28/10/2024
* गुमनाम कैदी *
* प्रणव कुमार हरपुरी * कविता
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मामूली बातों में लोग, झूठा मुकदमा कर, बदनाम कर देते हैं!
बेकसूर की जिंदगी, जेल में गुमनाम कर देते हैं!
एेसे मुसीबत में अपने भी बेवफाई कर, अवैध स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं!
लोग नाते रिश्तेदारों तक को, घुट-घुट कर जीने, पल - पल मरने के लिए जेल में छोड़ देते हैं!
गगन चुम्बी महंगाई में भी, रिश्तों का कोई मोल नहीं है! कैदी के मजबूरी व मुसीबत, लोगों के लिए सुनहरा अवसर, अवैध स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अनमोल है!
मामूली बातों में लोग, झूठा मुकदमा कर, बदनाम कर देते हैं!
बेकसूर की जिंदगी जेल में गुमनाम कर देते हैं!
अधिकतर परिचित - अपरिचित रिहा होने वाले कैदी,
मदद करने के वादे कर भूल जाते हैं!
पूछने पर पुराने कैदी, जेल के वादें पूरे नहीं होने के लिए,
चारों किनारों पर गदहे की, कथित बलि को जिम्मेदार ठहराते हैं!
लाचार कैदियों को कानूनी सहायता दिलाने का,
सरकारी वकील भी अजूबा अंजाम देते हैं!
महिनों का काम साल भर में भी कराना हराम समझते हैं!
दो-चार का जमानत कराने के बाद, अन्य कैदी को भगवान भरोसे छोड़, यमराज बन जाते हैं!
मामूली बातों में लोग झूठा मुकदमा कर बदनाम कर देते हैं!
बेकसूर की जिंदगी, जेल में गुमनाम कर देते हैं!
* पत्रकारिता एवं समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए सम्पर्क करें! * प्रणव कुमार हरपुरी, संपादक, H2H Group न्यूज सोशल नेटवर्क, दूरभाष - 9031922404, 9523044002, ई-मेल - [email protected]
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