21/07/2025
गांव की मिट्टी में जो अपनापन है, वो शहर की भीड़-भाड़ में कहीं खो जाता है। गांव में पेड़ों के नीचे छांव में बैठकर जो सुकून मिलता है, वो किसी एसी रूम या महंगे कैफे में भी नहीं। न वहाँ शोर होता है, न ही टाइम की भागदौड़ — बस हल्की हवा, चिड़ियों की चहचहाहट और पुराने दोस्तों की हँसी की गूंज।
कुछ पल जब हम अपने साथियों के साथ खेत के किनारे, बरगद या नीम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें करते हैं — तो हर लम्हा यादगार बन जाता है। कोई किस्सा छेड़ देता है बचपन का, कोई बताता है गांव की नई खबरें। हँसी-मज़ाक, चाय की चुस्की और मिट्टी की सौंधी खुशबू में एक अलग ही जादू होता है।
शहर में जहाँ हर कोई व्यस्त और अकेला महसूस करता है, वहीं गांव में बैठकी का ये पल दिलों को जोड़ता है। वहां न तो मोबाइल की ज़रूरत होती है और न ही वाई-फाई की — बस अपने लोग, अपनी बातें और प्रकृति की गोद में बिताया हुआ समय, यही असली अमीरी है। ऐसे पल ना सिर्फ सुकून देते हैं, बल्कि ज़िन्दगी को असली मायने भी सिखाते हैं।