शोध संस्थान में आकर समाप्त हुई, जहां अनेक संस्थाओं की ओर से दिव्यांग-महोत्सव का आयोजन किया गया। संस्थान के निदेशक प्रमुख डा अनिल सुलभ, बिहार नेत्रहीन परिषद के महासचिव डा नवल किशोर शर्मा तथा अधिवक्ता अहसास मणिकान्त ने रैली को हरी झंडी दिखाकर विदा किया।

इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि अभी भी बिहार में विकलांग जनों को वैज्ञानिक ढंग से चिन्हित करने का कार्य नहीं हो पा रहा है। जब तक यह नहीं होगा तबतक विकलांगों के पुनर्वास में कोई भी कार्य सही दिशा में नहीं होगा। इसके लिए आवश्यक है कि राज्य सरकार अलग से 'विकलांगता निवारण और पुनर्वास विभाग' सृजित करे। जब इसके लिए अलग से मंत्री, प्रधान सचिव एवं अन्य अधिकारी होंगे, तो अवश्य ही इस दिशा में तेज़ी से और गुणात्मक विकास देखा जा सकेगा और तभी सभी दिव्यांग पुनर्वासित किए जा सकेंगे, जिनमे भौतिक-पुनर्वास के साथ आर्थिक पुनर्वास भी सम्मिलित होंगे।

बिहार नेत्रहीन परिषद के संस्थापक महासचिव डा नवल किशोर शर्मा ने कहा कि राज्य में विकलांग आयोग का गठन भी शीघ्र किया जाना चाहिए। रैली में बिहार विकालांग मंच के सचिव दिव्यांग युवक राकेश कुमार, दिव्यांग-प्राध्यापक प्रो कपिल मुनि दूबे, सूबेदार संजय कुमार, प्रो संजीत कुमार, डा रूपाली भोवाल, प्रो मधुमाला कुमारी, प्रो चंद्रा आभा, डा नवनीत कुमार, डा आदित्य कुमार ओझा, प्रो देवराज कुमार, प्रो प्रिया कुमारी, कुमार करुणा निधि, रवींद्र प्रजापति , नीरज कुमार, रेखा देवी समेत बड़ी संख्या में दिव्यांगजन और संस्थान के छात्र-छात्राओं तथा शिक्षकों ने भाग लिया।

मरुथल हो रहे समाज में प्रेम-सुधा की अविरल धारा थीं मृदुला जी, हिन्दी के महाकवि थे पोद्दार रामावतार अरुण, युगीन कवि थे बच...
27/11/2024

मरुथल हो रहे समाज में प्रेम-सुधा की अविरल धारा थीं मृदुला जी, हिन्दी के महाकवि थे पोद्दार रामावतार अरुण, युगीन कवि थे बच्चन/ जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने तीनों विभूतियों को दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन ।

पटना, २७ नवम्बर। अपने समय की महान विदुषी और गोवा की पूर्व राज्यपाल डा मृदुला सिन्हा एक ऐसी साहित्यिक विभूति थीं, जिन्हें मरुथल हो रहे समाज में, 'प्रेम-सुधा की अविरल धारा' कहा जा सकता है। वो सरस्वती की साक्षात प्रतिमा थीं। भारतीय संस्कृति का जितना व्यापक ज्ञान था उन्हें, उतनी ही दृढ़ पकड़ लोक-जीवन पर भी थी उनकी। उनके सामाजिक-साहित्यिक सरोकारों की परिधि भी बहुत बड़ी थी। अपने दिव्य गुणों से उन्होंने संपूर्ण समाज को अपना परिवार और कुटूँब बना लिया था। वो सबकी कुछ न कुछ लगती थीं। माँ, मौसी, चाची, फुआ, बहन, भाभी।
यह बातें, शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि सृजन उनके लिए स्वांतः सुखाय नही, अपितु बहुजन हिताए, बहुजन-सुखाए, लोकानुकंपाए था। हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में अत्यंत मूल्यवान अवदान देने के अतिरिक्त शिक्षा, समाजसेवा, राजनीति और प्रशासन में भी महनीय योगदान के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से उनका बहुत ही गहरा लगाव रहा। सम्मेलन के उन्नयन और इसकी व्यापक प्रतिष्ठा-वृद्धि में उनका बहुत बड़ा योगदान था।
महाकवि पोद्दार रामावतार अरुण को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि अरुण जी हिन्दी साहित्य के एक ऐसे महाकवि हुए, जिन्होंने महाकाव्यों की एक ऋंखला ही सृजित कर डाली। 'वाणाम्बरी', 'कृष्णाम्बरी', 'अरुण रामायण' और 'महाभारती' जैसे दशाधिक महाकाव्यों सहित ४५ मूल्यवान ग्रंथों की रचना करने वाले, अरुण जी हिन्दी साहित्य के महान शब्द-शिल्पी और भारतीय संस्कृति के अमर गायक के रूप में सदा स्मरण किए जाते रहेंगे। अपने समग्र काव्य में, वे मानवतावादी दृष्टि और लोक-कल्याण की मंगलभावना को स्थापित करते हैं। वे बहुत बड़ी बड़ी बातें सहज सरल शब्दावली में कहते हैं। उनकी भाषा और शैली 'वार्तालाप' की है। भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म-अलंकरण' से और राज्य सरकार ने बिहार विधान परिषद की सदस्यता देकर उनकी साहित्यिक-सेवा को सम्मान दिया।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि मृदुला जी का संपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षक था। उनसे अत्यंत निकट का संबंध रहा। पोद्दार रामावतार अरुण एक महान कवि थे। वहीं बच्चन जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि थे। उनकी सुप्रसिद्ध रचना'मधुशाला' एक दार्शनिक काव्य है। आज कवि-समुदाय को मिलकर एक सौहार्दपूर्ण समाज बनाने का यत्न करना चाहिए।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, भोपाल से पधारे हिन्दी के वरिष्ठ कवि डा मोहन तिवारी 'आनन्द', डा शंकर प्रसाद, डा रत्नेश्वर सिंह, रमेश कँवल, निर्मला सिंह तथा ई आनन्द किशोर मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, वरिष्ठ कवयित्री भावना शेखर, आराधना प्रसाद, डा सीमा रानी, शायरा शमा कौसर 'शमा', प्रीति सुमन, पं गणेश झा, डा प्रतिभा रानी, ऋचा वर्मा, आनन्द किशोर मिश्र, जय प्रकाश पुजारी, सुजाता मिश्र, रौली कुमारी, डा रमाकान्त पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, कमल किशोर वर्मा 'कमल',अरविन्द कुमार सिंह, डा मीना कुमारी परिहार, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, देवेंद्रलाल दिव्यांशु, सिंधु कुमारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा बबीता कुमारी, शंकर शरण आर्य, सुनीता रंजन, सरिता कुमारी,सूर्य प्रकाश उपाध्याय, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने तीनों साहित्यिक विभूतियों को काव्यांजलि प्रदान की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
डा इन्दु पाण्डेय, डा चंद्रशेखर आज़ाद, दुःख दमन सिंह, नन्दन कुमार मीत, प्रमोद आर्य, संतोष कुमार झा,अल्पना कुमारी, अश्विनी कुमार कविराज आदि उपस्थित थे।

भारत की राष्ट्रभाषा' के लिए अनवरत संघर्ष के संकल्प के साथ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ४३वाँ महाधिवेशन हुआ संपन्न/७३ ...
20/10/2024

भारत की राष्ट्रभाषा' के लिए अनवरत संघर्ष के संकल्प के साथ
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ४३वाँ महाधिवेशन हुआ संपन्न/
७३ हिन्दी-सेवियों को विविध अलंकरणों से किया गया सम्मानित, प्रो महेंद्र मधुकर को 'विद्या वाचस्पति'।

पटना, १८ मार्च। हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित किए जाने तक अनवरत संघर्ष के संकलप के साथ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के १०६ठे स्थापना दिवस समारोह और दो दिवसीय ४३वें महाधिवेशन का समापन हो गया। इस अवसर पर, समारोह के उद्घाटनकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर तथा मुख्य अतिथि बिहार के अपर मुख्य सचिव मिहिर कुमार सिंह ने ७३ हिन्दी सेवियों को विविध अलंकरणों से सम्मानित भी किया गया। प्रदेश के विश्रुत विद्वान प्रो महेंद्र मधुकर को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि प्रदान की गयी।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध लेखक डा ओम् प्रकाश पाण्डेय की पुस्तक 'भारतीय संस्कृति के विविध आयाम' तथा लेखिका डा नम्रता कुमारी की पुस्तक 'थारु जनजाति की धार्मिक मान्यताएँ' का लोकार्पण भी किया गया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा बनायी जाए, इसलिए उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों को भी पत्र लिखे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र प्राप्ति की पुष्टि भी हुई है और यह भी बताया गया है कि यह प्रस्ताव सकारात्मक है। किंतु इसे कब तक लागु किया जाएगा, इस संबंध में कोई सूचना अभी तक नहीं दी गयी है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि हिन्दी शीघ्र देश की राष्ट्रभाषा घोषित होगी।
डा सुलभ ने सभा में यह प्रस्ताव रखा की जब तक हिन्दी 'भारत की राष्ट्रभाषा' घोषित नहीं होती, तबतक यह संघर्ष अनवरत जारी रहेगा'। पूरी सभा ने करतल-धवनि के साथ इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
ख्यातिलब्ध गीतकार पं बुद्धिनाथ मिश्र, मेरठ विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रवींद्र कुमार, चंडीगढ़ के विद्वान साहित्यकार डा जसबीर चावला, अयोध्या के सुविखात साहित्यकार विजय रंजन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा मधु वर्मा ने किया। मंच का संचालन अनुपमा सिंह ने किया।

चतुर्थ वैचारिक सत्र

आज महाधिवेशन के दूसरे दिन का आरंभ चौथे सत्र के साथ हुआ, जिसका विषय था- 'विश्व बंधुत्व की अवधारणा और भारत'। इस सत्र का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि जाति, संप्रदाय, वर्ण, लिंग, क्षेत्रीयता आदि संकीर्ण विचारों से विश्व-बंधुत्व की भारतीय अवधारणा खंडित होती है। सभी अपनी आस्थाओं, उपासना-पद्धतियों, मान्यताओं और विचारों के अनुसार चलें यह उचित है, किंतु इससे किसी अन्य की स्वतंत्रता पर आघात नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम विश्व-बोध से जुड़े हुए हैं। हिन्दी में यह यह भावना समग्र विश्व में प्रकट हुई है।
सत्र के मुख्य वक्ता डा जसबीर चावला ने कहा कि १०वें गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने कहा- “मानस की जात सभै एक ही पहचानबो"। यह भारत के विश्व-बंधुत्व की प्राचीन अवधारणा की ही अभिव्यक्ति है। हमारी इस धारणा में 'मानवता' और 'मानव-प्रेम' ही मुख्य स्वर है।
विशिष्ट वक्ता डा विपिन कुमार ने कहा कि बिहार ने ही संसार को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया। भारत से ही विश्व को शांति का पाठ और ज्ञान प्राप्त हुआ। इसीलिए संसार भारत को विश्व-गुरु मानता है।
सत्राध्यक्ष प्रो महेंद्र मधुकर ने कहा कि भारत चाहता है कि वह संपूर्ण विश्व में व्याप्त हो। 'यह मेरा है, यह तेरा है' की समझ एक संकीर्ण भावना है। यह भारतीय दृष्टि नहीं है। हिन्दी संतों और सिद्धों की भाषा है। जबलपुर के साहित्यकार अमरेन्द्र नारायण के आलेख का पाठ डा पुष्पा जमुआर ने किया। अतिथियों का स्वागत प्रो सुशील कुमार झा ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। सत्र का संयोजन डा रेखा भारती ने किया।

पंचम वैचारिक सत्र
आज के अंतिम और वैचारिक सत्र का विषय था 'साहित्य के नए प्रश्न', जिसकी अध्यक्षता बिहार सरकार में विशेष सचिव रहे साहित्यकार डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने किया। इस सत्र में डा वंदना बाजपेयी, डा रत्नेश्वर सिंह, तथा विजय रंजन ने अपने आलेख पढ़े। स्वागत चित्तरंजन भारती ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कुमार अनुपम ने किया।
वैचारिक- सत्रों के पश्चात देहरादून से पधारे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के गीतकार पं बुद्धिनाथ मिश्र की अध्यक्षता में एक विराट राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन आहूत हुआ, जिसमें साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवयित्री संस्कृति मिश्र, रमेश कँवल, कुसुम सिंह 'लता', आराधना प्रसाद, आदित्य रहबर, चिदाकाश सिंह 'मुखर', सिपाही पाण्डेय 'मनमौजी', महेश्वर ओझा 'महेश', आरपी घायल, श्री भगवान पाण्डेय, लक्ष्मी सिंह, माला कुमारी,दिव्या मणिश्री, तलत परवीन, ई अशोक कुमार, नीलम श्रीवास्तव, कुमारी स्मिता, ऋता शेखर 'मधु', सुनील चंपारणी समेत पचास से अधिक कवियों और कवयित्रियों ने अपने काव्य-पाठ से सम्मेलन को सारस्वत ऊँचाईं प्रदान की।
इनका हुआ सम्मान;-
प्रो महेन्द्र मधुकर : सर्वोच्च मानद उपाधि "विद्यावाचस्पति"
डा चन्द्रकिशोर पाण्डेय 'निशान्तकेतु' : महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान
प्रो रवीन्द्र कुमार, पूर्व कुलपति, मेरठ : आचार्य शिव पूजन सहाय सम्मान
श्री कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता : आचार्य नलिन विलोचन शर्मा सम्मान
श्री विजय रंजन ,अयोध्या : फणीश्वर नाथ 'रेणु' सम्मान
डा जसबीर चावला, चंडीगढ़ : रामवृक्ष बेनीपुरी स्मृति सम्मान
श्री महेश बजाज, पुणे : पोद्दार रामावतार 'अरुण' सम्मान
डा रत्नेश्वर सिंह : केदार नाथ मिश्र 'प्रभात' सम्मान
श्रीमती ऋता शेखर 'मधु', बंगलुरु : महीयसी डा मृदुला सिंहा स्मृति सम्मान
डा वंदना बाजपेयी, दिल्ली : उर्मिला क़ौल साहित्य साधना सम्मान
श्री ज्योतींद्र मिश्र : कविवर गोपाल सिंह 'नेपाली'सम्मान
श्रीमती ममता मेहरोत्रा : शांता सिन्हा स्मृति-सम्मान
डा केकी कृष्ण, हाजीपुर : विदुषी कृष्णा सिंह स्मृति सम्मान
प्रो मधुप्रभा सिंह, खगौल, पटना : बच्चन देवी साहित्य साधना सम्मान
डा हरेराम सिंह , रोहतास : पं रामदयाल पाण्डेय स्मृति सम्मान
श्रीमती कुसुम सिंह 'लता', दिल्ली : अंबालिका देवी सम्मान
डा वंदना विजय लक्ष्मी, मुज़फ़्फ़रपुर : डा उषा रानी 'दीन' स्मृति सम्मान
डा प्रियंवदा दास, मुज़फ़्फ़रपुर : डा वीणा श्रीवास्तव स्मृति सम्मान
श्रीमती नीता सागर चौधरी , जमशेदपुर : डा ललितांशुमयी स्मृति सम्मान
श्रीमती ज्योति झा, पुणे : डा शांति जैन स्मृति सम्मान
श्रीमती अर्चना कुमारी ,समस्तीपुर : विदुषी गिरिजा वर्णवाल सम्मान
डा अवन्तिका कुमारी : प्रकाशवती नारायण सम्मान
प्रो मृदुल कुमार शरण, छपरा : पं छविनाथ पांडेय सम्मान
श्री कृष्ण मोहन मिश्र : आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा सम्मान
मुहम्मद तारिक असलम 'तस्नीम' : राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह सम्मान
प्रो उमाशंकर सिंह , जहानाबाद : पं मोहन लाल महतो 'वियोगी' सम्मान
श्री अनिल कुमार सहाय , भागलपुर : कलक्टर सिंह 'केशरी' सम्मान
डा निरुपमा राय, पूर्णिया : डा सुभद्रा वीरेन्द्र स्मृति सम्मान
सुश्री संस्कृति मिश्र : विदुषी शैलजा बाला स्मृति सम्मान
श्री सिपाही पाण्डेय 'मनमौजी' : ब्रजनंदन सहाय 'ब्रजवल्लभ' सम्मान
श्रीमती कुमारी किरण , दिल्ली : विदुषी बिन्दु सिन्हा स्मृति सम्मान
डा आनन्द मोहन सिन्हा, आरा : डा धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री सम्मान
श्री अमित कुमार मल्ल : राम गोपाल शर्मा 'रूद्र' सम्मान
श्री आदित्य रहबर : महाकवि आरसी प्रसाद सिंह सम्मान
श्री ओम् प्रकाश वर्मा : रामधारी प्रसाद विशारद सम्मान
डा रश्मि रंजन सिन्हा : डा उषा किरण खान स्मृति सम्मान
श्री अरविन्द कुमार, औरंगाबाद : कामता प्रसाद सिंह 'काम' सम्मान
श्री नीतीश राज, गया : डा मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर'सम्मान
श्रीमती लक्ष्मी सिंह रूबी , जमशेदपुर : कुमारी राधा स्मृति सम्मान
श्री अतुल मोहन प्रसाद, बक्सर : पं राम दयाल पांडेय सम्मान
प्रो अरुण मोहन भारवि, बक्सर : डा परमानन्द पाण्डेय सम्मान
डा लक्ष्मी कुमारी, हाजीपुर : रमणिका गुप्ता स्मृति सम्मान
श्री रत्नेश कुमार , हाजीपुर : पं छविनाथ पाण्डेय स्मृति सम्मान
श्री अश्विनी कुमार 'आलोक' : आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव स्मृति सम्मान
श्री कुमार बिंदु, रोहतास : बाबा नागार्जुन सम्मान
श्री लोक नाथ तिवारी 'अनगढ़', रोहतास : पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी सम्मान
डा अभिषेक कुमार : डा रामप्रसाद सिंह लोक-साहित्यसम्मान
श्री भगवान पाण्डेय , बक्सर : पं प्रफुल्ल चंद्र ओझा 'मुक्त' सम्मान
प्रो प्रभाकर पाठक, दरभंगा : महाकवि काशीनाथ पाण्डेय सम्मान
श्रीमती संगीता मिश्र, पटना : चतुर्वेदी प्रतिभा मिश्र साहित्य सम्मान
डा अनुराग शर्मा, सुल्तानपुर (उ प्र) : पं हंस कुमार तिवारी स्मृति सम्मान
डा अंजनी कुमार सुमन : डा कुमार विमल सम्मान
श्री संतोष कुमार महतो, असम : पं रामचंद्र भारद्वाज सम्मान
श्री धर्मेन्द्र कुमार, पलामू, झारखंड : रघुवीर नारायण सम्मान
श्री वशिष्ठ पाण्डेय, बक्सर : पं राम नारायण शास्त्री स्मृति सम्मान
श्री शंभु कमलाकर मिश्र : प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा सम्मान
प्रो देवेन्द्र कुमार सिंह : प्रो सीताराम सिंह 'दीन' स्मृति सम्मान
श्री मयंक, पुनाईचक, पटना : डा शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव स्मृति सम्मान
डा भीम सिंह 'भवेश' : प्रो मथुरा प्रसाद दीक्षित स्मृति सम्मान
श्री अंजनी कुमार पाठक : जगन्नाथ प्रसाद मिश्र गौड़ 'कमल' सम्मान
श्री सुरेंद्र प्रसाद सिंह, तरियानी, शिवहर : डा रवीन्द्र राजहंस स्मृति सम्मान
डा शिव बालक राय 'प्रभाकर', हाजीपुर : प्रो अमरनाथ सिन्हा स्मृति सम्मान
श्री राम रतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर' : साहित्यसारथी बलभद्र कल्याण सम्मान
श्री आलोक रंजन, दिल्ली : डा श्यामनंदन किशोर स्मृति सम्मान
डा दिनेश प्रसाद साहू : प्रो केसरी कुमार स्मृति सम्मान
श्री मदन मोहन ठाकुर, सीतामढ़ी : राष्ट्रभाषा प्रहरी नृपेंद्रनाथ गुप्त सम्मान
श्री कुमोद कुमार वर्मा, शिवहर : डा नरेश पाण्डेय 'चकोर' स्मृति सम्मान
श्रीमती हेमा सिंह, शिवहर : डा सुलक्ष्मी कुमारी स्मृति-सम्मान
श्रीमती स्मिता : विदुषी अनुपमानाथ स्मृति सम्मान
डा सैयद मोहम्मद एजाज़ रसूल : पीर मुहम्मद मूनिस सम्मान
श्री बिपिन बिहारी श्रीवास्तव : डा नगेंद्र प्रसाद मोहिनी कला सम्मान
सुश्री मनीषा पाल : अनुपमा नाथ स्मृति सम्मान
श्री अनुभव राज , मुज़फ़्फ़रपुर : प्रतिभाशाली विशेष किशोर सम्मान

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