20/06/2023
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर एक महत्वपूर्ण पोस्ट:
हमारे शास्त्रों में जहां भी योग शब्द का प्रयोग हुआ है, उसके अलग अलग अर्थ ।
युज्- समाधौ
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः
चित्त अर्थात् अन्त:करण की वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है ।
भगवद्गीता
युज्- संयमने
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा, समत्वं योग उच्यते
सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम 'समत्व' है।) ही योग कहलाता है॥
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्
जिसने अपनी बुद्धि को भगवान् के साथ युक्त कर दिया है वह इस द्वन्द्वमय लोक में ही शुभ कर्म और अशुभ कर्म इन दोनों का परित्याग कर देता है; इसलिए समत्व बुद्धिरूप योग के लिए प्रयत्न कर; समत्व बुद्धि रूप योग ही कर्म का कौशल है।
योग शिखोपनिषद्
योऽपान प्राणर्योऐक्यं रजसो रेतसो तथा। सूर्य चन्द्रमसोर्योगाद् जीवात्म परमात्मनो।। एवं तु द्वन्द्व जालस्य संयोगो योग उच्यते।।(युजिर्- योगे)
अर्थात् प्राण और अपान की एकता सत-रजरूपी कुण्डलिनी की शक्ति और स्वरेत रूपी आत्मत्व का मिलन, सूर्यस्वर व चन्द्रस्वर का मिलन एवं जीवात्मा व परमात्मा का मिलन ही योग है।
कठोपनिषद्
तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिद्रियधारणम्। अप्रमतस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ।।
इन्द्रियों की स्थिर धारणा को योग कहते हैं। इसके साधन को करने वाला साधक प्रमाद रहित हो जाता है।