08/12/2022
पहाड़ का जीवन पहाड़ की ही तरह बड़ा कठिन होता है | जब भी कोई दिल्ली-मुंबई से पहाड़ घूमने आता है तो इस बात का अंदाजा उन्हें पहाड़ की सडको पर धक्के खाते हुए हो जाता है | इन कच्ची ,पथरीली और संकरी सडको पर गाडी चला पाना जहाँ नए और बाहर के ड्राईवरों के लिए बिलकुल भी आसान नहीं होता है | वहीँ दूसरी ओर कुछ ड्राईवर ऐसे हैं , जो इन सडको पर गाडी चलाते हुए नहीं , उड़ाते हुए देखे जाते हैं |
इसीलिए तो पीछे की सीट पर धक्का खा रहे कुछ लोग , इन्हें पायलट साब करके संबोधित करते हैं |
दांतों से दिलबाग की पुड़िया फाड़ते ही बिना जर्दे के दिलबाग को मुंह में डालते हैं और इसी दौरान गाडी का गियर उठाते हैं | गाडी को पार्किंग से आगे निकालकर थोड़ी दूर पर दिलबाग के गाड़े लाल रंग के थूक को बाहर फेंकते ही , गाडी की उड़ान भर देते हैं |
जो बीड़ी को सुलगा कर गाड़ी को उठाते हैं , इस दुनिया में उनकी बिरादरी दूसरी है , उनकी बात कभी किसी और दिन |
आज बात बिट्टू भाई की जो पिछले 8-10 सालो से मैक्स चलाता है, नहीं!! माफ़ी चाहता हूँ , मैक्स.. उड़ाता हैं | पहाड़ की उन सडको पर जिनमे न गड्ढो का पता चलता है और न ही मोड़ो का, न ऊपर से गिरने वाले कंकड़-पत्थरों का पता चलता है और न ही नीचे के पुश्तों के ढह जाने का |
इन गड्ढो के ऊपर , मोड़ो से होकर , कंकड़-पत्थरो को ध्यान में रखकर और बरसाती पुश्तों से बचकर , कैसे गाडी को सडको पर चलाया, नहीं! बल्कि , हवा बनाया जाता है , यह बिट्टू का रग-रग जानता है |
बिट्टू यूँ तो एक मैक्स ड्राईवर है , लेकिन आम मैक्स ड्राईवर वाले कोई ख़ास गुण उसमे हैं नहीं | जवानी उसके चमकते चेहरे पर साफ़ अपनी उम्र बताती है , न दिलबाग खाते हुए कभी दिखाई दिए हैं और न ही पीने से जुड़े किसी किस्से को सुनाते हुए देखा गया है| शायद इसीलिए गाँव में सबके विश्वसनीय और चहीते हैं | गाँव की बारात में गाँव के सारे घुपरोलो का घपरोल इन्ही की गाडी में होता है | गाँव के छोरों की पहली पसंद ये होते हैं , जो उन्हें छत में बिठाने के लिए आसानी से मान जाते हैं | छोरों के कहने पर बारात में जाते हुए , मोड़ो पर कम और सडक के किनारे आती-जाती लडकियों को देखकर हॉर्न बजाने में वह भी खूब मजे लेता है |
https://theaishblog.in/bittu-ki-kahani/