irfani shama

irfani shama cool and calm

05/06/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 24*
*हुज़ूर के हुक्म में बरकत ही बरकत है*
*हदीस नंबर 13*
*तर्जमा*
हज़रत अबू राफ़ेअ रजियल्लाहु
तआला अन्हु से मरवी है उनका बयान है कि हमें तोहफ़े में एक बकरी दी गई तो उसे पकाने के लिये हांडी में चढ़ा दिया. फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए और फ़रमाया ऐ अबू राफ़ेअ यह क्या है? मैंने अर्जू किया या रसूलल्लाह यह बकरी है जो हमें तोहफ़तन दी गई थी मैं इसे हांडी में पका रहा हूँ। सरकारे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ऐ अबू राफ़ेअ एक दस्त (बाज़ू) मुझे दो। मैंने हुजूर की ख़िदमत में दस्त पेश कर दिया। फिर आपने फ़रमाया कि दूसरा दस्त भी दो, मैंने दूसरा दस्त भी आपकी ख़िदमत में पेश कर दिया। आपने फिर फ़रमाया ऐ अबू राफ़ेअ और दस्त लाओ, तो मैंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह बकरी के दो ही दस्त होते हैं। तो मुख़्तारे कायनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर तुम ख़ामोश रहते तो हमको दस्त पेश करते रहते जब तक तुम मनाअ न करते।
(मुस्नद इमाम अहमद बिन हंबल, स. 11/6, सुनने दारमी, जि.......)
इससे मालूम हुआ कि रसूले पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इख़्तियार था कि जब तक आप तलब फ़रमाते रहते पेश करने वाला पेश करता रहता तो अगरचेह बकरी में सिर्फ़ दो ही दस्त होते हैं लेकिन आपके इख़्तियार से हजारों दस्त ज़ाहिर होते रहते।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 32/33)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

03/06/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 22*
*आँखों का दर्द दूर फ़रमा दिया*
*हदीस नंबर 11*
*तर्जमा*
हज़रत सहल बिन सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मैं कल यह झन्डा ऐसे शख़्स को दूँगा जिसके हाथ पर अल्लाह तआला फ़तह फ़रमाएगा। तमाम लोग रात भर इस ख़्याल में रहे कि देखें झन्डा किस ख़ुश नसीब को अता होता है। जब सुबह हुई तो हर एक यह उम्मीद लिये हुए हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ कि झन्डा उसे अता होगा। हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अली बिन अबी तालिब कहाँ हैं ? लोगों ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह उनकी आँखों में दर्द है। फ़रमाया उन्हें मेरे पास बुलवाओ तो उन्हें आपकी ख़िदमत में लाया गया। उस वक़्त आपने उनकी आँखों में लुआबे दहन लगा दिया और उनके लिये दुआ फ़रमाई तो उनकी आँखों का दर्द जाता रहा जैसे उन्हें कोई तकलीफ़ ही नहीं थी।
*(सही बुख़ारी. स. 605.606/1)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 31/32)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

02/06/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 21*
*उंगलियों से पानी के चश्मे जारी हो गए*
*हदीस नंबर 10*
*तर्जमा*
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है, उनका बयान है कि सुलहे हुदैबिया के दिन लोग प्यासे थे और हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने एक प्याला था जिससे आपने वुज़ू फ़रमाया, तो लोग आपकी बारगाह में हाज़िर हुए। आपने फ़रमाया क्या बात है ? उन्होंने अर्ज़ किया हमारे पास वुज़ू करने और पीने के लिये पानी नहीं है, मगर यही पानी जो आपके सामने है तो हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उसी पियाले में अपना दस्ते पाक रख दिया तो आपकी उंगलियों के दरमियान से चश्मों की तरह पानी निकलने लगा। हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि हम सब ने पानी पिया और वुज़ू किया। हज़रत सालिम ने पूछा आप हज़रात की तादाद कितनी थी? तो हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि अगर हम एक लाख भी होते तब भी वह हमारे लिये काफ़ी होता, मगर उस वक़्त हमारी तादाद पन्द्रह सौ थी।
*(सही बुखारी, स. 598/1)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 31)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

01/06/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 20*
*हुज़ूर अपनी उम्मत को जहन्नम से बचाएंगे*
*हदीस नंबर 09*
*तर्जमा*
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है उनका बयान है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बे शक एक सरदार ने घर बनाया और उसमें मेहमान नवाज़ी का सामान मुहय्या किया और फिर लोगों को दावत में बुलाने के लिये किसी को भेजा तो सुनो सय्यद अल्लाह तआला है, मेहमान नवाज़ी का सामान कुरआन शरीफ़ है। घर जन्नत है और बुलाने वाला मैं हूँ। मेरा नाम क़ुरआन में मुहम्मद है, इन्जील में अहमद है और तौरेत में अहीद है। मेरा नाम अहीद इस लिये हुआ कि मैं अपनी उम्मत से दोज़ख़ की आग दूर फ़रमाउँगा पस अहले अरब से दिल की गेहराइयों से महब्बत रखो।
इमाम अहमद रज़ा फाज़िले बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं (ऐ मुनकिरों! तुम्हारे नज़दीक अहीद प्यारा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दाफ़िइल बला तो हैं ही नहीं, कह दो कि वह तुमसे नारे जहन्नम भी दफ़ा न फ़रमाएंगे और ब ज़ाहिर उम्मीद तो ऐसी ही है कि जो जिस नेअमते इलाही का मुनकिर होता है उस नेअमत से महरूम होता है।
अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला फ़रमाता है :
*أنَا عِنْدَ ظَنِ عَبْدِى بي*
मैं अपने बन्दे से उसके गुमान के मुवाफ़िक़ मुआमला फ़रमाता हूँ जब तुम्हारा गुमान यह है कि मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दाफ़िइल बला में ही तो तुम इसी के मुस्तहिक़ हो कि वह तुम्हारे लिये दाफ़िइल बला न हों।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 30/31)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

31/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 19*
*ख़ुदा चाहता है रज़ाए मुहम्मद*
*हदीस नंबर 08*
*तर्जमा*
याअनी उम्मुल मोमिनीन हजरत आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है, उनका बयान है कि मुझे उन औरतों पर ग़ैरत आती थी जिन्होंने अपनी ज़ात को रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिये हिबा कर दिया था तो मैंने कहा औरत अपने आपको किस तरह हिबा करती है फिर जब अल्लाह तआला ने यह हुक्म नाज़िल फ़रमाया पीछे हटाओ उनमें से जिसे चाहो और अपने पास जगह दो जिसे चाहो और जिसे तुमने कनारे कर दिया था उसे तुम्हारा जी चाहे तो उसने भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं।
*(सूरए अहज़ाब, आयत नं. 51)*
तो मैंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह मैं देखती हूँ कि आपका रब आपकी ख़्वाहिश पूरी करने में जल्दी फ़रमाता है।
*(सही बुख़ारी, स. 706/2 सही मुस्लिम, स. 473/1 मुस्नदे इमाम अहमद बिन हंबल, स. 150/6)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 30)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

28/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 17*
*हुज़ूर दाफ़िए बलय्यात हैं*
*हदीस नंबर 06*
*तर्जमा*
हज़रत वहब बिन मुम्बह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है, इनका बयान है कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तबारक व तआला ने हज़रत शअया अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तरफ़ वही भेजी कि मैं एक नबिय्ये उम्मी को भेजने वाला हूँ जिसके ज़रीए बहरे कान, ग़िलाफ़ चढ़े दिल (बन्द दिल) और अन्धी आँखें खोल दूँगा। उसी के सबब गुमराही के बाद हिदायत दूँगा, उसी के ज़रीए जहालत के बाद इल्म दूँगा, उसी के वसीले से गुमनामी के बाद नेक नामी दूँगा, उसी के वास्ते से आम आदमी को नामवर कर दूँगा, उसी के ज़रीए से क़िल्लत को कसरत में बदल दूँगा, उसी की वजह से तंगदस्ती को कुशादगी में बदल दूँगा, उसी के सबब बिछड़ों को मिला दूँगा और उसी के वसीले से दिलों में महब्बत पैदा करूँगा और मुख़्तलिफ़ ख़्वाहिशात रखने वालों और मुख़्तलिफ़ क़ौमों में इत्तिफ़ाक़ क़ाइम करूँगा।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 29)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

25/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 14*
*हुज़ूर ने जन्नत अता फ़रमाई*
*हदीस नंबर 03*
*तर्जमा*
याअनी हज़रत रबीआ बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी, उनका बयान है कि मैंने एक रात सरकार की ख़िदमत में गुज़ारी *(फिर आप जब सुबह तहज्जुद के वक़्त बेदार हुए तो मैं)* आपके वुज़ू वग़ैरह के लिये पानी लाया तो हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे फ़रमाया, मांग क्या मांगता है। *(ताकि मैं तुझे अता फ़रमाऊँ)* तो मैंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह। मैं जन्नत में आपकी रिफ़ाक़त चाहता हूँ आपने फ़रमाया इसके अलावा भी कुछ चाहिये ? मैंने अर्ज़ की मुझे तो यही काफ़ी है। तो आपने मुझसे फ़रमाया तू अपने नफ़्स की इस्लाह में कसरते सुजूद के ज़रीए मेरी मदद कर।
*(सही मुस्लिम, स. 193/1 मुस्नदे इमाम अहमद बिन हंबल, स. 74/4 सुनने अबी दाऊद जि. - अव्वल, स. 203/1 सुनने नसाई, स. 171./1 अत्तरग़ीब वत्तरहीब, स. 250/1 कन्ज़ुल उम्माल. स. 124/7 हदीस 19002)*
हजरतू अल्लामा अली क़ारी अलैहि रहमतुल बारी फ़रमाते हैं: याअनी हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुतलक़न तलब करने का हुक्म दिया इससे यह बात साबित होती है कि अल्लाह तआला ने हुज़ूर को यह इख़्तियार अता फ़रमाया है कि वह अल्लाह तआला के खज़ानों में से जो चाहें अता फ़रमा दें। इसी वजह से हमारे अइम्मा ने आपकी एक ख़ुसूसियत यह भी बयान की है कि आप जिसे जो चाहें बख़्श दें।
फिर फ़रमाते हैं याअनी इब्ने सबअ वग़ैरह उलमाए किराम ने हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़ुसूसियत में से एक ख़ुसूसियत यह भी बयान की है कि अल्लाह तआला ने जन्नत की ज़मीन हुज़ूर की जागीर कर दी है कि इसमें से जो चाहें जिसे चाहें दे दें। *(मिरक़ातुल मफ़ातीह, स. 615/2)*
हज़रत शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाहि अलैह अशिअतुल लम्आत शरह मिश्कात में लिखते हैं यानी मुतलक़ सवाल से फ़रमाया मांग और किसी मतलूब की तख़सीस न की, इससे मालूम हुआ कि सब के सब काम आपके कब्ज़ा व इख़्तियार में हैं कि आप जो चाहें जिसके लिये चाहें अपने रब की अता से देते हैं
*(तर्जुमए शेअर)*
क्योंकि दुनिया व आख़िरत की नेअमतें आपकी जूदो सख़ा का एक ज़र्रा हैं और लौहो क़लम का इल्म आपके उलूम का एक हिस्सा है।
*(अशिअतुल लम्आत, स. 396/1)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 26/27)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

24/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 13*
*हुज़ूर नेअमत देते हैं*
*हदीस नंबर 02*
*तर्जमा*
याअनी हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है, उनका बयान है कि मैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के काशानए अक़दस के क़रीब बैठा था कि हज़रत अली व हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा हुज़ूर की बारगाहे आलिया में हाज़िरी की गरज़ से तशरीफ़ लाए इन दोनों ने फ़रमाया, ऐ उसामा । हमारे लिये हुज़ूर से हाज़िरी की इजाज़त ले लो। मैंने सरकार की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह। हज़रत अली और हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा आपकी बारगाह में हाज़िरी चाहते हैं। फ़रमाया जानते हो यह दोनों किस लिये आए हैं? मैंने अर्ज़ किया नहीं। आपने फ़रमाया, लेकिन मैं जानता हूँ, आने दो। दोनों ने हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह। हम यह पूछने आए हैं कि आपको अपने अहले बैत में कौन ज़्यादा महबूब है। फ़रमाया फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद। उन्होंने अर्ज़ किया हम आपके खास घर की बात नहीं कर रहे हैं, फ़रमाया मुझे क़राबत दारों में वह ज़्यादा महबूब है जिस पर अल्लाह तआला ने इनआम फ़रमाया और मैंने इनआम किया। याअनी उसामा इब्ने ज़ैद। उन्होंने अर्ज़ किया फिर कौन ज़्यादा महबूब है। आपने फ़रमाया अली बिन अबी तालिब। यह सुनकर हज़रत अब्बास ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! क्या आपके चचा का मक़ाम बाद में है, फ़रमाया हां क्योंकि अली ने
तुम पर हिजरत में सबक़त कर ली।
*(सुनने तिरमिज़ी, स. 223/2)*
अल्लामा अली क़ारी अलैहि रहमतु रब्बिहिल बारी फ़रमाते हैं:
याअनी सहाबा में कोई भी ऐसा नहीं है जिस पर अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इनआम न हो, मगर यहाँ वह मुराद हैं जिनकी सराहत क़ुरआने पाक में मौजूद है और वह ख़ुदावन्द क़ुद्दूस का यह इरशाद है कि जब फ़रमाता था तू उससे जिसे अल्लाह तआला ने नेअमत दी और ऐ नबी तूने उसे नेअमत दी, और वह ज़ैद बिन हारिसा हैं। इसमें न किसी को इख्तिलाफ़ है और न कोई शक। अगरचेह यह आयते करीमा हज़रत ज़ैद के हक़ में नाज़िल हुई है, मगर हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसका मिस्दाक़ हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को ठहराया क्योंकि बेटा बाप के ताबेअ होता है।
इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं न सिर्फ़ सहाबए किराम बल्कि तमाम अहले इस्लाम अव्वलीन व आख़िरीन सब ऐसे ही हैं जिन्हें अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला ने नेअमत दी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नेअमत दी। पाक कर देने से बढ़ कर और क्या नेअमत होगी जिस का ज़िक्र आयते करीमा में बारहा सुना होगा किः
*وَيُرٌ كَيْهِمْ*
*सूरए बक़रह, आयत 129, सूरए आले इमरान, आयत 164*
याअनी उन्हें पाक और सुथरा कर देता है बल्कि ला वल्लाह (ख़ुदा की क़सम) तमाम जहान में कोई शै ऐसी नहीं जिस पर अल्लाह का एहसान न हो और अल्लाह के र सूल का एहसान न हो। फ़रमाता है।
*(وَمَا أَرْسَلْنَكَ إِلَّا رَحْمَةٌ لِلْعَلَمِينَ )*
*सूरए अंबिया, आयत नं. 107*
हमने न भेजा तुम्हें मगर रहमत सारे जहान के लिये। जब वह तमाम आलम के लिये रहमत हैं तो सारे जहांन पर उनकी नेअमत है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम। अहले कुफ्र और अहले कुफ्रान (काफ़िर और ना शुक्री करने वाले) न मानें तो क्या नुक़सान ।
*(अल अमनु वल उला, स. 135, 136)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 24/25/26)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

23/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तैय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 12*
*मदीना तैय्यिबा को हरम बनाया*
*हदीस नंबर 01*
*तर्जमा*
याअनी हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है, उनका बयान है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने रब के हुज़ूर अर्ज़ किया इलाही! मैं मदीन ए तैय्यिबा के दोनों पहाड़ों के बीच को हरम बनाता हूँ, जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने मक्का को हरम बनाया।
*(सही बुख़ारी. स. 816/2, सही मुस्लिम, स. 441/1, मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, स. 195/3, अत्तरग़ीब वत्तरहीब, स. 229/2 कन्ज़ुल उम्माल स. 109/12. हदीस नं. 34867)*
इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं : इस मतलब की हदीसें सिहाह, सुनन और मसानीद वग़ैरहा में ब कसरत हैं, जिनमें हुज़ूर सय्यिदुल आलमीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने साफ़ साफ़ हुक्म फ़रमा दिया कि मदीनए तैय्यिबा और उसके गिर्दो पेश के जंगल का वही अदब किया जाए जो मक्कए मुअज़्ज़मा और उसके जंगल का है। यही मज़हब अइम्मए मालिकिया व शाफ़इय्या व हंबलिया और ब कसरत सहाबा व ताबिईन रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन का है।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 24)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

22/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*अहादीसे तय्यिबा की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 11*
इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सय्यिदुना इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमतो वरिज़वान फ़रमाते हैं कि अहकामे इलाहिया की दो क़िस्में हैं।
*अव्वल, तकवीनिय्यह :*
मिस्ल एहया (ज़िन्दा करना)
इमातत (मौत देना) क़ज़ाए हाजत, दफ़्ए मुसीबत, अताए दौलत, रिज़्क़, नेअमत, फ़तह और शिकस्त वग़ैरहा आलम के बन्दोबस्त।
*दुवम, तशरीइय्यह:-*
किसी फ़ेअल को फ़र्ज, या हराम या वाजिब या मकरूह या मुस्तहब या मुबाह करना। मुसलमानों के सच्चे दीन में इन दोनों हुक्मों की एक ही हालत है कि ग़ैरे ख़ुदा की तरफ़ ब वजहे ज़ाती (ज़ाती तौर पर) अहकामे तशरीई की इस्नाद (निस्बत) भी शिर्क ।
अल्लाह फ़रमाता है
*أَمْ لَهُمْ شُرَکٰؤُا شْرَعُوا لَهُمْ مِّنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَنْ بِهِ اللهُ*
*(सूरए शूरा, आयत नं. 21)*
क्या उनके लिये ख़ुदा की उलूहियत में कुछ शरीक हैं जिन्होंने उनके वास्ते दीन में वह राहें निकाल दीं जिनका ख़ुदा ने हुक्म न दिया।
और ब वजहे अताई (अताई तौर पर) उमूरे तक्वीन की इस्नाद भी शिर्क नहीं। अल्लाह फ़रमाता है:
فَالْمُدَ بْرَاتِ أَمْرًا
*(सूरए नाजिआत, आयत नं. 5)*
क़सम उन मक़बूल बन्दों की जो कारोबारे आलम की तदबीर करते हैं हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी तोहफ़ए इस्ना अशरिय्यह में फ़रमाते हैं यानी हज़रत अली मुश्किल कुशा और उनकी औलादे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम को तमाम उम्मत अपने मुर्शिद जैसा समझती है और उमूरे तक्वीनिय्यह को उन से वाबस्ता जानती है और फ़ातिहा, दुरूद, सदक़ात और उनके नामों की नज़र वग़ैरह देना राइजो मामूल है।
मगर कच्चे वहाबी इन दो क़िस्मों में फ़र्क करते हैं अगर कहिये कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह बात फ़र्ज की या फलां काम हराम कर दिया तो शिर्क का सोदा नहीं उछलता और अगर कहिये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नेअमत दी या ग़नी कर दिया तो शिर्क सूझता है। यह उनका निरा तहक्कुम ही नहीं ख़ुद अपने मज़हबे ना मुहज़्ज़ब में कच्चा पन है जब ज़ाती व अताई का फ़र्क उठा दिया फिर अहकाम में फ़र्क कैसा सबका यकसां शिर्क होना लाज़िम। *(अल अमनो वल उला, स. 170)*

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 23/24)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

17/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*आयाते क़ुरआनिया की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 06*
*आयत नंबर 06*
*وَمَا رَمَيْتَ إِذ رَ مَيْتَ وَلَكِنَّ اللَّهَ رمى*
*(सूरए अनफ़ाल, आयत 17)*
*तर्जमा :*
और ऐ महबूब वह ख़ाक जो तुमने फेंकी, वह तुमने न फेंकी थी बल्कि अल्लाह ने फेंकी थी।
*(कन्ज़ुल ईमान)*
तफ़्सीर कबीर में है। तर्जमा, हजरत मुजाहिद ने फ़रमाया कि यौमे बद्र के बारे में सहाबा में मुख़्तलिफ़ राएं हो गईं, तो कोई कहता मैंने फलां को मारा तो दूसरा कहता मैंने फलां काफ़िर को क़त्ल किया तो अल्लाह तआला ने यह आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई जिसमें इरशाद हुआ कि तुम इस फ़तहो नुसरत को अपने क़ुव्वते बाज़ू का नतीजा न समझो, यह तो अल्लाह तआला की मदद से हासिल हुई है । रिवायत में है कि (हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा के साथ तशरीफ़ फ़रमा थे कि आपने लश्करे क़ुरैश को देखकर फ़रमाया ऐ अल्लाह यह क़ुरैश अपने सवारों और बहादुरों के साथ आ रहे हैं, यह तेरे रसूल को झुटलाते हैं। ऐ अल्लाह तूने जिस मदद का वादा फ़रमाया था वही मदद हमें अता फरमा उस वक़्त हज़रत जिब्रईल ने हाज़िरे बारगाह होकर अर्ज़ किया कि आप एक मुट्ठी मिट्टी ले लें। तो जब दोनों फ़ोजें मुक़ाबले पर आईं, हुज़ूर ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया मुझे एक मुट्ठी कंकरीली मिट्टी दे दो। फिर आपने उस मिट्टी को कुफ़्फ़ार की तरफ़ फेंक कर फ़रमाया शाहतिल वुजूह चेहरे बिगड़ जाएं। (आपकी फेंकी हुई मिट्टी) तमाम मुश्रेकीन की आँखों में पहुँच गई और वह आँख मलते रहे इस तरह वह हार गए।
*(तफ़्सीरे कबीर, स. 466/5)*
तफ़सीर नूरुल इरफ़ान में है। इससे मालूम हुआ कि महबूबों का फेअल रब का फेअल होता है और मोमिन ख़ुदाई ताक़त से काम करता है कि उसके हाथ पांव में रब की ताक़त होती है।
*(तफ़्सीर नुरुल इरफ़ान, स. 284)*
इससे मालूम हुआ कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जो ताक़तो क़ुव्वत अता फ़रमाई है कायनात में किसी को हासिल नहीं। ख़्याल करें कि एक मुट्ठी मिट्टी वहां मौजूद सारे कुफ़्फ़ारो मुश्रिकीन की आँख में पहुँच गई यह यक़ीनन इख़्तियारे मुस्तफ़ा की खुली दलील है।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 15/16)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

16/05/2025

*इख़्तियारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*
*आयाते क़ुरआनिया की रौशनी में*
*पोस्ट नंबर 05*
*आयत नंबर 05*
*يَأْمُرُهُمْ بِالْمَعْرُوفِ وَیَنْھٰهُمْ عَنِ الْمُنْكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ الطَّیِبٰتِ ويُحَرِّمُ عَلَيْهِمُ الْخَبٰئِثََ وَیَضَعُ عَنْھُمْ اِصْرَھُمْ وَالْأَغْلٰلَ الَّتِي كَانَتْ عَلَيْهِمْ*
*(सूरतुल अअराफ़, आयत नं. 157)*
*तर्जमा*
वह उन्हें भलाई का हुक्म देगा और बुराई से मना फ़रमाएगा और सुथरी चीजें उनके लिये हलाल फ़रमाएगा और गन्दी चीजें उन्हें हराम फ़रमाएगा और उन पर से वह बोझ और गले के फन्दे जो उन पर थे उतारेगा।
*(कन्ज़ुल ईमान)*
अल्लामा ख़ाज़िन इस आयते करीमा की तफ़सीर में फ़रमाते हैं।
यानी अल्लाह तआला के इरशाद *يَأْمُرُهُمْ بِالْمَعْرُوف*
के मअना यह हैं कि वह अल्लाह पर ईमान लाने और उसकी वहदानियत का हुक्म देंगे और बुराइयों से रोकेंगे यानी अल्लाह के साथ शिर्क करने से मना करेंगे और जो पाकीज़ा चीज़ें उन पर तौरेत में हराम र्थी उन्हें यह नबी अपनी उम्मत पर हलाल फ़रमाएंगे जैसे ऊंट का गोश्त और बकरी, भेड और गाय की चरबी। (यह चीजें बनी इसराईल (यहूदियों) पर हराम थीं, मगर हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उम्मते मुहम्मदिया पर हलाल फ़रमा दीं) और उन पर गन्दी चीज़ें हराम फ़रमाईं।
हजरत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा फ़रमाते हैं. इससे मुराद मुरदार, ख़ून और ख़िन्ज़ीर का गोश्त है और कहा गया है कि इससे मुराद वह तमाम चीज़ें हैं जिनसे तबीअत घिन करे और नफ़्स ना पसन्द करे।
*(तफ़्सीरे ख़ाज़िन, जि. 2. स. 258)*
हकीमुल उम्मल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार ख़ान साहब नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, यानी जो हलाल व तैय्यिब चीज़ें बनी इसराईल पर उनकी ना फ़रमानी की वजह से हराम हो गईं थीं वह नबिय्ये आख़िरुज़्ज़मां सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उन्हें. हलाल फ़रमा देंगे और ख़बीस व गन्दी चीज़ों को हराम फ़रमाऐंगे। ख़याल रहे कि ख़ुदा ने सिर्फ़ चन्द चीज़ों को हराम फ़रमाया सुअर, मुरदार वग़ैरह, बाक़ी तमाम ख़बाइस हुज़ूर ने हराम फ़रमाए। कुत्ता, बिल्ली वग़ैरह। (और) वह रसूल उन ख़बीस व गन्दी चीज़ों को हराम करेंगे जिनमें से बाज पिछली शरीअतों में हलाल थीं जैसे शराब वग़ैरह। मालूम हुआ कि रब ने हुज़ूर को हराम व हलाल फ़रमाने का इख़्तियार दिया है। यहाँ हराम फ़रमाने वाला हुज़ूर को क़रार दिया।
*(तपसीर नूरुल इरफ़ान, स. 270)*
इस आयते करीमा और तफ़्सीरी इबारात से पूरी तरह ज़ाहिर हो गया कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुकम्मल तशरीई इख़्तियारात हासिल हैं कि जिन चीज़ों को चाहें अपनी उम्मत पर हलाल फ़रमा दें और जिन चीज़ों को चाहें हराम फ़रमा दें।

*ان شاءاللہ* *जारी रहेगा*
*(इख़्तियारे मुस्तफ़ा हिंदी पेज 14/15)*

*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
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