30/03/2024
"कुस्तुनतुनिया जरूर फतह होगा, उसका अमीर क्या ही अच्छा अमीर होगा, और वह लश्कर क्या ही अच्छा लश्कर होगा।" ये बातें (हदीसे पाक) रसूले अकरम मुहम्मद सल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सहाबा-ए-कराम से अपनी हयात में कही थीं। आज इस हदीस का जिक्र करने का मकसद बहुत ही खास है, दरअसल आज के दिन ही, 30 मार्च 1432 ई. को एड्रिन शहर में सुल्तान मुराद के महल में सुल्तान मुहम्मद फातेह की पैदाइश हुयी थी। तारीख में सुल्तान को कुस्तुन्तुनिया फतह करने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने महज 21 साल की उम्र में कुस्तुन्तुनिया को फतह करके उसे अपनी नयी दारुलहकूमत बना दिया था।
जिस साल सुल्तान महमद की पैदाइश हुयी वो साल कई मोजिज़ों से भरा हुआ था। उस साल उस्मानिया सल्तनत में घोड़ों ने काफी तादाद में जुड़वा बच्चे पैदा किये, और मिट्टी में इस कदर बरकत हुयी की तमाम दरख़्त अपने फल और मेवों की वजह से झुक चुके थे और उस साल की फसलों की पैदावार भी कई गुना ज्यादा हुयी।
29 मई 1453 का वो दिन था जिस दिन सुल्तान मोहम्मद फ़ातेह ने कुस्तुनतुनिया फतह कर लिया था। कुस्तुनतुनिया की फ़तेह सिर्फ एक शहर पर एक बादशाह की हुक्मरानी का खात्मा और दूसरे की हुक्मरानी का आगाज़ नहीं था। इस वाक्ये के साथ ही दुनिया की तारीख का एक अध्याय खत्म हुआ और दूसरे का आगाज़ हुआ। सुल्तान शहर फतह होने के बाद सफेद घोड़े पर अपने वज़ीरों और सरदारों के साथ आया सोफिया (Hagia Sophia) चर्च पहुंचे। मरकज़ी दरवाजे के करीब पहुंचकर वह घोड़े से नीचे उतरे और सड़क से एक मुट्ठी धूल लेकर अपनी पगड़ी पर डाल दी। उनके साथियों की आंखों से आँसू बहने लगे। 700 सालों की मुसलसल कोशिशों के बाद मुसलमान आखिरकार कुस्तुनतुनिया फतह कर चुके थे।
एक तरफ 27 ईसा पूर्व में कायम हुआ रोमन byzantine empire 1480 साल तक किसी न किसी रूप में बने रहने के बाद अपने अंजाम तक पहुंचा। तो दूसरी ओर सल्तनते उस्मानिया ने अपने बुलंदियों को छुआ और वह अगली चार सदियों तक तक तीन बार्रेअज़ामों (Continents), एशिया, यूरोप और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर बड़ी शान से हुकूमत करती रही।
शहर पर कब्जा जमाने के बाद सुल्तान ने अपनी दारुलहकूमत एड्रिन से कस्तुनतुनिया शिफ्ट कर ली और खुद को कैसर-ए-रोम का ख़िताब दिया। आने वाले दशकों में उस शहर ने वो उरूज देखा जिसने एक बार फिर कदीम ज़माने की यादें ताजा करा दीं।
इसके अलावा, उन्होंने शहर के तबाह हो चुके बुनियादी ढांचे को दोबारा तामीर करवाया, पुरानी नहरों की मरम्मत की और पानी के निकासी के इंतजाम को बेहतर बनाया। उन्होंने बड़े पैमाने पर नयी तामीरात का सिलसिला शुरू किया जिसकी सबसे बड़ी मिसाल तोपकापी महल (Topkapi Palace) और ग्रैंड बाजार है।
कस्तुनतुनिया के जवाल का यूरोप पर गहरा असर पड़ा था। वहां इस सिलसिले में कई किताबें और नजमें लिखी गई थीं और कई पेटिंग्स बनाई गईं जो लोगों की इज्तेमाई शऊर का हिस्सा बन गईं। यही कारण है कि यूरोप इसे कभी नहीं भूल सका।
नाटो का अहम हिस्सा होने के बावजूद, सदियों पुराने ज़ख्मों की वजह से यूरोपीय यूनियन तुर्की को अपनाने से आनाकानी से काम लेता है। यूनान में आज भी जुमेरात को मनहूस दिन माना जाता है। क्यूंकि वो तारीख 29 मई 1453 को जुमेरात का ही दिन था।