28/06/2025
गुप्त-नवरात्रि के दूसरे दिन, दिनांक - ७जुलाई, २०२४ को, माता कटक-चण्डी के दर्शन का सौभाग्य, मुझे प्राप्त हुआ था । अखिल भारतीय शाक्त सम्मेलन के अनुग्रह से उत्कल शाक्त सम्मेलन का उत्कल-अभियान-दल, अभियान के दूसरे दिन (१९ जून , २०२५ ) , नेताजी जन्म-स्थली संग्रहालय से चलकर, कटक-चण्डी मन्दिर पहुँचा । यह लगभग हज़ार वर्ष पुराना देवी-मन्दिर है । सम्प्रति इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा है । देवी के मन्दिर के पार्श्व-वर्त्ती, दो दीवारों पर बाहर से, क्रमशः बायें मन्त्रिणी और दायें दण्डिनी की सजी-धजी प्रतिमायें पूजित होती हैं । मन्दिर के प्रांगण में हनुमान्, राम और राधा-कृष्ण आदि की मूर्त्तियाँ शोभायमान हैं । परिसर के प्रवेश-द्वार पर, दोनों ओर से दस दस ब्रह्म-शक्तियों के दिव्य विग्रह स्थापित किए गये हैं । इस बार, यहाँ से लगभग ३ किलोमीटर दूर, हमलोग पाताल-गत अमृतेश्वर महादेव मन्दिर नहीं जा सके, जहाँ भगवान् मृत्युंजय और भवानी के दर्शन हुए थे ।
कटक का प्राचीन नाम पद्मावती बताया जाता है । कटक का अर्थ है - कटति वर्षति अस्मिन् मेघ इति अथवा कट्यते निर्गम्यते निर्झरिण्यादिभिः … अर्थात् पर्वत का वह मध्य-भाग जहाँ मेघ बरसता है या झरने बहते हैं । अमर कोष में इसका अर्थ है- श्रोणी । भरत मुनि के अनुसार इसका अर्थ, मेखला है । अन्य अर्थ है - वलय, चक्र, हस्ति-दन्त-मण्डन, सामुद्र-लवण, नगरी, राजधानी, पुरी, सेना आदि ।
कटक पहले उत्कल की राजधानी ही थी । कटक, महानदी, काठाजोड़ी, कुआ-खाई, ब्रह्माणी आदि नदियों से घिरा, एक प्राचीन नगर है, इसलिए इसका विस्तार एक सीमा तक ही हो सकता था । इसी कारण से, बाद में अंग्रेज राजधानी को कटक से भुवनेश्वर ले गये । पर, आज भी ओड़िशा उच्च न्यायालय, कटक में ही है । काठजूड़ी के तट पर ही, गंग वंश के शासक, महाराज अनंग भीमदेव के द्वारा, ११८० ई. में बनवाया गया वरावती दुर्ग है, जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं । वारावटी का यह दुर्ग आज भी चारों ओर से, जलापूर्ण चौड़ी गहरी नहरों से घिरा है, जिन्हें दुर्ग के रक्षणार्थ बनवाया गया होगा ।
ऐसी मान्यता है कि महाराज अनंग भीमदेव ने भी, पुरी में भगवान् जगन्नाथ जी के मन्दिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था ।
सिक्खों के प्रथम गुरु नानकदेव, जगन्नाथ-पुरी जाने के क्रम में यहाँ ठहरे थे । उनके द्वारा किये गये दातुन के अवशेष से एक वृक्ष उग आया था, वहाँ वर्त्तमान में गुरुद्वारा दातुन साहिब नामक गुरुद्वारा बना हुआ है । इसे कालियाबोड़ा गुरुद्वारा भी कहा जाता है ।
माँ कटक-चण्डी का दर्शन-पूजन-स्तवन कर, अभियान दल वारावटी-दुर्ग का बाह्य-दर्शन करता हुआ, दिन में एक बजे, दक्षिणेश्वर काली-मन्दिर पहुँचा, पर मन्दिर दर्शनार्थियों के लिये इस समय खुला नहीं था । वहाँ कुछ देर रुककर, हमलोग चौद्वार में माँ धूमावती के दर्शनार्थ चल पड़े