23/07/2025
छत्तीसगढ़ म रिकिम -रिकिम के तिहार अउ हरेली ले ही तिहार मनाए के सुरुआत छत्तीसगढ़ म होथे। ननपन ले ही तिहार के उछाह तो तिहार के आए के आघू ले होवत रहिथे अउ उछाह काबर नइ रही भई अतेक किसम के तिहार तो हमरेच इंहा हे अउ हमर पूरा बछर ह नहाक जाथे तिहार मनावत।
अक्ती के दिन हमन छत्तीसगढ़ी नवा बछर मानथन।सिरतोन म ए ह किसानी के नवा बछर आए किसनहा मन इही दिन ले खेत खार के जम्मो बूता ल सुरु करथें।इही नवा बछर के हमर पहली तिहार हरय ‘हरेली’, पहली तिहार के पाछु तर्क करे जाथे कि अक्ति माने अक्षय तृतिया ल पुरा देस म मनाए जाथे अउ हरेली ल सिरिफ छत्तीसगढ़ म; एमा सब के अलग मत हो सकथे। हरेली के तिहार सिरिफ मनखे नइ मनाये एला मनाथे धरती,अगास,नदिया-नरवा,डोंगरी-पहाड़ी पूरा प्रकृति ह हरियर भुइंया संग उछाह मनाथे।
हरेली तिहार
सावन म भुइंया चारो डाहर हरियर सिंगार करे रहिथे।छत्तीसगढ़ अंचल म सावन महीना के अमावस्या के दिन हरेली के तिहार मनाये जाथे। ए दिन किसान मन अपन रोपा,बियासी के जम्मों बुता ला पूरा करके, अपन किसानी के अउजार नांगर,कुदारी आदि मन ल बने धो के पूजा ठउर म रखथें अउ फेर आभार स्वरुप इंकर पूजा करके चीला रोटी के भोग चढ़ाथे।सियान मन कहिथें कि ए हरेली के दिन बुरा शक्ति मन के बड़ प्रभाव रहिथें अउ इही प्रभाव ले गाँव ल बचाए बर ए दिन गाँव ल बइगा मन चारो मुड़ा ले तंत्र-मंत्र ले बांधथे।
आवव ए दिन बिसेस रूप ले करे जाने वाला आने कारज मन ल घलो जान लेथन।
गाय-बइला ल लोंदी खवाना
पानी बरसात के दिन म किसम किसम के रोग राइ होए के डर लागे रहिथे। मनखे ह तो अपन बर बारा उदिम कर डरथे फेर अमुक जीव ह कइसे करही।गाँव देहात मन म डॉक्टर बड़ मुश्किल ले मिलथे त हमर सियान मन ह जरी-बूटी खवा के गाय गरू मन ल रोग ले दूर राखय। परसा या खमार पत्ता म उसने दसमूल कांदा,सतावर, नुन संग पिसान के लोंदी बना के गाय बइला मन ल खवाये।
गेड़ी चघना
हरेली के तिहार अउ गेड़ी नइ चघेस त काए हरेली मनाएस। शहर म रहीके गेड़ी चलाए बर तो अड़बड़ दिन बाद सिखे हँव फेर मोला लागथे की गेड़ी चघे के बिसेस कारण घलो होही काबर की आघु के जमाना म पक्की सड़क नइ रिहिस। सबो डाहर माटी के सड़क होए के कारण पानी बरसात चिखला हो जावय इही सब ले बाचे बर गेड़ी चघ के आना जाना करत रिहिन होही।
त का माइलोगिन मन घलो गेड़ी चघय?हाँ गाँव के सियनहिन मन ल मैं गेड़ी चघत देखें हँव पाछु सरकार म पारंपरिक खेल ल बचाए बर जेन छत्तीसगढ़ ओलम्पिक करे रिहिन ओमा ता दाई-महतारी मन घलो गेड़ी चघे रिहिन।
लीम डारा अउ खीला ठोकना
लीम झाड़ के सबो जिनिस चाहे फर हो, पत्ता हो जरी हो सबो ह बड़ औषधिय गुण ले भरपुर रहिथे। हरेली के दिन म राउत भाई मन ह घरो घर लीम के डारा ल कपाट म खोंचथे अउ लोहरा मन ह घर के दूआरी म खीला ल ठोंकथे। हरेली के दिन बुरा शक्ति मन के प्रभाव ज्यादा रहिथे अइसे हमर सियान मन कहिथे अउ इही बुरा शक्ति घर भितरी झन आवय कहिके राउत भाई मन दुआरी लीम डारा ल खोंचथे फेर लीम के डारा ल खोंचे के मुख्य कारण कोनो रोग राइ घर म झन आए एकर बर एला करे जाथे।
ये महिना ह पानी बादर के बेरा रहिथे अउ बादल गरजे के संग गाज गिरे के डर घलो रहिथे। लोहा ह एक तड़ित चालक के रूप म बुता करथे ए वजह ले लोहा के खीला ल दुआरी म ठोंकत होही।
हरेली के दिन गाँव-गाँव म किसम-किसम के खेलकूद जेमा हमर पारंपरिक खेल गेड़ी दउड़, फुगड़ी,नरियर फेकउल के आयोजन करथें।पाछु सरकार ह हमर पारंपरिक खेल ल बचाए बर अउ अपन परंपरा ले जोड़े बर सुग्घर उदिम करें रिहिन।
बस्तर के अमुस तिहार अउ हरेली
प्रदेश म जम्मो डाहर हरेली तिहार मनाथे फेर बस्तर डाहर अमुस तिहार मनाए जाथे।दूनो के मान्यता अउ उद्देश्य म थोर बहुत ही अंतर हावय। सावन अमावस म मनाए जाए के कारन अमुस के अर्थ अमावस ले लगाए जाथे। बस्तर ल छोड़ के बाकि जगह हरेली म खेती-किसानी म उपयोग करे जाने वाला औजार के पुजा-पाठ संग गाँव ल बंधाए के परंपरा देखथन। बस्तर के अमुस तिहार म अच्छा फसल बर अउ फसल ल कोनो नजर-ढीट, रोग-राई झन लगय एकर बर अमुस तिहार मनाथे अउ अमुस खूँटा बनाके खेत म गड़ाथे।
अमुस खूँटा
तेंदू के लकड़ी म भेलवा के पत्ता ल अउ सतावर के पौधा ल लपेट के बनाए जाथे। मान्यता हे कि एकर ले फसल म कोनो रोग नइ होए। भेलवा ल भिलावा घलो कहे जाथे जेकर उपयोग समान्य रूप म आदिवासी मन ह हाथ गोड़ के पीरा के ईलाज बर करथें अउ अइसने ही सतावर के घलो औसधिय गुन हावय अउ एकर सुगंध ले किरा-मकोरा मन नइ आए।
अमुस खूँटा ल बढ़िया सजा के खेत के बिच म गाड़ियाए के परंपरा हे।
सावन अमावस या अमुस तिहार के दिन ले ही बस्तर म बिस्व प्रसिद्ध बस्तर दसहरा के सुरुआत होथे। पाट जात्रा के नेंग करके जंगल ले लकड़ी लानथे अउ 75 दिन चलने वाला ए दसहरा बर फुल रथ के निर्माण सुरू करथें।
नांगर बईला,रापा कुदारी
बईगा धर पुरा गाँव बंधाएंव।
चीला रोटी के भोग लगा,
देख अइसन हरेली मनाएंव।।
आलेख:- नागेश कुमार वर्मा
टिकरापारा रायपुर
#हरेली