29/06/2025
#मैं_जाति_नहीं_सनातन_संस्कृति_का_वाहक_हुं
#हिन्दु_हिन्दुस्तान_की_अखण्डता_का_सिपाही_हुं
ना अहंकार से भरा, ना दंभ में चूर,
मैं हूँ ज्ञान और त्याग का सूरज, तेज में भरपूर।
जाति से नहीं, चरित्र से ऊँचाई मेरी होती है,
जहाँ अन्याय हो, वहाँ क्रांति मेरी होती है।
ना बाँधो मुझे जातिवाद की जंजीरों में,
मैं जन्मा हूँ जन-साम्य और राष्ट्र-नीति की तहरीरों में।
मैं वही हूँ जो दिनकर की लौ, राज नारायण की हुंकार,
श्री बाबू का न्याय, और गणेश दत्त की विचारधारा को एक साथ लेकर चलता है।
---
🛕 मैं वो हूँ...
जिसके रक्त में है मंगल पाण्डेय की बगावत,
1857 की पहली चिंगारी — जिसने फिरंगी सिंहासन झुलसाया।
विद्रोह मेरी नसों में बहता है,
जब अत्याचार उठता है, तब मेरा स्वर गरजता है।
---
🌱 मैं वो भी हूँ...
जिसने सहा नहीं, कहा —
स्वामी सहजानन्द सरस्वती की गूंज हूँ मैं,
जिसने “किसान का हक़, किसान को दो” कहकर
ज़मींदारी को ललकारा था,
धर्म के वस्त्र में क्रांति का सार उबारा था।
---
📖 मैं वो हूँ...
जो रामवृक्ष वेणीपुरी की शब्द-क्रांति से जन्मा हूँ,
जिनकी लेखनी में क्रांति, संस्कृति और अस्मिता एक साथ बहती थी।
उनकी भाषा, उनकी भाषा नहीं —
समाजिक समरसता अस्मिता की धड़कन थी।
---
मैं जाति नहीं, जागरण हूँ।
मैं परंपरा नहीं, परिवर्तन की चेतना हूँ।
मैं पुजारी नहीं, युग निर्माता हूँ।
मैं वो हूँ जो हल भी चलाता हूँ, और धार भी दिखाता हूँ,
कभी कलम से, कभी कर्म से,
अंधकार में दीप बन जाता हूँ।