08/11/2025
मतदान में भारी उत्साह ने दुनिया का खींचा ध्यान
पटना : देश की राजनीति में आगामी चुनावों के समीकरण बदलने के हैं संकेतज्यादा वोटिंग एंटी इंकम्बेंसी और प्रो इंकम्बेंसी दोनों होती हैविजय कृष्ण अग्रवालपटना : बिहार ने 2025 के पहले चरण के विधानसभा चुनाव में 18 जिलों की 121 सीटों पर उतरे 1314 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करने के लिए 64.66 प्रतिशत मतदान कर इतिहास रच दिया है, यह वृद्धि न केवल राज्य की राजनीति में भूचाल लाये हुयी है बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक राजनीतिक विश्लेषकों की भी निगाहें इस पर टिकी हुई हैं। पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फीसदी वोटिंग ज्यादा हुई है। इस बार चुनाव में जिस तरह से मतदान बढ़ा है, उससे सियासी दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। बिहार की सियासत में इस बार के मतदान को अभूतपूर्व माना जा रहा है, क्योंकि प्रदेश के इतिहास में यह सर्वाधिक वोटिंग है।इसके पूर्व इतिहास में जब भी बिहार में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ तब राज्य की सत्ता के लिए बड़े संदेश लायी है। सभी दल इस बढ़े वोटिंग पैटर्न को अपने-अपने लिहाज से मुफीद बता रहे हैं। पर वास्तव में इतनी बड़ी भागीदारी ने एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए रणनीतिक चुनौती पैदा कर दी है। महिला मतदाता की लगातार बढ़ रही भागीदारी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘सिक्रेट वोटर’ बताया है। एनडीए उम्मीद कर रही है कि महिला सशक्तिकरण योजनाओं और रोजगार पैकेज का लाभ उन्हें चुनावी मोर्चे पर मिलेगा। जबकि महागठबंधन युवाओं और महिलाओं को अपने पक्ष में करने की जिस रणनीति पर जोर दे रहे हैं उसका परिणाम मान रही हैं।इतिहास में आमतौर पर माना जाता है कि जब वोटिंग ज्यादा होती है, एंटी इंकम्बेंसी में जनता बदलाव चाहती है, लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता। कई बार देखा गया है कि अधिक मतदान का मतलब प्रो इंकम्बेंसी सरकार के प्रति समर्थन भी रहती है। यानी कि वोटर्स की ये सक्रियता किस दिशा में जाएगी, कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन बिहार में जब-जब वोटिंग बढ़ी है तो सत्ता बदल जाती है। बिहार में विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो शुरू से 2020 तक केवल तीन बार ही 60 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई। 1990 में 62.04, 1995 में 61.79 और 2020 में 62.57 वोट पड़े थे। बिहार में अभी तक सबसे कम 42.60 फीसदी वोट 1951-52 में पड़े थे। बिहार में सत्ता परिवर्तन नवंबर 2005 में हुआ था,तब 16 फीसदी कम वोटिंग हुई थी। इस बार बिहार के पहले चरण के चुनाव में साढ़े आठ फीसदी वोटिंग ज्यादा हुई है, जिसके नफा-नुकसान का आकलन 14 नवंबर को ही अंतिम रूप से होगा।
बढ़ा हुआ मतदान बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति पर असर डाल सकती है। एनडीए या महागठबंधन की जय या पराजय राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक समीकरणों, नीति निर्माण के साथ आगामी लोकसभा चुनाव पर असर डाल सकती है। वैश्विक स्तर पर यह भी दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र जीवंत है और मतदाता सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह बढ़ी हुई भागीदारी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। बिहारी मतदाताओं की इस सक्रियता से राष्ट्रीय स्तर पर रणनीतियों में बदलाव आएगा।विश्व के राजनीतिक विश्लेषक भी इसे भारत की लोकतांत्रिक मजबूती का उदाहरण मान रहे हैं। इस बड़े लोकतंत्र में मतदाता जागरूकता, महिला सशक्तिकरण और युवाओं की भागीदारी न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक राजनीति को भी प्रभावित कर सकती है। इसके कारण 11 नवंबर को दूसरे चरण के लिए दोनों गठबंधन अपनी रणनीति को न्यि धार देने में लगे हैं। अगर यही उत्साह और भागीदारी बनी रहती है तो बिहार की जनता देश के राजनीतिक भविष्य और अन्य राज्यों की रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकती है। सभी राजनीतिक दल पूरे भारत में अपनी रणनीति को संशोधित करने के प्रति चौकस होंगे।..............................