जग्गी काण्डई दशजुला रूद्रप्रयाग

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22/12/2024
22/03/2024

पहाड़ी संतरे की खटाई

वक़्त यूं चुटकियों में निकालते है हंसी ठिठोली में। जिसको देखकर रातें काट देते हैं सारी । जो सबको बांधे रखता है एक डोर मे...
21/03/2024

वक़्त यूं चुटकियों में निकालते है हंसी ठिठोली में। जिसको देखकर रातें काट देते हैं सारी । जो सबको बांधे रखता है एक डोर में। और वो गांव की अंधेरी गलियां, सब याद आता है मुझे

31/03/2023

जहां सुकून मिलता है
जहाँ प्यार मिलता है
अपने गाँव को मैं कैसे बयां करू ❤️

28/03/2023

News & media website

पहाड़ का जीवन पहाड़ की ही तरह बड़ा कठिन होता है | जब भी कोई दिल्ली-मुंबई से पहाड़ घूमने आता है तो इस बात का अंदाजा उन्हे...
08/12/2022

पहाड़ का जीवन पहाड़ की ही तरह बड़ा कठिन होता है | जब भी कोई दिल्ली-मुंबई से पहाड़ घूमने आता है तो इस बात का अंदाजा उन्हें पहाड़ की सडको पर धक्के खाते हुए हो जाता है | इन कच्ची ,पथरीली और संकरी सडको पर गाडी चला पाना जहाँ नए और बाहर के ड्राईवरों के लिए बिलकुल भी आसान नहीं होता है | वहीँ दूसरी ओर कुछ ड्राईवर ऐसे हैं , जो इन सडको पर गाडी चलाते हुए नहीं , उड़ाते हुए देखे जाते हैं |

इसीलिए तो पीछे की सीट पर धक्का खा रहे कुछ लोग , इन्हें पायलट साब करके संबोधित करते हैं |

दांतों से दिलबाग की पुड़िया फाड़ते ही बिना जर्दे के दिलबाग को मुंह में डालते हैं और इसी दौरान गाडी का गियर उठाते हैं | गाडी को पार्किंग से आगे निकालकर थोड़ी दूर पर दिलबाग के गाड़े लाल रंग के थूक को बाहर फेंकते ही , गाडी की उड़ान भर देते हैं |

जो बीड़ी को सुलगा कर गाड़ी को उठाते हैं , इस दुनिया में उनकी बिरादरी दूसरी है , उनकी बात कभी किसी और दिन |

आज बात बिट्टू भाई की जो पिछले 8-10 सालो से मैक्स चलाता है, नहीं!! माफ़ी चाहता हूँ , मैक्स.. उड़ाता हैं | पहाड़ की उन सडको पर जिनमे न गड्ढो का पता चलता है और न ही मोड़ो का, न ऊपर से गिरने वाले कंकड़-पत्थरों का पता चलता है और न ही नीचे के पुश्तों के ढह जाने का |

इन गड्ढो के ऊपर , मोड़ो से होकर , कंकड़-पत्थरो को ध्यान में रखकर और बरसाती पुश्तों से बचकर , कैसे गाडी को सडको पर चलाया, नहीं! बल्कि , हवा बनाया जाता है , यह बिट्टू का रग-रग जानता है |

बिट्टू यूँ तो एक मैक्स ड्राईवर है , लेकिन आम मैक्स ड्राईवर वाले कोई ख़ास गुण उसमे हैं नहीं | जवानी उसके चमकते चेहरे पर साफ़ अपनी उम्र बताती है , न दिलबाग खाते हुए कभी दिखाई दिए हैं और न ही पीने से जुड़े किसी किस्से को सुनाते हुए देखा गया है| शायद इसीलिए गाँव में सबके विश्वसनीय और चहीते हैं | गाँव की बारात में गाँव के सारे घुपरोलो का घपरोल इन्ही की गाडी में होता है | गाँव के छोरों की पहली पसंद ये होते हैं , जो उन्हें छत में बिठाने के लिए आसानी से मान जाते हैं | छोरों के कहने पर बारात में जाते हुए , मोड़ो पर कम और सडक के किनारे आती-जाती लडकियों को देखकर हॉर्न बजाने में वह भी खूब मजे लेता है |

https://theaishblog.in/bittu-ki-kahani/

अनाज (धान , मडुआ , झंगोरा आदि ) की कुटाई के दौरान हरकिसी के काम बंटे हुए होते | सबसे बुजुर्ग या यूँ कहें सबसे अनुभवीमहिल...
30/11/2022

अनाज (धान , मडुआ , झंगोरा आदि ) की कुटाई के दौरान हर
किसी के काम बंटे हुए होते | सबसे बुजुर्ग या यूँ कहें सबसे अनुभवी
महिला का काम ओखली में थोडा-थोडा करके अनाज डालने का
काम होता | यदि अनाज ओखली से बाहर गिरे तो उसे बाबलू के
झाड़ू से अंदर धकेलने या बंटोरना होता | साथ ही उसके पास
अधिकार होता कि वो अनाज को गंज्याली (मूसल) से कूट रही शेष
महिलाओं को डांट सके |

गंज्याली एक 5-6 फुट का डंडा सा होता , जिसके दोनों गोल सिरों
के चारो ओर लोहे कि पट्टी चढ़ी रहती थी | गंज्याली को बीच उसकी
कमर से दोनों हाथो से पकडकर , ओखली में रखे अनाज पर
मारना होता था | जिस दौरान ओखली और गंज्याली के बीच
अनाज के आने से उसके चारो लगा भूसा अलग हो जाता था |

उर्ख्याली में धान, चांवल में बदल जाती| झंगोरा भी पींडा बनाने के
लिए तैयार हो जाता था | मडुआ,चक्की में पिसकर कोड़े के आटे में
बदलने के लिए यहीं से तैयार हो जाता था |

ओखली में गंज्याली मारते हुए, दो महिलाएं एक-एक करके , मुंह
से “स्हु…..स्हु” की आवाज निकालते |यह काम एक लय में ऐसे
होता कि पास में खेल रहे संदीप की नजरे इधर हो जाती , वो
देखता कि बिना गंज्याली को एक-दुसरे से टकराए ,उसकी दीदी
और चाची उर्ख्याली में धान कि कुटाई कैसे कर रही हैं|

ओखली में इस काम की शुरुआत में अक्सर 2-3 महिलाए ही होती
, लेकिन शाम होते-होते यहाँ पर महिलाओं का एक गुट इकठ्ठा हो
जाता | आंगन के दूसरी ओर गाँव के खेतो का रास्ता था , खेतो से
घास आदि लेकर वापस आ रही गाँव की ताई-चाची , दादी-भाभी
आदि अपनी घास की कंडी या गठरी दीवार पर टिकाते और इस
सभा में अपनी सक्रिय भागीदारी देने के लिए तैयार हो जाती |

हे दीदी , हे भूली से शुरू होने वाली रन्त-रैबार,सन्त-खबर की बाते
गाँव भर के सारे हाल-समाचार सबसे साझा कर देती |
🌸🌸🌸.पूरा लेख , कमेंट में दिए गए लिंक से प्राप्त करें
।🌸🌸🌸








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