
25/08/2025
सलखुआ सहरसा.
एक संवाददाता - गोपाल कृष्ण.
इंट्रो -
बिहार की शोक कहे जाने वाली कोसी हर साल सलखुआ प्रखंड में अपना कहर बरपाती है। आयी बाढ़ से सलखुआ प्रखंड के बाढ़ प्रभावित पंचायत व गांव के लोग उजड़ते और बस्ते हैं। बाढ़ से विस्थापन इनकी नियति में शामिल है। पर आज तक प्रखंड के लोगों की इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाया है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद में प्रखंड के कोसी नदी के बाढ़ से हर साल प्रभावित होने वाले लोगों ने अपनी विकट समस्या रखी। वहीं मामले में जिम्मेदारों से समस्या के समुचित समाधान की आशा भी जतायी।
सलखुआ - गोपाल कृष्ण.
बरसात डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए आफत बनकर आती है। कोसी नदी के किनारे बसे गांवों में बाढ़ का कहर ऐसा रहता है कि यहां रहने वाले लोगों को हर साल आशियाना डूब जाता है। यहां के निवासियों ने मांग की है कि कुछ ऐसे उपाय किए जाएं जिससे उन्हें बाढ़ से बचाया जा सके। बाढ़ के आगमन को लेकर लोगों की धड़कने तेज हैं। आशियानों पर संकट, हर वर्ष उजड़ते व बसते हैं फर्कियावासी। नाव ही फर्कियावासी का आज भी है अवाजाही का एक मात्र साधन है। डूब क्षेत्र के लोगों ने हिन्दुस्तान संवाद में कहा कि प्रशासन बाढ़ से निबटने के लिए कोई ठोस पहल करे। बिहार की शोक कहे जाने वाली कोसी हर साल सलखुआ प्रखंड में अपना कहर बरपाती है। बाढ़ से सलखुआ प्रखंड के बाढ़ प्रभावित पंचायत व गांव के लोगों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। प्रखंड में पूर्ण रूप से चार पंचायत अलानी, चानन, कबीरा और साम्हरखुर्द में सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है एवं आंशिक रूप से तीन पंचायत उटेशरा, सितुआहा व गोरदह भी बाढ़ से प्रभावित होती है।
बतातें चलें कि हर साल बाढ़ की तबाही का मंजर यहां के लोग अपनी आंखों से देखते व उसका दंश झेलते हैं। हालांकि इस साल बाढ़ के दिन आने से पहले ही जिला प्रशासन ने बाढ़ से निपटने के लिए बाढ़ पूर्व सारी तैयारियों को पूरा कर लिया है। उनका दावा है कि इस बार की बाढ़ आम जनजीवन को ज़्यादा अस्त व्यस्त नहीं कर पाएगी। यदि क्षेत्र में बाढ़ आती भी है तो उसके लिए पुख्ता तैयारियां कर ली गई हैं। बाढ़ की तैयारियों को लेकर लगातार प्रशासन बाढ़ प्रभावित गांवों का दौरा कर ग्रामीणों से उनकी समस्याओं से अवगत हो उनसे बातचीत कर आश्वस्त भी कर रहे हैं कि इस बार की बाढ़ आम -जनजीवन को उतना ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगी। बाढ़ से बसे बसाए घर के अलावा उपजाऊ भूमि को भी अपनी आगोस में समा लेती है। पूरा इलाका तीन माह तक बाढ़ के पानी से जलमग्न रहता है और नाव ही इनके आवाजाही का एक मात्र साधन बचता है। घर मे पानी घुसने से रूखा सूखा भोजन व कोसी का पानी पीने को मजबूर होते हैं। किसान व पशुपालकों का कहना है की बाढ़ आने पर चारों तरफ पानी भर जाता है जिससे बाढ़ के समय इलाका जलमग्न होने के बाद सबसे ज्यादा समस्या पशुओं के चारे की हो जाती है। प्रशासन द्वारा थोड़ा बहुत भूसा दे दिया जाता है, जो एक दिन के लिए भी काफी नहीं होता है। वर्ष 2016 में कोसी को आई प्रलयकारी बाढ़ से पीपरा, कमराडीह, मियाजगिर गांव नदी में विलीन होने से इन गांव का अस्तित्व मिट गया। वहीं आधा गांव बगेवा व पीपरा गांव का स्कूल भी नदी में समा गया था। वहीं अंचल से मिली सरकारी आंकडों के अनुसार प्रखंड के कुल 11 पंचायत में करीबन बाढ़ प्रभावित 42 गांव है।
चार आश्रय स्थल एवं छह स्कूल बाढ़ के समय बनते शरणस्थल :-
अंचल प्रशाशन के आँकड़ों के अनुसार प्रखंड क्षेत्र में 4 आश्रय स्थल व 6 स्कूल यानी कुल 10 बाढ़ आश्रय स्थल, जिसमें 11 शरणालय, 20 गोताखोर, 15 निबंधित नाव, 6 लाइफ जैकेट है। यह वह संसाधन हैं जो कि बाढ़ आने के समय सहायता और सुरक्षा प्रदान करेंगे। इतना ही नहीं बाढ़ प्रभावित पंचायतों व गांवों में 4 मेडिकल टीमों को भी गठित कर दिया गया है। इसके अलावा बाढ़ प्रभावित गांवों में लोगों के स्वास्थ्य को देखते दवाई और मेडिकल किट को तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा सर्पदंश से बचाव के लिए सलखुआ सीएचसी व कबीरा पीएचसी में वैक्सीन भी उपलब्ध है। इसके अलावा पशु चिकित्साधिकारी नवीन कुमार की ओर से पशुओं के बचाव के लिए 31 हजार यानी 40 प्रतिशत पशुओं का टीकाकरण कर दिया गया है। मालूम हो कि कोसी जब उग्र रूप धारण करती है तो बाढ़ की चपेट में आने से गांव जलमग्न हो जाते हैं और इनके पास आवागमन की समस्या सबसे अधिक सताती है। ड़ेंगी नाव ही इनके आने जाने का साधन बचता है।
कई टोला बाढ़ व कटाव की चपेट में आकर हो चुके हैं अस्तित्वहीन:-
हर वर्ष कोसी अपना रौद्र रूप दिखाती है। बाढ़ बरसात के समय नदियां उफान पर होती है, जिससे दर्ज़नो गांव बाढ़ की चपेट में रहती है। बाढ़ प्रभावित गांव में घर से मुख्य सड़क पर सरकारी नाव नहीं उपलब्ध होने पर ये लोग जुगाड़ नाव से अवागमन को मजबूर होते हैं। ऐसे में उन्हें कब-कहां किस समय दुर्घटना के शिकार होना पड़ जाए कहना मुश्किल है। हर वर्ष बाढ़ में डूबने से दर्जनों लोगों की जाने जाती हैं। कभी नाव हादसा तो कभी उपधाराओं में डूबकर लोगों की मौत होती है। वहीं बाढ़ के समय पशुओं के साथ जान माल का खतरा भी सताता है। बाढ़ के समय लोग तीन माह तक विस्थापन तरह जीवन यापन करते हैं। वहीं बाढ़ के पानी से चारों और से घिर जाने पर इन्हें बुनियादी सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है। दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों के सामने परिवार की जीविका चलाना मुश्किल होता है। वहीं कोसी जब रौद्र रूप दिखाती है तो बाल बच्चों के साथ कोसी बांध पर तम्बू के सहारे जीवन यापन को मजबूर होते हैं। बाढ़ से फसल चौपट हो जाती है और घर बार मे पानी भर जाने से रूखा सूखा खाकर जीवन गुजारने को विवश होते हैं।
शिकायत.
1. बाढ़ के पानी से चारों और से घिरने पर आवाजाही के लिए की समस्या हो जाती है।
2. घरों में बाढ़ का पानी आने पर पके हुए भोजन और शुद्ध पेयजल की समस्या आती है।
3. बाढ़ के समय प्रभावितों के बीच समुचित चिकित्सा सहायता प्रदान नहीं की जाती है।
4. विस्थापित भूमिहीन परिवार को बसाने की दिशा और पुनर्वासीत करने की ओर सही से पहल नहीं की जाती है।
5. आयी बाढ़ से टूटी सड़क के कारण लोगों को कहीं भी आने जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
सुझाव.
1. प्रभावित इलाकों में बाढ़ समय विस्थापित परिवार के ठहरने के लिए उत्तम प्रबन्ध किये जायें।
2. सुरक्षित स्थानों की पहचान कर कोई स्थायी समाधान हो जिससे प्रभावितों को कम परेशानी हो।
3. बचाव और राहत तैयारियों की जिला प्रशासन व संबंधित अधिकारी नियमित समीक्षा करें
4. बाढ़ के दिनों में बाढ़ से प्रभावित परिवार के लोगों के लिए सामुदायिक किचन व खाने पीने की उचित व्यवस्था हो।
5. आयी बाढ़ से टूटी सड़क की समय रहते मरम्मतीकरण कर आवाजाही के लिए सुदृढ बनाये जाए।
बोले जिम्मेदार-
● बाढ़ से निपटने को लेकर प्रशासनिक स्तर पर सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है। लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है, लगातार प्रशाशनिक स्तर पर लगातार बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया जा रहा है, बाढ़ से निपटने के लिए व्यवस्था पूरी की गई है।
-आलोक राय, सिमरी बख्तियारपुर एसडीओ।
● अंचल क्षेत्र में कोसी नदी के पानी आने से होने वाली परेशानी से निजात दिलाने की व्यवस्था की जा रही है। 15 नाव के साथ सामुदायिक किचन, राहत, मेडिकल कीट आदि की ताकि आपदा के वक़्त से आसानी से निपटा जा सके। सुविधा में कमी नहीं की जाएगी।
- पुष्पांजलि कुमारी, अंचलाधिकारी, सलखुआ