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29/04/2020
कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने में सफल रहा है बिहार का यह जिलाछपराबिहार में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। सू...
29/04/2020

कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने में सफल रहा है बिहार का यह जिला
छपरा
बिहार में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। सूबे के 38 में से 28 जिले इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। हालांकि, सरकार और प्रशासन लगातार कोरोना को हराने की कोशिश में लगे हुए हैं। इस बीच कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने में छपरा जिला प्रशासन सफल होता दिख रहा है। यहां कोरोना पॉजिटिव पाए गए लोगों के संपर्क में आने वालों और उनके परिजनों की जांच में सभी 90 सैंपल निगेटिव पाए गए हैं।

सारण जिले के डीएम ने दी जानकारी

छपरा जिले में शुरूआती दौर के दौरान कोरोना वायरस के एक के बाद एक कई मामले सामने आए थे। जिससे प्रशासन में हड़कंप मच गया था। लेकिन जिला प्रशासन ने जल्दी ही इसको लेकर खास रणनीति तैयार की। जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने कहा कि ये कर्मचारियों और पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता का प्रतिफल है कि सारण जिले में प्रशासन कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने में सफल रहा है।

कोरोना के खिलाफ ऐसे उठाए गए कदम

सुब्रत कुमार सेन ने बताया कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण की आशंका को देखते हुए जिले में अलग-अलग टीम का गठन किया गया। इसमें तैनात पदाधिकारियों को जो भी काम दिया गया, उस पर उन्होंने पूरी सतर्कता बरती। यही वजह है कि जिला प्रशासन उस पर खरा उतरता नजर आ रहा है। बिहार के दूसरे जिलों में जिस प्रकार एक से दूसरे लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, वह चेन सारण जिले में नहीं दिख रही है।

90 सैंपल पाए गए निगेटिव, अभी कुछ की रिपोर्ट का इंतजार

दरअसल, सारण जिले के अमनौर, रिविलगंज और बसाढ़ी से सम्बन्धित मामलों के कुल 90 सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे, जिसमें सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई है। दूसरी ओर, आपदा राहत केंद्र में लगभग 70 लोगों की जांच रिपोर्ट अभी आनी बाकी है जो प्रशासन के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। इसुआपुर, अमनौर और मांझी प्रखंड के मामलों में अब तक 456 सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे, जिसमें चार लोगों की रिपोर्ट ही पॉजिटिव आई है। एक मरीज ठीक होकर घर भी चला गया है।

प्रशासन ने उठाए क्या कदम, डीएम ने बताया

जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने बताया कि शुरूआत में ही कोरोना के संक्रमण को रोकने की जो कार्य योजना हमने बनाई उसमें सबसे अधिक तत्परता को प्राथमिकता दी गई। जिले में जैसे ही पॉजिटिव मामले सामने आए, उस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए प्रभावित मरीज के सम्पर्क में आए लोगों की पहचान की गई और उन्हें क्वारंटीन किया गया। संबंधित लोगों को आइसोलेशन में रखा जा रहा है और उन सभी के सैंपल की जांच कराई जा रही है।

जिलाधिकारी ने लोगों से की ये खास अपील

जिलाधिकारी ने बताया कि लगातार उठाए कदमों की वजह से सारण जिला प्रशासन कोरोना के संक्रमण को रोक पाने में सफल हो पाया। जिला प्रशासन की यही कोशिश है कि आगे भी बेहतर कार्य योजना के साथ कोरोना संक्रमण की चेन पर रोक लगाई जाए। जिलाधिकारी ने अपील करते हुए कहा कि लोग अनुशासित रहकर लॉकडाउन का पालन करें, अनावश्यक घरों से नहीं निकलें और सोशल डिस्टेंस के नियमों को मानें।

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मंगल पर दोबारा मिले जीवन के सबूत, नासा ने खोजा कार्बनिक मिश्रणनई दिल्ली। मंगल (Mars) ग्रह पर जीवन को लेकर हमेशा से बहस ह...
25/04/2020

मंगल पर दोबारा मिले जीवन के सबूत, नासा ने खोजा कार्बनिक मिश्रण

नई दिल्ली। मंगल (Mars) ग्रह पर जीवन को लेकर हमेशा से बहस होती आई है। हाल ही में नासा (NASA) के रोवर को मिले नए सबूतों ने दोबारा उम्मीद की एक किरण जगाई है। नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि मार्स क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल ग्रह की मिट्टी पर कार्बनिक मिश्रण खोजा है। रोवर ने जिस कार्बनिक मिश्रण यानी जीवन के अंश की खोज की है उसका नाम थायोफीन्स (Thiophenes) है। इसे अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
नासा का दावा है कि यह कार्बनिक मिश्रण दो तरीके से बन सकते हैं। पहला जैविक और दूसरा अजैविक। शोधकर्ता जैकब हीन्ज और डर्क शल्ज माकुश ने कहा कि मंगल ग्रह पर थायोफीन्स का मिलना जीवन के संकेत को दर्शाता है। उनकी ये रिपोर्ट साइंस जर्नल एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुई है। मंगल ग्रह पर मिले कार्बनिक यौगिक के विस्तृत खोज के लिए एक अन्य रोवर को भेजा जा सकता है। अभी मंगल ग्रह पर नासा का रोबोट क्यूरियोसिटी घूम रहा है, जो जीवन के कई संकेत दे रहा है। रोवर क्यूरियोसिटी के खोजबीन से भी ये दावा पुख्ता हुआ है, लेकिन इसकी गहन जांच के लिए अब रोजालिंड फ्रैंकलिन को भेजे जाने की तैयारी है। इसे साल 2022 पर मंगल ग्रह पर भेजने की उम्मीद है।
मंगल ग्रह पर मिले कार्बनिक यौगिक के बारे में रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक हीन्ज और माकुश के मुताबिक थायोफीन्स जैसे कार्बनिक मिश्रण दो तरीके से बन सकते हैं। जैविक रूप में यह उसी ग्रह पर जीवन सूक्ष्म रूप में मौजूद हो सकते हैं। दूसरे विकल्प में ये किसी उल्कापिंड से ग्रह पर आने वाले जीवन को दर्शाता है। अगर इसकी रासायनिक प्रक्रिया को देखे तो थायोफीन्स 120 डिग्री सेल्सियस पर सल्फेट रि़डक्शन से भी बन सकते हैं। उनका मानना है कि थायोफीन्स मंगल ग्रह पर 300 करोड़ साल पुराने हो सकते हैं।

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