04/11/2025
जयपुर की एक लड़की, आयुषी, ऑफिस से घर लौट रही थी।
रात का वक़्त था। उसने ओला बाइक बुक की।
सब कुछ ठीक चल रहा था —
लेकिन कुछ ही मिनटों बाद बाइक अचानक सड़क किनारे रुक गई।
ड्राइवर बोला, “मैडम… पेट्रोल खत्म हो गया।”
वो पल कुछ सेकंड के लिए जैसे थम गया —
अंधेरा, ट्रैफिक की गूंज, और बीच सड़क पर एक लड़की, एक अजनबी के साथ।
अब उसके पास दो रास्ते थे —
या तो राइड कैंसल करे और दूसरी कैब बुक करे,
या फिर उस ड्राइवर के साथ पेट्रोल पंप तक पैदल चले।
वो बोली, “चलिए, मैं साथ चलती हूं।”
और दोनों करीब एक किलोमीटर पैदल चले।
वो सोचती रही — “बेचारा कितना परेशान हुआ होगा।”
ड्राइवर ने पेट्रोल भरवाया, बाइक फिर चली,
उसने उसे घर छोड़ा,
और उसने ₹101 किराया पेमेंट कर दिया।
कहानी यहीं खत्म लग रही थी…
पर असली कहानी अब शुरू हुई।
घर पहुंचते ही ड्राइवर बोला,
“मैडम… ₹108 होता है।”
वो बोली, “कैसे? ऐप पर ₹101 दिखा रहा था।”
ड्राइवर ने कहा, “शायद बढ़ गया, पेट्रोल पंप तक जाने की वजह से।”
वो कुछ नहीं बोली, ₹7 और दे दिए।
लेकिन दरवाज़ा बंद होते ही उसकी आंखों से आँसू निकल आए।
₹7 के लिए नहीं —
बल्कि इसलिए कि उसने उस आदमी के लिए अपनी सहानुभूति खो दी।
जिसके साथ वो उसके संकट में खड़ी रही,
जिसे उसने इंसान समझा,
उसी ने उसकी अच्छाई का फायदा उठा लिया।
उसने लिखा —
“मैं उसके साथ मुश्किल में चली, देर हुई फिर भी कुछ नहीं कहा…
लेकिन उसने मेरे भरोसे का पेट्रोल खत्म कर दिया।”
कभी-कभी हम किसी के लिए कितना भी कर लें,
पर वक़्त आने पर वही इंसान दिखा देता है —
कौन सच में साथ है, और कौन सिर्फ किराए पर।