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 #यादवों_का_इतिहास इस वीडियो क्लिप को देखने पर शायद आपको भी । यादव जी की बातों का खण्डन करने वाले लोगों को यह जानना चाहि...
06/07/2025

#यादवों_का_इतिहास
इस वीडियो क्लिप को देखने पर शायद आपको भी । यादव जी की बातों का खण्डन करने वाले लोगों को यह जानना चाहिये कि यादवों के पुर्वज़ यदु जो महाराजा ययाति के पुत्र थे, उन्हें अपने पिता के साम्राज्य के उसी क्षेत्र का राजा बनाया गया था जो आज इरान कहलाता है। यह बात अलग है कि सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने उनके राज्य "भृगु राष्ट" पर कब्जा कर के यदुवंशियों को यत्र-तत्र भागने के लिए विवश कर दिया था। इसकी सच्चाई जानने के लिए अपनी कूपमण्डुकता छोड़ कर पौराणिक ग्रन्थों का अध्ययन करें।

 #कुम्भ_के_नाम_से_विख्यात_अफ्रीका_में_स्थित_Egypt_से_कौशिक_गोत्रीय_अग्निवंशियों_का_पौराणिक_सम्बन्ध :           आज हम जिस...
11/02/2025

#कुम्भ_के_नाम_से_विख्यात_अफ्रीका_में_स्थित_Egypt_से_कौशिक_गोत्रीय_अग्निवंशियों_का_पौराणिक_सम्बन्ध :
आज हम जिस देश को Egypt के नाम से जानते हैं वहाँ के शासक ब्राह्मण थे, इस बात को सारी दुनियां जानती है लेकिन वे लोग कौन ब्राह्मण थे, उन लोगों का मूल धर्म क्या था और उनके देश का मूल नाम क्या था उसके बारे में वहाँ के स्थानीय लोग भी भूल चुके हैं। लेकिन उस देश में जिन लोगों का साम्राज्य था, उनके वंशज़ आज भी भारत में रह रहे हैं। यह बात अलग है कि वे लोग अपने पौराणिक विरासत को नहीं बचा पाये। लेकिन अपनी मूल पहचान को आज तक नहीं भुला सके हैं।

भगवान शिव के द्वारा देवों के अधिपति बनाये गये अग्निदेव के वंशज़ों के देश इजिप्ट के सबसे अन्तिम प्रतापी राजा को रामाशेष के नाम से लोग भले ही जान रहे हैं लेकिन वे किस वंश के थे और उनके देश को लोग इजिप्ट क्यों कहते हैं, आज इसके बारे में रहष्योद्घाटन करने वाला हूँ।

आज जिस देश को लोग इजिप्ट और मिश्र के नाम से जानते हैं यह भगवान चन्द्रदेव के वंश में उत्पन्न प्रजापति बलकाश्व के पुत्र कुश के नाम पर स्थित विश्व के उस सबसे बड़े साम्राज्य की पावन भूमि का उपनाम है। इस पावन भूमि पर कौशिक विश्वामित्र भगवान के सबसे छोटे पुत्र अग्नि देव के वंशज़ों के द्वारा शासित वह देश था, जो परमपिता परमेश्वर भगवान शिव जी कृपा से अग्निदेव को प्राप्त हुआ था। भगवान शिव! अग्निदेव को उनके माता-पिता (चक्षुस्मति-कौशिक विश्वामित्र) सहित अपने लोक में बुला कर दिक्पति बनाने के उपरान्त अग्निदेव द्वारा स्थापित जिस लिंग में समा कर अन्तर्ध्यान हो गये थे, वह लिंग! अग्निपति के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा उस लिंग को धारण करने वाला पवित्र देश भी शिव भक्तों के प्रसिद्ध तीर्थ अग्निपति धाम के नाम से पहचाना जाता था। कालान्तर में अग्निपति के नाम पर ही वह देश Egypt (इजिप्ट) कहलाया।

इस देश की राजधानी जिस नगर को बनाया गया था उसका नाम गृहपति अग्नि की माता चक्षुस्मति के नाम पर चक्षुस्मति पुरी ही रखा गया था। इसका प्रमाण शिव शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध के अट्ठाइसवें अध्याय में देख सकते हैं। कौशिक गोत्रीय अग्नि देव के वंशज़ों के द्वारा शासित देश का राज-चिह्न भी चक्षु ही था जो इस बात का प्रतीक था कि उस चिह्न को धारण करने वाले लोग ब्रह्मर्षि विश्वामित्र भगवान की सबसे छोटी पत्नी चक्षुस्मति देवी के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ हैं।

विदित हो कि चक्षुस्मति देवी! नर्मदा नदी के पास स्थित नर्मपुर नामक नगर में रहने वाली एक नागकन्या थी। इसके कारण ही उनके नाम पर बसाये गये इजिप्ट के तटवर्ती नगरों और गाँवों में स्थित भग्नावषेशों में ब्राह्मणों के साथ नागवंशियों के स्मृति चिह्न आज भी यत्र-तत्र बिखरे हुए दिखाई देते हैं। लेकिन अफसोस इस बात है कि आज उस देश में उन्हें सजाने-संवारने वाला कोई नहीं रहा।

भारत के विन्ध्य पर्वत के दक्षिण भाग में प्रवाहित होने वाली नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक नगर के पास रह रहे कौशिक विश्वामित्र जी का नागकन्या से भेंट और विवाह तथा विश्वामित्र जी के द्वारा चक्षुस्मति देवी के गर्भ से उत्पन्न गृहपति अग्नि के जन्म की कथा भी "शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध" के सत्ताईसवें अध्याय में पढ़ सकते हैं।

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 े_कौशिक_गोत्रीय_अग्निवंशियों_का_सम्बन्ध :आज हम जिस देश को Egypt के नाम से जानते हैं वहाँ के शासक ब्राह्मण थे, इस बात को...
11/02/2025

े_कौशिक_गोत्रीय_अग्निवंशियों_का_सम्बन्ध :
आज हम जिस देश को Egypt के नाम से जानते हैं वहाँ के शासक ब्राह्मण थे, इस बात को सारी दुनियां जानती है लेकिन वे लोग कौन ब्राह्मण थे, उन लोगों का मूल धर्म क्या था और उनके देश का मूल नाम क्या था उसके बारे में वहाँ के स्थानीय लोग भी भूल चुके हैं। लेकिन उस देश में जिन लोगों का साम्राज्य था, उनके वंशज़ आज भी भारत में रह रहे हैं। यह बात अलग है कि वे लोग अपने पौराणिक विरासत को नहीं बचा पाये। लेकिन अपनी मूल पहचान को आज तक नहीं भुला सके हैं।

भगवान शिव के द्वारा देवों के अधिपति बनाये गये अग्निदेव के वंशज़ों के देश इजिप्ट के सबसे अन्तिम प्रतापी राजा को रामाशेष के नाम से लोग भले ही जान रहे हैं लेकिन वे किस वंश के थे और उनके देश को लोग इजिप्ट क्यों कहते हैं, आज इसके बारे में रहष्योद्घाटन करने वाला हूँ।

आज जिस देश को लोग इजिप्ट और मिश्र के नाम से जानते हैं यह भगवान चन्द्रदेव के वंश में उत्पन्न प्रजापति बलकाश्व के पुत्र कुश के नाम पर स्थित विश्व के उस सबसे बड़े साम्राज्य की पावन भूमि का उपनाम है। इस पावन भूमि पर कौशिक विश्वामित्र भगवान के सबसे छोटे पुत्र अग्नि देव के वंशज़ों के द्वारा शासित वह देश था, जो परमपिता परमेश्वर भगवान शिव जी कृपा से अग्निदेव को प्राप्त हुआ था। भगवान शिव! अग्निदेव को उनके माता-पिता (चक्षुस्मति-कौशिक विश्वामित्र) सहित अपने लोक में बुला कर दिक्पति बनाने के उपरान्त अग्निदेव द्वारा स्थापित जिस लिंग में समा कर अन्तर्ध्यान हो गये थे, वह लिंग! अग्निपति के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा उस लिंग को धारण करने वाला पवित्र देश भी शिव भक्तों के प्रसिद्ध तीर्थ अग्निपति धाम के नाम से पहचाना जाता था। कालान्तर में अग्निपति के नाम पर ही वह देश Egypt (इजिप्ट) कहलाया।

इस देश की राजधानी जिस नगर को बनाया गया था उसका नाम गृहपति अग्नि की माता चक्षुस्मति के नाम पर चक्षुस्मति पुरी ही रखा गया था। इसका प्रमाण शिव शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध के अट्ठाइसवें अध्याय में देख सकते हैं। कौशिक गोत्रीय अग्नि देव के वंशज़ों के द्वारा शासित देश का राज-चिह्न भी चक्षु ही था जो इस बात का प्रतीक था कि उस चिह्न को धारण करने वाले लोग ब्रह्मर्षि विश्वामित्र भगवान की सबसे छोटी पत्नी चक्षुस्मति देवी के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ हैं।

विदित हो कि चक्षुस्मति देवी! नर्मदा नदी के पास स्थित नर्मपुर नामक नगर में रहने वाली एक नागकन्या थी। इसके कारण ही उनके नाम पर बसाये गये इजिप्ट के तटवर्ती नगरों और गाँवों में स्थित भग्नावषेशों में ब्राह्मणों के साथ नागवंशियों के स्मृति चिह्न आज भी यत्र-तत्र बिखरे हुए दिखाई देते हैं। लेकिन अफसोस इस बात है कि आज उस देश में उन्हें सजाने-संवारने वाला कोई नहीं रहा।

भारत के विन्ध्य पर्वत के दक्षिण भाग में प्रवाहित होने वाली नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक नगर के पास रह रहे कौशिक विश्वामित्र जी का नागकन्या से भेंट और विवाह तथा विश्वामित्र जी के द्वारा चक्षुस्मति देवी के गर्भ से उत्पन्न गृहपति अग्नि के जन्म की कथा भी शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध के सत्ताईसवें अध्याय में पढ़ सकते हैं।

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 ेश_का_कौशिक_विश्वामित्र_से_सम्बन्ध    एकाक्ष और काव्या के नाम से प्रसिद्ध शुक्र जो ब्रह्मर्षि भृगु के ज्येष्ठ पुत्र थे,...
10/02/2025

ेश_का_कौशिक_विश्वामित्र_से_सम्बन्ध

एकाक्ष और काव्या के नाम से प्रसिद्ध शुक्र जो ब्रह्मर्षि भृगु के ज्येष्ठ पुत्र थे, इनके वंश में उत्पन्न चन्द्र देव वंशी प्रजापति बलकाश्व के पुत्र कुश नामक एक महर्षि थे। इसी कुश के नाम पर इनके वंशज़ों द्वारा शासित साम्राज्य भी कुश के नाम से ही पहचाना जाता था। यूं तो इस साम्राज्य का विस्तार उत्तरी अफ्रीकी देशों से लेकर सिन्धु नदी के पश्चिमी भूभाग तक था, लेकिन ईस्वी संवत के आरम्भ होते-होते उत्तरी अफ्रीका के इजिप्ट (Egypt) तक ही सिमट कर रह रह गया था। हालांकि जिस देश को आज इजिप्ट के नाम से पहचान रहे हैं वह मूलतः कुम्भी समुदाय के अग्नि वंशी ब्राह्मणों द्वारा शासित देश होने के कारण "अगिपुतस" कहलाता था। ये अग्निवंशी! जिस अग्नि देव के वंशज़ थे, उनके जन्म की कथा शिव पुराण में "गृहपति अग्नि अवतार" के नाम से उल्लिखित है। शिव पुराण के सप्तम खण्ड : शतरुद्र संहिता : उत्तरार्द्ध के सत्ताइसवें अध्याय में वर्णित गृहपति अवतार की कथा के अनुसार "गृहपति अग्नि" का जन्म कौशिक विश्वामित्र भगवान के अंश से उस समय हुआ था जब ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के कारण अपना राज-पाट त्याग कर विश्वामित्र मुनि नर्मदा नदी के तटवर्ती वन्य क्षेत्र में रहते हुए तप कर रहे थे। उस दौरान नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक ग्राम के पास चक्षुस्मति नामक जिस नागकन्या से भेंट हुआ था। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी ने उस नागकन्या के साथ विवाह कर के भेड़ाघाट पर स्थित गुहा में रहते हुए भगवान शिव की अराधना करते थे। उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव! उनके पुत्र के रूप में उनकी पत्नी चक्षुस्मति के गर्भ से जन्म लिया। उसके बाद कौशिक विश्वामित्र भगवान को अपने गणों में शामिल कर के भगवान शिव ने चक्षुस्मति-विश्वामित्र के पुत्र का नामकरण संस्कार कर के उन्हें सपरिवार अपने साथ कुम्भ लोक के पास स्थित उस राज्य में लेकर चले गए जिसकी सुरक्षा करने के लिए भगवान शिव! बाणासुर के द्वारा वचनबद्ध थे।

वाणासुर की राजधानी शोणितपुर के पास भगवान शिव के गणों के साथ रहते हुए भगवान शिव जी ने अग्नि देव का विवाह प्रजापति कुम्भ की कन्याओं स्वाहा, स्वधा और विशाखा के साथ विवाह करवा दिया। प्रजापति कुम्भ ने कन्या दान के समय जो भुमि अपनी कन्याओं को दिया था, वह भुमि गृहपति अग्नि के वंशज़ों ने अपने पुर्वज बलकाश्व नन्दन कुश के नाम पर कुश नामक देश को आबाद किया। उसी कुश देश के अन्तिम प्रतापी राजा को हमारी आधुनिक पीढ़ी के लोग रामाशेष के नाम से जानते हैं। चक्षुस्मति-कौशिक के पुत्र अग्नि के पुत्र-पौत्रों का देश होने के कारण ही उनका राज्य चिह्न "चक्षु" था। विदित हो कि विश्वामित्र नन्दन अग्नि देव के द्वारा कपोत (कबूतर) का रूप धारण कर के शिव जी के स्खलित वीर्य को संरक्षित कर के भगवती पार्वती जी की ज्येष्ठ बहन गंगा के गर्भ में प्रत्यारोपित करने से शिव पुत्र कार्तिकेय जी के जन्म की रोचक कथा भी शिव पुराण में वर्णित है। इसके कारण कौशिक गोत्रीय लोगों के द्वारा आज भी कबूतर को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ तक कि इजिप्ट और कुश देश के विभिन्न पुरातात्विक भग्नावषेशों में उत्कीर्ण प्रस्तर चित्रों में ऊपर का सिर कबूतर का और नीचे का धर मानव का दिखलाया गया है। जो कपोत रूपधारी भगवान अग्निदेव की ही प्रतिमा है।

शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव जी के अवतारों में प्रसिद्ध विश्वामित्र और गृहपति अग्नि! कुश नामक जिस पूर्वज़ के वंशज़ थे, उनके नाम पर आज भी कुश वंशी ब्राह्मणों की जाति "कुश" जाति के नाम से पहचानी जाती है। मगर कई समुदायों के लोग अपने रीति-रिवाजों और वंशावली को भुला देने के कारण खुद को कुश वंशी समझने वाले चन्द्रवंशी लोग भी खुद को सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र जी के पुत्र कुश का वंशज़ मान कर सूर्यवंशी होने का दावा करते हैं। लेकिन वे लोग सूर्यवंशी हैं या चन्द्रवंशी, इसकी जानकारी गोत्र, शाखा, प्रवर और तिलक के नाम से हो जाता है।

भारत को विश्वगुरु का ताज देने वाली इस जाति का मार्गदर्शन और आशीर्वाद विश्व की सभी जातियां चाहती थीं, इसके कारण इस जाति के लोग विश्व के सभी देशों में उनके महामन्त्री और गुरु सहित सर्वोच्च सैन्य अधिकारियों के पद पर भी पदासीन थे। इसके कारण आज भी विश्व के अधिकांश देशों के लोग कुश जाति को मार्शल जाति के रुप में जानते हैं। लेकिन अफसोस है कि क्रिश्चियनिटी और इस्लाम के प्रसार के कारण सबसे सम्मानित समझी जाने वाली यह जाति आज सम्पूर्ण विश्व में फैले होने के कारण अपने समुदाय से अलग-थलग और अकेले पड़ कर कमजोर हो गया है। इसके कारण इस जाति के लोगों का न तो कोई संगठन है, न ही पूरे विश्व में फैले इस आदिम जाति को संगठित करने का कोई तन्त्र या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

हालांकि विभिन्न देशों में रहने वाले इस जाति के लोग आज भी अपनी पौराणिक पहचान को बचाये रखने के लिए अपनी जाति और उपजाति के नाम को बचाये हुए है। ताकि दुनियां में फैले हुए इस जाति के लोगों को अल्पसंख्यक होने के बावजूद उनके जातिय नाम के आधार पर पहचाना या ढूँढा जा सके।

भारत में रहनेवाली यह जाति #कर्नाटक, #केरल और #तमिलनाडु में "Koosa" (कुश) नामक अनुसूचित जाति के नाम से पहचानी जाती है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका में "Coos" (कुश) नामक जन जाति के रुप में। जबकि इसी जाति में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ भारत के छत्तीसगढ़ और बिहार में "कुम्भी" (Kumbhi) जाति के नाम से प्रसिद्ध हैं तो रूस में "कोमी" (Komi) और कई अफ्रीकी देशों में "Cumbi" (कुम्बी) कम्युनिटी के नाम से। इसी तरह फ्रांस, बुल्गारिया, नार्वे, स्वीडन, युगोस्लाविया और यूक्रेन आदि देशों में रहने वाले प्रजापति कुश के वंश में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान के वंशज़ "Cossack और Kossack के नाम से पहचाने जाते हैं तो कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र गालव्य ऋषि के वंशज़ पुर्तगाल में पुर्तगीज़" कहलाते हैं जबकि अन्य देशों में रहने वाले गालव्य वंशी गॉलिक कहलाते हैं।

विभिन्न नाम और उपनाम से दुनियां में फैले इस समुदाय के लोगों को एकजुट करने के लिए सबसे पहले भारत में रहने वाले कुश वंशी समुदाय को एकजुट करने की जरूरत है। ताकि अपने पूर्वज़ों के पौराणिक इतिहास को अभी तक बचाये रखे इस समुदाय के लोग एकजुट होकर विश्व में फैले अन्य परिजनों को भी एकजुटता के लिए जागरूक कर सकें।

फिलहाल भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के द्वारा प्रजापति कुश के वंशज़ों की जाति को Koosa के नाम से कर्नाटक के अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 52 में, केरल की अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 31 में और तमिलनाडु के अनुसूचित जाति की सूची क्रमांक 33 में सूचीबद्ध कर दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में रहने वाले कुश जाति के कुम्भी समुदाय के लोगों को OBC शामिल कर के कुम्भी समुदाय के नाम पर दिये जाने आरक्षण कोटा का लाभ कुर्मी समुदाय को देकर कुम्भी समुदाय के लोगों के साथ छल किया जा रहा है। इस कपटपूर्ण आचरण को छुपाने के लिए सरकार यह दावा करती है कि कुम्भी जाति को ही कुर्मी कहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि कुर्मी जाति के लोग सूर्य वंशी राजा रामचन्द्र जी के छोटे पुत्र कुश के वंशज़ों में उत्पन्न कूर्म नामक राजा के वंशज़ हैं। जबकि कुम्भी जाति के लोग रामचन्द्र जी के जन्म लेने के पहले से मौजूद चन्द्रवंशी राजा कौशिक विश्वामित्र के पुत्र अग्नि देव के वंशज़ हैं। अतः कुम्भी जाति को कुर्मी जाति से भी आदिम जाति मानते हुए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।

हालांकि कुम्भी समुदाय की भी मूल जाति कुश ही है। क्योंकि कुम्भी! कुश जाति के लोगों की ही उपजाति का नाम है। तथा शादी-विवाह के समय समान गोत्र और समान जाति में विवाह से बचने के लिए इस उपजाति के नाम का इस्तेमाल किया जाता है। अतः कुम्भी जाति को कुर्मी जाति से अलग कर के चन्द्र वंश में उत्पन्न कुश जाति की ही उपजाति के रुप में सूचीबद्ध कर के आरक्षण का लाभ दिलवाने का प्रयास करें। विदित हो कि बहमनी सुल्तानों के आतंक के कारण 500 से 550 वर्ष पहले दक्षिणी भारत से पलायन कर के बिहार मे दीन-हीन अवस्था में बसने वाले कुम्भी समुदाय के बहुसंख्यक लोगों की आजीविका का मुख्य साधन दैनिक मजदूरी है। शासन-प्रशासन और पंचायत में भी इस समुदाय का कोई प्रतिनिधि नहीं है जो इनकी समस्याओं और हक के लिए आवाज़ उठा सके।



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01. Adi Andhra

02. Adi Dravida

52.

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02. Adi Dravida

31.

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02. Adi Dravida

33.
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बिजली बिल से पीड़ित आम नागरिकों की व्यथा!      इंकम टैक्स गोलम्बर के पास स्थित बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की बिल्डिं...
10/01/2025

बिजली बिल से पीड़ित आम नागरिकों की व्यथा!


इंकम टैक्स गोलम्बर के पास स्थित बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की बिल्डिंग विद्युत भवन के सामने जातिय आरक्षण और बेरोजगारी का शिकार एक युवक केलों से लदा हुआ रेड़ी लगाकर ग्राहक का इंतजार कर रहा था। पेट की आग बुझाने के लिए सड़क पर खाक छान रहा वह युवक यूं तो राज घराने का वंशज़ था, लेकिन बहमनी सुल्तानों के कारण अपना प्रदेश छोड़ कर पटना में 450 वर्षों से मेहनत-मजबूरी कर के रह रहे उसके वंशज़ों के साथ भारत सरकार ने भी नाइंसाफ़ी किया था। ब्राह्मण शाही समाज के एक गरीब परिवार का सदस्य होने के बावजूद बिहार में लोग उन्हें ठाकुर साहब कह कर पुकारते थे। इसका मतलब यह है कि समाज में उन लोगों की अच्छी इज्ज़त थी।
मूलतः ब्राह्मण होने के बावजूद ब्राह्मण शाही राजवंश से सम्बन्धित होने के कारण वे लोग बिहार में राजपूत कहलाने लगे थे और वैवाहिक सम्बन्ध भी राजपूतों के साथ ही बनाने लगे थे। मुस्लिम आक्रान्ताओं के कारण घर-परिवार और जमीन-जायदाद छोड़ कर जान बचाने के लिए पटना में शरण लेने वाले इन लोगों की औरंगजेब के शासनकाल में भी उतनी स्थिति खराब नहीं हुई थी जितनी 1947 ईस्वी के बाद सवर्ण विरोधी सरकार में है। जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाली योजनाओं और कानूनों के कारण अपने पूर्वज़ों की धरती पर अनुसूचित जनजाति में शामिल उन लोगों को बिहार के सामान्य जाति की श्रेणी में रखा गया है। इसके कारण पिछड़े लोगों के उत्थान के लिए भारत सरकार और बिहार सरकार की सभी योजनाओं से वंचित ठाकुर साहब अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए सारी जमीन गिरवी रख दिये। जब खेती-बाड़ी का एकमात्र साधन भी छिन गया तब टूटा-फूटा ठेला भाड़े पर लेकर पटना की सड़कों पर केला बेचने के लिए निकल गए।

जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने देने वाले सरकार के कारण अपनी किस्मत पर अफसोस करते हुए ठाकुर साहब! बच्चों की पढ़ाई कैसे पूरी होगी यही सोचते हुए अपने विचारों में डूबे हुए थे। कि सहसा उन्हें बिजली विभाग के एक अधिकारी ने झकझोरते हुए कहा, "कहाँ खोये हुए हो? केला बेचना है?"

ठाकुर साहब : हाँ-हाँऽ क्या बोल रहे हैं?
अधिकारी : "केला का क्या भाव है?"

ठाकुर साहब : किस लिए खरीद रहे हैं साहब?

अधिकारी : अजीब आदमी हो तुम। इसे बेचना है या नहीं?

ठाकुर साहब : बेचना तो है साहब! लेकिन इसे क्यों खरीद रहे हैं, यह बतायेंगे तभी नऽ इसकी कीमत बता सकेंगे।

अधिकारी : मतलब?
ठाकुर साहब : मतलब यह है साहब कि जैसे काम के लिए केला खरीदिएगा, वैसा दाम बताउंगा।

अधिकारी : अजीब आदमी हो। क्या पागलपन भरी बातें कर रहे हो?

ठाकुर साहब : इसमें पागलपन की क्या बात है साहब। मन्दिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 12 रुपए दर्जन। बेसहारा लोगों को खिलाने के लिए ले रहे हैं तो 15 रुपए दर्जन। वृद्धाश्रम में देने के लिए ले रहे हैं तो 20 रुपए दर्जन। घर में खाने के लिए ले जा रहे हैं तो, 25 रुपए दर्जन पिकनिक या पार्टी मनाने के लिए खरीद रहे हैं तो 30 रुपए दर्जन और बेचने के लिए लेना है तो 40 रुपये दर्जन। यही किमत है हमारे केले की।

अधिकारी : क्या बेवकूफों जैसी बातें कर रहे हो? जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो,भाव अलग-अलग क्यों?

ठाकुर साहब : मैं तो आप लोगों के द्वारा ही बनाये नियम के अनुसार अपने केले की रेट बता रहा हूँ। पैसे की उगाही के लिए आप लोगों ने ही तो यह नियम चलाया है।
1 से 40 यूनिट रीडिंग का रेट ₹1.50/- लेते हैं तो 40 से 50 यूनिट रीडिंग का रेट ₹3.30/-, 50 से 100 यूनिट रीडिंग का रेट ₹4.15/- लेते हैं तो 100 से 150 यूनिट रीडिंग का प्रति यूनिट रेट ₹5.25/-।
आप ही लोग नऽ 150 से 200 यूनिट बिजली खपत करने पर प्रति यूनिट ₹7.10/- की दर से बिजली की किमत वसूलते हैं। आप ही लोग नऽ 200 से 250 यूनिट रीडिंग होने पर प्रति यूनिट रेट ₹8.35/- वसूलते हैं। न दे पाने पर लेट फाइन भी जोड़ देते हैं। आप लोगों ने ही नऽ ऐसा नियम बनाया है कि जिसे जितने ज्यादा बिजली की जरूरत है उससे उतना ज्यादा किमत वसुलना चाहिए। यह तो आपके द्वारा घरेलु इस्तेमाल के लिये वसूले जाने वाले बिजली बिल की किमत बता रहा हूँ। घर में आलू-प्याज की छोटी-मोटी दुकान खोलने पर भी कॉमर्शियल कनेक्शन नहीं लेने पर मनमाना मुआवजा वसुलने का नियम भी तो आप ही लोगों ने नऽ बनाया है। जुर्माना देकर कॉमर्शियल मीटर लगाने पर घरेलु मीटर के बिजली बिल से ज्यादा मँहगी किमत की वसुली आपका ही तो बनाया हुआ नियम है।
यही कारण है कि आपको केला बेचने के पहले यह जानना चाहता हूँ कि आप मेरे केले का इस्तेमाल किस तरह के काम के लिए करेंगे?
जब आपकी बिजली विभाग अपनी उत्पादित बिजली बेचने के पहले यह जानना चाहती है कि उसका इस्तेमाल किस तरह के कार्य के लिए करेंगे तो इस देश के सभी वस्तुओं की किमत उसे इस्तेमाल करने के उद्देश्य, स्थान, ग्राहक की औक़ात और खरीदे जाने वाले समान की मात्रा के आधार पर ही निर्धारित किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा होने पर आपके बिजली विभाग के लोग ही "अन्धेर नगरी! चौपट राजा!! की दुहाई देने लगेंगे।

साहेब! आपसे ऐसी बातें इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि यहाँ की सरकार और सिस्टम पर से हमारा भरोसा पूरी तरह से उठ चुका है। मेरी बातों को आप अपने ऊपर नहीं लीजिएगा। क्योंकि ये बातें यहाँ की सिस्टम के बारे में बोल रहा हूँ। आप लोगों के द्वारा वसुले जाने वाले इलेक्ट्रिसिटी बिल की दर से सम्बन्धित नियम को यदि सभी देशवासी सही मान लें तो 12 रुपये दर्जन वाले हमारे एक केला की किमत 1 रुपये होगी। लेकिन आपके विभागीय नियमानुसार मैंने 2 दर्जन से 5 दर्जन केला की किमत प्रति यूनिट (प्रत्येक केला) 1.50 रुपये, 6 से 10 दर्जन केला लेने पर प्रति यूनिट 1.80 रुपये और 11 दर्जन से 20 दर्जन केला लेने पर प्रत्येक केला की यूनिट रेट 2.00 रुपये निर्धारित किया है।
अपने केला की यह रेट मन्दिर के प्रसाद के लिए खरीदे जाने वाले रेट की बता रहा हूँ। पिकनिक या पार्टी के लिए खरीदे जाने वाले केला की यूनिट रेट आपके बिजली बिल की तरह ही मन्दिर के लिए खरीदे जाने वाले केला से ज्यादा है।

अधिकारी : तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? केला बेचना है या नौटंकी करोगे? हम खाने के लिए लें या फेंकने के लिए, इससे तुम्हें क्या मतलब है? तुम भी तो इसे एक ही जगह से नऽ खरीदे हो?

ठाकुर साहब : आप भी तो एक ही खम्भे से बिजली देते हो साहेब। तब आप घर के लिए अलग रेट, दुकान के लिए अलग रेट और कारखाने के लिए अलग रेट क्यों लेते हैं? इस पर भी आपके उपभोक्ता जितना ज्यादा यूनीट खर्च करते हैं उनसे उतना ही ज्यादा यूनीट रेट वसूल करते हैं। इस पर भी हर महीना मीटर का भाड़ा।
मीटर क्या ब्रिटेन या अमेरिका से भाड़े पर लिये हैं? 40 वर्षों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ। आखिर आपके मीटर की कीमत कितनी है? एक करोड़? दो करोड़? या उससे भी ज्यादा? अपने मीटर की कीमत ही वसूल लो नऽ पहले, बिजली का कनेक्शन देते रहना बाद में। तुम्हारे बिजली विभाग के इस सिस्टम से तो बढ़ियां पेट्रोमेक्स और ढिबरी की रोशनी, तार के पत्ते का पंखा, ठण्डे पानी के लिए कलश और सुराही के साथ घर-घर में बोरसी और अलाव की व्यवस्था वाला सिस्टम था। इस बिजली विभाग के सभी कर्मचारियों के लिए इस देश के सभी सामानों की किमत उसी तरह से लेनी चाहिए जिस तरह से हम देशवासियों से आपके विभाग के द्वारा इलेक्ट्रिसिटी बिल वसूला जा रहा है।

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कांग्रेस विधायक के डर से माफ़ी मांगना पड़ा डिप्टी कलेक्टर को? संलग्न लिंक पर सुन सकते हैं इस घटना का वायरल ऑडियो। ऐसे ने...
25/11/2023

कांग्रेस विधायक के डर से माफ़ी मांगना पड़ा डिप्टी कलेक्टर को? संलग्न लिंक पर सुन सकते हैं इस घटना का वायरल ऑडियो। ऐसे नेताओं के खिलाफ़ कारवाई करने से डरने वाले लोगों के भरोसे कैसे सुरक्षित होंगे आम भारतीय? अतः जिन इलाकों में अभी वोटिंग होना बाकी है वहाँ के लोग सोच-समझकर वोट दें। और आगामी चुनावों में इस देश का अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर मान बढ़ाने वाले मोदी और योगी की सरकार बनायें। क्योंकि इस देश को मोदी और योगी की नीतियों से नहीं बल्कि इस देश की अस्मिता को बेचने वाले आतंक समर्थक नेहरू परिवार और काँग्रेस समर्थक नेताओं से है।

MLA Brihaspati singh और डिप्टी कलेक्टर prafull Rajak का एक और कथित ऑडियो वायरल, सेटलमेंट की हुई डीलहमारी वेबसाइट पर खबरों को पढ़ने के लि.....

यूपी पुलिस हो या दिल्ली, मुम्बई या बिहार की पुलिस! देश के सभी राज्यों की पुलिसकर्मी भ्रष्ट और बेशर्म है। जिस कारण से आम ...
26/03/2023

यूपी पुलिस हो या दिल्ली, मुम्बई या बिहार की पुलिस! देश के सभी राज्यों की पुलिसकर्मी भ्रष्ट और बेशर्म है। जिस कारण से आम लोग पुलिसकर्मियों से नफ़रत करते हैं, उसके बारे में जानने के लिए इच्छुक लोग यह वीडियो फुटेज जरूर देखें। ट्रेन पर विदाउट टिकट यात्रा कर रहे दरोगा से जब TTE ने टिकट माँगा तो दरोगा! टीटीई को चलती ट्रेन से फेंकने की धमकी देने लगा। इन्हीं हरकतों के कारण लोगों का पुलिसकर्मियों से विश्वास उठता जा रहा है। ये पुलिसकर्मियों में यूपी पुलिस हो या दिल्ली, महाराष्ट्र या बिहार पुलिस! देश के अधिकांश पुलिसकर्मी भ्रष्ट और बेशर्म हैं। इनकी बेशर्मी का प्रमाण संलग्न वीडियो क्लिप में देख सकते हैं।

TTE ने UP Police के दारोगा को बोला 'चोट्टा साला', कहा- मारेंगे एक झापड़ ट्रेन में अक्सर पुलिसकर्मी बिना टिकट के यात्र....

  बिहारी अस्मिता की रक्षा करने के लिये खुल कर आवाज़ उठाने वाला यूट्यूबर क्यों हुआ गिरफ्तार?यूट्यूबर मनीष कश्यप का नाम तो...
19/03/2023

बिहारी अस्मिता की रक्षा करने के लिये खुल कर आवाज़ उठाने वाला यूट्यूबर क्यों हुआ गिरफ्तार?

यूट्यूबर मनीष कश्यप का नाम तो आपने सुना ही होगा। ये हैं जातीयता और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुल कर बोलने वाले युवा पत्रकार। लेकिन इन्हे अफवाह फैलाने वाले झूठे वीडियो फुटेज वायरल करके देश का माहौल खराब करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। जबकि सच्चाई कुछ और है। तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ मारपीट का झूठा वीडियो प्रसारित करके इन राज्यों के सम्बन्ध खराब करने की कोशिश करने का आरोप ही मनीष कश्यप की गिरफ्तारी का असली कारण है या किसी अन्य कारण से उन्हें गिरफ्तार किया गया इसके बारे में संलग्न वीडियो देख कर आप भी लगा सकते हैं। अतः एक बार इस वीडियो को स्किप किये बगैर जरुर देखें। यदि इस वीडियो क्लिप में दिखाये गये मनीष कुमार की बातों से जरा सा भी सहमत हैं तो अब बिहार और बिहारी अस्मिता की रक्षा करने के लिए हम लोगों को जो करना चाहिए उसके बारे में अपने विचार कमेन्ट में जरूर शामिल करें।... ॐ

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