26/07/2025
आज की नशिस्त में हमने बज़रिया ज़ूम उलमा और मुल्क के बड़े अज़हानों से मशवरा लिया — कि इस दौर में जब अकीदा, तहज़ीब और हमारी पहचान पर हमले हो रहे हैं तो उम्मत को किस रास्ते पर चलना चाहिए?
सोच और तदब्बुर के बाद मैंने जो नतीजा निकाला, वह आपके सामने है....
तालीम को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाइए
"इल्म रौशनी है और रौशनी से ही अंधेरे दूर होते हैं"
बेटियों की तालीम पर ख़ासतौर से तवज्जो दीजिए ।
आलिम के साथ-साथ डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अफ़सर और मीडिया एक्सपर्ट भी तैयार कीजिए।
दीन और दुनिया की तालीम को अलग न समझें — दोनों को मिलाकर अपने बच्चों को मुकम्मल इंसान बनाइए।
मेरा मानना यह भी है कि अपने इदारे खुद बनाइए...
कोचिंग सेंटर, स्कॉलरशिप स्कीम, करियर गाइडेंस प्रोग्राम शुरू करें।
मज़बूत इस्लामी और समाजी इदारों की तामीर करें शादियों के खर्चे कम करें निकाह आसान करें जहेज़ पर सख़्ती से पाबंदी लगाएं।
बेवाओं से निकाह करें साथ ही यतीम बच्चों के वारिस बने।
कबीलों और जातियों पीरा मुरीदी से ऊपर उठकर इत्तेहाद कायम करें।
मस्जिद, मदरसे और क़ौमी फलाही तहरीकें सब मिलकर काम करें।
साझा रणनीति बनाएं सिर्फ तक़रीरों से नहीं, अमली मन्सूबों से।
उलमा की सोहबत अख्तियार करें उलमा के वकार को मजरूह न होने दें।
शहरों और रियासतों में लीगल, मीडिया और वेलफेयर प्लेटफ़ॉर्म खड़े करें।
मीडिया का मुकाबला करें नया नैरेटिव गढ़ें.....
झूठे प्रचार का जवाब शिकवा कभी नहीं हो सकता .... झूठे प्रचार का जवाब हिकमत और हिम्मत से दें।
नौजवान खुद मीडिया में आएं यूट्यूब चैनल, ग्राउंड रिपोर्टिंग, और डिबेट्स में हिस्सा लें।
अपनी आवाज़ खुद बनें डरें नहीं, इज़्ज़तें रब देता है।
देश के संविधान और कानून को जानें पढ़ें अपने हक़ के लिए लड़ें....
हर शहर, हर मोहल्ले में लीगल हेल्प डेस्क क़ायम करें।
ज़ुल्म हो तो मुक़दमा लड़ें — मगर भावनाओं में बहकर एहतिजाज और तोड़फोड़ से बचें।
"नामूस-ए-रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान और वफ़ादारी ही दीन का सबसे मजबूत स्तंभ है। इसमें न कोई समझौता मुमकिन है, न कोई सियासी रियायत नामूस-ए-रिसालत के मसले पर हर मुसलमान को अपने दिल और ज़बान से गवाही देनी चाहिए। अगर कोई नाफरमानी करे या तौहीन करे तो हुक्मरानों से मिलकर बेबाकी से बात की जाए मगर बात वही हो जो हक़ की तर्ज़ुबानी करे और उम्मत की गैरत को ज़िंदा रखे"
सियासत को समझदारी से अपनाएं
सिर्फ जज़्बात में बहकर वोट न दें।
पंचायत से पार्लियामेंट तक अपने नुमाइंदे खुद तैयार करें।
याद रखना मुसलमानों की सियासी ताक़त गठजोड़ और यकजहती से बनेगी, सिर्फ मुस्लिम पार्टी से नहीं।
अपने पड़ोसियों से ताल्लुक मज़बूत करें।
मेडिकल कैंप, सोशल सर्विस, लोकल प्रोग्राम से समाज में भरोसा पैदा करें।
थूक जिहाद लव जिहाद यह सब मुसलमानों को कमज़ोर करने डराने धमकाने के सियासी नारे हैं इन नारों के खिलाफ़ इंसाफ के लिए कानून का रास्ता अपनाएं ।
अपने मज़हब पर हर हाल में क़ायम रहें और वक्त की ज़रूरतों को समझें।
मासूमियत और जज़्बात से बाहर निकलें
हर उकसावे का जवाब देना ज़रूरी नहीं।
कभी-कभी “ख़ामोशी और तदबीर” सबसे बड़ा जवाब होता है।
इंतज़ार भी जिहाद है, बशर्ते मन्सूबा सही हो।
आख़िरी बात यह कि....
"तुम ही हो जो जुल्म को सब्र से हराते हो...
तुम्हारी आंखों में आँसू होते हैं, मगर सीना अंगारों की तरह जलता है।"
"सियासत के ये तूफ़ान हमारी राह रोक नहीं सकते — बशर्त यह कि हम अपने वुजूद को तालीम से रौशन करें, इत्तिहाद से सीना तानें और सीरत-ए-मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अपनी ज़िंदगी का मेयार बना लें। वक्त का तक़ाज़ा है कि मुसलमान सिर्फ़ नारों से नहीं, अमल से अपने माज़ी का शानदार वुजूद फिर से ज़िंदा करे।"
✍️
नूर अहमद अज़हरी
पूरनपुरी...
प्रदेश अध्यक्ष
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
ऑफ़ इंडिया
ईस्ट ऑफ़ कैलाश नई दिल्ली
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