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07/07/2025

05/07/2025

Golden lady

With Anshu Maurya – I'm on a streak! I've been a top fan for 3 months in a row. 🎉
19/06/2025

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02/04/2025

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ये मजाक नहीं है हकीकत है|

🙏राजतिलक की घोषणा🙏 कैकेय पहुँच कर भरत अपने भाई शत्रुघ्न के साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे। भरत के मामा अश्वपत...
31/03/2025

🙏राजतिलक की घोषणा🙏
कैकेय पहुँच कर भरत अपने भाई शत्रुघ्न के साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे। भरत के मामा अश्वपति उनसे उतना ही प्रेम करते थे जितना कि उनके पिता राजा दशरथ। मामा के इस स्नेह के कारण उन्हें यही लगता था मानो वे ननिहाल में न होकर अयोध्या में हों। इतने पर भी उन्हें समय-समय पर अपने पिता का स्मरण हो आता था और वे उनके दर्शनों के लिये आतुर हो उठते थे। राजा दशरथ की भी यही दशा थी। यद्यपि राम और लक्ष्मण उनके पास रहते हुये सदैव उनकी सेवा में संलग्न रहते थे, फिर भी वे भरत और शत्रुघ्न से मिलने के लिये अनेक बार व्याकुल हो उठते थे।
समय व्यतीत होने के साथ राम के सद्बुणों का निरन्तर विस्तार होते जा रहा था। राजकाज से समय निकाल कर आध्यात्मिक स्वाध्याय करते थे। वेदों का सांगोपांग अध्ययन करना और सूत्रों के रहस्यों का समझ कर उन पर मनन करना उनका स्वभाव बन गया था। दुखियों पर दया और दुष्टों का दमन करने के लिये सदैव तत्पर रहते थे। वे जितने दयालु थे, उससे भी कई गुना कठोर वे दुष्टों को दण्ड देने में थे। वे न केवल मन्त्रियों की नीतियुक्त बातें ही सुनते थे बल्कि अपनी ओर से भी उन्हें तर्क सम्मत अकाट्य युक्तियाँ प्रस्तुत करके परामर्श भी दिया करते थे। अनेक युद्धों में उन्होंने सेनापति का दायित्व संभालकर दुर्द्धुर्ष शत्रुओं को अपने पराक्रम से परास्त किया था। जिस स्थान में भी वे भ्रमण और देशाटन के लिये गये वहाँ के प्रचलित रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक धारणाओं का अध्ययन किया, उन्हें समझा और उनको यथोचित सम्मान दिया।
उनके क्रिया कलापों ऐसे थे कि लोगों को विश्वास हो गया कि रामचन्द्र क्षमा में पृथ्वी के समान, बुद्धि-विवेक में बृहस्पति के समान और शक्ति में साक्षात् देवताओं के अधिपति इन्द्र के समान हैं। न केवल प्रजा वरन स्वयं राजा दशरथ के मस्तिष्क में यह बात स्थापित हो गई थी कि जब भी राम अयोध्या के सिंहासन को सुशोभित करेंगे, उनका राज्य अपूर्व सुखदायक होगा और वे अपने समय के सर्वाधिक योग्य एवं आदर्श नरेश सिद्ध होंगे।
राजा दशरथ अब शीघ्रातिशीघ्र राम का राज्याभिषेक कर देना चाहते थे। उन्होंने मन्त्रियों को बुला कर कहा, हे मन्त्रिगण! अब मैं वृद्ध हो चला हूँ और रामचन्द्र राजसिंहासन पर बैठने के योग्य हो गये हैं। मेरी प्रबल इच्छा है कि शीघ्रातिशीघ्र राम का अभिषेक कर दूँ। अपने इस विचार पर आप लोगों की सम्मति लेने के लिये ही मैंने आप लोगों को यहाँ पर बुलाया है, कृपया आप सभी अपनी सम्मति दीजिये। राजा दशरथ के इस प्रस्ताव को सभी मन्त्रियों ने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया।
शीघ्र ही राज्य भर में राजतिलक की तिथि की घोषणा कर दी गई और देश-देशान्तर के राजाओं को इस शुभ उत्सव में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण पत्र भिजवा दिये गये। थोड़े ही दिनों में देश-देश के राजा महाराजा, वनवासी ऋषि-मुनि, अनेक प्रदेश के विद्वान तथा दर्शगण इस अनुपम उत्सव में भाग लेने के लिये अयोध्या में आकर एकत्रित हो गये। आये हुये सभी अतिथियों का यथोचित स्वागत सत्कार हुआ तथा समस्त सुविधाओं के साथ उनके ठहरने की व्यस्था कर दी गई।
निमन्त्रण भेजने का कार्य की उतावली में मन्त्रीगण मिथिला पुरी और महाराज कैकेय के पास निमन्त्रण भेजना ही भूल गये। राजतिलक के केवल दो दिवस पूर्व ही मन्त्रियों को इसका ध्यान आया। वे अत्यन्त चिन्तित हो गये और डरते-डरते अपनी भूल के विषय में महाराज दशरथ को बताया। यह सुनकर महाराज को बहुत दुःख हुआ किन्तु अब कर ही क्या सकते थे? सभी अतिथि आ चुके थे इसलिये राजतिलक की तिथि को टाला भी नहीं जा सकता था। अतएव वे बोले, अब जो हुआ सो हुआ, परन्तु बात बड़ी अनुचित हुई है। अस्तु वे लोग घर के ही आदमी हैं, उन्हें बाद में सारी स्थिति समझाकर मना लिया जायेगा।.

Ram ram ji🙏🙏🙏
30/03/2025

Ram ram ji🙏🙏🙏

😄Samay Pahle ladkiya report karti thi aur ab ladke😄🤔🫢
26/03/2025

😄Samay Pahle ladkiya report karti thi aur ab ladke😄🤔🫢

पति कौन ?यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी में केशव नाम का एक ब्र...
25/03/2025

पति कौन ?
यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी। जब वह ब्याह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को चिन्ता हुई। संयोग से एक दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी लडकी का ब्याह करूँगी। होनहार की बात कि उधर ब्राह्मण पिता को भी एक दूसरा लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहाँ वह एक लड़के से यही वादा कर आया।

कुछ समय बाद बाप-बेटे घर में इकट्ठे हुए तो देखते क्या हैं कि वहाँ एक तीसरा लड़का और मौजूद है। दो उनके साथ आये थे। अब क्या हो? ब्राह्मण, उसका लड़का और ब्राह्मणी बड़े सोच में पड़े। दैवयोग से हुआ क्या कि लड़की को साँप ने काट लिया और वह मर गयी। उसके बाप, भाई और तीनों लड़कों ने बड़ी भाग-दौड़ की, ज़हर झाड़नेवालों को बुलाया, पर कोई नतीजा न निकला। सब अपनी-अपनी करके चले गये।

दु:खी होकर वे उस लड़की को श्मशान में ले गये और क्रिया-कर्म कर आये। तीनों लड़कों में से एक ने तो उसकी हड्डियाँ चुन लीं और फकीर बनकर जंगल में चला गया। दूसरे ने राख की गठरी बाँधी और वहीं झोपड़ी डालकर रहने लगा। तीसरा योगी होकर देश-देश घुमने लगा।

एक दिन की बात है, वह तीसरा लड़का घूमते-घामते किसी नगर में पहुँचा और एक ब्राह्मणी के घर भोजन करने बैठा। जैसे ही उस घर की ब्राह्मणी भोजन परोसने आयी कि उसके छोटे लड़के ने उसका आँचल पकड़ लिया। ब्राह्मणी से अपना आँचल छुड़ता नहीं था। ब्राह्मणी को बड़ा गुस्सा आया। उसने अपने लड़के को झिड़का, मारा-पीटा, फिर भी वह न माना तो ब्राह्मणी ने उसे उठाकर जलते चूल्हें में पटक दिया। लड़का जलकर राख हो गया। ब्राह्मण बिना भोजन किये ही उठ खड़ा हुआ। घरवालों ने बहुतेरा कहा, पर वह भोजन करने के लिए राजी न हुआ। उसने कहा जिस घर में ऐसी राक्षसी हो, उसमें मैं भोजन नहीं कर सकता।

इतना सुनकर वह आदमी भीतर गया और संजीवनी विद्या की पोथी लाकर एक मन्त्र पढ़ा। जलकर राख हो चुका लड़का फिर से जीवित हो गया।

यह देखकर ब्राह्मण सोचने लगा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस लड़की को फिर से जिला सकता हूँ। इसके बाद उसने भोजन किया और वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो वह ब्राह्मण चुपचाप वह पोथी लेकर चल दिया। जिस स्थान पर उस लड़की को जलाया गया था, वहाँ जाकर उसने देखा कि दूसरे लड़के वहाँ बैठे बातें कर रहे हैं। इस ब्राह्मण के यह कहने पर कि उसे संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी है और वह मन्त्र पढ़कर लड़की को जिला सकता है, उन दोनों ने हड्डियाँ और राख निकाली। ब्राह्मण ने जैसे ही मंत्र पढ़ा, वह लड़की जी उठी। अब तीनों उसके पीछे आपस में झगड़ने लगे।

इतना कहकर बेताल बोला, “राजा, बताओ कि वह लड़की किसकी स्त्री होनी चाहिए?”

राजा ने जवाब दिया, “जो वहाँ कुटिया बनाकर रहा, उसकी।”

बेताल ने पूछा, “क्यों?”

राजा बोला, “जिसने हड्डियाँ रखीं, वह तो उसके बेटे के बराबर हुआ। जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह बाप के बराबर हुआ। जो राख लेकर रमा रहा, वही उसकी हक़दार है।”

राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा को फिर लौटना पड़ा और जब वह उसे लेकर चला तो बेताल ने तीसरी कहानी सुनायी।

पापी कौन ?काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था। एक दिन राजकुमार दीवान के लड़...
25/03/2025

पापी कौन ?
काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था। एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल गया। घूमते-घूमते उन्हें तालाब मिला। उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे। किनारों पर घने पेड़ थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे। दोनों मित्र वहाँ रुक गये और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर ऊपर महादेव के मन्दिर पर गये। घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर बाँध दिया। वो मन्दिर में दर्शन करके बाहर आये तो देखते क्या हैं कि तालाब के किनारे राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है। दीवान का लड़का तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से न रहा गया। वह आगे बढ़ गया। राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ़ देखती रही। फिर उसने किया क्या कि जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा, अपनी सखियों के साथ चली गयी।

उसके जाने पर राजकुमार निराश हो अपने मित्र के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, “मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न ठिकाना। वह कैसे मिलेगी?”

दीवान के लड़के ने कहा, “राजकुमार, आप इतना घबरायें नहीं। वह सब कुछ बता गयी है।”

राजकुमार ने पूछा, “कैसे?”

वह बोला, “उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहनेवाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतबाट राजा की बेटी हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।”

इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से फूल उठा। बोला, “अब मुझे कर्नाटक देश में ले चलो।”

दोनों मित्र वहाँ से चल दिये। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिन बाद वहाँ पहुँचे। राजा के महल के पास गये तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली।

उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और बोले, “माई, हम सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो।”

उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ आयी। बोली, “बेटा, तुम्हारा घर है। जब तक जी में आए, रहो।”

दोनों वहीं ठहर गये। दीवान के बेटे ने उससे पूछा, “माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुज़र कैसे होती है?”

बुढ़िया ने जवाब दिया, “बेटा, मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है। मैं राजा की बेटी पह्मावती की धाय थी। बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हूँ। राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में जाती हूँ।”

राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, “माई, कल तुम वहाँ जाओ तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।”

अगले दिन जब बुढ़िया राजमहल गयी तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होंकर हाथों में चन्दन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, “मेरे घर से निकल जा।”

बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया। राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, “राजकुमार, आप घबरायें नहीं, उसकी बातों को समझें। उसने देसों उँगलियाँ सफ़ेद चन्दन में मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज़ चाँदनी के हैं। उनके बीतने पर मैं अँधेरी रात में मिलूँगी।”

दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को ख़बर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, “भाग यहाँ से।”

बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने समझाया, “इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।”

तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पच्छिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर दीवान का लड़का बोला, “मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की की राह बुलाया है।”

मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बाँधे। दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुँचा और खिड़की में से होकर अन्दर पहुँच गया। राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गयी।

अन्दर के हाल देखकर राजकुमार की आँखें खुल गयीं। एक-से-एक बढ़कर चीजें थीं। रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया कि राजकुमारी ने राजकुमार को छिपा दिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया। इस तरह कई दिन बीत गये। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आयी। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा। उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। बोला, “वह मेरा बड़ा प्यारा दोस्त हैं बड़ा चतुर है। उसकी होशियारी ही से तो तुम मुझे मिल पाई हो।”

राजकुमारी ने कहा, “मैं उसके लिए बढ़िय-बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।”

खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुँचा। वे महीने भर से मिले नहीं। थे, राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुनाकर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है।

दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, “यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गयी कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है।”

यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया। खाते ही कुत्ता मर गया।

राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, “ऐसी स्त्री से भगवान् बचाये! मैं अब उसके पास नहीं जाऊँगा।”

दीवान का बेटा बोला, “नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले चलें। आज रात को तुम वहाँ जाओ। जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।”

राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ ले, योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने लेकर बाज़ार में बेच आओ। कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहाँ ले आना।

राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि ये मेरे गुरु ने मुझे दिये हैं। गुरु को भी पकड़वा लिया गया। सब राजा के सामने पहुँचे।

राजा ने पूछा, “योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?”

योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, “महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आयी। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल का निशान बना दिया।”

इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी देखा, तो था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, “महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?”

योगी ने जवाब दिया, “राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहनेवाले से कोई खोटा काम हो जाये तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।” यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आये और आनंद से रहने लगे।

इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, “राजन्, यह बताओ कि पाप किसको लगा है?”

राजा ने कहा, “पाप तो राजा को लगा। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा को कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने पाप किया, जो बिना विचारे उसे देश-निकाला दे दिया।”

राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, “राजन्, सुनो, एक कहानी और सुनाता हूँ।”

24/03/2025

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