25/06/2025
आपातकाल के विरोध में संघ की भूमिका
सभी प्रकार की संचार व्यवस्था, यथा-समाचार-पत्र-पत्रिकाओं, मंच, डाक सेवा और निर्वाचित विधान मंडलो को ठप्प कर दिया गया। प्रश्न था इसी स्थिति में जन आंदोलन को कौन संगठित करे ? इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था। संघ का देश भर में शाखाओं का अपना जाल था और वही इस भूमिका को निभा सकता था। संघ ने प्रारम्भ से ही जन से जन के संपर्क की प्रविधि से अपना निर्माण किया है। जन संपर्क के लिए वह प्रेस अथवा मंच पर कभी भी निर्भर नहीं रहा। अतः संचार माध्यमों को ठप्प करने का प्रभाव अन्य दलों पर तो पड़ा, पर संघ पर उसका रंचमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। अखिल भारतीय स्तर के उसके केन्द्रीय निर्णय, प्रांत, विभाग, जिला और तहसील के स्तरो से होते हुए गाँव तक पहुच जाते हैं। जब आपात घोषणा हुई और जब तक आपातकाल चला,उस बीच संघ की यह संचार व्यवस्था सुचारु ढंग से चली। भूमिगत आंदोलन के ताने-बाने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के घर महानतम वरदान सिद्ध हुए और इसके कारण ही गुप्तचर अधिकारी भूमिगत कार्यकर्ताओं के ठोर ठिकाने का पता नहीं लगा सके। (H॰V॰ Sheshadri, Kratiroop Sangh Darshan, pp. 486-87)
श्री जयप्रकाश नारायण ने अपनी गिरफ्तारी से पूर्व लोक संघर्ष समिति का आंदोलन चलाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता श्री नानाजी देशमुख को ज़िम्मेदारी सौपी थी।
जब नानाजी देशमुख गिरफ्तार हो गए तो नेतृत्व की ज़िम्मेदारी श्री सुंदर सिंह भण्डारी को सर्वसम्मति से सौपी गयी।
आपातकाल लगाने से उत्पन्न हुई परिस्थिति से देश को सचेत रखने के लिए तथा जनता का मनोबल बनाए रखने के लिए भूमिगत कार्य के लिए संघ के निम्न कार्यकर्ता तय किए गए :
नागरिक स्वातंत्र्य के मोर्चे के लिए मा॰ रज्जू भय्या,
आचार्य सम्मेलन के मोर्चे के लिए डॉ आबाजी
विदेशों में संपर्क के लिए बाला साहब भिड़े, चमनलाल जी, जगदीश मित्र सूद तथा केदारनाथ साहनी
राजनीतिक क्षेत्र के लिए रामभाऊ गोडबोले, सुंदर सिंह भण्डारी, ओम प्रकाश त्यागी तथा उत्तम राव पाटिल
कॉमन वैल्थ कॉन्फ्रेंस के लिए जगन्नाथ राव जोशी
कानूनी मोर्चे के लिए डॉ अप्पा घटाटे
साहित्य निर्माण के लिए दिल्ली में भानुप्रताप शुक्ल तथा वेद प्रकाश भाटिया।
साहित्य प्रकाशन तथा दिल्ली केन्द्रित संपर्क के लिए बापुराव मोघे
धर्माचार्य संपर्क के लिए दादासाहब आपटे
पत्र पत्रिकाओं से संपर्क के लिए जगदीश प्रसाद माथुर
महिलाओं से संपर्क के लिए लक्ष्मीबाइ ‘मौसी जी’ केलकर (मोहनलाल रुस्तगी, आपातकालीन संघर्ष गाथा, पृष्ठ 24)
अच्युत पटवर्धन ने लिखा है, “मुझे यह जानकार प्रसन्नता हुई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता राजनीतिक प्रतिरोध करनेवाले किसी भी अन्य समूह के साथ मिलकर, उत्साह और निष्ठा के साथ कार्य करने के लिए, तथा घोर दमन और झूठ का सहारा लेने वाले पैशाचिक शासन का जो कोई भी विरोध कर रहे हों, उनके साथ खुल कर सहयोग करने और साथ देने के लिए तैयार थे। जिस साहस और वीरता के साथ पुलिस के अत्याचारों और उसकी नृशंसता को झेलते हुए स्वयंसेवक आंदोलन चला रहे थे,उसे देखकर तो मार्क्सवादी संसद सदस्य – श्री ए के गोपालन भी भावकुल हो उठे थे। उन्होने कहा था “कोई न कोई उच्चादर्श अवश्य है जो उन्हे ऐसे वीरोचित कार्य के लिए और त्याग के लिए अदम्य साहस प्रदान कर रहा है”। (इंडियन एक्सप्रेस के 9 जून, 1979)
एमसी सुब्रमण्यम ने लिखा, “जिन वर्गों ने निर्भीक लगन के साथ यह कार्य किया, उनमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विशेषतः उल्लेखनीय है। उन्होने सत्याग्रह का आयोजन किया। अखिल भारतीय संचार तंत्र को बनाए रखा। आंदोलन के लिए चुपचाप धन एकत्र किया। बिना किसी विघ्न बाधा के साहित्य वितरण की व्यवस्था की। कारागार में अन्य दलों और मतों के संगी बंदियों को सहायता प्रदान की। इस प्रकार उन्होने सिद्ध कर दिया कि स्वामी विवेकानंद ने देश में सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए जिस सन्यासी सेना का आवाहन किया था, उसके वो सबसे निकटतम पात्र हैं। वह एक परंपरावादी क्रांतिकारी शक्ति है। (इंडियन रिवियू - मद्रास, अप्रैल 1977)