बिहार प्रगतिशील लेखक संघ

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बर्लिन में  #कम्युनिस्ट_पार्टी का मुख्यालय- डी लिंके, रोज़ा लक्ज़मबर्ग प्लाज़ पर स्थित कार्ल लिबनेचट भवन में.. ज़र्मनी में ए...
11/02/2025

बर्लिन में #कम्युनिस्ट_पार्टी का मुख्यालय- डी लिंके, रोज़ा लक्ज़मबर्ग प्लाज़ पर स्थित कार्ल लिबनेचट भवन में.. ज़र्मनी में एक ही कम्युनिस्ट पार्टी है ! रोज़ा और लिबनेचत ने जिसकी स्थापना की थी !

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01/01/2025

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अवधेश राय के पक्ष में             प्रबल जनसमर्थन क्यों?                               राजेंद्र राजनबेगूसराय लोकसभा चुनाव...
18/04/2024

अवधेश राय के पक्ष में
प्रबल जनसमर्थन क्यों?
राजेंद्र राजन
बेगूसराय लोकसभा चुनावी दंगल का मैदान सज गया है। सर्वप्रथम 18 अप्रैल को महागठबंधन की ओर से सीपीआई नेता अवधेश राय के नामांकन का सर्वत्र अपूर्व स्वागत क्यों हुआ ?
नामांकन में प्रथम बाजी हासिल करने की ही चर्चा ही केवल क्षेत्र में नहीं है ,वरन चुनावी परिणाम में भी प्रथम आने का संदेशा प्रसारित हो गया।
इनके पक्ष में इस प्रकार का प्रबल जनसमर्थन क्यों हासिल हो गया ?
ध्वंस के विरुद्ध सृजन , उन्माद के विरुद्ध सद्भाव , घृणा के विरुद्ध प्रेम और भ्रष्टाचार की जगह सदाचार की अजस्र प्रांजल धारा की तलाश यहां आमजन को बेसब्री से थी।
स्वतंत्रता के अपहरण,समता के विरुद्ध कुचक्र और बंधुत्व के प्रति घृणित खेल का जो तांडव चल रहा है ,अवधेश राय को उसको वापिस करनेवाले योद्धा के रुप में देखा जा रहा है। इसलिये कि इन्हीं संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों केलिए वे आजीवन संघर्ष रत हैं।
प्रदूषित वायुमंडल और जनविरोधी राजनीति के चलते बेगूसराय वासियों को शर्मिंदगी की फजीहत झेलते वर्षो बीत गए। अब और झेलने की क्षमता नहीं है। इस मुक्ति का संदेश इनकी उम्मदवारी है।
झंझावातों से गुजरते यहां के निवासियों को स्वक्ष हवा और जनहितकारी राजनीति की तलाश अवधेश राय की सशक्त दावेदारी देते ही पूरी हो गई है।

लंबे अरसे से जातीय और साम्प्रदायिक उन्मादिनी राजनीति का वर्चस्व इस लोकतांत्रिक धरती को कलंकित कर रखा है।
कौन है ,यहां का जनप्रतिनिधि ? पुरानी सांस्कृतिक परम्परा के कब्र पर उग आए अगलग्गा और ध्वंसावतारों को सांसद और विधायक के रूप में देखकर लोगों को रावणावतार और कंसावतार का साक्षात्कार होता रहा है।
जिले से बाहर जाने पर ऐसे ध्वंसावतारी प्रतिनिधियों का नाम लेने से भी शर्मसार होना लाजिमी हो जाता है।
ये जनप्रतिनिधि चंगेज खान की तरह केवल लूटपाट से संतोष करनेवाले नहीं हैं वल्कि अंग्रेजों की तरह शासन सत्ता स्थापित कर विचौलियों ,दलालों के बल पर
पवित्र पावनी गंगा पार से आकर यहां उपनिवेश कायम करने की नीतियों को अंजाम देना जरूरी मानते हैं। हमारी गंगा के सवच्छ जलधारा को इनने काला बना दिया है।
आजाद ख्याल संस्कृति के आमजन गुलामी के इस दंश को झेल अब ऊब चुके हैं।
किसी ऐसे नायक की तलाश यहां कर रहे थे ,जो गांधी जी की तरह हिन्दू और मुसलमानों ,अगड़ों और पिछड़ों ,मर्द और औरतों एवं शिक्षित और अशिक्षित जमातों का विश्वास हासिल कर आजादी दिलाने के संघर्षों की अगुवाई करे।
अनेकों बार के पराजय ने अपराजेय बनने , ,मुक्ति पाकर स्वाभिमान से मस्तक ऊंचा करने केलिए जो विकलता और छटपटाहट प्रबुद्धजनों में है ,अवधेश राय के पदार्पण से वह पूरा हो गया है।
नंद वंश के निरंकुश सत्ता से आजादी चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को नायकत्व प्रदान कर हासिल की थी।
चन्द्रगुप्त की जाति और धर्म खोजने वाले तंगनजरी के धनी गुलाम मानसिकता के प्रभु तब भी थे और आज भी यहां मिल जाते हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को आगे कर उनके मंसूबों को चूर कर दिया था।
बदलाव की हवा के झोंके ने इन्हें चारोखाने चित्त कर दिया था।
अवधेश राय इसी भूमिका में आज स्वीकार्य हैं।
देश सहिष्णुतावादी ,मानवतावादी और जनहितकारी राजनीति की तलाश में अकुलाहट से संलिप्त है।
महागठबंधन 'इंडिया' के निर्माण ने दूसरी आजादी का शंखनाद कर दिया है। उसी धारा का अंग बेगूसराय में अवधेश राय हैं।

एक मित्र ने लिखित संवाद दिया है कि राजन दा ,आप कैसे पुरानी बातों को भूल गए? विधानसभा में पन्द्रह वर्षों तक अनवरत जिसके विरुद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों केलिए संघर्ष किया था ,क्या उसे भूल गए?
भाई मेरे ! आग लगने पर सभी भेदभावों को भूलकर दौड़ना ही बुद्धिमानी है। आग में सती बन जल मरने की नसीहत विनाशकारी है।
मैं तो इस सिद्धांत को मानता हूँ कि कीचड़ से कीचड़ नहीं धोया जाता है। बड़े उद्देश्यों केलिए पूर्वाग्रहों से मुक्ति आवश्यक है। आज की राजनीति में जनविरोधी ,लोकतंत्र विरोधी ,संविधान विरोधी और तानाशाही शक्तियों का गठजोड़ जब निगलने केलिए आतुर है ,मुकाबले केलिए जनपक्षधर ,लोकतंत्र पक्षधर ,संविधान पक्षधर और सामासिक संस्कृति के पक्षधरों की एकजुटता ही एकमात्र निदान है।
गौण मतभेदों को पाटकर ही यह पुल निर्मित हो सकता है। यही हुआ है और सही हुआ है।
रही बात ,बुरा कौन ? मैने कबीर की तरह ढूंढ लिया है ,
"बुरा जो देखन मैं चला ,बुरा न मिलिया को्य
जो दिल ढूंढा आपनो ,मुझसे बुरा न कोय।"

ऐसे भले मानुषों से कहना चाहता हूँ ,खटाई नहीं जोड़न बनिए।अन्यथा अस्तित्व ही खो जाएगा।
राष्ट्र और बेगूसराय की अस्मिता के इस महाभारत में आप किधर हैं?
तटस्थ कोई नहीं रहता है। न्याय और सत्य के पक्षधर आप नहीं हैं तो अन्याय और झूठ के साथ हैं। लोकतंत्र के रक्षा यज्ञ के रक्षक नहीं तो भक्षक आप साबित होंगे।
खुशी है ,बेगूसराय मील के पत्थरों की नहीं ,मंजिल की ओर मजबूती से एकजुटता कायम कर बढ रहा है।
इस बार ,एक राय ,सिर्फ अवधेश राय।

पटना में आयोजित  #खगेन्द्र_ठाकुर_स्मृति_व्याख्यान.. 13 जनवरी 2023.
15/01/2023

पटना में आयोजित #खगेन्द्र_ठाकुर_स्मृति_व्याख्यान.. 13 जनवरी 2023.

अभी ओरिएन्ट क्लब, मुजफ्फरपुर में प्रलेस द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सह जिला सम्मेलन में महत्वपूर्ण कवि अरुण कमल का ...
06/11/2022

अभी ओरिएन्ट क्लब, मुजफ्फरपुर में प्रलेस द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सह जिला सम्मेलन में महत्वपूर्ण कवि अरुण कमल का व्याख्यान.. डॉ. पूनम सिंह, रमेश ऋतंभर, राजेन्द्र राजन व आशीष त्रिपाठी सहित उपस्थित श्रोता..

30/09/2022
..होने दो नष्ट यह बीजफूटने दो नए दलपत्र !आज अपने प्रिय कवि  #अरुण_कमल  की सहजता, आत्मीयता व रचनात्मकता को नमन करते हुए उ...
15/02/2022

..होने दो नष्ट यह बीज
फूटने दो नए दलपत्र !
आज अपने प्रिय कवि #अरुण_कमल की सहजता, आत्मीयता व रचनात्मकता को नमन करते हुए उन्हें #जन्मदिन की असीम शुभकामनाएं देता हूँ ! यह पुरानी तस्वीर और अलहदे अंदाज़ में दिखते अरुण दा के साथ कवि शहंशाह आलम व आपका मित्र अरविन्द श्रीवास्तव !

 #गतवर्ष.. आज●● #पटना,24 जनवरीआज बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में प्रख्यात आलोचक खगेन्द्र ठाकुर की श्रद्धांजलि सभ...
24/01/2022

#गतवर्ष.. आज
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#पटना,24 जनवरी
आज बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में प्रख्यात आलोचक खगेन्द्र ठाकुर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपस्थित कलमकारों ने अपने -अपने संस्मरण भी सुनाए
कथाकार #संतोष_दीक्षित ने कहा कि- कथादेश के नए अंक में उनपर लिखा है। उनके नहीं रहने से एक बड़ी रिक्तता हुई है।आज मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि वे नहीं रहे।
#ब्रजकुमार #पांडेय ने अपने कहा कि - जीवन में मेरे दो बौद्धिक मित्र थे और दोनों मुझसे उम्र में छोटे थे पर मुझसे अधिक बौद्धिक थे।एक गिरीश मिश्र और दूसरे खगेन्द्र ठाकुर।दोनों ही मेरे अंतरंग मित्र थे। वे साठ/पैंसठ के दौर में वे कम्युनिस्ट पार्टी में आये। वे बिहार पार्टी के सचिव मंडल सहित राष्ट्रीय कमिटियों में शामिल रहे। पार्टी में उन्होंने बड़ा मुकाम हासिल किया था।उन्होंने साहित्य में जो मुकाम हासिल किया वही मुकाम उन्होंने कम्युनिस्ट आंदोलन में हासिल किया।खगेन्द्र जी की लोकप्रियता इसी से पता चलता है कि उनके नहीं रहने पर भी लोगों को कई दिनों तक इस खबर पर भरोसा नहीं हुआ।बिहार या झारखंड के कोई स्थान नहीं है जहां खगेन्द्र जी नहीं गए।उनकी पत्नी इंदिरा ठाकुर का उनके जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहा।उनकी मृत्यु एक साधारण मौत नहीं एक ऐतिहासिक मृत्यु है।शायद ही किसी बौद्धिक व्यक्ति को ऐसे याद किया गया हो।

कथाकार व रंगकर्मी #ऋषिकेश_सुलभ - उनके निधन के वक्त में पटना से बाहर था और मेरे जीवन के स्थायी दुखों में यह दुख भी जुड़ गया है।वे पुल की तरह थे जिससे लोग पार उतरते रहे।वे सबको प्रिय थे,उनके सभी प्रिय थे।
बिहार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव #सत्यनारायण_सिंह ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि- वे सहजता के साधक थे।वे शिक्षक आंदोलन,पार्टी के स्तर पर और साहित्य के स्तर पर लगातार सक्रिय थे।आज फासीवाद का हमला जब और तेज़ है उनके नहीं रहने से बड़ा नुकसान हुआ।

#शत्रुघ्न_प्रसाद_सिंह -डॉ खगेन्द्र ठाकुर मेरे शिक्षक थे उन्होंने मुझे हिंदी सिखाया।उन्होंने मेरी पुस्तक की भूमिका भी लिखी है।उनसे मेरा पारिवारिक संबंध था और उनका नहीं रहना मेरी अपूरणीय क्षति है।आज जो चुनौतियाँ हैं उसका सामना करने के लिए उनका जीवन,लेखन हमारे लिए मशाल की तरह है।

कवि #आलोक_धन्वा-
मेरी खगेन्द्र ठाकुर से सोलह वर्ष की उम्र में भेंट हुई।वे मेरे घर भी आते थे।मुरारका कॉलेज में भी उनसे भेंट करने जाता था। अपने मतभेद को भी वे छुपाते नहीं थे खुल कर बोलते थे। वे कवि तो थे ही एक बड़े आलोचक भी थे।आलोज धन्वा ने एक लंबे समय तक अपने अंतरंग संबंधों का उल्लेख किया। एक पारिवारिक व्यक्ति की तरह आज उनकी कमी खल रही है।

बिहार प्रलेस के महासचिव #रवींद्रनाथ_राय- हमारे लिए वे सिर्फ नेता नहीं शिक्षक भी थे।

कथाकार #अवधेश_प्रीत- वे आज भी उपस्थित लगते हैं। इसी लिए शोक जैसा कुछ नहीं मेरे लिए। नए से नए लोगों को वे पढ़ते थे और खुल कर प्रशंसा भी करते थे।वे जितने गंभीर थे उनमें हास्यबोध भी उतना था।

लेखिका #पूनम_सिंह- उनसे मेरा संबंध 90 के दशक से हुआ। मेरे लिए पिता की तरह थे।हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते रहे।मेरी पहली कहानी की पुस्तक की भूमिका उन्होंने ही लिखी थी।वे गति के हिमायती थे। उन्होंने मुझे प्रशिक्षित किया ।उनके जैसी प्रतिबद्धता आज दुर्लभ है।

#राणाप्रताप- पटना से झारखंड तक कई कई गोष्ठियों,आंदोलनों में साथ साथ रह।साहित्य के साथ कोई एक्टिविस्ट होता है तो उसकी दृष्टि अलग होता है।वह अकादमिक नजरिये से भिन्न होता है और यही हम सभी को प्रभावित करता है।उनसे जो जुड़ाव लोग महसूस करते हैं वह उनके एक्टिविस्ट होने के कारण है।

#राजाराम_सिंह- उनके अंदर कोई फिसलन नहीं था वे आजीवन कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति निष्ठावान रहे।
#जितेंद्र_कुमार- खगेन्द्र जी स्थितप्रज्ञ व्यक्ति थे और उदार हृदय के व्यक्ति थे।इन हवाओं में,इन फूलों में खगेन्द्र जी रहेंगे।
#सीताराम_प्रभंजन- उनसे मेरा परिचय 70 के दशक से था पर उनसे कभी सहमति नहीं बनी।आज जब असहमति का दौर समाप्त हो रहा वैसे में खगेन्द्र जी असहमति की आवाज़ बन हमेशा याद रहेंगे।
#श्रीराम_तिवारी- इस अवसर पर इन्होंने खगेन्द्र जी के ऊपर लिखी अपनी कविता का पाठ किया।इनका कहना था कि खगेन्द्र ठाकुर प्रतिरोध की मजबूत आवाज़ थे।
#विनिताभ- खगेन्द्र जी की सहजता चकित करती थी।इस अवसर उन्होंने खगेन्द्र जी की लिखी कविता सुनाई।
#मंजुल_दास- खगेन्द्र जी मेरे पड़ोसी थे।मैं अपना पहला भाषण उनके सामने ही हुआ था।खगेन्द्र जी का कहना था कि जहां तक विज्ञान नहीं पहुंचा वहीं तक भगवान है।इन्होंने गोड्डा विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था।
#मेहता_नागेंद्र_सिंह- खगेन्द्र जी संस्कृत के भी विद्वान थे। उनका व्यक्तिगत स्नेह मेरे प्रति रहा है।

कवि #रमेश_ऋतंभर-वे सबसे जुड़े रहे और सबको स्नेह बांटते रहे। खगेन्द्र जी का व्यक्तित्व सबको जोड़ कर रखा।उनमें जो आत्मीयता थी वह सब
वे पूर्णकालिक लेखक थे।इन्होंने इस अवसर पर अरुण कमल की एक कविता सुनाई जो खगेन्द्र जी पर केंद्रित है।
कवि #अरविन्द_श्रीवास्तव- उनकी आत्मीयता और स्नेह हम सभी के साथ है। वे रचनाकार के साथ ही एक महान व्यक्तित्व थे।
उनका प्रोत्साहन हम सभी को हमेशा प्राप्त होता रहा।
#भावना_शेखर - मैंने एक साहित्यकार के रूप में उन्हें सुना ।वे आयाम के कार्यक्रम में आते थे।उनका हाथ अपने कंधे पर आज भी महसूस करती हूं।

प्रलेस के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव #राजेन्द्र_राजन- खगेन्द्र जी के साथ मेरा संबंध लंबा रहा।उनका संबंध मेरे साथ कई रूपों में था। साहित्य लेखन को उन्होंने पत्रकारिता के साथ जोड़ा। प्रगतिशील लेखक संघ,बिहार की चाबी खगेन्द्र जी रहे।खेगेंद्र जी को बिहार ने वह महत्व नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। विश्वनाथ त्रिपाठी के वक्तव्य को उद्धरित करते उन्होंने कहा कि हर राज्य में एक खेगेंद्र ठाकुर हों तो यह आंदोलन और सफल हो जाएगा।खेगेंद्र जी ने हर लेखक को तराशा।वे प्रगतिशील मूल्यों के साथ हमेशा खड़े रहे।
कवि #राजकिशोर_राजन- वे हम सभी के अभिवावक थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कथाकार #रामधारी_सिंह_दिवाकर ने कहा कि मैं किसी लेखक संगठन से नहीं जुड़ा रहा लेकिन खगेन्द्र जी से मेरा 50 वर्षों का साथ रहा..
कथाकार #नीरज_सिंह - उनका सानिध्य मिलता रहा...
रंगकर्मी #जयप्रकाश- वे बेहतर दुनिया की सपनों के लिए लड़ते रहे..
रंगकर्मी #अनीश_अंकुर- जो क्रांति करता है बोलता नहीं !
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