20/06/2023
झारखंड में नई राजनीतिक--- क्रांति का संकेत,
झारखंड राज्य के अलग हुए 22 वर्षों हो गए l परंतु राज्य में आदिवासी मूलवासीयों का ज्वलंत मुद्दे 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति,स्थानीय नियोजन नीति,कारोबार पर अधिकार,ठेका पट्टा पर अधिकार खनन का अधिकार, कला, खेल, भाषा संस्कृति का अधिकार, पर्यटन,झारखण्डी फ़िल्म का विकास आदि कई ज्वलंत मुद्दे आज भी झारखंडयो का सपना चकनाचूर हो गयाl
कहने में कोई हिचक नहीं है, की कोई भी राजनीतिक पार्टी चाहे जेएमएम हो,चाहे कांग्रेस हो, चाहे बीजेपी हो, या अजसु पार्टी हो या वामपंथी हो, समाजवादी विचारधारा के पाटियां इन सभी पार्टियों ने कामोंवेस सरकार में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हुए है l परंतु कोई भी पार्टियां गंभीरता रूप से झारखंड की मिट्टी,यहां की संस्कृति खेल,संगीत कला संस्कृति आदि कई ज्वलंत मुद्दे को लेकर के नीतिगत फैसले लेने में फिसड्डी साबित हुई है l यह राजनीतिक पार्टियां 22 वर्षों में झारखंडी जनताओं के भावनाओं के साथ खेलते रहे और आगे भी खेल को जारी रखना चाहते हैं l
यही कारण है की झारखंडी भाषा संस्कृति आंदोलन के 1932 का खतियान, भाषा आंदोलन 60/40 की आंदोलन के उपज छात्र नेता जयराम महतो मात्र डेढ़ साल के आंदोलन में इतना विश्वास जनता के प्रति आया हैl कहीं ना कहीं यह राजनीतिक परिवर्तन का संकेत है l भले ही एक ही जाति का भीड़ हो, लेकिन प्रजातंत्र जनता के बीच बसता है और परिवर्तन के लिए इतना भी भीड़ काफी हैl
मैं दाद देना चाहता हूं l कुर्मी समाज की छात्र नौजवानों की परिपक्वता, को इतना स्किल, इतना सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता,कूटनीतिकार राजनीतिक इच्छाशक्ति, से लवरेज राजनीतिक जागरूकता कर राजनीतिक मौसम को भांपते हुए छात्रों ने राजनीतिक पार्टी का गठन कर होने वाला 2024 के चुनाव में लोकसभा और विधानसभा मे चुनाव लड़ने का ऐलान करना सही मायने में एक इतिहासिक कदम है l
जिस प्रकार और असम स्टूडेंट यूनियन असम आंदोलन के उपज प्रफुल्ल कुमार महान्तो ने असम गण परिषद नाम का पार्टी बनाकर सभी कुवारे छात्र एमएलए और मंत्री हो होकर राजनीतिक सत्ता पर काबिज किया था l हालांकी जयराम महतो के छात्र आंदोलन से बहुत सारे राजनीतिक पंडितों का विभिन्न प्रकार के नकारात्मक टिप्पणियां हो सकती है कहेंगे यह लोग नौसीखिए हैं संगठन की जानकार नहीं है l राजनीतिक टीम नहीं है l लेकिन राजनीतिक ऐलान सभी राजनीतिक पार्टियों को दिल दहला दिया है अर्थात सोचने को मजबूर कर दिया है l परिणाम चाहे जो भी हो,लेकिन इस भीड़ को संगठन एवं सही राजनीतिक दिशा देने की आवश्यकता हैl परिवर्तन निश्चित ही होगीl लेकिन यह कड़वा सत्य है यह भी है कि झारखंड की परिकल्पना एक जाति विशेष पर नहीं हो सकता है l आदिवासी समाज कि बिना राजनीतिक शक्ति अधूरा है l इसलिए इस मुहिम में हर वर्ग को जोड़ने की आवश्यकता है l
*मेरा सवाल आदिवासी संगठनों एवं आदिवासी नेताओं से भी* है :- सन 2003,4,5 से स्थानीय नीति (डो मिसाल )आंदोलन की शुरुआत हुई थी l स्थानीय नीति लागू करो,अपरु छपरु गंगा पार,भाषा नीति लागु करो आदिवासियों को जमीन लूटना बंद करो, कई बार झारखंड बंदी, कभी चमरा लिंडा के नेतृत्व में रैलियां होती तो कभी बंधु तिर्की ,सालखान मुर्मू के नेतृत्व में रैलियां हुआ करती थी l आंदोलन को बल देने के लिए बैक डोर से रतन तिर्की,लक्ष्मीनारायण मुंडा अमूल नीरज खलखो कई अनेक कार्यकर्ता बड़े नेताओं के सहयोगी के रूप में खड़े थे इस आंदोलन से कुछ नेता बने, कुछ मंत्री विधायक बने,लेकिन व्यापक रूप से राजनीतिक शक्ति का ऐलान होना था l वह नहीं हो पाया जो बहुत बड़ी राजनीतिक भूल थी l सलखान मुरमू,चमरा लिंडा,बंधु तिर्की यादि नेताओं द्वारा यदि 2004 में राजनीतिक पार्टी का गठन की जाती तो आज आदिवासी मूलवासी समाज का राजनीति रूप पर हाशिए पर नहीं होते और ना ही आदिवासी और मूलवासी समाज का एकता नहीं टूटताl उसके बाद 2010 से लेकर 217 तक भी कई आंदोलन होते रहे कई छोटे-बड़े आंदोलन, धरना प्रदर्शन झारखंड बंदी जैसे होती रही l मेरे अलावा और राजू महतो, एस अली, छात्र नेता कमलेश राम,देवेंद्र महतो भी नेतृत्व किया और आंदोलन को बढ़ाते रहे l झारखंड की विचारधारा की राजनीतिक कमी के कारण आज 20 साल से बाहरी नौकरशाह, बाहरी माफिया,बाहरी दलाल, बाहरी लुटेरे ने 20 साल से झारखंड को लूट- खसोट करने अड्डा बना दिया है l
इसलिए आदिवासी समाज को कुर्मी समाज से राजनीतिक ,कूटनीति से सीख लेने की आवश्यकता है l कुर्मी समाज के छात्रों ने राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए नीति स्पष्ट कर दी हैl
*अब आदिवासी समाज की बारी है?....आदिवासी* *समाज* *राजनीतिक पार्टी के विषय पर क्या* *चिंतन करती है इस* मामले में आदिवासी बुद्धिजीवी, आदिवासी छात्र नौजवान संगठन चलाने वाले झारखंड के हित के लिए क्या चिंतन है किसी पार्टी के पीछे लगा रहना है या अपनी पार्टी बनाने की चिंतन है l आदिवासी समाज झारखंड मे साबित करें, कि हम भी झारखंड एकता के साथ झारखंड के ज्वलंत मुद्दों को हासिल करने के लिए आपसी मतभेद भुलाकर आदिवासी कुर्मी की लड़ाई,आदिवासी सरना ईसाई, उरांव, मुंडा,हो,संथाल भूमिज आपसी लड़ाई छोड़ राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए आदिवासी समाज मिलकर एक राजनीतिक निर्णय का ऐलान की जा सकती है और आदिवासी -मूलवासी के भाईचारे को साबित कर झारखंड को बचाने का काम करें अन्यथा झारखंडी आदिवासी- मूलवासी कभी नहीं बचेंगेl देखते ही देखते झारखंड एक राजनीतिक रूप से बिहार बन जाएगा l
भवदीय
( प्रेम शाही मुंडा)
अध्यक्ष
आदिवासी जन परिषद
9430341425/7257951333
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