09/03/2025
होली का उत्साह और उसकी भव्यता देखनी हो तो , आइए कभी हमारे पड़ोस के #भिरहा , रोसड़ा में . . . .
वज़ह है , रंगों में अश्लीलता का घोल और कमोबेश आजकल की अभद्रता ।
भिरहा की होली केवल समस्तीपुर जिला ही नहीं बल्कि पूरे बिहार देश विदेश प्रसिद्ध हैं।
धन-धान्य से परिपूर्ण गांव " भिरहा " के लोगों ने ब्रज की तर्ज पर साल 1835 में होली के इस राज्यस्तरीय महोत्सव की नींव रखी ।
1940 तक संगठित होकर महोत्सव को सुविख्यात स्वरूप देने वाला पूरा गांव जमींदारों की महत्वाकांक्षा के कारण तीनों मुहल्लों में बंटकर महोत्सव आयोजित करने लगा ।
तीनों मुहल्लों में बेहतर सजावट और बेहतर धूम - धड़ाके की होड़ सी लगी रहती है जो भिरहा की होली को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती ।
होलिका दहन के शाम से ही जगह - जगह महफिलें सजी होती हैं ।
ज़माने के हिसाब से फरमाइशों पर अप्सराओं के ज़लबों का दौर चल रहा होता है ।
मध्यरात्रि में तीनों मुहल्ले के लोग विद्यालय प्रांगण में एकसाथ जुटकर होलिका दहन कर , सबसे बेहतर मुजाहिरा पेश करने वाली कला - समूहों को पुरस्कृत करते हैं ।
हाथियों की चहलकमी का वो अनुपम दृश्य . . .
इस शानदार नज़ारे का लुत्फ़ उठाने दूर - दराज से लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है ।
होली के दिन तीनों टोलों के लोग दोपहर के बाद गांव के किनारे स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं जहां पूरे गांव के लोग सभी प्रतिद्वंद्विता एवं वैमनस्यता को त्याग कर दो भागों में विभक्त हो जाते हैं ।
सैकड़ों हाथों से घंटों चलती रहती है रंगों की पिचकारी और पोखर का पानी भी गुलाबी रंग हो जाता है ।
किवदंतियों में सुना है , आज से दशकों पहले इसी पोखर में एक ट्रक रंग घोल दिए जाते थे और उसी से पुरे गांव के लोग पिचकारी लोड कर फायरिंग किया करते थे ।
होली के रंगों से भिरहा की गलियों से लेकर सड़कें तक लाल - लाल हो जाती हैं ।