10/02/2025
ेश_का_कौशिक_विश्वामित्र_से_सम्बन्ध
एकाक्ष और काव्या के नाम से प्रसिद्ध शुक्र जो ब्रह्मर्षि भृगु के ज्येष्ठ पुत्र थे, इनके वंश में उत्पन्न चन्द्र देव वंशी प्रजापति बलकाश्व के पुत्र कुश नामक एक महर्षि थे। इसी कुश के नाम पर इनके वंशज़ों द्वारा शासित साम्राज्य भी कुश के नाम से ही पहचाना जाता था। यूं तो इस साम्राज्य का विस्तार उत्तरी अफ्रीकी देशों से लेकर सिन्धु नदी के पश्चिमी भूभाग तक था, लेकिन ईस्वी संवत के आरम्भ होते-होते उत्तरी अफ्रीका के इजिप्ट (Egypt) तक ही सिमट कर रह रह गया था। हालांकि जिस देश को आज इजिप्ट के नाम से पहचान रहे हैं वह मूलतः कुम्भी समुदाय के अग्नि वंशी ब्राह्मणों द्वारा शासित देश होने के कारण "अगिपुतस" कहलाता था। ये अग्निवंशी! जिस अग्नि देव के वंशज़ थे, उनके जन्म की कथा शिव पुराण में "गृहपति अग्नि अवतार" के नाम से उल्लिखित है। शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध के सत्ताइसवें अध्याय में वर्णित गृहपति अवतार की कथा के अनुसार "गृहपति अग्नि" का जन्म कौशिक विश्वामित्र भगवान के अंश से उस समय हुआ था जब ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के कारण अपना राज-पाट त्याग कर विश्वामित्र मुनि नर्मदा नदी के तटवर्ती वन्य क्षेत्र में रहते हुए तप कर रहे थे। उस दौरान नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक ग्राम के पास चक्षुस्मति नामक जिस नागकन्या से भेंट हुआ था। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी ने उस नागकन्या के साथ विवाह कर के भेड़ाघाट पर स्थित गुहा में रहते हुए भगवान शिव की अराधना करते थे। उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव! उनके पुत्र के रूप में उनकी पत्नी चक्षुस्मति के गर्भ से जन्म लिया। उसके बाद कौशिक विश्वामित्र भगवान को अपने गणों में शामिल कर के भगवान शिव ने चक्षुस्मति-विश्वामित्र के पुत्र का नामकरण संस्कार कर के उन्हें सपरिवार अपने साथ कुम्भ लोक के पास स्थित उस राज्य में लेकर चले गए जिसकी सुरक्षा करने के लिए भगवान शिव! बाणासुर के द्वारा वचनबद्ध थे।
वाणासुर की राजधानी शोणितपुर के पास भगवान शिव के गणों के साथ रहते हुए भगवान शिव जी ने अग्नि देव का विवाह प्रजापति कुम्भ की कन्याओं स्वाहा, स्वधा और विशाखा के साथ विवाह करवा दिया। प्रजापति कुम्भ ने कन्या दान के समय जो भुमि अपनी कन्याओं को दिया था, वह भुमि गृहपति अग्नि के वंशज़ों ने अपने पुर्वज बलकाश्व नन्दन कुश के नाम पर कुश नामक देश को आबाद किया। उसी कुश देश के अन्तिम प्रतापी राजा को हमारी आधुनिक पीढ़ी के लोग रामाशेष के नाम से जानते हैं। चक्षुस्मति-कौशिक के पुत्र अग्नि के पुत्र-पौत्रों का देश होने के कारण ही उनका राज्य चिह्न "चक्षु" था। विदित हो कि विश्वामित्र नन्दन अग्नि देव के द्वारा कपोत (कबूतर) का रूप धारण कर के शिव जी के स्खलित वीर्य को संरक्षित कर के भगवती पार्वती जी की ज्येष्ठ बहन गंगा के गर्भ में प्रत्यारोपित करने से शिव पुत्र कार्तिकेय जी के जन्म की रोचक कथा भी शिव पुराण में वर्णित है। इसके कारण कौशिक गोत्रीय लोगों के द्वारा आज भी कबूतर को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ तक कि इजिप्ट और कुश देश के विभिन्न पुरातात्विक भग्नावषेशों में उत्कीर्ण प्रस्तर चित्रों में ऊपर का सिर कबूतर का और नीचे का धर मानव का दिखलाया गया है। जो कपोत रूपधारी भगवान अग्निदेव की ही प्रतिमा है।
शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव जी के अवतारों में प्रसिद्ध विश्वामित्र और गृहपति अग्नि! कुश नामक जिस पूर्वज़ के वंशज़ थे, उनके नाम पर आज भी कुश वंशी ब्राह्मणों की जाति "कुश" जाति के नाम से पहचानी जाती है। मगर कई समुदायों के लोग अपने रीति-रिवाजों और वंशावली को भुला देने के कारण खुद को कुश वंशी समझने वाले चन्द्रवंशी लोग भी खुद को सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र जी के पुत्र कुश का वंशज़ मान कर सूर्यवंशी होने का दावा करते हैं। लेकिन वे लोग सूर्यवंशी हैं या चन्द्रवंशी, इसकी जानकारी गोत्र, शाखा, प्रवर और तिलक के नाम से हो जाता है।
भारत को विश्वगुरु का ताज देने वाली इस जाति का मार्गदर्शन और आशीर्वाद विश्व की सभी जातियां चाहती थीं, इसके कारण इस जाति के लोग विश्व के सभी देशों में उनके महामन्त्री और गुरु सहित सर्वोच्च सैन्य अधिकारियों के पद पर भी पदासीन थे। इसके कारण आज भी विश्व के अधिकांश देशों के लोग कुश जाति को मार्शल जाति के रुप में जानते हैं। लेकिन अफसोस है कि क्रिश्चियनिटी और इस्लाम के प्रसार के कारण सबसे सम्मानित समझी जाने वाली यह जाति आज सम्पूर्ण विश्व में फैले होने के कारण अपने समुदाय से अलग-थलग और अकेले पड़ कर कमजोर हो गया है। इसके कारण इस जाति के लोगों का न तो कोई संगठन है, न ही पूरे विश्व में फैले इस आदिम जाति को संगठित करने का कोई तन्त्र या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।
हालांकि विभिन्न देशों में रहने वाले इस जाति के लोग आज भी अपनी पौराणिक पहचान को बचाये रखने के लिए अपनी जाति और उपजाति के नाम को बचाये हुए है। ताकि दुनियां में फैले हुए इस जाति के लोगों को अल्पसंख्यक होने के बावजूद उनके जातिय नाम के आधार पर पहचाना या ढूँढा जा सके।
भारत में रहनेवाली यह जाति #कर्नाटक, #केरल और #तमिलनाडु में "Koosa" (कुश) नामक अनुसूचित जाति के नाम से पहचानी जाती है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका में "Coos" (कुश) नामक जन जाति के रुप में। जबकि इसी जाति में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ भारत के छत्तीसगढ़ और बिहार में "कुम्भी" (Kumbhi) जाति के नाम से प्रसिद्ध हैं तो रूस में "कोमी" (Komi) और कई अफ्रीकी देशों में "Cumbi" (कुम्बी) कम्युनिटी के नाम से। इसी तरह फ्रांस, बुल्गारिया, नार्वे, स्वीडन, युगोस्लाविया और यूक्रेन आदि देशों में रहने वाले प्रजापति कुश के वंश में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान के वंशज़ "Cossack और Kossack के नाम से पहचाने जाते हैं तो कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र गालव्य ऋषि के वंशज़ पुर्तगाल में पुर्तगीज़" कहलाते हैं जबकि अन्य देशों में रहने वाले गालव्य वंशी गॉलिक कहलाते हैं।
विभिन्न नाम और उपनाम से दुनियां में फैले इस समुदाय के लोगों को एकजुट करने के लिए सबसे पहले भारत में रहने वाले कुश वंशी समुदाय को एकजुट करने की जरूरत है। ताकि अपने पूर्वज़ों के पौराणिक इतिहास को अभी तक बचाये रखे इस समुदाय के लोग एकजुट होकर विश्व में फैले अन्य परिजनों को भी एकजुटता के लिए जागरूक कर सकें।
फिलहाल भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के द्वारा प्रजापति कुश के वंशज़ों की जाति को Koosa के नाम से कर्नाटक के अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 52 में, केरल की अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 31 में और तमिलनाडु के अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 33 में सूचीबद्ध कर दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में रहने वाले कुश जाति के कुम्भी समुदाय के लोगों को OBC शामिल कर के कुम्भी समुदाय के नाम पर दिये जाने आरक्षण कोटा का लाभ कुर्मी समुदाय को देकर कुम्भी समुदाय के लोगों के साथ छल किया जा रहा है। इस कपटपूर्ण आचरण को छुपाने के लिए सरकार यह दावा करती है कि कुम्भी जाति को ही कुर्मी कहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि कुर्मी जाति के लोग सूर्य वंशी राजा रामचन्द्र जी के छोटे पुत्र कुश के वंशज़ों में उत्पन्न कूर्म नामक राजा के वंशज़ हैं। जबकि कुम्भी जाति के लोग रामचन्द्र जी के जन्म लेने के पहले से मौजूद चन्द्रवंशी राजा कौशिक विश्वामित्र के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ हैं। अतः कुम्भी जाति को कुर्मी जाति से भी आदिम जाति मानते हुए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।
हालांकि कुम्भी समुदाय की भी मूल जाति कुश ही है। क्योंकि कुम्भी! कुश जाति के लोगों की ही उपजाति का नाम है। तथा शादी-विवाह के समय समान गोत्र और समान जाति में विवाह से बचने के लिए इस उपजाति के नाम का इस्तेमाल किया जाता है। अतः कुम्भी जाति को कुर्मी जाति से अलग कर के चन्द्र वंश में उत्पन्न कुश जाति की ही उपजाति के रुप में सूचीबद्ध कर के आरक्षण का लाभ दिलवाने का प्रयास करें। विदित हो कि बहमनी सुल्तानों के आतंक के कारण 500 से 550 वर्ष पहले दक्षिणी भारत से पलायन कर के बिहार मे दीन-हीन अवस्था में बसने वाले कुम्भी समुदाय के बहुसंख्यक लोगों की आजीविका का मुख्य साधन दैनिक मजदूरी है। शासन-प्रशासन और पंचायत में भी इस समुदाय का कोई प्रतिनिधि नहीं है जो इनकी समस्याओं और हक के लिए आवाज़ उठा सके।
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01. Adi Andhra
02. Adi Dravida
52.
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02. Adi Dravida
31.
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02. Adi Dravida
33.
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