08/04/2025
बीजेपी को वोट न देने की सजा, भाटी के गांव का बंटवारा!
राजस्थान के बाड़मेर जिले में सियासी ड्रामा एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी के परिवार की ग्राम पंचायतों से जुड़ा है। सूत्रों की मानें तो भाटी के बीजेपी को वोट न देने की "गुस्ताखी" का बदला सरकार ने अनोखे अंदाज में लिया है। उनके पैतृक गांव हरसाणी और आसपास की पंचायतों को तीतर-बित्तर कर दिया गया है, मानो सरकार ने कहा हो, "वोट नहीं, तो एकता भी नहीं!"
नए प्रशासनिक फेरबदल में दुधोड़ा और तिबिनीयार को रामसर पंचायत समिति में डाल दिया गया, फोगेरा को किराडू की शरण में भेजा गया, हरसाणी और तानु मानजी को गिराब में ठिकाने लगाया गया, जबकि मगरा को गडरा रोड की सैर करा दी गई। स्थानीय लोग इसे "सियासी सर्जरी" करार दे रहे हैं, जिसका मकसद कथित तौर पर भाटी के प्रभाव वाले इलाके को छिन्न-भिन्न करना है।
रविंद्र सिंह भाटी, जो शिव विधानसभा से निर्दलीय विधायक हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में बाड़मेर-जैसलमेर सीट से निर्दलीय ही मैदान में उतरे थे, लंबे समय से बीजेपी के लिए चुनौती बने हुए हैं। बीजेपी से बगावत कर विधायक बनने वाले भाटी ने कभी पार्टी की गोद में बैठने से इनकार किया, जिसके बाद से उनके और सत्ताधारी दल के बीच तल्खी जगजाहिर है। हाल ही में हुए प्रशासनिक पुनर्गठन को कई लोग इसी सियासी दुश्मनी का नतीजा मान रहे हैं। हालांकि, सरकार का आधिकारिक बयान है कि यह बदलाव "प्रशासनिक सुविधा" के लिए किया गया।
वाह रे सरकार, क्या बदले की भावना है! वोट न देने की सजा ऐसी कि गांवों को ही बांट डाला। लगता है बीजेपी ने सोचा, "जब दिल नहीं जीत सकते, तो इलाका ही तोड़ देंगे!" अब भाटी के समर्थक तो बस यही कह रहे हैं कि सरकार ने पंचायतों को तो बांटा, पर जनता का प्यार बांटना भूल गई।
तो जनाब, सियासत का यह नया खेल देखिए, वोट का बदला पंचायत से, और पंचायत का बदला वोट से। अब देखना यह है कि क्या भाटी इस "बंटवारे" को अपनी ताकत बनाते हैं या सरकार का यह दांव कामयाब होता है। बाड़मेर की जनता तो बस इतना कह रही है, "खेल चलता रहे, मगर रोटी-बेटी का रिश्ता न टूटे!"
Ravindra Singh Bhati