25/09/2023
#तेजादशमी ...
वचनबद्ध लोक देवता सत्यवादी वीर तेजाजी का जन्म एक क्षत्रिय जाट (धूलिया गोत्र) घराने में हुआ था। उनका जन्म नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ल चौदस, विक्रम संवत 1130 (29 जनवरी 1074) में हुआ तथा उस खेत को तेजाजी का धोरा नाम से जाना जाता है| उनके पिता तहाड जी गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमलजी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं लुटेरे चुरा ले गए। गायों को बचाकर लाने का वचन देकर तेजाजी निकल पड़े तभी रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को कहा कि मैं गुजरी की गायों को लुटेरों से छुड़ा कर ले आऊ उसके बाद में स्वयं डस लेने आऊंगा यहां वचन दिया और आगे बढ़े। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए यहां देख सर्प ने कहा धन्य है तेज तू और धन्य है थारी धरती जो वचना रा पाचे तु मौत का मुंह पर आयो रे। तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण सर्प ने डसने से इनकार कर दिया फिर तेजाजी ने अपनी जीभ को कोरा बताकर जीभ पर साँप से कटवाया व अपना वचन पूर्ण किया।
किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा पेमल भी उनके साथ सती हो गई। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तथा राजस्थान मध्य प्रदेश हरियाणा उत्तर प्रदेश गुजरात आदि जगह उन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
जय हो वीर तेजाजी महाराज की🙏
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