Alok Kumar

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डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन और उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल पर आधारित मेरी नई ब्लॉग पोस्ट पढ़ें, जिसमें उनकी आर्थिक नीतियों और...
27/12/2024

डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन और उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल पर आधारित मेरी नई ब्लॉग पोस्ट पढ़ें, जिसमें उनकी आर्थिक नीतियों और नेतृत्व के प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की गई है

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पश्चिम पंजाब (अब पाकिस्तान में स्थित) के गाह नामक गां....

24/11/2024
बिहार के रेल यात्रियों बहुत ही खुशी की खबर है. बिहार के मुजफ्फरपुर और दरभंगा के बीच जल्द ही नई रेल लाइन बिछेगी. इन रेल ल...
12/11/2024

बिहार के रेल यात्रियों बहुत ही खुशी की खबर है. बिहार के मुजफ्फरपुर और दरभंगा के बीच जल्द ही नई रेल लाइन बिछेगी. इन रेल लाइनों पर 10 नए रेलवे स्टेशन का भी निर्माण किया जाएगा. जिससे दोनों शहरों के बीच की दूरी 24 किलोमीटर कम होगी. इसे बनाने में 2514 करोड़ रुपये होने वाला है.

भारत ने आज एक ऐसे महान उद्योगपति और समाजसेवी को खो दिया, जिन्होंने न केवल भारतीय उद्योग जगत को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, ...
10/10/2024

भारत ने आज एक ऐसे महान उद्योगपति और समाजसेवी को खो दिया, जिन्होंने न केवल भारतीय उद्योग जगत को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि अपनी निस्वार्थ सेवा और उदारता से समाज के हर वर्ग को प्रेरित किया।

श्री रतन टाटा जी की सादगी, दूरदर्शिता और सेवा भावना युगों-युगों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। उनका जाना देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति है।

प्रकृति दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें🙏।

मनोज भारती चुने गए जन सुराज के कार्यवाहक अध्यक्ष
02/10/2024

मनोज भारती चुने गए जन सुराज के कार्यवाहक अध्यक्ष

जिउतिया पर्व के नहाय-खाए के दिन जरूरत पड़ने वाले सामान की लिस्ट।
23/09/2024

जिउतिया पर्व के नहाय-खाए के दिन जरूरत पड़ने वाले सामान की लिस्ट।

राजा बिम्बिसार का खजाना बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित ‘सोन भंडार’ गुफा में वर्षों पुराना खजाना छुपा हुआ है. म...
13/09/2024

राजा बिम्बिसार का खजाना

बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित ‘सोन भंडार’ गुफा में वर्षों पुराना खजाना छुपा हुआ है. माना जाता है कि ये हर्यक वंश के प्रथम राजा बिम्बिसार की पत्नी ने छिपाया था।

इतिहासकारों के अनुसार, हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार को सोने-चांदी से गहरा लगाव था. वह सोने और उसे बने आभूषणों को इकट्ठा करते थे. उनकी कई रानियां थीं, लेकिन एक रानी उनका बहुत ख्याल रखती थी. अजातशत्रु ने जब अपने पिता बिम्बिसार को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया, तब बिम्बिसार की इसी पत्नी ने राजा के खजाने को सोन भंडार में छिपा दिया था जो आज तक रहस्य बना हुआ है।

राजा की पत्नी ने बनवाई था गुफा

इतिहासकारों ने अनुसार, बिम्बिसार की पत्नी ने विभागिरी पर्वत की तलहटी में सोन भंडार गुफा का निर्माण करवाया था. सत्ता प्राप्ति के लिए बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने उसे कैदखाने में डाल दिया और मगध का सम्राट बन गया. हालांकि, राजा की मौत कैसे हुई इस पर संशय बना हुआ है. कुछ का मानना है कि अजातशत्रु ने अपने पिता को मरवा दिया था, कुछ का कहना है कि बिम्बिसार ने आत्महत्या कर ली थी।

अंग्रेज़ भी नहीं खोल पाए खजाने का दरवाजा

बता दें कि सोन भंडार गुफा के अंदर दो कमरे हैं. अंदर दाखिल होते ही 10.4 मीटर लंबा और 5.2 मीटर चौड़ा एक कमरा है. इसकी ऊंचाई तक़रीबन 1.5 मीटर है. कहा जाता है इस कमरे में खजाने की रक्षा करने वाले सिपाही तैनात रहते थे. इसी कमरे के अंदर से एक और कमरा है, जो एक बड़ी चट्टान से ढका हुआ है. इसी राजा का खजाना माना जाता है. लेकिन, इस दरवाजे को खोलने में अब तक कोई कामयाब नहीं हुआ।

ब्रिटिश भारत में भी इस रहस्यमयी खजाने तक पहुंचने की कोशिश की गई थी. खजाने वाले कमरे को खोलने के लिए तोप के गोले का इस्तेमाल किया गया. फिर भी इसे खोलने में अंग्रेज़ असफल रहे. कहा जाता है कि आज भी इस गुफा पर दागे गए गोले के निशान मौजूद हैं।

चट्टान पर लिखा है खजाने का रहस्य, लेकिन…

गुफा की दीवार पर शंख लिपि में कुछ लिखा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इसी में सोन गुफा भंडार के खजाने का रहस्य छिपा हुआ है, लेकिन वो किस भाषा में है, उस पर आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है. माना जाता है कि जो भी इस शिलालेख को पढ़ लेगा वह खजाने तक पहुंच जाएगा।

गौरतलब है कि राजगीर में कुछ गुफाएं मौजूद हैं. इनमें एक के बाहर मौर्यकालीन कलाकृतियां देखने को मिलती हैं तो दूसरी के दाखिले दरवाजे पर गुप्त राजवंश की भाषा में शिलालेख मिले हैं।

सोन भंडार गुफा के रहस्यमयी खजाने को हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार का माना जाता है, लेकिन ऐसी भी मान्यता है कि इस खजाने का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है -

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायु पुराण में लिखा है कि हर्यक वंश शासनकाल से तकरीबन 2500 वर्ष पूर्व मगध पर सम्राट वृहदरथ का शासन हुआ करता था. वृहदरथ के बाद उनके बेटे जरासंध ने पिता की गद्दी संभाली और सम्राट बने. जरासंध एक कुशल और पराक्रमी सम्राट माने जाते थे. वो चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए 100 राज्यों को परास्त कर अपने अधीन करने निकल पड़े।

बिहार के 18 शहरों में निजी FM Radio शुरू करने की मंजूरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दे दी है। पूरे भारत मे 234 नए शहरों का चय...
29/08/2024

बिहार के 18 शहरों में निजी FM Radio शुरू करने की मंजूरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दे दी है। पूरे भारत मे 234 नए शहरों का चयन किया गया है। बिहार में बेतिया, बगहा, मोतिहारी, सिवान, छपरा, आदि शहरों का नाम इस सूची में शामिल हैं। सरकार के इस पहल से बिहार में स्थानीय संस्कृति, मनोरंजन और सूचना के प्रसार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

 ेरेसा26 अगस्त 1910 जन्मदिवसएग्नेस गोंझा बोयाजिजू' यानी मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मसोडोनिया की राजधानी स्कोपन्...
26/08/2024

ेरेसा
26 अगस्त 1910 जन्मदिवस

एग्नेस गोंझा बोयाजिजू' यानी मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मसोडोनिया की राजधानी स्कोपन्ज़े में हुआ था,
18 साल की उम्र में टेरेसा नन बन गई,
6 जनवरी 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं, यही इन्हें सन्यासी की पदवी दी गई, और यही इन्होंने टेरेसा नाम जोड़ा अपने नाम के साथ, इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं, 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और बाद में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना, इस समूह का उद्देश्य शराबियों, एड्स पीड़ितों, भूखें, नंगे, बेघर, अपंग, अंधे, कुष्ठरोग से पीड़ित और कई अन्य, सभी व्यक्ति जिन्हें सहायता की आवश्यकता थी, को सहायता प्रदान करना था, की जिसे 7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी,
उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया और तभी से मानवता की सेवा के लिए कार्य आरंभ कर दिया

1962 में, मदर टेरेसा को भारत सरकार द्वारा #पद्मश्री से सम्मानित किया गया
1969 में, मदर टेरेसा को अंतर्राष्ट्रीय समझ के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
1979 में, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया
1980 में, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न पुरूस्कार’ से सम्मानित किया
लगातार गिरती सेहत की वजह से 05 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई, उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में लिप्त थीं

4 सितम्बर 2016 को, मदर टेरेसा को इटली के विभिन्न हिस्सों के 15 आधिकारिक प्रतिनिधि मंडलों और 1500 बेघर लोगों के साथ हजारों लोगों की एक सभा में वेटिकन सिटी के सेंट पीटर स्क्वायर में पोप फ्रांसिस द्वारा संत की उपाधि प्रदान की गई थी,

लक्ष्मी नारायण मंदिर ✨लक्ष्मी नारायण मंदिर, बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्...
26/08/2024

लक्ष्मी नारायण मंदिर ✨

लक्ष्मी नारायण मंदिर, बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण १९३८ में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।














 ीना_दास 24 अगस्त 1911 जन्मदिवसकलकत्ता विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह चल रहा था,बंगाल का गवर्नर स्टेनले जैक्सन मुख्य अ...
24/08/2024

ीना_दास
24 अगस्त 1911 जन्मदिवस

कलकत्ता विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह चल रहा था,
बंगाल का गवर्नर स्टेनले जैक्सन मुख्य अतिथि था, जैक्सन ने स्टेज पर कहे होकर भाषण देना शुरू किया,
अचानक स्टेज के सामने बैठे छात्रों में से एक छात्रा उठ खड़ी हुई, उसने अपने गाउन में हाथ डाला और जब गाउन से हाथ बाहर निकला तो उसके हाथ में एक "रिवाल्वर" थी, छात्रा ने भरी सभा में उठ कर गवर्नर पर गोली चला दी। निशाना चूक गया और गोली जैक्सन के कान के पास से होकर गुज़री, गोली की आवाज़ से सभा में अफ़रा-तफ़री मच गयी,

इसी बीच एक अन्य व्यक्ति ने दौड़कर छात्रा का एक हाथ से दबा दिया और दूसरे हाथ से रिवॉल्वर थामी कलाई पकड़ कर हॉल की छत की तरफ़ कर दी, इसके बावजूद छात्रा एक के बाद एक गोलियाँ चलाती रहीं, उसने कुल पाँच गोलीयां चलाई, उसी वक्त छात्रा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया,

छात्रा का नाम था .......बीना दास,

अगली सुबह के अखबार में बीना दास का कारनामा फ्रंट पेज पर छपा, सारा हिंदुस्तान दंग रह गया, कॉलेज में पढ़ने वाली एक साधारण छात्रा क्रांति का नया चेहरा बन चुकी थी, ब्रिटिश हुकूमत विश्वास नहीं कर पा रही थी के मात्र 21 वर्ष की एक कन्या सरेआम ब्रिटिश गवर्नर पर गोली चला सकती है, बीना की उन 5 गोलियों की आवाज़ सारे हिंदुस्तान में गूंज रही थी, उन 5 गोलियों की आवाज़ ने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी, हुकूमत को विश्वास हो गया के आज़ादी के आंदोलन में सर्वस्व बलिदान कर देने वाली रानी लक्ष्मीबाई आखरी महिला नहीं थी, उन 5 गोलियों की आवाज़ ने ना जाने कितनी महिला क्रांतिकारियों को जंग ऐ आज़ादी में योगदान देने का साहस प्रदान किया,

बीना दास पर मुकदमा चला। उन्हें 9 वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई। जज ने जब उनसे गवर्नर पर गोली चलाने का कारण पूछा तो बीना ने भरी अदालत में कहा ........

"बंगाल का गवर्नर उस सिस्टम का प्रतिनिधित्व करता है जिसने 30 करोड़ देशवासियों को गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा है, इसलिये मैंने उसपर गोली चलाई"

क्रांतिकारी बीना दास का जन्म 24 अगस्त, 1911 को ब्रिटिश कालीन बंगाल के कृष्णानगर में हुआ था, उनके पिता बेनी माधव दास प्रसिद्ध अध्यापक थे और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उनके छात्र रह चुके थे, बीना की माता सरला दास भी सार्वजनिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थीं और निराश्रित महिलाओं के लिए उन्होंने ‘पुण्याश्रम’ नामक संस्था भी बनाई थी, ब्रह्म समाज का अनुयायी यह परिवार शुरू से ही देशभक्ति से ओत-प्रोत था,

साल 1928 में अपनी स्कूल की शिक्षा के बाद वे छात्री संघ (महिला छात्र संघ) में शामिल हो गयीं,

संघ में सभी छात्राओं को लाठी, तलवार चलाने के साथ-साथ साइकिल और गाड़ी चलाना भी सिखाया जाता था, इस संघ में शामिल कई छात्राओं ने अपना घर भी छोड़ दिया था और ‘पुण्याश्रम’ में रहने लगीं, जिसका संचालन बीना की माँ "सरला देवी" करती थीं,

उस समय यह छात्रावास बहुत सी क्रांतिकारी गतिविधियों का गढ़ भी था, यहाँ के भंडार घर में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए हथियार, बम आदि छिपाए जाते थे,

बताया जाता है कि कमला दास ने ही बीना को रिवॉल्वर लाकर दी थी,

जेल से रिहा होने के पश्चात भी बीना दास ने हिंदुस्तान की आज़ादी के स्वप्न को जीवित रखा, वह भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रही, 1947 में उन्होंने अपने साथी ज्योतिष भौमिक से शादी कर ली,

कुछ ही समय पश्चात उनके पति की मृत्यु हो गयी, बीना कोलकाता छोड़ कर ऋषिकेश देहरादून उत्तराखण्ड के एक आश्रम में रहने लगी, जीवन यापन करने के लिये वह एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाने लगी, आर्थिक तंगी और बदहाली के दौर से भी गुज़री लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन को लेने से इंकार कर दिया,

राष्ट्र के लिये सर्वस्व कुर्बान कर देने वाली वीरांगना की किसी ने सुध नहीं ली, एक शाम उनका शव छिन्न भिन्न अवस्था में सड़क के किनारे मिला, पुलिस को सूचित किया गया, महीनों बाद पता चला के वह शव क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित करने वाली बीना दास का था,
Alok Kumar

रोपड़ का इतिहास ✨रूपनगर ( रोपड़ ) शहर काफी प्राचीन है। कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना रोकेशर नामक राजा ने की थी, जिसने...
22/08/2024

रोपड़ का इतिहास ✨

रूपनगर ( रोपड़ ) शहर काफी प्राचीन है। कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना रोकेशर नामक राजा ने की थी, जिसने 11वीं शताब्दी में शासन किया और अपने बेटे रूप सेन के नाम पर इसका नाम रूपनगर रखा। रूपनगर में हाल ही में की गई खुदाई से यह साबित हो गया है कि यह शहर अच्छी तरह से विकसित सिंधु घाटी सभ्यता का केंद्र था।

प्रोटो-ऐतिहासिक पंजाब में शायद रूपनगर ही एकमात्र ज्ञात उत्खनन स्थल है जो एक छोटे शहर या कस्बे का दर्जा पाने का दावा कर सकता है। हाल ही में हुई खुदाई में मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, सिक्के आदि मिले हैं। इससे साबित होता है कि यह शहर हड़प्पा-मोहनजोदड़ो सभ्यता से जुड़ा है जो सतलुज नदी को पार करके आया था। उनमें से कई लोग इस जगह पर बस गए थे। उत्खनन में चंद्रगुप्त, कुषाण, हूण और मुगल काल से जुड़ी कई चीजें मिली हैं। दुर्लभ खोजों में से एक संगमरमर की मुहर है जिस पर सिंधी लिपि में तीन अक्षर उत्कीर्ण हैं। एक खोज में एक महिला की मूर्ति है जिसमें वह अपने बालों को संवार रही है। ये सभी बातें साबित करती हैं कि इस शहर में 4000 साल पहले रहने वाले लोग भी पूरी तरह सभ्य और सुसंस्कृत थे।

कई इतिहासकारों का मानना है कि जब पहला आदमी उत्तर के पहाड़ों से मैदानों में उतरा, तो वह रोपड़ में बस गया। रोपड़ में पुरातत्व विभाग द्वारा एक पहाड़ अभी भी संरक्षित है।

सियालबा के सरदार हरि सिंह रईस ने 1763 ई. में रोपड़ पर विजय प्राप्त की और अपना राज्य स्थापित किया। उनके पुत्र चरत सिंह ने रोपड़ को राज्य की राजधानी बनाया।

1763 में सरहिंद के पतन के बाद, रूपनगर सिख सरदार हरि सिंह के अधीन आ गया। रोपड़ रियासत के सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भूप सिंह थे, जिन्होंने 1945 के एंग्लो-सिख युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह के नाबालिग उत्तराधिकारी महाराजा दलीप सिंह की तरफ से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। नतीजतन, अंग्रेजों की जीत के बाद, राजा भूप सिंह की रोपड़ रियासत जब्त कर ली गई।

रोपड़ जिले का इतिहास वास्तव में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा मुगल अत्याचार, शोषकों और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ किए गए युद्ध का इतिहास है। इसी जिले के सरसा नंगल में महान गुरु अपने परिवार से अलग होकर चमकौर साहिब चले गए थे, जहां दो बड़े साहिबजादों ने सत्य के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी और गुरु साहिब निरंतर संघर्ष के लिए माछीवाड़ा चले गए थे।

इस जिले का दूसरा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल सतलुज नदी के तट पर स्थित कीरतपुर साहिब है। इस शहर की स्थापना 6वें गुरु श्री गुरु हर गोबिंद सिंह जी ने बाबा गुरदित्ता जी के माध्यम से केहलूर के राजा तारा चंद से जमीन खरीद कर की थी। ऐसा कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी ने इस स्थान की स्थापना के संबंध में एक वचन दिया था। यहीं पर गुरु नानक देव जी ने जंगल में संत बुद्दन शाह से मुलाकात की थी। यहीं शीशमहल में गुरु हरगोबिंद साहिब जी सम्मत 1691 से अंत तक रहे। श्री गुरु हर राय जी और श्री गुरु हरिकृष्ण जी का जन्म भी यहीं हुआ था और उन्हें यहीं पर गुरु गद्दी प्राप्त हुई थी। यहीं गुरुद्वारा पातालपुरी साहिब में दुनिया भर से सिख मृत्यु के बाद अस्थियां विसर्जित करते हैं। यहां तक कि श्री हरि कृष्ण जी की बभूति भी दिल्ली से लाकर यहीं स्थापित की गई थी। कीरतपुर साहिब से करीब आधा मील दूर संत बुद्दन शाह का तकिया स्थित है।

इस जिले के ऐतिहासिक शहर आनंदपुर साहिब की स्थापना सिखों के 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 1723 ई. में माकोवाल गाँव में ज़मीन खरीदकर की थी। यह वह स्थान है जहाँ महान 9वें गुरु ने आनंदपुर साहिब में निर्मित गुरुद्वारा भौरा साहिब की स्मृति में अनुष्ठान किया था। यह आनंदपुर साहिब भी है जहाँ कश्मीरी पंडितों ने मुगल अत्याचार से उन्हें बचाने के लिए 9वें गुरु से संपर्क किया था। गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रेरणा पर उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए, श्री गुरु तेग बहादुर जी सर्वोच्च बलिदान देने के लिए दिल्ली चले गए। आनंदपुर साहिब में सिखों के महान 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना प्रारंभिक जीवन बिताया। यहीं पर महान गुरु ने किला आनंदगढ़ साहिब में हथियारों के इस्तेमाल में निपुणता हासिल की थी।

इसके अलावा, रूपनगर जिले के आनंदपुर साहिब में ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा की स्थापना की थी और एक सांस्कृतिक क्रांति लाई थी। यह सिखों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाए गए खालसा ने बाद में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब की संप्रभु सत्ता हासिल कर ली। आनंदपुर साहिब में खालसा की स्थापना न केवल रूपनगर जिले के इतिहास में, बल्कि सिखों और पंजाब के इतिहास में भी सबसे महत्वपूर्ण घटना है। आनंदपुर साहिब में गुरुद्वारा केशगढ़ साहिब आज भी ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है क्योंकि गुरु ने इस स्थान पर खालसा की स्थापना की थी।

जिले के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना तब जुड़ गई जब अप्रैल 1999 में आनंदपुर साहिब में खालसा का 300वां जन्मदिवस मनाया गया। दुनिया भर से लाखों लोगों के अलावा, प्रमुख, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तियों ने त्रिशताब्दी समारोह में भाग लिया और गुरुद्वारा तख्त श्री केशगढ़ साहिब में मत्था टेका। ऐतिहासिक शहर आनंदपुर साहिब को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। खालसा विरासत स्मारक परिसर का निर्माण किया जा रहा है।





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