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बिहार में असली चुनाव शुरू हो गया है!भारत में असली चुनाव तब शुरू माना जाता हैजब किसी विपक्षी नेता को इनकम टैक्स या ईडी का...
25/10/2025

बिहार में असली चुनाव शुरू हो गया है!

भारत में असली चुनाव तब शुरू माना जाता है
जब किसी विपक्षी नेता को इनकम टैक्स या ईडी का नोटिस मिल जाए।

और आज वही हो गया —
बिहार के बड़े नाम और भाजपा के लिए हमेशा सिरदर्द बने पप्पू यादव को इनकम टैक्स का नोटिस मिल चुका है।

बस समझ लीजिए,
बिहार में चुनाव आधिकारिक तौर पर शुरू हो गया है।

भारत में अब चुनाव प्रचार से नहीं,
रेड और नोटिस से शुरू होते हैं।
जो जितना जनता के लिए बोलता है,
वो उतना ही सिस्टम की नज़र में चढ़ जाता है।

अब पोस्टर लगेंगे, भाषण होंगे,
लेकिन याद रखिए —
पहली वोट नहीं, पहली नोटिस पड़ चुकी है।

बिहार चुनाव 2025 में आपका स्वागत है।

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गिरिराज सिंह के मुताबिक़ तो वो और उनके बाप-दादा भी कांग्रेस के नमक हराम हुए” — जुनैद अनवरझारखंड मुक्ति मोर्चा के युवा ने...
25/10/2025

गिरिराज सिंह के मुताबिक़ तो वो और उनके बाप-दादा भी कांग्रेस के नमक हराम हुए” — जुनैद अनवर

झारखंड मुक्ति मोर्चा के युवा नेता जुनैद अनवर ने गिरिराज सिंह के हालिया बयान पर तीखा पलटवार किया है।
उन्होंने कहा — “अगर गिरिराज सिंह की सोच यही है कि जो सरकारी योजनाओं का लाभ ले और बीजेपी को वोट ना दे, वो ‘नमक हराम’ है... तो फिर आज़ादी के बाद जब कांग्रेस की सरकारों ने जनकल्याण योजनाएं चलाईं — तब तो खुद गिरिराज सिंह, उनके पिता और दादा भी कांग्रेस के नमक हराम हुए न!”

जुनैद अनवर के इस बयान ने गिरिराज सिंह की टिप्पणी को आईना दिखा दिया — वो आईना जिसमें सत्ता की मानसिकता, वर्गभेद और धार्मिक तंज सब कुछ साफ़ नज़र आता है।

गिरिराज सिंह का बयान — “नमक हराम मुसलमान”?

बिहार के अरवल में हाल ही में हुई एक चुनावी रैली में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि मुसलमान आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ तो लेते हैं, लेकिन सरकार के प्रति आभार नहीं जताते — इसलिए वे “नमक हराम” हैं।
यह बयान सिर्फ़ चुनावी गर्मी नहीं, बल्कि सांप्रदायिक तासीर से भरा हुआ था।
जुनैद अनवर ने इस पर जवाब देते हुए कहा — “सरकारी योजनाओं में किसी नेता का निजी पैसा नहीं लगता। ये राष्ट्रकोष का पैसा होता है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सबके टैक्स का योगदान होता है। तो कोई किसी का एहसान नहीं खाता।”

क्या आयुष्मान भारत किसी धर्म की निजी योजना है?

आयुष्मान भारत या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) का उद्देश्य हर गरीब परिवार को स्वास्थ्य सुरक्षा देना है — चाहे वो किसी भी धर्म या जाति से जुड़ा हो।
इस योजना में मिलने वाला पैसा सरकारी फंड से आता है, जो हर भारतीय नागरिक के टैक्स से बनता है।
इसलिए किसी समुदाय को यह कह देना कि वो “एहसान फरामोश” है, न सिर्फ़ असंवैधानिक है, बल्कि लोकतंत्र के मूल विचार का अपमान भी है।

जुनैद अनवर का पलटवार — इतिहास के ज़रिए जवाब

अनवर ने कहा,

आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों ने ऐसी कई योजनाएं चलाईं — सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से गरीबों को सस्ता अनाज मिला, जननी सुरक्षा योजना से माताओं को मदद मिली, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से गाँव-गाँव में डॉक्टर पहुँचे, पोलियो और चेचक जैसी बीमारियाँ खत्म हुईं। इन योजनाओं का फायदा तो गिरिराज सिंह जैसे परिवारों ने भी उठाया, पर वोट कांग्रेस को नहीं दिया। तो फिर गिरिराज जी के हिसाब से वो खुद और उनका परिवार कांग्रेस के नमक हराम हुए क्या?”

ये बयान सिर्फ़ पलटवार नहीं था — यह एक राजनीतिक व्यंग्य था जिसने गिरिराज सिंह की सोच को नंगा कर दिया।

लोकतंत्र में “एहसान” नहीं, “अधिकार” होता है

भारत में सरकारी योजनाएँ किसी की निजी मेहरबानी नहीं होतीं।
वे संविधान द्वारा सुनिश्चित अधिकारों का हिस्सा हैं।
सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन राष्ट्रकोष स्थायी है — और उसमें हर नागरिक का समान अधिकार है।

इसलिए किसी वर्ग को “नमक हराम” कह देना, संविधान की उस आत्मा पर चोट है जो सबको बराबरी और सम्मान देती है।

गिरिराज सिंह की जुबान — ज़हर या रणनीति?

यह कोई पहला मौका नहीं है जब गिरिराज सिंह ने ऐसा विवादित बयान दिया हो।
कभी उन्होंने कहा था — “जो पाकिस्तान के समर्थक हैं, उन्हें वहाँ भेज दो।”
कभी बोले — “जो राम में विश्वास नहीं करते, वो भारत छोड़ दें।”
ऐसे बयान चुनावी फायदे के लिए “ध्रुवीकरण की रणनीति” बन चुके हैं, लेकिन देश की एकता और सामाजिक ताने-बाने को खोखला कर रहे हैं।

जुनैद अनवर का संदेश — “देश का नमक सबने खाया है”

अनवर ने अंत में कहा —

> “हम सब इसी मिट्टी से हैं। सबने इस देश का नमक खाया है। फर्क बस इतना है कि कोई उस नमक का इस्तेमाल ज़हर घोलने में करता है, और कोई उसी से रोज़ी-रोटी चलाने में।”

उनका यह वाक्य एक झटका देता है — जो याद दिलाता है कि देशभक्ति वोट से नहीं, नीयत से मापी जाती है।

निष्कर्ष — जब भाषा से ज़हर टपकता है

सरकारी योजनाएँ नागरिकों का अधिकार हैं, किसी पार्टी की ‘इनायत’ नहीं।
वोट एक नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, किसी का “शुक्रिया” या “कर्ज़” नहीं।
नेताओं को ये समझना होगा कि लोकतंत्र का अर्थ है – समानता, न कि एहसान।

जब कोई मंत्री किसी समुदाय को “नमक हराम” कहता है, तो वह न सिर्फ़ उस समुदाय का, बल्कि संविधान के उस अनुच्छेद का भी अपमान करता है जो हर भारतीय को समान अधिकार देता है।

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