Shivam Kasaundhan

Shivam Kasaundhan पूर्व जिला संयोजक
ABVP

बधाई... भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश "बलोचिस्तान" का जन्म होने जा रहा है............😊
09/05/2025

बधाई...

भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश "बलोचिस्तान" का जन्म होने जा रहा है............😊

22 April: मोदी को बता देना 07 May: मोदी ने बता दिया Shivam Kasaundhan
07/05/2025

22 April: मोदी को बता देना
07 May: मोदी ने बता दिया
Shivam Kasaundhan

🌳 संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं🌳प्रथम: अपना फल स्वयं दे देते हैं,🍎जैसे:- सेब, आम, अमरुद, केला इत्यादि.🌿द्विती...
14/09/2024

🌳 संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं

🌳प्रथम: अपना फल स्वयं दे देते हैं,
🍎जैसे:- सेब, आम, अमरुद, केला इत्यादि.

🌿द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं,
🥔जैसे:- आलू, अदरक, प्याज इत्यादि.

🍑जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं.

🥕किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं.

☝️ठीक इसी प्रकार… जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है.

☝️वही दूसरी ओर… जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है, अर्थात् समय रहते ही भुला दिये जाते है.

प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती है, बस समझने, सोचने और कार्य में परिणित करने की बात है..✍️🏾

दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल  #भाजपा के राष्ट्रीय सदस्यता अभियान 2024 के अंतर्गत अपनी सदस्यता का पुनः नवीनीकरण* किया।...
03/09/2024

दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल #भाजपा के राष्ट्रीय सदस्यता अभियान 2024 के अंतर्गत अपनी सदस्यता का पुनः नवीनीकरण* किया।

Shivam Kasaundhan

 #बांग्लादेश के नव नियुक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री मो. यूनुस को राहुल गांधी ने आज जब ट्वीट कर बधाई संदेश दिया तो बांग्लाद...
12/08/2024

#बांग्लादेश के नव नियुक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री मो. यूनुस को राहुल गांधी ने आज जब ट्वीट कर बधाई संदेश दिया तो बांग्लादेश के अखबार, ब्लिट्ज़ लाइव के संपादक सलाहउद्दीन शोएब चौधरी ने राहुल के उस ट्वीट को, राहुल को संबोधितअपने एक बहुत गंभीर संदेश के साथ रिट्वीट किया। राहुल के राजनीतिक पाखंड की नकाब नोंचते हुए उन्होंने लिखा कि.....

"हां, मैं जानता हूं कि आप देश को नव-तालिबान राज्य में बदलकर बांग्लादेश को अस्थिर करने और उसके बाद भारत को अस्थिर करने और नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने की अपनी गुप्त साजिश की सफलता का जश्न मना रहे हैं। आपने अभी तक लंदन में बीएनपी नेता तारिक रहमान के साथ अपनी गुप्त बैठक के बारे में मेरी जानकारी का जवाब नहीं दिया है। इसके अलावा आपने बांग्लादेश में चल रहे हिंदू उत्पीड़न के बारे में एक शब्द भी अपने संदेश में शामिल नहीं किया है। क्यों? आपके लिए हिंदू जीवन कोई मायने नहीं रखता, है ना?"

सच लिखने, बोलने और कहने के जिस अदम्य साहस का परिचय आज बांग्लादेश के अखबार, ब्लिट्ज़ लाइव के संपादक सलाहउद्दीन शोएब चौधरी ने दिया है, उनका वो साहस भारत के उन नेताओं के मुंह पर थप्पड़ है, जो बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के नरसंहार पर अपने झूठ का पर्दा डालने में जुटे हैं।

कल कैसा हो सकता यह इस तस्वीर से झलक रहा है। बांग्लादेश की यह तस्वीर झकझोर कर रख देती है। अत्याचार की सभी सीमाए पार हो चु...
11/08/2024

कल कैसा हो सकता यह इस तस्वीर से झलक रहा है। बांग्लादेश की यह तस्वीर झकझोर कर रख देती है। अत्याचार की सभी सीमाए पार हो चुकी है। महिलाओं के साथ दिन दहाड़े पंथ देख कर दुष्कर्म किए जा रहे है और अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों को, घरों को आंदोलन के नाम पर जलाया जा रहा है। यही कुछ भारत की राजधानी दिल्ली में तथाकथित CAA विरोधी आंदोलन के नाम पर देखने को मिला था। खुशनसीब है हम सभी की ऐसे हालात कई कट्टरपंथियों द्वारा प्रयासों के बाद भी भारत में नहीं पनप पाए। हम सभी भारतीय अपने मित्र देश और उसके नागरिकों के दर्द को समझ सकते है। सही समय है हम पड़ोसी देश में अल्पसंख्यक हिंदू कैसे हुए उसको समझे और अपने देश में सभी प्रकार के विभाजनकारी षड्यंत्रों को एकता के भाव से ध्वस्थ करे।

06/08/2024
06/08/2024
हुए सनातन पुण्यों से, इसको मत अभिशाप करो।उठो हिन्दुओं शस्त्र उठाओ, अपनी रक्षा आप करो।। बजरंग बली की जय 💐🙏
06/08/2024

हुए सनातन पुण्यों से, इसको मत अभिशाप करो।
उठो हिन्दुओं शस्त्र उठाओ, अपनी रक्षा आप करो।। बजरंग बली की जय 💐🙏

 #अधूरी आजादी@कॉपीराइट💐सन् 1947 में भारत का विभाजनजो हुआ उसे 'स्वतंत्रता दिवस' कहनाथोड़ा अटपटा ही लगता है।ढूंढना चाहिए क...
17/06/2024

#अधूरी आजादी
@कॉपीराइट💐

सन् 1947 में भारत का विभाजन
जो हुआ उसे 'स्वतंत्रता दिवस' कहना
थोड़ा अटपटा ही लगता है।

ढूंढना चाहिए कि यह कौन
से नंबर का विभाजन था।

24वां या 25वां विभाजन ?

दरअसल अंग्रेजों,फ्रांसीसियों,
पुर्तगालियों और मुगलों द्वारा
इससे पहले किए गए 'भारत
विभाजन' को लोग भूलते गए।

1947 के पहले किए गए विभाजन के
कई कारणों में से एक कारण यह रहा
कि अंग्रेज नहीं चाहते थे कि स्वतंत्रता
संग्राम में भारतीयों की जनशक्ति बढ़े।

इस संग्राम से उन्होंने भारत के
कई बड़े भू-भाग को काट दिया।

इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है कि पिछले
2,500 वर्षों में भारत पर यूनानी,यवन,हूण,
शक,कुषाण,सिरयन,पुर्तगाली,फ्रेंच,डच,अरब,
तुर्क,तातार,मुगल और अंग्रेजों ने आक्रमण
किए हैं।

कहीं पर भी यह दर्ज नहीं है कि अफगानिस्तान,
पाकिस्तान,म्यांमार,श्रीलंका,नेपाल,तिब्बत,भूटान,
पाकिस्तान,मालदीव या बांग्लादेश पर आक्रमण किया।

'भारतवर्ष के जनपदों या रियासतों पर
आक्रमण किया गया' ऐसा लिखा दर्ज है।

1857 के पहले भारत का क्षेत्रफल
83 लाख वर्ग किमी था।

वर्तमान भारत का क्षेत्रफल लगभग
33 लाख वर्ग किमी से थोड़ा ही कम है।

पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख
वर्ग किमी बनता है।

किसे कहते हैं अखंड भारत ?

आज जिसे हम अखंड भारत कहते हैं वह
पहले कभी नाभि खंड,फिर अजनाभखंड
और बाद में भारतवर्ष कहा जाने लगा।

यह क्षेत्र 16 महाजनपदों में बंटा हुआ था।

हालांकि सभी क्षेत्रों के राजा अलग-अलग
होते थे लेकिन कहलाते सभी भारतवर्ष के
महाजनपद थे।

आज इस संपूर्ण क्षेत्र को अखंड भारत
इसलिए कहा जाता है,क्योंकि अब यह
खंड-खंड हो गया है।

कैसे बना भारत ?

प्राचीनकाल में संपूर्ण धरती को आर्यों ने
7 द्वीपों में बांट रखा था।

यथाक्रम- जम्बू,प्लक्ष,शाल्मली,कुश,क्रौंच,
शाक एवं पुष्कर।

इसमें से जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।

अनुमानित रूप से लगभग 9057 ईसा पूर्व
जम्बूद्वीप के प्रथम राजा प्रथम स्वायंभुव मनु थे।

बाद में उनके पुत्र राजा
प्रियव्रत इसके शासक बने।

राजा प्रियवृत के बाद अग्नीन्ध्र
ने शासन भार संभाला।

अग्नीन्ध्र ने जम्बूद्वीप को 9 खंडों में बांटकर
अपने अलग-अलग पुत्रों को इन 9 खंडों का
राजा बना दिया। ये 9 खंड हैं- इलावृत,भद्राश्व,
किंपुरुष,नाभि,हरि,केतुमाल,रम्यक,कुरु और
हिरण्यमय।

ये सभी खंड उनके पुत्रों के
नाम पर ही आधारित थे।

अग्नीन्ध्र ने अपने पुत्र नाभि को जो स्थान
दिया था उसे नाभि खंड कहा गया।

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा
हुआ उसका नाम ऋषभ था।

ऋषभ के पुत्र भरत और बाहुबली थे।

उन्होंने भरत को राज्य सौंप दिया तब
इस नाभि खंड का नाम #भरत के नाम
पर #भारतवर्ष पड़ा,क्योंकि महान चक्रवर्ती
सम्राट भरत ने ही इस संपूर्ण नाभि खंड को
एकछत्र शासन देकर न्याय,धर्म और
राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की थी।

भरत ने नाभि खंड के संपूर्ण महाजनपदों
को अपने अधीन रखकर शासन किया था।

चक्रवर्ती सम्राट भरत के बाद कालांतर
में भारतवर्ष के सबसे बड़े शासक हुए
#वैवस्वत मनु।

वैवस्वत मनु के बाद ययाति और
उनके 5 पुत्र यदु,कुरु,पुरु,द्रुहु और
अनु ने शासन किया।

फिर राजा हरिशचन्द्र,राजा रामचन्द्र,राजा
सुदास,संवरण पुत्र कुरु,राजा दुष्यंत और
शकुंतला के पुत्र भरत,राजा युधिष्ठिर,महापद्म,
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य,सम्राट अशोक,सम्राट
विक्रमादित्य,चन्द्रगुप्त द्वितीय,राजा भोज
और हर्षवर्धन ने एकछत्र राज किया।

ये सभी चक्रवर्ती कहलाए।

हर्षवर्धन के बाद भारत का पतन होने लगा।

प्राचीन भारतवर्ष की सीमा :

पुराणों के अनुसार समुद्र के उत्तर तथा
हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है।

इसका विस्तार 9 हजार योजन है।

इसमें कुल 7 पर्वत हैं- महेन्द्र,मलय,सह्य,
शुक्तिमान,ऋक्ष,विंध्य और पारियात्र।

इसमें चतुर्दिक लवण सागर स्थित है।

संपूर्ण भारत के मुख्यत: 9 खंड हैं- इन्द्रद्वीप,
कसेरु,ताम्रपर्ण,गभस्तिमान,नागद्वीप,सौम्य,
गन्धर्व और वारुण तथा यह मलय समुद्र से
घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।

इस संपूर्ण भारत में कुभा (काबुल नदी),क्रुगु
(कुर्रम),सिन्धु,सरस्वती,शुतुद्री(सतलज),
वितस्ता(झेलम),चन्द्रभागा,वेद,स्मृति,नर्मदा,
सुरसा,तापी,परुष्णी(रावी),निर्विन्ध्या,गोमती
(गोमल),गोदावरी,भीमरथी,गंगा,यमुना,कृष्णवेणी,
कृतमाला,ताम्रपर्णी,त्रिसामा,आर्यकुल्या,ऋषिकुल्या,
कुमारी,ब्रह्मपुत्र,कावेरी आदि नदियां जिनकी सहस्रों
शाखाएं और उपनदियां हैं।

वर्तमान संदर्भ के अनुसार इसकी सीमाएं
हिन्दूकुश पर्वतमाला (ईरान के कुछ हिस्से
और संपूर्ण अफगानिस्तान)से लेकर अरुणाचल
और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैली हैं
तो दूसरी ओर अरुणाचल से लेकर इंडोनेशिया
तक और पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर अरब की
खाड़ी तक फैली है जिसके अंतर्गत ईरान के
कुछ हिस्से,अफगानिस्तान,पाकिस्तान,हिन्दुस्थान,
बांग्लादेश,नेपाल,तिब्बत,भूटान,म्यांमार,श्रीलंका,
मालद्वीप,थाईलैंड,मलेशिया,इंडोनेशिया,कंबोडिया,
वियतनाम,लाओस तक आते हैं।

हालांकि यह शोध का विषय हो सकता
है कि कौन से हिस्से नहीं आते हैं।

महाजनपदों में बंटा भारत :

प्राचीनकाल में संपूर्ण भारत महाजनपदों
में बंटा हुआ था।
प्रत्येक महाजनपद के अंतर्गत जनपद और
उप-जनपद होते थे।
ये महाजनपद आपस में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहते थे। जिस भी राजा का संपूर्ण भारत पर एकछत्र राज हो जाता था उसे चक्रवर्ती सम्राट मान लिया जाता था। ये जनपद कालांतर में छोटे-बड़े होते रहे लेकिन सभी मिलकर भारतवर्ष ही कहलाते थे जिनका केंद्र कभी अयोध्या, कभी अवंती, कभी मथुरा, कभी हस्तिनापुर, कभी तक्षशिला तो कभी पाटलीपुत्र रहा।

राम के काल 5114 ईसा पूर्व में 9 प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप-जनपद होते थे। ये 9 इस प्रकार हैं- 1. मगध, 2. अंग (बिहार), 3. अवंती (उज्जैन), 4. अनूप (नर्मदा तट पर माहिष्मती), 5. सूरसेन (मथुरा), 6. धनीप (राजस्थान), 7. पांडय (तमिल), 8. विंध्य (मध्यप्रदेश) और 9. मलय (मलाबार)।

महाभारत काल 3112 ईसा पूर्व में 16 प्रमुख महाजनपद होते थे, जो इस प्रकार हैं- 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंती, 15. गांधार (अफगानिस्तान) और 16. कंबोज (अफगानिस्तान)।

प्राग्ज्योतिष (असम), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द (अफगानिस्तान), हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू (पाकिस्तान), कैकेय (पाकिस्तान), गंधार, कम्बोज (अफगानिस्तान), वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र (पाकिस्तान), सिन्ध (पाकिस्तान), सौवीर सौराष्ट्र समेत सिन्ध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि भारतवर्ष के जनपद कहलाते थे।

* अब सवाल यह उठता है कि एक धर्म और संस्कृति को मानने वाला यह संपूर्ण भरतखंड कैसे और कब खंड-खंड हो गया? तो आओ जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...

अफगानिस्तान;

गंधार और कंबोज के कुछ हिस्सों को मिलाकर अफगानिस्तान बना। कंबोज का विस्तार हिन्दूकुश पर्वतमाला में ईरान से लेकर कश्मीर के राजौरी (राजापुर) तक था। गांधार के कुछ हिस्से अफगानिस्तान और कुछ पाकिस्तान के पेशावर में मिलते हैं। गांधार के दो प्रमुख नगर हैं- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। उक्त संपूर्ण क्षेत्र में हिन्दूशाही और पारसी राजवंशों का शासन रहा। बाद में यहां बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ और यहां के राजा बौद्ध हो गए। 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया।

हालांकि बाद में फिर से हिन्दूशाही राजाओं ने अपने राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया था। लेकिन हिन्दूशाही वंशी राजाओं की महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया। आक्रमणकारियों के कारण सन् 1071 तक हिन्दूशाही राजाओं का राज्य हमेशा के लिए समाप्त हो गया और वहां पर खलीफाओं का राज चलने लगा। हिन्दू राजाओं को 'काबुलशाह' या 'महाराज धर्मपति' कहा जाता था। इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल, आनंदपाल, त्रिलोचनपाल, भीमपाल आदि उल्लेखनीय हैं। इन राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिन्धु नदी पार करके भारत में नहीं घुसने दिया। सन् 843 ईस्वी में कल्लार नामक राजा ने हिन्दूशाही की स्थापना की थी।

बाद में 6 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर उपगण स्थान अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था।

अफगानिस्तान नाम का विशेष प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासनकाल (1747-1773) में ही हुआ। 1834 में एक प्रकिया के तहत 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात राजनीतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गए। 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी।

#सिन्ध (पाकिस्तान);

7वीं सदी के मध्य में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कई क्षेत्र हिन्दू राजाओं के हाथ से जाते रहे। लगभग 712 में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बलूच पर कई अभियानों का सफल नेतृत्व किया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया। इस आक्रमण के दौरान सिन्ध पर हिन्दू राजा दाहिर का राज था। राजा दाहिर (679 ईस्वी) और उनकी पत्नियां और पुत्रियां अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर शहीद हो गए। सिन्ध भी हिन्दू राजाओं के हाथ से जाता रहा।

इसके बाद मुस्लिम आक्रांताओं ने धीरे-धीरे लगातार भारत पर आक्रमण कर भारत में अपने शासन का विस्तार किया। 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सुबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। उसके शासन को विस्तार दिया उसके पुत्र महमूद गजनवी ने।

#पंजाब और मुल्तान :

महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए। उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। महमूद ने सिंहासन पर बैठते ही पहले हिन्दूशाहियों के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया। उसने सन् 1001 में राजा जयपाल को हराया, फिर 1009 में आनंदपाल को हराया। इसके बाद वह मुल्तान और पंजाब को तहस-नहस करने के लिए निकल पड़ा। अफगान अभियान की लड़ाइयों में पंजाब पर अब गजनवियों का पूर्ण अधिकार हो गया। इसके बाद मुल्तान की बारी आई।

इसके बाद के आक्रमणों में उसने मुल्तान, लाहौर, नगरकोट और थानेश्वर तक के विशाल भू-भाग में खूब मारकाट की तथा बौद्ध और हिन्दुओं को जबर्दस्ती इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया। फिर सं. 1074 में कन्नौज के विरुद्ध युद्ध हुआ था। उसी समय उसने मथुरा पर भी आक्रमण किया और उसे बुरी तरह लूटा और वहां के मंदिरों को तोड़ दिया। उस वक्त मथुरा के समीप महावन के शासक कुलचंद के साथ उसका युद्ध हुआ। कुलचंद ने उसके साथ भयंकर युद्ध किया। मथुरा पर उसका 9वां आक्रमण था। उसका सबसे बड़ा आक्रमण 1026 ई. में काठियावाड़ के सोमनाथ मंदिर पर था। देश की पश्चिमी सीमा पर प्राचीन कुशस्थली और वर्तमान सौराष्ट्र (गुजरात) के काठियावाड़ में सागर तट पर सोमनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर है। उसका अंतिम आक्रमण 1027 ई. में हुआ।

#बलूचिस्तान;

बलूचिस्तान भारत के 16 महा-जनपदों में से एक जनपद संभवत: गांधार जनपद का हिस्सा था। प्राचीन इतिहास अनुसार अफगानी, बलूच, पख्तून, पंजाबी, कश्मीरी आदि पश्‍चिम भारत के लोग पुरु वंश से संबंध रखते हैं अर्थात वे सभी पौरव हैं। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों में से पुरु का धरती के सबसे अधिक हिस्से पर राज था। 321 ईपू यह क्षेत्र चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राजय के अंतर्गत आता था। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिंधु घाटी की सभ्यता के अंतर्गत मेहरगढ़ का स्थान बलूचिस्तान के कच्ची मैदानी क्षेत्र में है। मेहरगढ़ की संस्कृति और सभ्यता को 7 हजार ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व के बीच फलीफूली सभ्यता माना जाता है।

वर्ष 711 में मुहम्मद-बिन-कासिम और फिर 11वीं सदी में महमूद गजनवी ने बलूचिस्तान पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के बाद बलूचिस्तान के लोगों को इस्लाम कबूल करना पड़ा। इसके बाद अगले 300 सालों तक यहां मुगलों और गिलजियों का शासन रहा। अकबर के शासन काल में बलूचिस्तान मुगल साम्राज्य के अधीन था। मुगल काल में इसकी अधीनता बदलती रही।

बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन 1666 में स्थापित मीर अहमद के कलात की खानत को अपना आधार मानता है। मीर नसीर खान के 1758 में अफगान की अधीनता कबूल करने के बाद कलात की सीमाएं पूरब में डेरा गाजी खान और पश्चिम में बंदर अब्बास तक फैल गईं। ईरान के नादिर शाह की मदद से कलात के खानों ने ब्रहुई आदिवासियों को एकत्रित किया और सत्ता पर काबिज हो गए। प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) के बाद अंग्रेंजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया। वर्ष 1876 में रॉबर्ट सैंडमेन को बलूचिस्तान का ब्रिटिश एजेंट नियुक्त किया गया और 1887 तक इसके ज्यादातर इलाके ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए।

अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को 4 रियासतों में बांट दिया- कलात, मकरान, लस बेला और खारन। 20वीं सदी में बलूचों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। 1939 में अंग्रेजों की राजनीति के तहत बलूचों की मुस्लिम लीग पार्टी का जन्म हुआ, जो हिन्दुस्तान के मुस्लिम लीग से जा मिली। दूसरी ओर एक ओर नई पार्टी अंजुमन-ए-वतन का जन्म हुआ जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गई। अंजुमन के कांग्रेस के साथ इस जुड़ाव में खान अब्दुल गफ्फार खान की भूमिका अहम थी। जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि 'कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी।' उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए। इसके अनुच्छेद 1 के मुताबिक 'पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है जिसका वजूद हिन्दुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है।'

अनुच्छेद 4 की इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था। इस तरह पाकिस्तान के इस गैर कानूनी कब्जे के खिलाफ बलूच अभी तक लड़ाई लड़ रहे हैं जिसमें लाखों निर्दोष बलूचों की पाकिस्तान की सेना ने हत्या कर दी। दरअसल, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के पहले बलूचिस्तान 11 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था।

#दिल्ली पर इस्लामिक शासन की स्थापना :

जिस समय मथुरा मंडल के उत्तर-पश्चिम में पृथ्वीराज और दक्षिण-पूर्व में जयचन्द्र जैसे महान नरेशों के शक्तिशाली राज्य थे, उस समय भारत के पश्चिम-उत्तर के सीमांत पर शाहबुद्दीन मुहम्मद गौरी (1173 ई.-1206 ई.) नामक एक मुसलमान सरदार ने महमूद गजनवी के वंशजों से राज्याधिकार छीनकर एक नए इस्लामी राज्य की स्थापना की थी। गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान पर किया, दूसरा आक्रमण 1178 ईस्वी में गुजरात पर किया। इसके बाद 1179-86 ईस्वी के बीच उसने पंजाब पर फतह हासिल की। इसके बाद उसने 1179 ईस्वी में पेशावर तथा 1185 ईस्वी में सियालकोट अपने कब्जे में ले लिया। 1191 ईस्वी में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड़ दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।

इसके बाद मुहम्मद गौरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में हुआ था। अबकी बार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए। इसके बाद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया जिसे चंदावर का युद्ध कहा जाता है। माना जाता है कि दूसरे युद्ध में कन्नौज नरेश जयचंद की मदद से उसने पृथ्वीराज को हरा दिया था। बाद में उसने जयचंद को ही धोखा दिया।

मुहम्मद गौरी ने अपना अभियान जारी रखा और अंतत: दिल्ली में गुलाम वंश का शासन स्थापित कर उत्तर भारत में इस्लामिक शासन की पुख्‍ता रूप में नींव डालकर वह पुन: अपने देश लौट गया। कुतुबुद्दीन ऐबक उसके सबसे काबिल गुलामों में से एक था जिसने एक साम्राज्य की स्थापना की जिसकी नींव पर दिल्ली सल्तनत तथा खिलजी, तुगलक, सैयद, लोदी, मुगल आदि राजवंशों की आधारशिला रखी गई थी। उक्त सभी ने भारत पर इस्लामिक शासन के विस्तार के लिए कई युद्ध लड़े, अत्याचार किए और समय-समय पर हिन्दू जनता का धर्मांतरण करवाया। हालांकि गुलाम वंश के शासकों ने तो 1206 से 1290 तक ही शासन किया, लेकिन उनके शासन की नींव पर ही दिल्ली के तख्‍त पर अन्य विदेशी मुस्लिमों ने शासन किया, जो लगभग ईस्वी सन् 1707 को औरंगजेब की मृत्यु तक चला।

#अंग्रेज, पुर्तगाली और फ्रांसीसी काल में भारत :

अखंड भारत पर अंग्रेजों, पुर्तगालियों और फ्रांसीसियों ने पहले व्यापार के माध्यम से अपनी पैठ जमाई फिर यहां के कुछ क्षेत्रों को सैन्य बल और नीति के माध्यम से अपने पुरअधीन करने का अभियान चलाया। अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने का अधिकार जहांगीर ने 1618 में दिया था। जहांगीर और अंग्रेजों ने मिलकर 1618 से लेकर 1750 तक भारत के अधिकांश हिन्दू रजवाड़ों को छल से अपने कब्जे में ले लिया था।

बंगाल उनसे उस समय तक अछूता था और उस समय बंगाल का नवाब था सिराजुद्दौला। बाद में 1757 उसे भी हरा दिया गया। इसके बाद कंपनी ने ब्रिटिश सेना की मदद से धीरे-धीरे अपने पैर फैलाना शुरू कर दिया और लगभग संपूर्ण भारत पर कंपनी का झंडा लहरा दिया। उत्तर और दक्षिण भारत के सभी मुस्लिम शासकों सहित सिख, मराठा, राजपूत और अन्य शासकों के शासन का अंत हुआ। अंग्रेजों ने अखंड भारत के अन्य क्षेत्र श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार आदि पर भी अपना अधिकार कर लिया। बाद में काल और परिस्थिति के अनुसार अंग्रेज, पुर्तगाली और फ्रांसीसियों ने धीरे धीरे अखंड भारत के अन्य हिस्सों से अपना अधिकार हटाते गए और इस तरह अखंड भारत के टूकड़े टूकड़े होते गए।

#नेपाल;

नेपाल को देवघर कहा जाता है। यह भी कभी अखंड भारत का हिस्सा हुआ करता था। भगवान श्रीराम की पत्नी सीता का जन्म स्थल मिथिला नेपाल में है। नेपाल के जनकपुर में सीता जन्म स्थल पर सीता माता का विशाल मंदिर भी बना हुआ है। भगवान बुद्ध का जन्म भी नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। यहां पर 1500 ईसा पूर्व से ही हिन्दू आर्य लोगों का शासन रहा है। 250 ईसा पूर्व यह मौर्यों के साम्राज्य का एक हिस्सा था। फिर चौथी शताब्दी में गुप्त वंश का एक जनपद रहा। 7वीं शताब्दी में इस पर तिब्बत का आधिपत्य हो गया था। 11वीं शताब्दी में नेपाल में ठाकुरी वंश के राजा राज्य करते थे। उनके बाद यहां पर मल्ल वंश का शासन रहा, फिर गोरखाओं ने राज किया। मध्यकाल के रजवाड़ों की सदियों से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता को समाप्त करने का श्रेय जाता है गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह को। राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1765 में नेपाल की एकता की मुहिम शुरू की और मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बड़े राज्यों को संगठित कर 1768 तक इसमें सफल हो गए। यहीं से आधुनिक नेपाल का जन्म होता है।

स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते समय-समय पर शरण लेते थे। तब अंग्रेजों ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधि कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतंत्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा पृथ्वी नारायण शाह को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में यहां तनाव था।

दरअसल, शाह राजवंश के 5वें राजा राजेंद्र बिक्रम शाह के शासनकाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल को भी कब्जे में लेने का प्रयास किया और सीमावर्ती कुछ इलाकों पर कब्जा भी कर लिया, लेकिन गोरखाओं ने 1815 में लड़ाई छेड़ दी। इसका अंत सुगौली संधि से हुआ। भारत में हुई 1857 की क्रांति में विद्रोहियों के खिलाफ नेपाल ने अंग्रेजों का साथ दिया था इसलिए उसकी स्वतंत्रता पर कभी आंच नहीं आई। 1923 में ब्रिटेन और नेपाल के बीच एक संधि हुई जिसके अधीन नेपाल की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया गया। 1940 के दशक में नेपाल में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की शुरुआत हुई। 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ और इस तरह राजशाही शासन के अंत की शुरुआत हुई। यह दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था लेकिन वर्तमान में वामपंथी वर्चस्व के कारण अब यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। नेपाल के राजवंश और भारत के राजवंशों का गहरा आपसी रिश्ता है।

#भूटान :

भूटान भी कभी भारतीय महाजनपदों के अंतर्गत एक जनपद था। संभवत: या विदेही जनपद का हिस्सा था। यहां वैदिक और बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज हैं। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर तिब्बत से ज्यादा जुड़ा हुआ है, क्योंकि यहां का राजधर्म बौद्ध है। तिब्बत कभी जम्बूद्वीप खंड का त्रिविष्‍टप क्षेत्र हुआ करता था, जो किंपुरुष का एक जनपद था। किंपुरुष भारतवर्ष के अंतर्गत नहीं आता है। जहां तक सवाल भूटान का है तो यह तिब्बत के अंतर्गत नहीं आता है तथा यह भौगोलिक रूप से भारत से जुड़ा हुआ है। भूटान संस्कृत के भू-उत्थान से बना शब्द है।

सिक्किम और भूटान को भी अंग्रेजों ने 1906 में स्वतंत्रता संग्राम से लगकर दिया और वहां पर अपनी एक प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट स्थापित कर दी थी। ब्रिटिश प्रभाव के तहत 1907 में वहां राजशाही की स्थापना हुई। 3 साल बाद एक और समझौता हुआ जिसके तहत ब्रिटिश इस बात पर राजी हुए कि वे भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे लेकिन भूटान की विदेश नीति इंग्लैंड द्वारा तय की जाएगी। 1947 में भारत आजाद हुआ और 1949 में भारत-भूटान समझौते के तहत भारत ने भूटान की वो सारी जमीन उसे लौटा दी, जो अंग्रेजों के अधीन थी। इस समझौते के तहत भारत ने भूटान को हर तरह की रक्षा और सामाजिक सुरक्षा का वचन भी दिया।

#म्यांमार;

म्यांमार कभी ब्रह्मदेश हुआ करता था। इसे बर्मा भी कहते हैं, जो कि ब्रह्मा का अपभ्रंश है। म्यांमार प्राचीनकाल से ही भारत का ही एक उपनिवेश रहा है। अशोक के काल में म्यांमार बौद्ध धर्म और संस्कृति का पूर्वी केंद्र बन गया था। यहां के बहुसंख्यक बौद्ध मतावलंबी ही हैं। मुस्लिम काल में म्यांमार शेष भारत से कटा रहा और यहां पर स्वतंत्र राजसत्ताएं कायम हो गईं। 1886 ई. में पूरा देश ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के अंतर्गत आ गया किंतु ब्रिटिशों ने 1935 ई. के भारतीय शासन विधान के अंतर्गत म्यांमार को भारत से अलग कर दिया।

1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन् 1935 में श्रीलंका व सन् 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दे दी।

#श्रीलंका;

'श्रीलंका' भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित एक बड़ा द्वीप है। यह भारत के चोल और पांडय जनपद के अंतर्गत आता था। 2,350 वर्ष पूर्व तक श्रीलंका की संपूर्ण आबादी वैदिक धर्म का पालन करती थी। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र को श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा और वहां के सिंहल राजा ने बौद्ध धर्म अपनाकर इसे राजधर्म घोषित कर दिया। बौद्ध और हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार यहां पर प्राचीनकाल में शैव, यक्ष और नागवंशियों का राज था। श्रीलंका के प्राचीन इतिहास के बारे में जानने के लिए सबसे महत्वपूर्ण लिखित स्रोत सुप्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ 'महावंस' है।

श्रीलंका के आदिम निवासी और दक्षिण भारत के आदिमानव एक ही थे। एक खुदाई से पता चला है कि श्रीलंका के शुरुआती मानव का संबंध उत्तर भारत के लोगों से था। भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा गुजराती और सिन्धी भाषा से जुड़ी है। ऐसी मान्यता है कि श्रीलंका को भगवान शिव ने बसाया था। बाद में उन्होंने इसे कुबेर को दे दिया था। कुबेर से रावण ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। ईसा पूर्व 5076 साल पहले भगवान राम ने रावण का संहार कर श्रीलंका को भारतवर्ष का एक जनपद बना दिया था।

श्रीलंका पर पहले पुर्तगालियों, फिर डच लोगों ने अधिकार कर शासन किया 1800 ईस्वी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने इस पर आधिपत्य जमाना शुरू किया और 1818 में इसे अपने पूर्ण अधिकार में ले लिया। अंग्रेज काल में अंग्रेजों ने 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत तमिल और सिंहलियों के बीच सांप्रदायिक एकता को बिगाड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता मिली।

#मलेशिया :

वर्तमान के मुख्‍य 4 देश मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया प्राचीन भारत के मलय प्रायद्वीप के जनपद हुआ करते थे। मलय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग मलेशिया देश के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तर में थाईलैंड, पूर्व में चीन का सागर तथा दक्षिण और पश्चिम में मलक्का का जलडमरूमध्य है। उत्तर मलेशिया में बुजांग घाटी तथा मरबाक के समुद्री किनारे के पास पुराने समय के अनेक हिन्दू तथा बौद्ध मंदिर आज भी हैं। मलेशिया अंग्रेजों की गुलामी से 1957 में मुक्त हुआ। वहां पहाड़ी पर बटुकेश्वर का मंदिर है जिसे बातू गुफा मंदिर कहते हैं। पहाड़ी पर कुछ प्राचीन गुफाएं भी हैं। पहाड़ी के पास स्थित एक बड़े मंदिर में हनुमानजी की भी एक भीमकाय मूर्ति लगी है। मलेशिया वर्तमान में एक मुस्लिम राष्ट्र है।

#सिंगापुर:

सिंगापुर मलय महाद्वीप के दक्षिण सिरे के पास छोटा-सा द्वीप है। हालांकि यह मलेशिया का ही हिस्सा था। कहते हैं कि श्रीविजय के एक राजकुमार, श्री त्रिभुवन (जिसे संगनीला भी कहा जाता है) ने यहां एक सिंह को देखा तो उन्होंने इसे एक शुभ संकेत मानकर यहां सिंगपुरा नामक एक बस्ती का निर्माण कर दिया जिसका संस्कृत में अर्थ होता है 'सिंह का शहर'। बाद में यह सिंहपुर हो गया। फिर यह टेमासेक नाम से जाना जाने लगा। सिंगापुर का हिन्दू धर्म और अखंड भारत से गहरा संबंध है। 1930 तक उसकी भाषा में संस्कृत भाषा के शब्दों का समावेश रहा। उनके नाम हिन्दुओं जैसे होते थे और कुछ नाम आज भी अपभ्रंश रूप में हिन्दू नाम ही हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत यह दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रमुख बंदरगाह शहर में तब्दील हो गया। दूसरे विश्‍वयुद्ध के समय 1942 से 1945 तक यह जापान के अधीन रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद सिंगापुर वापस अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया। 1963 में फेडरेशन ऑफ मलाया के साथ सिंगापुर का विलय कर मलेशिया का निर्माण किया गया। हालांकि विवाद और संघर्ष के बाद 9 अगस्त 1965 को सिंगापुर एक स्वतंत्र गणतंत्र बन गया।

#थाईलैंड:

थाईलैंड का प्राचीन भारतीय नाम श्‍यामदेश है। इसकी पूर्वी सीमा पर लाओस और कंबोडिया, दक्षिणी सीमा पर मलेशिया और पश्चिमी सीमा पर म्यांमार है। इसे सियाम के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीनकाल में यहां हिन्दू और बौद्ध धर्म और संस्कृति का एकसाथ प्रचलन था लेकिन अब यह एक बौद्ध राष्ट्र है। खैरात के दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया की सीमा के पास उत्तर में लगभग 40 किमी की दूरी पर यूरिराम प्रांत में प्रसात फ्नाम रंग नामक सुंदर मंदिर है। यह मंदिर आसपास के क्षेत्र से लगभग 340 मी. ऊंचाई पर एक सुप्त ज्वालामुखी के मुख के पास स्थित है। इस मंदिर में शंकर तथा विष्णु की अति सुंदर मूर्तियां हैं।

सन् 1238 में सुखोथाई राज्य की स्थापना हुई जिसे पहला बौद्ध थाई राज्य माना जाता है। लगभग 1 सदी बाद अयुध्या ने सुखाथाई के ऊपर अपनी प्रभुता स्थापित कर ली। सन् 1767 में अयुध्या के पतन के बाद थोम्बुरी राजधानी बनी। सन् 1782 में बैंकॉक में चक्री राजवंश की स्थापना हुई जिसे आधुनिक थाईलैँड का आरंभ माना जाता है। यूरोपीय शक्तियों के साथ हुई लड़ाई में स्याम को कुछ प्रदेश लौटाने पड़े, जो आज बर्मा और मलेशिया के अंश हैं। 1992 में हुए सत्तापलट में थाईलैंड एक नया संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया गया।

#इंडोनेशिया:

मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच हजारों द्वीपों पर फैले इंडोनेशिया में मुसलमानों की सबसे ज्यादा जनसंख्या बसती है। इंडोनेशिया का एक द्वीप है बाली, जहां के लोग अभी भी हिन्दू धर्म का पालन करते हैं। इंडोनेशिया के द्वीप, बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर यहीं पर है जिसे बोरोबुदुर कहते हैं और जो जावा द्वीप पर स्थित है। इस मंदिर की ऊंचाई 113 फीट है। यहीं पर विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर भी है जिसे प्रम्बानन मंदिर कहते हैं।

इंडोनेशिया में श्रीविजय राजवंश, शैलेन्द्र राजवंश, संजय राजवंश, माताराम राजवंश, केदिरि राजवंश, सिंहश्री, मजापहित साम्राज्य का शासन रहा। 7वीं, 8वीं सदी तक इंडोनेशिया में पूर्णतया हिन्दू वैदिक संस्कृति ही विद्यमान थी। इसके बाद यहां बौद्ध धर्म प्रचलन में रहा, जो कि 13वीं सदी तक विद्यमान था। फिर यहां अरब व्यापारियों के माध्यम से इस्लाम का विस्तार हुआ। 350 साल के डच उपनिवेशवाद के बाद 17 अगस्त 1945 को इंडोनेशिया को नीदरलैंड्स से आजादी मिली।

#कंबोडिया:

पौराणिक काल का कंबोज देश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिन्दू रहा और फिर बौद्ध हो गया। विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मंदिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्राय: शिव मंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था। माना जाता है कि प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्द-चीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। इन्हीं के नाम पर क

12/06/2024

Yogi Adityanath Cm Yogi Adityanath का आदेश-
कोई भी अस्पताल मरीज को वापस नहीं करेगा, अगर सरकारी अस्पताल में बेड नहीं है तो निजी अस्पताल में मरीज को भेजा जाएगा और पूरा खर्च राज्य सरकार करेगी-नवनीत सहगल ACS सूचना

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उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के आदेशानुसार सभी जिलाधिकारी व्हाट्सआप पर ऑन लाइन कर दिए गए हैं ।सीधे डीएम के व्हाट्सएप पर शिकायत कर सकते हैं .उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों के संपर्क...*
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