23/02/2024                                                                            
                                    
                                                                            
                                            कर्नाटक के मंदिरों पर 10% टैक्स लगाकर कांग्रेस ने भाजपा को बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया .भारत को धर्म निरपेक्ष देश कहा जाता है  ऐसे में सवाल उठता है कि यह भेदभाव अनजाने में हुआ या जान बूझकर किया गया पढ़िए टिप्पणी राष्ट्रीय नवीन मेल में ।   कर्नाटक के  मंदिरों में 10 प्रतिशत टैक्स और धर्म निरपेक्षता
                           सुनील बादल
भारत प्रारंभ से ही धर्म को संविधान की मान्यता देता रहा है और दूसरी विचारधारा जो प्रगतिशील की रही है उसका मानना है की भारत को धर्म निरपेक्ष होना चाहिए । इन दोनों विचारधाराओं के बीच द्वंद को भी लोग स्वीकारते हैं पर एक तीसरी विचारधारा भी है जो सुविधानुसार कभी किसी धर्म को तो कभी किसी धर्म को औज़ार की तरह इस्तेमाल करती है पर अभी मुद्दा जो गरमाया हुआ है वह है मंदिरों पर टैक्स लगाने का ? सवाल भेदभाव का है कि जज़िया टैक्स की तरह मंदिरों पर ही क्यों टैक्स और क्या इसका इस्तेमाल दक्षिण में धर्म की राजनीति गरमाने के लिए हो रहा है ताकि भाजपा को रोका जाए जैसा भाजपा बता रही है या मंदिरों को व्यवसाय मानकर उनसे टैक्स वसूलने की नई शुरुआत हो रही है ? कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार की तरफ से मंदिरों को टैक्स के दायरे में लाने पर विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने विधानसभा में 'कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक पास कराया गया है। यह एक करोड़ रुपये से अधिक राजस्व वाले मंदिरों से 10 प्रतिशत और 10 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये के बीच राजस्व वाले मंदिरों से 5 प्रतिशत कर संग्रह का आदेश देता है। इस विधेयक ने कर्नाटक में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच तीखी नोकझोंक हो रही है। इतना ही नहीं मंदिरों पर शुल्क लगाने की क्षमता पर एक गरमागरम बहस छेड़ दी है। इससे बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक राजनीति गरमा गई है।बीजेपी ने राज्य सरकार पर हिंदू विरोधी नीतियां लागू करने का आरोप लगाया है, जबकि कांग्रेस ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा है कि इसी तरह के प्रावधान 2001 से लागू हैं। कर्नाटक सरकार के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने बीजेपी के आरोपों का जवाब देते हुए उनकी धार्मिक राजनीति पर सवाल उठाया और कहा कि कांग्रेस ने हमेशा मंदिरों और हिंदू हितों की रक्षा की है। कर्नाटक के लोग बीजेपी की चालों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और आगामी लोकसभा चुनावों में अपना असंतोष व्यक्त करने की संभावना है। रेड्डी ने पत्रकारों से कहा कि यह प्रावधान नया नहीं है बल्कि 2003 से अस्तित्व में है। तो वहीं बीजेपी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार मंदिर के पैसों से अपना खाली खजाना भरना चाहती है।जबकि कांग्रेसनित सरकार का कहना है कि राज्य में 40 से 50 हजार पुजारी हैं, उन्हें इसी पैसे से बीमा कवर दिया जा सकता है। सरकार के मंत्री रामलिंगा रेड्डी का कहना है कि हम चाहते हैं कि अगर उनके साथ कुछ होता है तो उनके परिवारों को कम से कम पांच लाख रुपये मिलें। प्रीमियम का भुगतान करने के लिए हमें सात करोड़ रुपये से आठ करोड़ रुपये की आवश्यकता है। मंत्री ने कहा कि सरकार मंदिर के पुजारियों के बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करना चाहती है, जिसके लिए सालाना पांच करोड़ से छह करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। बीजेपी ने राज्य सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगते हुए कहा कि टैक्स एक ही धर्म पर क्यों जबकि सुविधा सभी को है। सिद्धारमैया सरकार ने बजट में 100 करोड़ रुपये का प्रावधान वक्फ संपत्तियों के लिए किया है। 200 करोड़ ईसाई समुदाय के लिए और अन्य धार्मिक स्थलों के लिए 20 करोड़ रुपये के फंड का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा 10 करोड़ रुपए की लागत से भव्य हज भवन बनाने की भी घोषणा की गई है। यह हज भवन मंगलौर में बनाया जाएगा।बीजेपी का आरोप है कि अल्पसंख्यक समुदायों खासकर मुस्लिम और ईसाइयों के लिए इस बजट में बड़ी संख्या में घोषणाएं की गई हैं। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अपने बजट में वक्फ संपत्ति और ईसाई समुदाय के लिए 330 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जबकि, कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां मुजराई (हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती) विभाग द्वारा नियंत्रित 'ए और बी' यानी बड़े और छोटे श्रेणी के 400 के करीब मंदिरों से हिंदू भक्तों द्वारा दिया जाने वाला सालाना औसतन दान 450 करोड़ रुपये सरकार के खजाने में जाता है। प्राचीन हिंदू मंदिरों के मरम्मत तक के लिए कोई राशि नहीं दिए जाने पर बीजेपी ने हंगामा किया। सिद्दारमैया सरकार हिंदू मंदिरों को राज्य के नियंत्रण से मुक्त करने वाले किसी भी विधेयक का विरोध भी करती आई है। हिंदू मंदिरों से हर साल इतना धन सरकार के खजाने में जाने के बाद भी बजट में इन मंदिरों के विकास,सुरक्षा और संरक्षण के लिए राशि का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।