26/04/2022
झारखड़ बनने के 21साल बाद भी झारखंडीयों का दर्द .....
झारखंड बने आज 22 साल प्रवेश करने को है। फिर भी झारखंडी आज भी लाचारी ,बेबसी और मजबूरी बनी हुई है। आदिवासी- मूलवासी बहुल राज्य होने के बावजूद आज आदिवासी- मूलवासी हाशिये पर हैं। झारखंड की आबादी की बात करें तो सबसे अधिक जनसंख्या आदिवासियों की है और दूसरे सबसे अधिक जनसंख्या की बात करें तो कुड़मी की है।और कुल मिलाकर दोनों की आबादी देखे तो लगभग 53-54% है।
मगर आज मूल झारखंडी पूरे हाशिये पर है । 21 सालों का झारखंड आज क्यों हाशिये पर झारखंडी है ? क्या हम सब कल्पना भी कर सकते हैं? झारखंड को बनाने में हम सब के पूर्वजों ने हजारों हजार कुर्बानियाँ दी। इसलिए दि थी कि आनेवाले दिन हम सब के बाल -बच्चों का एक अच्छा भविष्य निर्माण हो और राज्य के साथ देश की सेवा कर सके और एक अच्छे समाज का निर्माण कर सके। झारखंड के आदिवासी मूलवासी को इस राज्य से मिला। क्या मिला तो सिर्फ गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, विस्थापन झारखंड के आदिवासी मूलवासी को आज तक यही मिला है।
जहां जहां भी आदिवासी मूलवासी विस्थापन हुए है, आज वह हर एक जगह बड़ा। शहर का रूप ले लिया और वहां से आदिवासी मूलवासी की जड़े ही समाप्त हो गए। जैसे रांची, जमशेदपुर ,धनबाद ,बोकारो और मुख्यतः यहां पर जो रोजगार करने आए वह गैरझारखडी को कंपनी और सरकार के संरक्षण में बसाया गया जो आज परिणाम स्वरूप झारखंडी भुगत रहे हैं।
झारखंड में दो प्रकार के लोबी हावी है 1 ब्यूरोक्रेट्स 2 नेता।
1 ब्यूरोक्रेट्स
इस राज्य का जब से गठन हुआ ये लोभी लोग बहुत अधिक हावी रहा और आज भी साफ साफ दिखाई देता है। हमेशा से यह लोग झारखंडी मुद्दों को भीतरधात करने का प्रयास किया है। जो आज भी जारी है।
2. नेता
झारखंड जब से बना सरकार चलाने का मौका कमोबेश सभी पार्टियों को मिली लेकिन बात करे झारखंड अलग होने के बाद सबसे अधिक सत्ता पर काबिज भाजपा आजसू रही है। लगभग यह दोनों पार्टियां 15 साल तक सत्ता पर रहे। उसके बाद झामुमो भी लगभग 3 साल सत्ता पर रही और वर्तमान में जेएमएम प्लस कांग्रेस प्लस आरजेडी की सरकार 2 साल 5 महीने हो गये है।
पर आज तक झारखंडी का दर्द जस का तस है। आज तक झारखंडी अपना पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कितना दुर्भाग्य की बात है। झारखंडी क्या चाहते हैं? झारखंडी तो यही चाहते हैं ना अच्छा नीति- नियम बने सबों को एक अच्छा अवसर मिले। उसके लिए सरकार क्या की तो जवाब में मिलेगा कुछ नहीं । झारखंडी हित में कुछ काम नहीं हुआ इस प्रदेश वासियों के लिए.....
कौन-कौन से नीति झारखडीयों की मांग है?
1.राज्य में स्थानीय नीति खतियान आधारित परिभाषित हो।
2.राज्य मे स्पष्ट नियोजन नीति परिभाषित।
3.राज्य में अस्पष्ट आरक्षण नीति लागू।
4.राज्य में विस्थापन नीति लागू।
5.राज्य में औद्योगिक नीति लागू।
6.सीएनटी एसपीटी एक्ट कड़ाई से लागू हो और पेशा कानून लागू हो।
7.भाषा नीति स्पष्ट करें 9 छेत्रीय भाषाओं को लागू करें।
पर आज तक कोई भी इन 22 सालों में सरकारें एक कदम तक नहीं उठाए। कितना दुर्भाग्य की बात है। नेता ,मुख्यमंत्री ,मंत्री, विधायक बनते तो जरूर है पर झारखंड जन मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। आज तक 22 सालों के झारखंड यही देखा है।
अजय महतो काछूआर
( रांची विश्वविद्यालय रांची )
(English department)