18/06/2025
सुबह उठते ही कुछ् औरतें तैयार होती है—जिम बैग, ब्रांडेड लेगिंग्स, एयरपॉड्स और चेहरे पर अजीब सा “कॉन्फिडेंस”। घरवाले सोचते है—बेटी कितनी जागरूक है, हेल्थ को लेकर कितनी गंभीर है। बाप सोचता है—आजकल की लड़कियाँ भी लड़कों से कम नहीं। लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि लड़कियां जा कहाँ रही है, और वहाँ हो क्या रहा है।
जिम के नाम पर दरअसल वो जा रही है नेहरू पार्क में खुले “प्रीमियम प्राइवेट स्पेस” में, जहाँ ट्रेनर सिर्फ एक्सरसाइज़ और जुम्बा नहीं करवा रहा—नीतियों का अभ्यास करवा रहा है। पैर पकड़े हुए वो सिर्फ शरीर नहीं मोड़ रहा, सोच और संस्कार भी धीरे-धीरे मोड़ रहा है। और जब वीडियो वायरल होता है, तब घर वालों के मुंह से निकलता है—"हमें क्या पता था जी, हमें तो लगा जिम जा रही है।"
यही तो सबसे बड़ा अपराध है—जानबूझकर अनजान बने रहना। माँ, जो दिनभर फेसबुक पर संस्कार वाली पोस्टें शेयर करती है, और बाप और पति, जो मोहल्ले में आदर्श पुरुष बना घूमता है—दोनों को तब भी शक नहीं होता, जब घर की महिला रोजाना जिम से “फिटनेस” के साथ थोड़ी “बोल्डनेस” भी लेकर लौटती है।
लेकिन बेटियों महिला, जिहादी मानसिकता वाले किसी लड़के के साथ तस्वीरों में दिखती है, तब बोलते हैं—"ये तो लव जिहाद है जी, बहक गई हमारी बच्ची।" अरे भैया, बच्ची बहकी नहीं, आपने उसे खुला छोड़ रखा था—बिना संस्कार के, बिना मार्गदर्शन के, सिर्फ फैशन और आज़ादी के नाम पर।
जिम हो, डांस क्लास हो या एक्टिंग स्कूल—इन जगहों पर भेजने से पहले क्या कभी एक बार भी वहाँ की निगरानी की? क्या कभी पूछा कि ट्रेनर कौन है, और उसकी ट्रेनिंग में नैतिकता कितनी है? नहीं ना! क्योंकि आप 'मॉडर्न पेरेंट्स' हैं—बेटी को शक की नज़र से नहीं देखते। और जब हादसा होता है, तब यही बोलते हैं—"हमें तो पता ही नहीं चला जी।"
असल में ये घटनाएं 'रेप' नहीं, संस्कृति की रेपुब्लिक में लापरवाही का प्रमाणपत्र हैं। जहाँ माता-पिता की ढील और समाज की चुप्पी मिलकर एक पूरी पीढ़ी को बर्बादी के रास्ते पर धकेल रही है।
अब भी समय है। बेटी और पत्निओं को जिम और जुम्बा भेजो, डांस सिखाओ—लेकिन पहले उसे संस्कारों का सुरक्षा कवच दो। वरना अगली बार जब कोई MMS वायरल होगा, तो उसमें आपकी बेटी और आपके घर की महिला नहीं, आपकी सोच की नंगी सच्चाई दिखेगी।
(नोट: यह ब्लॉग सभी लड़कियों और महिलाओं
पर नहीं है, सिर्फ उन पर है जो जिम व अन्य स्थानों का दुरुपयोग करती हैं। संस्कारी और समर्पित बेटियों और महिलों का सम्मान है।)