
31/12/2024
संस्कृति संस्कार विहीन समाज की एक और दृश्य..😑
बनारस के प्रसिद्ध लेखक SN खंडेलवाल जी बोले तो श्रीनाथ खंडेलवाल जी, इनका कल 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
इनके अंतिम संस्कार में न बेटा आया और न बेटी आई..! निधन भी इनके अपने आवास में न हुआ था, बल्कि एक वृद्धाश्रम में हुआ। वहीं के कुछ लोगों ने बेटे की भूमिका (अमन कबीर) निभाते हुए इनका अंतिम संस्कार किया।
आगे बढ़ने से पहले बता दें कि खंडेलवाल जी 400 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं.. जिस जमाने में इंटरनेट या ऑनलाइन जैसे प्लेटफॉर्म नहीं थे तब से इनकी किताबें बिक रही है अच्छे डिमांड के साथ.. अब जब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं तो यहां भी इनकी किताबें बिक रही है।
इन्होंने 15 वर्ष की आयु में पहली किताब लिखी थी, यहीं से उनका किताबों को लिखना शुरु हो गया था.. पद्मपुराण लिखा, मत्स्य पुराण 2000 पन्नों का लिखा था.. तंत्र पर करीब 300 पन्नों की किताबें लिखी थी.. कुछ अभी छप रही हैं.. शिवपुराण का 5 खंडों में अनुवाद किया है.. आसामी और बांग्ला भाषाओं में अधिक अनुवाद किया था..।
अभी तक 21 या 22 उपपुराण और 16 महापुराणों का अनुवाद किया है. किताब लिखने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग नहीं करते थे। शुरू से ही हाथ से लिखते थे। वर्तमान में वो नरसिंह पुराण लिख रहे थे लेकिन पूरा होने से पहले ही वो धरा को अलविदा कह गए।
अपने लेखन के कारण ही ये करोड़ों के मालिक थे.. कुल 80 करोड़ इनकी संपत्ति थी/है। लेकिन इनके बेटे और बेटी ने इनसे सारी जायदाद अपने नाम करा लिया और इन्हें घर स बेदखल कर दिया। एक बार ये बीमार पड़े तो इनके बेटे ने ये तक कह दिया कि गर ये मर जाये तो बाहर किसी नाले में फेंक देना। इससे क्षुब्ध होकर ये घर से निकल गए और वृद्धाश्रम चले गए। वहीं इनकी कल मृत्यु हो गई।
अंतिम संस्कार के लिए जब इनके बेटे को फोन किया गया तो वो बनारस से बाहर है बोल के आने में अपनी असमर्थता जता दिए। बेटी को कई बार कॉल किया गया लेकिन बेटी ने फोन उठाया ही नहीं।
बेटा अनूप खंडेलवाल बनारस का जाना माना बिजनेसमेन है.. लाखों करोड़ों की संपत्ति है। बेटी और दामाद दोनों सुप्रीम कोर्ट में वकील है।
बेटी जब डॉक्टरेट कर रही थी तो स्वयं खंडेलवाल जी इनका थीसिस लिखते थे।
लेकिन एडवोकेट और डॉक्टर होते ही बिटिया 80 करोड़ की संपत्ति को अपना बनाने में लग गई और सफल भी हुई।
इनके पोता-पोती नाती-नतिनी सब कोई अच्छे-अच्छे पोस्ट में कार्यरत है। लेकिन जीवन के अंतिम समय में कोई साथ नहीं.. यहाँ तक कि मुखाग्नि देने के लिए भी कोई नहीं।
कितना कुछ विवश करता है ये सब सोचने के लिए। बेटा-बेटी को जब अच्छे-अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे होंगे,उनके पीछे इन्वेस्ट कर रहे होंगे तब ये क्या सोच के कर रहे होंगे ?? बिटिया की थीसिस जब ये अपने हाथों से लिख रहे होंगे तब क्या सोच रहे होंगे ये ? अपनी करोड़ों की संपत्ति भी जमा कर रहे होंगे तब ये क्या सोच के जमा कर रहे होंगे ? किनके लिए कर रहे होंगे ??
क्या आज की शिक्षा ये होती है ?? बस नौकरी और जॉब सम्मत ?? पैसा कमाओ और दबा के कमाओ लेकिन माँ-बाप के लिए पैसा नहीं, उन्हें लात मार के घर से बाहर निकाल दो ??
यहाँ और एक बात है.. इनका और एक बेटा था जो शादी नहीं किया था.. लेकिन खंडेलवाल जी का बहुत खयाल रखता था.. लेकिन वो दिवंगत हो गए।
वाया - ये बनारस है