Dakshin Kosal

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बस्तर के केसकाल घाटी में एक ऐसा मंदिर है, जहाँ इंसानों पर नहीं, बल्कि देवी-देवताओं पर मुकदमा चलता है। यहाँ भंगाराम स्वयं...
14/10/2025

बस्तर के केसकाल घाटी में एक ऐसा मंदिर है, जहाँ इंसानों पर नहीं, बल्कि देवी-देवताओं पर मुकदमा चलता है। यहाँ भंगाराम स्वयं न्यायाधीश हैं, दोषी देवताओं को खाई में फेंक दिया जाता है, और किसी को वहाँ की मिट्टी तक छूने की अनुमति नहीं।
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यह आलेख करवाचौथ के गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैदिक आयामों को उजागर करता है। इसमें केवल व्रत या रीति की बात नहीं, बल्क...
10/10/2025

यह आलेख करवाचौथ के गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैदिक आयामों को उजागर करता है। इसमें केवल व्रत या रीति की बात नहीं, बल्कि भारतीय परिवार, नारी और लोकजीवन की आत्मा का दर्शन है। करवा – मिट्टी का वह पात्र – यहाँ प्रतीक बनता है प्रेम, निष्ठा और जीवन के निरंतर प्रवाह का। लेख में वृंदावन के रसिक उपासकों, बिहारी के दोहों, ऋग्वैदिक “करक चतुर्थी” के मूल सूत्रों, सप्तमातृकाओं की परंपरा और लोकगीतों के माध्यम से यह बताया गया है कि करवाचौथ केवल “पति की दीर्घायु का व्रत” नहीं, बल्कि भारतीय समाज की पारिवारिक एकता और विश्वमानवता का उत्सव है।

यह आलेख यह भी दिखाता है कि लोकपरंपरा, जो जीवन से उपजी है, किसी भी शास्त्रीय परंपरा से अधिक प्रामाणिक है। मिट्टी के करवे, सात सुहागिनों की कथा, परिवार के रिश्तों की संवेदनशील भाषा, और स्त्री के भाव में बसे अटल सौभाग्य — ये सब मिलकर करवाचौथ को “भारतीय स्त्रीत्व और जीवन दर्शन का पर्व” बनाते हैं।
#करवाचौथ #करवा_चौथ_का_इतिहास #सप्तमातृका

संस्कृत में ‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिह्न’ - और इसी से शिवलिंग का अर्थ हुआ ‘शिव का प्रतीक’। शिवलिंग केवल पूजा करने का साधन नह...
08/10/2025

संस्कृत में ‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिह्न’ - और इसी से शिवलिंग का अर्थ हुआ ‘शिव का प्रतीक’। शिवलिंग केवल पूजा करने का साधन नहीं, बल्कि सृष्टि, पालन और संहार के शाश्वत चक्र का द्योतक है।
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग का आदि ओंकार है - जो निष्कल ब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल रूप नहीं, ऊर्जा का स्रोत है - वह ज्योति जो न आदि रखती है न अंत।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश - तीनों की सत्ता शिवलिंग में निहित है। ब्रह्मा उसके मूल में, विष्णु मध्य में और शिव उसके शिखर पर स्थित हैं। यही कारण है कि शिवलिंग को सृष्टि के संपूर्ण चक्र का प्रतीक कहा गया है।
महा शिवरात्रि इसी ज्योतिर्लिंग के प्रकट होने का उत्सव है - जब शिव ने स्वयं को प्रकाशस्तम्भ के रूप में प्रकट किया था।
शिवलिंग केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि एकता, चेतना और अनंत ब्रह्माण्ड की अनुभूति का प्रतीक है।
शिव ही ब्रह्माण्ड हैं, और ब्रह्माण्ड स्वयं शिव है -
“आकाशं लिंगमित्याहः, पृथ्वी तस्य पीठिका।”

भारतीयता केवल भाषा, वेश-भूषा या भौगोलिक सीमाओं से नहीं बनती, बल्कि उन मूल्यों से बनती है जो सहस्राब्दियों से इस भूमि की ...
07/10/2025

भारतीयता केवल भाषा, वेश-भूषा या भौगोलिक सीमाओं से नहीं बनती, बल्कि उन मूल्यों से बनती है जो सहस्राब्दियों से इस भूमि की आत्मा में बसते आए हैं। सत्य, दया, परोपकार, कर्तव्य और धर्म - ये वही सार्वभौमिक आदर्श हैं जो भारतीय संस्कृति के आधार हैं।

भारत ने हमेशा विविधता में एकता का संदेश दिया है। यहाँ धर्म का अर्थ ‘रिलिजन’ नहीं, बल्कि वह सार्वभौमिक व्यवस्था है जो समस्त सृष्टि को बांधे रखती है। यही कारण है कि भारत ने सहिष्णुता को अपनी पहचान बनाया - यहाँ हर विचार, हर मत, हर साधना का सम्मान हुआ।

भारतीय परम्परा सिखाती है कि सत्य और धर्म का साथ ही जीवन का परम लक्ष्य है। अन्याय के विरोध में खड़ा होना, मर्यादा का पालन करना और आध्यात्मिकता को जीवन में समाहित करना ही भारतीयता का सार है।
ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि समस्त चराचर जगत में विद्यमान है—यह भावना ही भारत को विश्व में अद्वितीय बनाती है।

यही भारतीयता का संदेश है - एकात्मता में अद्वैत का दर्शन, सहिष्णुता में शक्ति, और सत्य में जीवन का शाश्वत अर्थ।
#भारतीयता

अगर तुम्हारे अंदर दृढ़ विश्वास और अटूट हिम्मत है, तो कोई भी मुश्किल, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो, तुम्हारे सामने टि...
06/10/2025

अगर तुम्हारे अंदर दृढ़ विश्वास और अटूट हिम्मत है, तो कोई भी मुश्किल, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो, तुम्हारे सामने टिक नहीं सकती।
जीवन में बाधाएँ और कठिनाइयाँ तो आती रहेंगी, लेकिन जो व्यक्ति अपने लक्ष्य पर अडिग रहता है और हार नहीं मानता, वही असंभव को भी संभव बना देता है।

क्या आप जानते हैं कि खैरागढ़ को संगीत की धरती भी कहा जाता है?एशिया के सबसे बड़े संगीत विश्वविद्यालय — इंदिरा कला संगीत व...
05/10/2025

क्या आप जानते हैं कि खैरागढ़ को संगीत की धरती भी कहा जाता है?
एशिया के सबसे बड़े संगीत विश्वविद्यालय — इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय — की नींव इसी ऐतिहासिक खैरागढ़ रियासत में रखी गई थी। 1898 में रियासत का दर्जा पाने वाला यह क्षेत्र भले ही आकार में छोटा था, पर सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान में अद्वितीय रहा। महाराष्ट्र की सीमा से सटे होने के कारण यहाँ मराठी प्रभाव के साथ छत्तीसगढ़ी संस्कृति का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
राजा हरिसिंह और राजा वीरेंद्र बहादुर के दूरदर्शी नेतृत्व ने इस रियासत को कला, संगीत और शिक्षा का केंद्र बनाया — और यही खैरागढ़ को भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर अमर करता है।
#खैरागढ़रियासत #इंदिराकलासंगीतविश्वविद्यालय #दक्षिणकोसल #छत्तीसगढ़इतिहास #भारतीयसंगीत #राजपरंपरा

रानी दुर्गावती एक ऐसा नाम जिनके स्मरण मात्र से वीरता की भावना का ज्वार स्वतः उठने लगता है। ऐसी वीराङ्गना जिन्होंने मुगलो...
05/10/2025

रानी दुर्गावती एक ऐसा नाम जिनके स्मरण मात्र से वीरता की भावना का ज्वार स्वतः उठने लगता है। ऐसी वीराङ्गना जिन्होंने मुगलों को नाकों चने चबवा दिए। अपने शौर्य और पराक्रम से जिन्होंने इस्लामिक आक्रान्ताओं का प्रतिकार करते हुए उन्हें भारतीय नारी की शूरवीरता के समक्ष घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया। युध्दभूमि में साक्षात् चण्डी सा उग्र स्वरूप लेकर जिन्होंने मुगलिया दरिन्दों को गाजर-मूली की भाँति काट डाला।

कालिंजर के कीर्तिसिंह चन्देल की पुत्री के रुप में पाँच अक्टूबर 1524 ई. दुर्गाष्टमी की तिथि में जन्मी बेटी का नामकरण ही दुर्गावती किया गया। यथा नाम तथा गुण की उक्ति को उन्होंने गढ़ा मण्डला के नेतृत्व की बागडोर सम्हालने के बाद चरितार्थ किया। वे बाल्यकाल से ही बरछी,भाला,तलवार, धनुष ,घुड़सवारी और तैराकी में अव्वल थीं। साहस-शौर्य, बुध्दि एवं कौशल से प्रवीण दुर्गावती में राष्ट्रगौरव, आत्मसम्मान,स्वाभिमान,अस्मिता तथा हिन्दू-समाज संस्कृति-परम्पराओं के प्रति अनुराग कूट-कूट कर भरा हुआ था।

अपनी युवावस्था के समय जब उनके पिता शेरशाह सूरी से युध्द करते-करते घायल हो गए थे जिस कारण से उन्हें चिकित्सा के लिए महल में लाना पड़ा था। शेरशाह ने उचित अवसर जान किले पर आक्रमण के लिए घेराबन्दी कर दी,ऐसी स्थिति में प्रजा भयभीत एवं जौहर के लिए तैयार हो गई थी। किन्तु दुर्गावती ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए शेरशाह को कूटनीतिक सन्धि प्रस्ताव में उलझाए रखते हुए उसके विरुद्ध संघर्ष की पूरी तैयारी कर ली।

तत्पश्चात जब शेरशाह ने कायरतापूर्ण घात करने का प्रयत्न किया तो दुर्गावती ने उसका भरपूर जवाब दिया और बारूदी गोलों-आग से शेरशाह की अफगान सेना को परास्त कर दिया, तथा उसी हमले में बारूद के ढेर में शेरशाह सूरी के चीथड़े उड़ गए।सन् 1542 ई. में गोंडवाना साम्राज्य(गढ़ा मण्डला) के युवराज दलपतशाह से उनका विवाह 18 वर्ष की आयु में सम्पन्न हुआ।रानी की गोद में सन् 1544 ईस्वी में वीरनारायण के रुप में पुत्र ने किलकारियों की गूँज से मातृत्व को पुष्पित एवं पल्लवित किया।मगर काल की गति और विधि में कुछ और लिखा होने के कारण गम्भीर बीमारी के चलते सन् 1548 में दलपतिशाह का देहावसान हो गया।

उस समय वे मात्र 24 वर्ष की थीं,जब रानी के जीवन में आया वैधव्य का संकट किसी महाप्रलय से कम नहीं था। लेकिन रानी ने महाराज दलपतिशाह के वचनों को निभाने के लिए वीरनारायण को सिंहासन पर आरूढ़ कर राज्य के कुशल संचालन का दायित्व अपने कन्धों में ले लिया।

उनके राज्य में कुल 52 गढ़ थे,जिनकी प्रगति और उत्कर्ष के लिए वे प्रतिबध्द थीं। उस समय गोंडवाना (गढ़ा मण्डला) राज्‍य का विस्तार उत्तर में नरसिंहपुर, दक्षिण में बस्‍तर छत्‍तीसगढ़, पूर्व में संभलपुर (उड़ीसा) एवं पश्चिम में वर्धा (महाराष्‍ट्र) तक फैला था। रानी प्रजापलक ,कुशल रणनीतिज्ञ,लोकप्रिय तथा प्रकृति प्रेमी थी। उनके राज्य में अपार समृद्धि के साथ सभी में स्नेह-समन्वय था। वे अपनी प्रजा के लिए राज्य में भ्रमण कर नीतियाँ बनाने के साथ उनके कार्यान्वयन में रत रही आईं। उन्होंने अनेकों तालाब -बाँधो का निर्माण करवाया। कृषकों के लिए उन्होंने भू-दान,धातुदान,पशुपालन के लिए प्रेरित किया तथा उनकी समृद्धि के लिए वे सभी प्रयास किए जो उनके लिए आवश्यक था।

वर्तमान मध्यप्रदेश की संस्कार एवं न्याय राजधानी के तौर पर प्रसिध्द जबलपुर के इस स्वरूप के पीछे रानी दुर्गावती की विचार दृष्टि ही है। उन्होंने जबलपुर में रानी ताल, चेरी ताल, आधार ताल सहित कुल 52 तालाबों का निर्माण करवाया था। वे धर्मनीति के प्रति कितनी समर्पित थीं ,इसकी झलक उनके द्वारा निर्माण कराए गए अनेकों मंदिरों एवं धर्मशालाओं में स्पष्ट देखी जा सकती है। रानी दुर्गावती के राज्य में सुख-समृद्धि अपने चरमोत्कर्ष पर था, इसकी बानगी आईने-अकबरी में अबुल फजल द्वारा दर्ज की गई है- “दुर्गावती के शासन काल में गोंडवाना इतना समृद्ध था कि प्रजा लगान का भुगतान स्‍वर्ण मुद्राओं और हाथियों के रुप में करती थी।”

दलपतशाह की मृत्योपरान्त मालवा के मांडलिक ( शासक ) बाजबहादुर ने उनका राज्य हड़पने के उद्देश्य से 1555 से 1560 के बीच गढ़ा मण्डला पर आक्रमण किया। मगर युध्द मैदान में वह रानी दुर्गावती के आगे कहीं नहीं टिक सका। रानी ने उसे युध्द भूमि में परास्त कर जान बचाकर भागने के लिए विवश कर दिया। रानी के पराक्रम एवं उनके राज्य की समृद्धि के चर्चे सभी ओर ख्याति प्राप्त करने लगे। इसके साथ ही उनका जीवन चुनौतियों से भरा हुआ था।निजी जीवन का कष्ट, प्रजापालन व राज्य के कुशल संचालन के साथ शत्रुओं की गिध्द दृष्टि भी उनके राज्य पर बनी हुई थी। वे दूरदर्शी और कूटनीति के साथ युध्द संचालन एवं रणनीति बनाने में प्रवीण थी। उनकी सेना में 20000 घुड़सवार एक हजार हाथी दल के साथ-साथ बड़ी संख्या में पैदल सेना थी। उन्होंने अपनी सहायिका रामचेरी के नेतृत्‍व में ‘नारी वाहिनी’ का भी गठन किया था । भारतीय इतिहास में यह उनकी विचार दृष्टि -समता एवं नारी के शौर्य का अनुकरणीय उदाहरण है,जिसमें उन्होंने उसी भारतीय परम्पराओं के मूल्य को ग्रहण किया जो धर्म-ग्रन्थों एवं पूर्व परम्पराओं से प्राप्त थे।

रानी द्वारा बाजबहादुर को चारो खाने चित्त करने के बाद उस समय के क्रूर,बर्बर आतंकी अकबर ने रानी दुर्गावती के समक्ष उसकी आधीनता स्वीकार करते हुए उनके- प्रिय हाथी सरमन,सेनापति आधार सिंह को दरबार में भेजने का सन्देशा भिजवाया। किन्तु रानी दुर्गावती ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर हिन्दू समाज की अस्मिता और स्वाभिमान की पताका को गर्वानुभूति के साथ फहरने दिया।

उन्होंने पराधीनता के स्थान पर वीरता को चुना,और युध्द के लिए निडरतापूर्वक तैयार हो गईं।उनकी सेना की संख्या अकबर के मुकाबले भले ही कम थी,किन्तु उनका आत्मतेज, त्याग-बलिदान, साहस उससे लाख गुना बड़ा था। रानी दुर्गावती की प्रतिक्रिया से खिसियाए अकबर ने आसफ खाँ को युध्द के लिए भेजा मगर रानी दुर्गावती ने युध्द मैदान में उसे धूल चटा दिया,अन्ततोगत्वा उसे अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। उसने 23 जून 1564 को अपनी सम्पूर्ण ताकत के साथ पुनश्च आक्रमण किया । जबलपुर के समीप नरई नाला के किनारे रानी ने प्रतिकार करते हुए – मुगल सेना के छक्के छुड़ा दिए।वे जिस ओर से जाती उधर केवल संहार नृत्य करता था। उनके भय से शत्रु सेना भयक्रान्त थी। उनके दोनों हाथों में लहराती खड्ग केवल मुगलों के रक्त से प्यास बुझा रही थी।

24 जून 1564 को जब वे वीरतापूर्वक युध्द मैदान में शत्रुओं का संहार कर रही थीं,उसी वक्त शत्रु का एक तीर उनकी भुजा में आ लगा।क्षण भर विचलित हुए बिना उन्होंने वह तीर निकाल फेंका,तभी दूसरा तीर उनकी आँख में आ लगा। इतनी मर्मान्तक पीड़ा के बाद भी उन्होंने उस तीर को निकालने का यत्न किया,मगर उसकी नोंक आँख में ही धँसी रह गई। अब रानी जब तक सम्हल पाती तब तक तीसरा तीर उनकी गर्दन में आ लगा। रानी ने इस विकट परिस्थिति को देखते हुए समीप ही युध्दरत सेनापति आधार सिंह से अपनी गर्दन काटने का आग्रह किया। किन्तु जब आधार सिंह असमंजस में पड़ गए,तब उन्होंने अपनी वीरगति के लिए कटार निकालकर अपना आत्मोत्सर्ग कर दिया। रानी दुर्गावती के बलिदान के पश्चात चौरागढ़ में दो महीने बाद असफ खान से हुए युद्ध में वीरनारायण ने युध्द का मोर्चा सम्हाला,किन्तु सेना के अभाव में उन्होंने भी वीरगति प्राप्त की।

रानी दुर्गावती का वह आत्मबलिदान भारतवर्ष की उस शक्ति का बलिदान था जिसके आत्मोत्सर्ग ने हिन्दुओं के रक्त के कण-कण में वीरता की नव चेतना प्रवाहित कर दी। उनकी आयु कोई अधिक नहीं थी, वीरगति प्राप्त करने तक वे केवल चालीस वर्ष की ही थीं। किन्तु उन्होंने मुगलों के प्रतिकार की जो ज्वाला सुलगाई उसकी चिंगारी ने क्रूरता के भी वक्ष को चीर डाला।

इस युध्द पर इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ लिखते हैं कि – “दुर्गावती जैसी सत्-चरित्र और भली रानी पर हुआ अकबर का आक्रमण साम्राज्‍यवादी व न्‍याय संगत नहीं था।”

युध्द स्थल के समीप जबलपुर से कुछ ही किलोमीटर दूर बरेला गाँव में श्वेत पत्थरों से रानी दुर्गावती की समाधि बनी हुई है। यह समाधि उस वीराङ्गना की शौर्य-गाथा का जाज्वल्यमान अमर स्तम्भ है, जिसने अपने अभूतपूर्व साहस,त्याग,बलिदान का लोहा मनवाते हुए मुगलों को भारती नारी के उस स्वरूप से परिचित करवाया जिसे चण्डी कहते हैं।

रानी ने अपनी युध्द क्षमता व पारंगतता के माध्यम से इतिहास के पन्नों पर अमिट लकीर खींचते हुए देश-धर्म, प्रजा,स्वतन्त्रता के लिए किसी भी प्रकार की आधीनता को स्वीकार नहीं किया। बल्कि उन्होंने अपने शौर्य की टंकार और हुँकार से शत्रुओं को भयक्रान्त करते हुए मृत्यु की देवी का वरण कर स्वर्णाक्षरों से भारतीयता के गौरव नक्षत्र को सुशोभित किया है।

वास्तव में यदि भारतीयता के मर्म को समझना है-नारी शक्ति के शौर्य और उसकी सामाजिक-राजनैतिक प्रतिष्ठा के मानक बिन्दुओं को आत्मसात करना है तो रानी दुर्गावती उसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं।रानी दुर्गावती वीरता की परिभाषा- चेतना की पराकाष्ठा और सनातन हिन्दू संस्कृति की वेदोक्त ऋचाओं की शक्ति हैं,जिन्होंने दुर्गावती की अर्थवत्ता को भारतीयता की नस-नस में प्रवाहित कर दिया।

बस्तर दशहरा सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह परंपराओं और सामाजिक संवाद का जीवंत मंच भी है। इसी दौरान हमें पता लगता ...
04/10/2025

बस्तर दशहरा सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह परंपराओं और सामाजिक संवाद का जीवंत मंच भी है। इसी दौरान हमें पता लगता है मुरिया दरबार, जहाँ गांव के मांझी, मुखिया, कोटवार, चालकी जैसे प्रतिनिधि राजा या शासन के समक्ष अपनी बात रखते थे। यह दरबार जनता और शासक के बीच विश्वास और संवाद का माध्यम रहा है।

आज भी बस्तर दशहरा में मांझी की लाल पगड़ी और चालकी की नीली पगड़ी परंपरा की पहचान हैं। ये परंपरागत पद समाज और शासन को जोड़ने वाली कड़ी रहे हैं।
मुरिया दरबार हमें याद दिलाता है कि जन संवाद, भागीदारी और परंपरा ही बस्तर जैसे जनजातीय अंचल की असली शक्ति है।

#लोकपरंपरा #जनसंवाद

असंभव सिर्फ उस इंसान के लिए है जिसने कभी कोशिश ही नहीं की।यह वाक्य यह बताता है कि यदि इंसान प्रयास (Effort) करना ही छोड़...
04/10/2025

असंभव सिर्फ उस इंसान के लिए है जिसने कभी कोशिश ही नहीं की।
यह वाक्य यह बताता है कि यदि इंसान प्रयास (Effort) करना ही छोड़ दे, तभी चीजें असंभव लगती हैं। मेहनत (Hard Work), संघर्ष (Struggle) और लगन (Determination) से हर मुश्किल को जीता जा सकता है।

क्या इतिहास सिर्फ राजाओं-महाराजाओं और उनके युद्धों का है?या फिर असली इतिहास उस जनता का है जिसने अपनी लोककथाओं, लोकगीतों,...
03/10/2025

क्या इतिहास सिर्फ राजाओं-महाराजाओं और उनके युद्धों का है?
या फिर असली इतिहास उस जनता का है जिसने अपनी लोककथाओं, लोकगीतों, किंवदंतियों और साक्ष्यों से पूरे अंचल की स्मृति को संजोया?

बुंदेलखण्ड की धरती हमें यही सिखाती है –
जहाँ आल्हा की गाथा, कारसदेव की कहानियाँ, सती स्तंभ, लोकगीत, लोकनाट्य और लोकमूर्तियाँ असली इतिहास को जीवित रखते हैं।
ये साक्ष्य राजकीय शिलालेखों से भी अधिक विश्वसनीय हैं, क्योंकि इनमें जनजीवन की निष्ठा और सत्य बोलता है।

जानिए क्यों लोकसाक्ष्य (oral tradition, inscriptions, folk art, लोकगीत) लोकतांत्रिक भारत में इतिहास की नई दृष्टि बन सकते हैं।

इस दशहरे पर श्रीराम के आदर्श हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आग...
02/10/2025

इस दशहरे पर श्रीराम के आदर्श हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।
आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन हो।

🌸 आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸

#धर्मकीविजय #दशहरा2025

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