18/04/2024
अवधेश राय के पक्ष में
प्रबल जनसमर्थन क्यों?
राजेंद्र राजन
बेगूसराय लोकसभा चुनावी दंगल का मैदान सज गया है। सर्वप्रथम 18 अप्रैल को महागठबंधन की ओर से सीपीआई नेता अवधेश राय के नामांकन का सर्वत्र अपूर्व स्वागत क्यों हुआ ?
नामांकन में प्रथम बाजी हासिल करने की ही चर्चा ही केवल क्षेत्र में नहीं है ,वरन चुनावी परिणाम में भी प्रथम आने का संदेशा प्रसारित हो गया।
इनके पक्ष में इस प्रकार का प्रबल जनसमर्थन क्यों हासिल हो गया ?
ध्वंस के विरुद्ध सृजन , उन्माद के विरुद्ध सद्भाव , घृणा के विरुद्ध प्रेम और भ्रष्टाचार की जगह सदाचार की अजस्र प्रांजल धारा की तलाश यहां आमजन को बेसब्री से थी।
स्वतंत्रता के अपहरण,समता के विरुद्ध कुचक्र और बंधुत्व के प्रति घृणित खेल का जो तांडव चल रहा है ,अवधेश राय को उसको वापिस करनेवाले योद्धा के रुप में देखा जा रहा है। इसलिये कि इन्हीं संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों केलिए वे आजीवन संघर्ष रत हैं।
प्रदूषित वायुमंडल और जनविरोधी राजनीति के चलते बेगूसराय वासियों को शर्मिंदगी की फजीहत झेलते वर्षो बीत गए। अब और झेलने की क्षमता नहीं है। इस मुक्ति का संदेश इनकी उम्मदवारी है।
झंझावातों से गुजरते यहां के निवासियों को स्वक्ष हवा और जनहितकारी राजनीति की तलाश अवधेश राय की सशक्त दावेदारी देते ही पूरी हो गई है।
लंबे अरसे से जातीय और साम्प्रदायिक उन्मादिनी राजनीति का वर्चस्व इस लोकतांत्रिक धरती को कलंकित कर रखा है।
कौन है ,यहां का जनप्रतिनिधि ? पुरानी सांस्कृतिक परम्परा के कब्र पर उग आए अगलग्गा और ध्वंसावतारों को सांसद और विधायक के रूप में देखकर लोगों को रावणावतार और कंसावतार का साक्षात्कार होता रहा है।
जिले से बाहर जाने पर ऐसे ध्वंसावतारी प्रतिनिधियों का नाम लेने से भी शर्मसार होना लाजिमी हो जाता है।
ये जनप्रतिनिधि चंगेज खान की तरह केवल लूटपाट से संतोष करनेवाले नहीं हैं वल्कि अंग्रेजों की तरह शासन सत्ता स्थापित कर विचौलियों ,दलालों के बल पर
पवित्र पावनी गंगा पार से आकर यहां उपनिवेश कायम करने की नीतियों को अंजाम देना जरूरी मानते हैं। हमारी गंगा के सवच्छ जलधारा को इनने काला बना दिया है।
आजाद ख्याल संस्कृति के आमजन गुलामी के इस दंश को झेल अब ऊब चुके हैं।
किसी ऐसे नायक की तलाश यहां कर रहे थे ,जो गांधी जी की तरह हिन्दू और मुसलमानों ,अगड़ों और पिछड़ों ,मर्द और औरतों एवं शिक्षित और अशिक्षित जमातों का विश्वास हासिल कर आजादी दिलाने के संघर्षों की अगुवाई करे।
अनेकों बार के पराजय ने अपराजेय बनने , ,मुक्ति पाकर स्वाभिमान से मस्तक ऊंचा करने केलिए जो विकलता और छटपटाहट प्रबुद्धजनों में है ,अवधेश राय के पदार्पण से वह पूरा हो गया है।
नंद वंश के निरंकुश सत्ता से आजादी चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को नायकत्व प्रदान कर हासिल की थी।
चन्द्रगुप्त की जाति और धर्म खोजने वाले तंगनजरी के धनी गुलाम मानसिकता के प्रभु तब भी थे और आज भी यहां मिल जाते हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को आगे कर उनके मंसूबों को चूर कर दिया था।
बदलाव की हवा के झोंके ने इन्हें चारोखाने चित्त कर दिया था।
अवधेश राय इसी भूमिका में आज स्वीकार्य हैं।
देश सहिष्णुतावादी ,मानवतावादी और जनहितकारी राजनीति की तलाश में अकुलाहट से संलिप्त है।
महागठबंधन 'इंडिया' के निर्माण ने दूसरी आजादी का शंखनाद कर दिया है। उसी धारा का अंग बेगूसराय में अवधेश राय हैं।
एक मित्र ने लिखित संवाद दिया है कि राजन दा ,आप कैसे पुरानी बातों को भूल गए? विधानसभा में पन्द्रह वर्षों तक अनवरत जिसके विरुद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों केलिए संघर्ष किया था ,क्या उसे भूल गए?
भाई मेरे ! आग लगने पर सभी भेदभावों को भूलकर दौड़ना ही बुद्धिमानी है। आग में सती बन जल मरने की नसीहत विनाशकारी है।
मैं तो इस सिद्धांत को मानता हूँ कि कीचड़ से कीचड़ नहीं धोया जाता है। बड़े उद्देश्यों केलिए पूर्वाग्रहों से मुक्ति आवश्यक है। आज की राजनीति में जनविरोधी ,लोकतंत्र विरोधी ,संविधान विरोधी और तानाशाही शक्तियों का गठजोड़ जब निगलने केलिए आतुर है ,मुकाबले केलिए जनपक्षधर ,लोकतंत्र पक्षधर ,संविधान पक्षधर और सामासिक संस्कृति के पक्षधरों की एकजुटता ही एकमात्र निदान है।
गौण मतभेदों को पाटकर ही यह पुल निर्मित हो सकता है। यही हुआ है और सही हुआ है।
रही बात ,बुरा कौन ? मैने कबीर की तरह ढूंढ लिया है ,
"बुरा जो देखन मैं चला ,बुरा न मिलिया को्य
जो दिल ढूंढा आपनो ,मुझसे बुरा न कोय।"
ऐसे भले मानुषों से कहना चाहता हूँ ,खटाई नहीं जोड़न बनिए।अन्यथा अस्तित्व ही खो जाएगा।
राष्ट्र और बेगूसराय की अस्मिता के इस महाभारत में आप किधर हैं?
तटस्थ कोई नहीं रहता है। न्याय और सत्य के पक्षधर आप नहीं हैं तो अन्याय और झूठ के साथ हैं। लोकतंत्र के रक्षा यज्ञ के रक्षक नहीं तो भक्षक आप साबित होंगे।
खुशी है ,बेगूसराय मील के पत्थरों की नहीं ,मंजिल की ओर मजबूती से एकजुटता कायम कर बढ रहा है।
इस बार ,एक राय ,सिर्फ अवधेश राय।