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Eid Mubarak
09/06/2025

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बिजनौर के जलीलपुर क्षेत्र के निवासी जुनेद सैफी, पुत्र रियासत अली सैफी ने अपनी अदभुद प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए लकड़ी क...
05/09/2024

बिजनौर के जलीलपुर क्षेत्र के निवासी जुनेद सैफी, पुत्र रियासत अली सैफी ने अपनी अदभुद प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए लकड़ी की एक बाइक बनाई है जो बिजनौर में चर्चा का विषय बनी हुई है जुनेद की इस अद्भुत कारीगरी ने पूरे क्षेत्र में लोगों का ध्यान खींचा है

01/09/2024

अशरफ़ अली जिनके साथ भगवा आतंकी द्वारा ट्रेन में मार पीट हुई थी

तारीख़ में सिकंदर ए सानी कहे जाने वाले सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी जिन्होंने अपने दौर की सुपर पॉवर और सबसे बर्बर क़ौम मंगोलो...
26/08/2024

तारीख़ में सिकंदर ए सानी कहे जाने वाले सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी जिन्होंने अपने दौर की सुपर पॉवर और सबसे बर्बर क़ौम मंगोलो से हिंदोस्तान की सरहदो की हिफ़ाज़त की। अलाउद्दीन ख़िलजी ने एक बार नहीं कई बार मंगोल फौज को मैदान ए जंग में शिकस्त दी थी। हज़ारों मंगोलों के सर क़लम करके एक किले की नींव में भरवा दिये थे, उस क़िले का नाम पड़ा "क़िला ए सिरी" मंगोल हिंदुस्तान में तभी दाखिल हो सके थे जब उन्होंने इस्लाम कुबूल किया। जहां उन्हे एक नए गांव "मंगोलपुरी" में बसाया गया जो की आज भी दिल्ली में मौजूद है। अगर तारीख़ में अलाउद्दीन नहीं होते तो यहां का भूगोल और इतिहास कुछ और ही होता।

22/08/2024

भारत के कुछ शहरों के मुस्लिम नाम जो अब इस्तेमाल नहीं होते लेकिन पुरानी किताबों में मिलते हैंशाहजहानाबाद : पुरानी दिल्लीफ...
17/08/2024

भारत के कुछ शहरों के मुस्लिम नाम जो अब इस्तेमाल नहीं होते लेकिन पुरानी किताबों में मिलते हैं

शाहजहानाबाद : पुरानी दिल्ली
फ़िरोज़ाबाद :फिरोज़ शाह कोटला के आसपास का इलाक़ा.
अज़ीमाबाद : पटना
अकबराबाद : आगरा
मुस्तफ़ाबाद : रामपुर
गुलशनाबाद : नासिक

कोई रह गया हो तो बताइए!

बादशाही मस्जिद, जिसकी तामीर 1671 से 1673 के बीच महज 2 सालों में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर ने करवाई थी। यह मस्जिद मुग़...
12/08/2024

बादशाही मस्जिद, जिसकी तामीर 1671 से 1673 के बीच महज 2 सालों में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर ने करवाई थी। यह मस्जिद मुग़ल दौर की खूबसूरती और अज़मत की निशानी है। साथ ही यह पाकिस्तान की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद है जिसमे एक साथ 55,000 लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं। बादशाही मस्जिद का डिजाइन दिल्ली की जामा मस्जिद से काफी मिलता-जुलता है, जिसे 1648 में औरंगजेब के वालिद शाहजहां ने तमीर करवाई थी। मस्जिद लाहौर किले के बिल्कुल नजदीक मौजूद है।

"कुस्तुनतुनिया जरूर फतह होगा, उसका अमीर क्या ही अच्छा अमीर होगा, और वह लश्कर क्या ही अच्छा लश्कर होगा।" ये बातें (हदीसे ...
30/03/2024

"कुस्तुनतुनिया जरूर फतह होगा, उसका अमीर क्या ही अच्छा अमीर होगा, और वह लश्कर क्या ही अच्छा लश्कर होगा।" ये बातें (हदीसे पाक) रसूले अकरम मुहम्मद सल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सहाबा-ए-कराम से अपनी हयात में कही थीं। आज इस हदीस का जिक्र करने का मकसद बहुत ही खास है, दरअसल आज के दिन ही, 30 मार्च 1432 ई. को एड्रिन शहर में सुल्तान मुराद के महल में सुल्तान मुहम्मद फातेह की पैदाइश हुयी थी। तारीख में सुल्तान को कुस्तुन्तुनिया फतह करने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने महज 21 साल की उम्र में कुस्तुन्तुनिया को फतह करके उसे अपनी नयी दारुलहकूमत बना दिया था।

जिस साल सुल्तान महमद की पैदाइश हुयी वो साल कई मोजिज़ों से भरा हुआ था। उस साल उस्मानिया सल्तनत में घोड़ों ने काफी तादाद में जुड़वा बच्चे पैदा किये, और मिट्टी में इस कदर बरकत हुयी की तमाम दरख़्त अपने फल और मेवों की वजह से झुक चुके थे और उस साल की फसलों की पैदावार भी कई गुना ज्यादा हुयी।

29 मई 1453 का वो दिन था जिस दिन सुल्तान मोहम्मद फ़ातेह ने कुस्तुनतुनिया फतह कर लिया था। कुस्तुनतुनिया की फ़तेह सिर्फ एक शहर पर एक बादशाह की हुक्मरानी का खात्मा और दूसरे की हुक्मरानी का आगाज़ नहीं था। इस वाक्ये के साथ ही दुनिया की तारीख का एक अध्याय खत्म हुआ और दूसरे का आगाज़ हुआ। सुल्तान शहर फतह होने के बाद सफेद घोड़े पर अपने वज़ीरों और सरदारों के साथ आया सोफिया (Hagia Sophia) चर्च पहुंचे। मरकज़ी दरवाजे के करीब पहुंचकर वह घोड़े से नीचे उतरे और सड़क से एक मुट्ठी धूल लेकर अपनी पगड़ी पर डाल दी। उनके साथियों की आंखों से आँसू बहने लगे। 700 सालों की मुसलसल कोशिशों के बाद मुसलमान आखिरकार कुस्तुनतुनिया फतह कर चुके थे।

एक तरफ 27 ईसा पूर्व में कायम हुआ रोमन byzantine empire 1480 साल तक किसी न किसी रूप में बने रहने के बाद अपने अंजाम तक पहुंचा। तो दूसरी ओर सल्तनते उस्मानिया ने अपने बुलंदियों को छुआ और वह अगली चार सदियों तक तक तीन बार्रेअज़ामों (Continents), एशिया, यूरोप और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर बड़ी शान से हुकूमत करती रही।
शहर पर कब्जा जमाने के बाद सुल्तान ने अपनी दारुलहकूमत एड्रिन से कस्तुनतुनिया शिफ्ट कर ली और खुद को कैसर-ए-रोम का ख़िताब दिया। आने वाले दशकों में उस शहर ने वो उरूज देखा जिसने एक बार फिर कदीम ज़माने की यादें ताजा करा दीं।

इसके अलावा, उन्होंने शहर के तबाह हो चुके बुनियादी ढांचे को दोबारा तामीर करवाया, पुरानी नहरों की मरम्मत की और पानी के निकासी के इंतजाम को बेहतर बनाया। उन्होंने बड़े पैमाने पर नयी तामीरात का सिलसिला शुरू किया जिसकी सबसे बड़ी मिसाल तोपकापी महल (Topkapi Palace) और ग्रैंड बाजार है।

कस्तुनतुनिया के जवाल का यूरोप पर गहरा असर पड़ा था। वहां इस सिलसिले में कई किताबें और नजमें लिखी गई थीं और कई पेटिंग्स बनाई गईं जो लोगों की इज्तेमाई शऊर का हिस्सा बन गईं। यही कारण है कि यूरोप इसे कभी नहीं भूल सका।

नाटो का अहम हिस्सा होने के बावजूद, सदियों पुराने ज़ख्मों की वजह से यूरोपीय यूनियन तुर्की को अपनाने से आनाकानी से काम लेता है। यूनान में आज भी जुमेरात को मनहूस दिन माना जाता है। क्यूंकि वो तारीख 29 मई 1453 को जुमेरात का ही दिन था।

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