Raag Ragni

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03/02/2025

दोरंगी ना सतरंगी दुनिया , चाल पीछानणी होगी ।
और किसे का खोट नहीं , या किस्मत पड़कै सोगी ।।

02/02/2025

Meri moti s majboori

संजय बहलंभा की गजब गायकी और तर्ज

02/02/2025

90000 followers complete
Thnx my friends

01/02/2025

I gained 14,133 followers, created 212 posts and received 216,335 reactions in the past 90 days! Thank you all for your continued support. I could not have done it without you. 🙏🤗🎉

01/02/2025

राजी होके घाल मैने
सुरेंद्र गिगनाउ

शुभप्रभात जी
01/02/2025

शुभप्रभात जी

31/01/2025
🙋 #महाकुंभ में अपने कर्तव्यों एवं संस्कारों को प्रदर्शित करती ये तस्वीरें-👉 #पहली_तस्वीर में भैया हैं जो अपने 95 वर्षीय ...
30/01/2025

🙋 #महाकुंभ में अपने कर्तव्यों एवं संस्कारों को प्रदर्शित करती ये तस्वीरें-
👉 #पहली_तस्वीर में भैया हैं जो अपने 95 वर्षीय वृद्ध पिता जी को महाकुम्भ में स्नान कराते हुये।
👉 #दूसरी_तस्वीर में एक बहु अपनी वृद्ध सास को महाकुम्भ के स्नान के लिए अपनी पीठ पर लें जाती हुई और
👉 #तीसरी_तस्वीर दादा जी अपने नाती को स्नान कराते हुये संस्कृति एवं संस्कारों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तानानंतरित करते हुए।
इनका #महाकुम्भ स्नान पुण्यदायक एवं सफल सिद्ध हुआ !!🙏🏻 #प्रयागराज

29/01/2025

जिले सिंह मोखरा रागनी

Jai Ho म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन
28/01/2025

Jai Ho म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन

27/01/2025

51 विष्णु रागनी मोहन डाटा

एक बार अयोध्या के राज भवन में भोजन परोसा जा रहा था।माता कौशल्या बड़े प्रेम से भोजन खिला रही थी।माँ सीता ने सभी को खीर परो...
27/01/2025

एक बार अयोध्या के राज भवन में भोजन परोसा जा रहा था।

माता कौशल्या बड़े प्रेम से भोजन खिला रही थी।

माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी...

ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया...

लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा...

लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुँचकर माँ सीता जी को बुलवाया...

फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था...

आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना...

आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना...

इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं...

तृण धर ओट कहत वैदेही...

सुमिरि अवधपति परम् सनेही...

यही है...उस तिनके का रहस्य...

इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही...

ऐसी विशालहृदया थीं हमारी जानकी माता...

🌹!!.....जय सियाराम.....!!🌹
#वक्त

18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को शारीरिक और मानसिक रूप से 80 वर्ष जैसा कर दिया था। शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बा...
26/01/2025

18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को शारीरिक और मानसिक रूप से 80 वर्ष जैसा कर दिया था। शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था। इक्का दुक्का पुरुष ही दिखाई पड़ता था। अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे।

महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी कि तभी श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल हुए है। द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है। कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं। थोड़ी देर में उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा

देते हैं।

द्रोपदी : यह क्या हो गया सखा? ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था।

कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली। वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती। वह हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है। तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई द्रौपदी।

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ। सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं बल्कि सारे कौरव ही समाप्त हो गए। तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए।

द्रोपदी : सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए आए हो?

कृष्ण : नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ। हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता है।

द्रोपदी : तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ श्रीकृष्ण?

कृष्ण : नहीं द्रौपदी! तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो। लेकिन अगर तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

द्रोपदी : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण?

कृष्ण : तुम बहुत कुछ कर सकती थी। जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो शायद परिणाम कुछ और होते।

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया, तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते।

और उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं। तुम वह नहीं कहती तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता। तब भी शायद परिस्थितियाँ कुछ और होती।

"द्रोपदी! हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते है। हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना चाहिए। अन्यथा उसके दुष्परिणाम स्वयं को ही नहीं बल्कि अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं।

संसार में केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसका 'ज़हर' उसके दाँतों में नहीं बल्कि शब्दों में है। इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करें। ऐसे शब्द का प्रयोग कीजिये जिससे किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे क्योंकि "महाभारत हमारे अंदर ही छिपा हुआ है।"

 #महाकुंभ में  #ममता कुलकर्णी ने लिया संन्यास, नाम बदला, किन्नर अखाड़े की बनी महामंडलेश्वरममता कुलकर्णी ने शुक्रवार शाम ...
25/01/2025

#महाकुंभ में #ममता कुलकर्णी ने लिया संन्यास, नाम बदला, किन्नर अखाड़े की बनी महामंडलेश्वर

ममता कुलकर्णी ने शुक्रवार शाम संगम पर पिंडदान किया। उन्हें आज से नया नाम भी दिया जा रहा है। अब उन्हें 'श्री यमाई ममता नंद गिरि' के नाम से जाना जाएगा।

इस भागदौड़ वाली जिंदगी और महंगाई के दौर में डेढ़ रुपये भले ही ज्यादा महत्वपूर्ण ना लगे. लेकिन मध्य प्रदेश के सागर जिले क...
25/01/2025

इस भागदौड़ वाली जिंदगी और महंगाई के दौर में डेढ़ रुपये भले ही ज्यादा महत्वपूर्ण ना लगे. लेकिन मध्य प्रदेश के सागर जिले के निवासी चक्रेश जैन ने महज 1.50 रुपये के लिए गैस एजेंसी के खिलाफ सात साल तक लंबी लड़ाई लड़ी और आखिरकार जीत हासिल की..

यह मामला 14 नवंबर 2017 को शुरू हुआ, जब चक्रेश जैन ने भारत गैस एजेंसी से एक गैस सिलेंडर बुक किया था. सिलेंडर का बिल 753.50 रुपये था, लेकिन डिलीवरी कर्मी ने 755 रुपये वसूले और 1.50 रुपये वापस करने से इनकार कर दिया. जब जैन ने अपने पैसे वापस मांगे, तो उन्हें एजेंसी से संपर्क करने के लिए कहा गया. इस पर जैन ने तुरंत एजेंसी और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई.

पहली शिकायत पर कोई कार्रवाई न होने के बाद, चक्रेश जैन ने 15 जुलाई 2019 को सागर जिला उपभोक्ता फोरम में केस दर्ज किया. गैस एजेंसी ने इस मुद्दे को तुच्छ बताते हुए इग्नोर कर दिया और जैन का मजाक भी उड़ाया. लेकिन जैन अपने वकील राजेश सिंह के समर्थन से अपने अधिकारों के लिए डटे रहे.

अधिकार और आत्म सम्मान की लड़ाईः चक्रेश जैन

पांच साल की लंबी सुनवाई के बाद उपभोक्ता फोरम ने एजेंसी की सेवा में कमी को स्वीकार किया और ऐतिहासिक फैसला सुनाया. फोरम ने एजेंसी को आदेश दिया कि वे 1.50 रुपये दो महीने के भीतर वापस करें, साथ ही 6% वार्षिक ब्याज भी दें. इसके अलावा जैन को मानसिक, आर्थिक और सेवा से जुड़ी परेशानियों के लिए 2,000 रुपये का मुआवजा और उनके कानूनी खर्चों के लिए भी 2,000 रुपये देने का निर्देश दिया गया.

चक्रेश जैन की यह लड़ाई उपभोक्ता अधिकारों के लिए एक मिसाल की तरह है. इस लंबी लड़ाई पर जैन का कहना है कि यह केवल 1.50 रुपये की बात नहीं थी, बल्कि यह हमारे अधिकारों और आत्म-सम्मान की लड़ाई थी

*💐💐तीन बालक💐💐*एक राजा थे, उन्हें पशु-पक्षियों से बहुत प्यार था। वे पशु-पक्षियों से मिलने के लिए वन में जाते थे।हमेशा की ...
25/01/2025

*💐💐तीन बालक💐💐*

एक राजा थे, उन्हें पशु-पक्षियों से बहुत प्यार था। वे पशु-पक्षियों से मिलने के लिए वन में जाते थे।

हमेशा की तरह एक दिन राजा पशु-पक्षियों को देखने के लिए वन में गए। अचानक आसमान में बादल छा गए और तेज-तेज बारिश होने लगी।

बारिश होने के कारण उन्हें ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, राजा रास्ता भटक गए। रास्ता दूंढते-ढूंढते किसी तरह राजा जंगल के किनारे पहुंच ही गए।

भूख-प्यास और थकान से बेचैन राजा, एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठ गए। तभी राजा को उधर से आते हुए तीन बालक दिखाई दिए।

राजा ने उन्हें प्यार से अपने पास बुलाया, "बच्चों यहां आओ। मेरी बात सुनो।"

तीनों बालक हंसते-खेलते राजा के पास आ गए। तब राजा बोले- मुझे बहुत भूख और प्यास लगी है, क्या मुझे भोजन और पानी मिल सकता है।"

बालक बोले, पास में ही हमारा घर है। हम अभी जाकर आपके लिए भोजन और पानी लेकर आते हैं। आप बस थोड़ा-सा इंजतार कीजिए।"

तीनों बालक दौड़कर गए और राजा के लिए भोजन और पानी ले आए।

राजा बालकों के व्यवहार से बहुत खुश हुए। और बोले, प्यारे बच्चों, तुमने मेरी भूख और प्यास मिटाई है। मैं तुम तीनों बालकों को इनाम के रूप में कुछ देना चाहता हूँ। बताओ तुम बालकों को क्या चाहिए?"

थोड़ी देर सोचने के बाद एक बालक बोला:- महाराज,क्या आप मुझे एक बड़ा सा बंगला और गाड़ी दे सकते हैं?"

राजा बोले:- हां-हां क्यों नहीं। अगर तुम्हें ये ही चाहिए तो जरूर मिलेगा।"अब तो बालक फूले न समाया।

दूसरा बालक भी उछलते हुए बोला:- "मैं बहुत गरीब हूं। मुझे धन चाहिए। जिससे मैं भी अच्छा-अच्छा खा सकूं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहन सकूं और खूब मस्ती करूं।"

राजा मुस्कराकर बोले, "ठीक है बेटा, मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूंगा।"
यह सुनकर दूसरा बालक भी खुशी से झूम उठा।

भला तीसरा बालक क्यों चुप रहता। वह भी बोला:- महाराज। क्या आप मेरा सपना भी पूरा करेंगे?"

मुस्कराते हुए राजा ने बोला- "क्यों नहीं, बोलो बेटा तुम्हारा क्या सपना है? क्या, तुम्हें भी धन-दौलत चाहिए?"

नहीं महाराज। मुझे धन-दौलत नहीं चाहिए। मेरा सपना है कि मैं पढ़-लिखकर विद्वान बनूं। क्या आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं?"

तीसरे बालक की बात सुनकर राजा बहुत खुश हुए।

राजा ने उसके पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था करवा दी। वह मेहनती बालक था। वह दिन-रात लगन से पढ़ता और कक्षा में पहला स्थान प्राप्त करता। इस तरह समय बीतता गया। वह पढ़-लिखकर विद्वान बन गया। राजा ने उसे राज्य का मंत्री बना दिया। बुद्धिमान होने के कारण सभी लोग उसका आदर-सम्मान करने लगे।

उधर जिस बालक ने राजा से बंगला और गाड़ी मांगी थी। अचानक बाढ़ आने से उसका सब कुछ पानी में बह गया।

दूसरा बालक भी धन मिलने के बाद, कोई काम नहीं करता था। बस दिनभर फिजूल खर्च करके धन को उड़ता और मौज-मस्ती करता था। लेकिन रखा धन भला कब तक चलता। एक समय आया कि उसका सारा धन समाप्त हो गया। वह फिर से गरीब हो गया।

दोनों बालक उदास होकर अपने मित्र यानि मंत्री से मिलने राजा के दरबार में गए। वे दुखी होकर अपने मित्र से बोले, हमने राजा से इनाम मांगने में बहुत बड़ी भूल की। हमारा धन, बंगला, गाड़ी सब कुछ नष्ट हो गया। हमारे पास अब कुछ नहीं बचा है।"

मित्र ने समझाते हुए कहा, "किसी के भी पास धन-दौलत हमेशा नहीं रहते। धन तो आता-जाता रहता है। सिर्फ शिक्षा है जो हमेशा हमारे पास रहती है। धन से नहीं बल्कि शिक्षा से ही हम धनवान बनते हैं।"

दोनों बालकों को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने तय किया कि हम भी अपने बच्चों को मेहनत और लगन से पढ़ाई करवाएँगे और अपने जीवन को सुखी बनाएंगे।

*💐शिक्षा💐*
इसी लिये कहा गया है कि, विद्याधन सबसे बड़ा धन है, इसे कोई चुरा नहीं सकता है और जितना बाँटो उतना ही अधिक बढ़ता जाता है।अपने बच्चों को सामाजिक, राजनैतिक, व्यावसायिक, धार्मिक, व नैतिक शिक्षा से परिपूर्ण करें । यही सच्चा धन है।


*आप चाहे किसी भी समाज से हो, अगर आप अपने समाज के किसी उभरते हुए व्यक्तित्व से जलते हो या उसकी निंदा करते हो तो आप निश्चित रूप से उस समाज के लिए कलंक हो ।*

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
🙏🙏🙏🙏🌳🦚🦚🌳🙏🙏🙏

उत्तर प्रदेश के कुंभ मेले में आतंकी अयूब खान गिरफ्तार साधु बनकर आया था    #कुंभ
24/01/2025

उत्तर प्रदेश के कुंभ मेले में आतंकी अयूब खान गिरफ्तार साधु बनकर आया था
#कुंभ

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