16/08/2024
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल लाल किले से कहा था कि - "भारत युद्ध का नहीं. बुद्ध का देश है."
कांग्रेस को ये बात सहन नहीं हुई. तो 24 घंटा बीतने से पहले कांग्रेस की ये प्रतिक्रिया आ गई. ये बात किसी सामान्य दिन में नहीं कही गई है. खास मौका चुना गया है.
लेकिन कांग्रेस ये न भूले भारत की निर्मिती में, नींव में ही बुद्ध हैं.
हमारे झंडे पर बुद्ध का धम्म चक्र है. भारत का शेरों वाला राजचिह्न बौद्ध परंपरा का अशोक स्तंभ. उसके नीचे भी धम्म चक्र है.
हर करेंसी नोट और सिक्के पर भी ये बौद्ध निशान है. राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में सारे कार्यक्रम बुद्ध की प्रतिमा के नीचे होते हैं. ये 1950 से ही चला आ रहा है.
संविधान सभा में ये बात कही गई है कि भारत की संसदीय प्रणाली का स्रोत बौद्ध संघाराम, और संगीति हैं, बहस, कोरम, कमेटी सिस्टम की परंपरा वहीं से ली गई है.
बौद्ध शासक अशोक महान भारत के पहले साम्राज्य निर्माता थे और भारत की सीमा लगभग वही हैं, जहां तक उनका साम्राज्य था. वह साम्राज्य शौर्य पर टिका था, पर जनता के लिए उसमें करुणा का भाव था.
भारत में जमीन पर जहां खोदिए, बुद्ध ही मिलेंगे. मुस्लिम शासकों के आने तक भारत के सबसे बड़ भूभाग पर बौद्ध शासन ही था. मूर्तियों को खंडित किया जाने लगा तो लोगों ने बुद्ध की मूर्तियों को तालाब में या जमीन के नीचे दबा दिया.
बुद्ध की विरासत को मिटा देंगे तो भारत का इतिहास एक खंडित कालखंडों को समुच्चय बन कर रह जाएगा. अतीत की निरंतरता खंडित हो जाएगी.
फिर तो अकबर ही महान रहेंगे. चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान से हमारा संबंध कैसे जुड़ेगा?
ऐसी हालत में भारत की कहानी मुस्लिम आक्रमण से शुरू होगी. मोहनजोदाड़ों का बौद्ध स्तूप फिर इतिहास का हिस्सा कैसे रहेगा? कनिष्क का क्या करेंगे? पाल वंश का क्या करेंगे? हर्ष यानी शिलादित्य के शासन का क्या करेंगे?
सांची, विदिशा, अजंता, नालंदा, विक्रमशिला, पाटलिपुत्र, बोधगया. सारनाथ, मगध, श्रावस्ती, गिरनार, अमरावती, दिल्ली में अशोक का शिलालेख, कुशीनगर सब छूट जाएंगे.
भारतीय राष्ट्र राज्य के लिए ये दुखद दिन होगा.
कांग्रेस को ये समझना चाहिए.