22/06/2024
दो किशोर बच्चों की हत्या और लड़की गीता चोपड़ा के साथ बलात्कार ने पूरे भारत को हिला कर रख दिया.
मशहूर पत्रिका इंडिया टुडे के 30 सितंबर, 1978 के अंक में दिलीप बॉब ने लिखा, "गीता और संजय चोपड़ा के पिता कैप्टेन एमएम चोपड़ा ने बताया कि उनके दोनों बच्चे धौला कुआँ ऑफ़िसर्स क्वार्टर्स से शनिवार शाम सवा 6 बजे निकले थे. गीता जीज़स एंड मैरी कालेज में कॉमर्स द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और उन्हें उस शाम संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी स्टूडियो में युववाणी के 'इन द ग्रूव' कार्यक्रम में भाग लेना था."
"5 फ़ीट 10 इंच लंबा उनका भाई संजय दसवीं कक्षा का छात्र था. बाहर बादल छाए हुए थे और सुबह से ही रह रहकर बारिश हो रही थी. तय ये हुआ था कि शो के बाद कैप्टेन चोपड़ा अपने बच्चों को आकाशवाणी भवन के गेट से ले लेंगे."
"जब वो 9 बजे वहाँ पहुंचे तो वहाँ बच्चों का कोई पता नहीं था. जब उन्होंने अंदर पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि गीता और संजय चोपड़ा वहाँ रिकार्डिंग के लिए पहुंचे ही नहीं."
तेज़ रफ़्तार कार में चाकू से वार
इन बच्चों को ढ़ूंढने के लिए दिल्ली और कई राज्यों की पुलिस ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी.
एक प्रत्यक्षदर्शी भगवान दास ने पुलिस को बताया, "क़रीब साढ़े 6 बजे लोहिया अस्पताल के पास एक तेज़ रफ़्तार फ़िएट मेरे स्कूटर के बग़ल से निकली. मुझे एक लड़की की दबी हुई चीख़ सुनाई दी. मैं अपने स्कूटर को भगाता हुआ कार के नज़दीक ले गया. आगे की सीट पर दो लोग बैठे हुए थे. पीछे की सीट पर एक लड़का और एक लड़की थे."
"लाल बत्ती के पास जब कार धीमी हुई तो मैंने चिल्लाकर कहा, 'क्यों भाई क्या हो रहा है?' लड़के ने शीशे से अपना मुंह सटा कर अपनी टी शर्ट की तरफ़ इशारा किया जो ख़ून से सनी हुई थी. लड़की पीछे से ड्राइवर के बाल खींच रही थी."
"ड्राइवर एक हाथ से गाड़ी चला रहा था और दूसरे हाथ से लड़की पर लगातार वार कर रहा था मंदिर मार्ग और पार्क स्ट्रीट की क्रॉसिंग पर कार ने रफ़्तार पकड़ ली और लाल बत्ती जंप कर आगे निकल गई. लड़के की शक्ल विदेशी जैसी थी और मस्टर्ड रंग की कार का नंबर था HRK 8930."
पहले संजय की हत्या और फिर गीता के साथ बलात्कार
रंगा और बिल्ला इन दोनों को बुद्धा गार्डेन की तरफ़ रिज इलाक़े में ले गए. वहाँ उन्होंने एक सुनसान इलाक़े में कार रोककर पहले संजय चोपड़ा की हत्या की और गीता के साथ बलात्कार किया.
बाद में रंगा ने अपने इक़बालिया बयान में कहा, "मैं लड़की को उस तरफ़ ले जा रहा था जहाँ उसके भाई की लाश पड़ी हुई थी. मैं उसके दाहिनी तरफ़ चल रहा था. बिल्ला ने मुझे इशारा किया और मैं थोड़ा आगे चलने लगा. बिल्ला ने पूरी ताक़त से लड़की की गर्दन पर तलवार से वार किया. इस वार के तुरंत बाद उसकी मौत हो गई. हमने उसकी लाश उठाकर झाड़ी में फेंक दी."
मोरारजी देसाई चोपड़ा दंपत्ति के घर संवेदना जताने पहुंचे
घटना की ख़बर फैलते ही लोगों का ग़ुस्सा भड़क गया. बोट क्लब पर जीज़स एंड मैरी कॉलेज की लड़कियों ने प्रदर्शन किया. जब उस समय के विदेश मंत्री उनसे बात करने वहाँ पहुंचे तो छात्रों ने पत्थरबाज़ी शुरू कर दी.
एक पत्थर वाजपेई के सिर में लगा और उनके सिर से ख़ून बहने लगा. सुनील गुप्ता बताते हैं, "मुझे अभी भी याद है कि उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई अपना शोक प्रकट करने इनके घर गए थे. ऐसा बहुत कम देखने में मिलता है कि प्रधानमंत्री इस तरह किसी अपराध के शिकार परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करने गए हों."
पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट से साफ़ हुआ कि गीता चोपड़ा के शरीर पर पाँच घाव थे. संजय के शरीर पर कुल 21 घाव थे. गीता की पैंट की जेब में उसका आईडेंटिटी कार्ड सही सलामत था. उनके पास से एक बटुआ भी बरामद हुआ जिसमें 17 रुपए रखे हुए थे.
कालका मेल से दिल्ली आते हुए सैनिकों ने पकड़ा
वारदात के बाद बिल्ला और रंगा दिल्ली से भागकर पहले मुंबई गए और फिर वहाँ से आगरा.
ये उनका दुर्भाग्य था कि आगरा से दिल्ली आते हुए वो कालका मेल में ग़लती से सैनिकों के डिब्बे में चढ़ गए और उन्होंने उन्हें पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया.
सुनेत्रा चौधरी बताती हैं, "इस घटना के तुरंत बाद वो डर गए और दूसरे शहरों की तरफ़ भागने लगे. वो एक ऐसी ट्रेन की बोगी में चढ़े जिसमें सेना के जवान सवार थे. उनसे उनका झगड़ा हुआ और उन्होंने इनसे इनका पहचान पत्र माँगा. रंगा ने बिल्ला से कहा कि उन्हें 'भरा हुआ आई कार्ड' दे दो. तभी सैनिकों को अंदाज़ा हो गया कि दाल में कुछ काला है. उन्होंने उन्हें बाँध दिया और जब दिल्ली स्टेशन आया तो उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया."
फाँसी के लिए फ़कीरा और कालू जल्लाद को बुलाया गया
बिल्ला और रंगा को अदालत ने फाँसी की सज़ा सुनाई जिसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरक़रार रखा.
राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने उनकी दया की याचिका अस्वीकार कर दी. फाँसी से एक हफ़्ते पहले इन्हें जेल नंबर 3 की फाँसी कोठी में ले जाया गया. वहाँ उन्हें पूरी तरह से एकाँतवास में रखा गया और वो 24 घंटे तमिलनाडु स्पेशल पुलिस के जवानों की निगरानी में रहे.
दोनों को फाँसी देने के लिए फ़रीदकोट से फ़कीरा और मेरठ से कालू जल्लाद को बुलाया गया. सुनेत्रा चौधरी बताती हैं, "ये दोनों लोग कालू और फ़कीरा दोनों 'लीजेंडरी' थे. एक प्रथा सी बन गई थी कि फाँसी से पहले उनको 'ओल्ड मंक' शराब पीने के लिए दी गई थी, क्योंकि माना जाता था कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो जल्लाद ही क्यों न हो अपने होशोहवास में किसी की जान नहीं ले सकता. जेल मैनुअल में किसी की जान लेने के लिए जल्लाद को सिर्फ़ 150 रुपए देने का ज़िक्र है जो कि बहुत कम है."