14/07/2025
#क्लेश_द्वेष_भेष
न क्लेश है न द्वेष है , हृदय में प्रेम विशेष है,
श्रद्धा भी है समर्पण भी, और सेवा का परिवेश है,
भाव से भरी है भावना , हर भेष में भावेश है,
क्यूँ ठेस लगता बार बार, अफ़सोस बचता शेष है,
अफ़सोस बचता शेष है....................।
जीवन के इस जन्म में, हर बार धर्म पर चलता हूँ,
श्रम करता हूँ तन मन से, और कर्म यज्ञ में जलता हूँ,
चाहो तो आजमा कर देखो, मेरा कतरा जला कर देखो,
लेशमात्र का दर्द न होगा, जले पर भी चुभा कर देखो,
क्यूंकि ! संघर्ष ताप में झुलसता समर्पित मेरा हर भेष है,
दहकती हर आग की आग़ोश में, मेरा वजूद ये पेश है,
मेरा वजूद ये पेश है .........................।
इत्मीनान के इंतिहान में, कभी ना डोला है ईमान ये,
बंदा सच्चाई पर कुर्बान, मिलता शब्दों का इनाम ये,
लगन भी है, ईमानदारी भी, संघर्ष के साथ साझेदारी भी,
स्वार्थ का कोई जगह नहीं, न मूर्खता है न लाचारी भी,
प्रचंड शक्तियां हैं खौल रहीं, सिर्फ हृदय में सत्य अशेष है,
जब कोई भेष बदलता बारबार, हमें आ जाता आवेश है,
हमें आ जाता आवेश है.......................।
क्यूंकि संस्कृति हमारी सुरभि, सांस्कारिक ये संदेश है,
प्राप्ति से है त्याग बड़ा, सनातन सत्य का आदेश है,
नफा नुकसान को छोड़ो, करना अब तो श्री गणेश है,
जला दो द्वेष क्लेश प्रदेश से, मेरा महफिल ये देश है,
मेरा महफिल ये देश है ........................।।।।।।
©पारितोष कुमार