
13/10/2024
*वर्ष 2015*, पेरिस में
विश्व के *782 शीर्ष वैज्ञानिकों ने*,
*66,000 रिसर्च पेपरों* पर शोध करके,
2000 पन्नों की *‘क्लाइमेट चेंज’* पर एक रिपोर्ट बनाई।
और चिल्लाकर कहा,
_“भाईसाहब! सम्भलो! विनाश दरवाज़े पर खड़ा है!”_
तब *196 देशों के शीर्ष राजनेता एकत्रित हुए,*
कई करार हुए, कसमे-वादें किए, जुमले उछाले।
आश्वासन दिया कि हम इस भयावह आपदा पर
समय रहते विजय प्राप्त कर लेंगे।
*लेकिन आज हालात कैसे हैं?*
कुछ दिनों पहले, वैज्ञानिकों ने बताया,
“पिछले वर्ष पृथ्वी का औसत तापमान
*1.48 डिग्री* से बढ़ गया है,
कुछ दिनों के लिए 2 डिग्री से भी अधिक रहा!” 😓
जो सीमा वर्ष *2100* तक नहीं पार होनी चाहिए थी,
उसको हमने *2023* में ही पार कर दिया,
और निश्चित है कि
*2024* में बात और बिगड़ेगी।
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*धरती फट रही है,*
*आसमान गिर रहा है,*
*आप सो तो नहीं रहे?*
*क्लाइमेट चेंज का विज्ञान समझिए:* औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई 18वीं सदी में। ये क्रांति जिन मशीनों से आई उनका ईंधन बना कोयला व तेल। जो सब काम हाथों से होता था, वो मशीनों से होने लगा। रोटी, कपड़ा, मकान, सुख-सुविधाएँ - हर चीज़ का भारी उत्पादन शुरू हो गया।
साथ में, कोयले और तेल के जलने से बन रही थीं वो गैसें, जो पर्यावरण का तापमान बढ़ाती हैं। और 18वीं सदी से लगातार इन गैसों की मात्रा भयानक रूप से बढ़ रही है। तो पृथ्वी का औसत तापमान भी बढ़ता जा रहा है।
*समस्या का एक और पक्ष:* जब औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी तब पृथ्वी पर *77 करोड़* लोग थे।
और *अब 2024 में?* लगभग *800 करोड़!* और अनुमान है 2050 तक *1000 करोड़* हो जाएँगे।
अब मास-प्रोडक्शन, बढ़ती जनसंख्या, और हमारी बेहोशी के इस मिश्रण में विज्ञापनदाताओं ने लगाया है लालच का तड़का। अब हम आवेश में आकर वो चीज़ें भी ख़रीद लेते हैं जिसकी हमें ज़रूरत भी नहीं। और भूलिएगा नहीं हम जैसे 800 करोड़ हैं!
*यही है उपभोक्तावाद का खेल,*
जिसके चलते हमने प्रकृति को जमकर तबाह किया
और अब जैसे हालात बन रहे हैं प्रकृति भी हमें माफ़ नहीं करेगी।
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*ख़तरा भयानक है।*
और भारत में आचार्य प्रशांत जैसी आवाज़ें बहुत कम हैं जो हमें बचाने का काम कर रही हैं।
जो काम न मीडिया कर रहा है, न स्कूल-कॉलेज कर रहे हैं, न सरकारें कर रही हैं, वो काम करने को आचार्य प्रशांत जूझे हुए हैं।
करोड़ों लोगों तक उनकी बात पहुँची भी है, चेतना और बदलाव आए भी हैं। पर काम बहुत बड़ा है, और समय कम है। हमें जल्द-से-जल्द सब तक पहुँचना है। सबको समझाना है, बचाना है।
*महाविनाश से बचना है। आपकी संस्था संघर्ष में है, साथ दें।*
काम आसान नहीं है, इसके लिए बड़े संसाधनों की आवश्यकता है।
आचार्य प्रशांत संघर्षरत हैं,
आपके लिए।