
04/07/2025
🇮🇳 शहीद का अपमान या प्रशासनिक लापरवाही?
मैनपुरी के करहल में शहीद रामाधार सिंह यादव स्मृति द्वार विवाद पर एक गंभीर विश्लेषण
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स्थान: नगला टांक, करहल, मैनपुरी
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“जो लौट के घर न आए, उनके नाम पर कम से कम इज्ज़त से एक द्वार तो बनना चाहिए...”
लेकिन जब शहीद के नाम पर बना स्मृति द्वार भी राजनीति, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो जाए, तो यह प्रश्न उठता है — क्या हम वास्तव में शहीदों का सम्मान कर पा रहे हैं?
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मैनपुरी जनपद के करहल तहसील स्थित नगला टांक गाँव के शहीद नायक रामाधार सिंह यादव की याद में बना स्मृति द्वार आज विवाद और आक्रोश का केंद्र बन गया है।
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🎖️ शहीद रामाधार सिंह यादव: बलिदान की गाथा
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रामाधार सिंह यादव भारतीय सेना की 19 कुमाऊँ रेजिमेंट में तैनात थे।
वर्ष 1995, 10 सितंबर को, जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकवादियों से मुकाबले में उन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
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देश ने शायद भले ही राष्ट्रीय सम्मान न दिया हो, लेकिन उनके गाँव और परिवार ने उनके बलिदान को अमर रखने के लिए वर्षों तक स्मृति द्वार के लिए संघर्ष किया।
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🏛️ स्मृति द्वार बना लेकिन...
साल 2022 में जिला पंचायत द्वारा स्वीकृत स्मृति द्वार आखिरकार बना। लेकिन इससे जुड़ी समस्याएं जल्द ही उजागर हो गईं:
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🔹 घटिया निर्माण सामग्री:
शहीद की पत्नी कुसुमा देवी ने आरोप लगाया कि द्वार निर्माण में घटिया ईंट और सीमेंट का इस्तेमाल हुआ। सरिया बाहर दिख रही है और द्वार की संरचना बेहद कमजोर है।
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🔹 गलत नामांकन:
सबसे गंभीर आरोप यह है कि शहीद रामाधार सिंह यादव के साथ एक अन्य व्यक्ति ‘चरण सिंह’ का नाम भी स्मृति द्वार पर अंकित कर दिया गया — बिना परिवार की अनुमति या जानकारी के।
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🔹 प्रशासनिक चुप्पी:
परिवार ने जनसुनवाई पोर्टल (IGRS) पर शिकायत की, साथ ही जिलाधिकारी मैनपुरी को कई बार ज्ञापन दिए। बावजूद इसके, अब तक न कोई जांच शुरू हुई, न कोई कार्रवाई हुई।
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🔥 परिवार और समाज का आक्रोश
शहीद की पत्नी का स्पष्ट कहना है:
> “यह मेरे पति के बलिदान का अपमान है। हमने खून बहाया और ये लोग नाम बदल कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं? हमें धोखा दिया गया।”
स्थानीय लोगों और यादव समाज में भी गहरा आक्रोश है। सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर चुका है। साथ ही Change.org पर याचिका चलाई जा रही है, जिसमें अब तक 350+ लोग साइन कर चुके हैं।
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📢 ठेकेदार और प्रशासन की सफाई
निर्माण कार्य से जुड़े ठेकेदार शेर सिंह भदोरिया ने सफाई दी है कि “सारी सामग्री उच्च गुणवत्ता की थी और शिलालेख जिला पंचायत से मिले थे।”
लेकिन जब किसी शहीद के परिवार को अपना द्वार देखकर रोना आ जाए — तो यह सफाई पर्याप्त नहीं होती।
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🤔 सवाल जो उठते हैं…
1. क्या शहीदों के नाम पर बनने वाले स्मारकों में भी भ्रष्टाचार की अनुमति है?
2. प्रशासनिक लापरवाही से एक परिवार की भावनाएँ, और एक गाँव का सम्मान, कैसे सुरक्षित रहेगा?
3. अगर आज एक शहीद की पत्नी को न्याय नहीं मिला — तो कल कोई और आवाज़ कैसे उठाएगा?
यह विवाद सिर्फ एक स्मृति द्वार तक सीमित नहीं है। यह एक पूरे राष्ट्र के ‘शहीदों के प्रति रवैये’ का प्रतिबिंब है।
जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, द्वार को पुनः समर्पण भाव से नहीं बनाया जाता, और प्रशासन संवेदनशील नहीं होता — तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी।
🕊️ अंतिम शब्द
शहीद रामाधार सिंह यादव ने देश के लिए जान दी — अब देश की जिम्मेदारी है कि उनका सम्मान जीवित रखा जाए।
🙏
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा..."
✊ "शहादत का अपमान मत बनने दो..."
👇 अगर आप सच्चे देशभक्त हैं... अगर आपको लगता है कि शहीद का अपमान नहीं होना चाहिए — तो इस पोस्ट को शेयर करें। आवाज़ उठाएँ।
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#शहीद_का_अपमान_बर्दाश्त_नहीं
#मैनपुरी
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