05/08/2025
मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव अमल्दा में, 30 जुलाई 2025 की शाम आम शामों जैसी नहीं थी...
बादलों ने घनघोर गर्जना की, और पार्वती नदी उफनने लगी — तेज़, खतरनाक और बेकाबू...
गाँव के राजू यादव जी, उम्र लगभग 45, एक साधारण किसान और अपने पूरे परिवार के भरोसेमंद सहारा थे।
उनका 13 साल का भतीजा शिवम यादव — 7वीं क्लास का छात्र, जो खेतों में भी चाचा की मदद करता, और सपने देखता था एक दिन पुलिस अफसर बनने का।
शाम करीब 5 बजे, खेतों से जानकारी मिली कि पानी तेजी से बढ़ रहा है।
राजू ने सोचा, सिंचाई के पाइप और उपकरण अगर बह गए तो सालभर की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।
शिवम भी ज़िद करने लगा — “मैं भी साथ चलूंगा चाचा, हम जल्दी वापस आ जाएंगे...”
और वो दोनों निकल गए — खेत की ओर।
उन्हें क्या पता था कि पार्वती का मिज़ाज उस दिन मौत के मुहाने पर खड़ा है...
💔 फिर जो हुआ...
बारिश और पानी की रफ्तार ने उन्हें चारों तरफ़ से घेर लिया।
वे खेत के बीच फँस चुके थे। गांव वाले आवाज़ें लगाते रहे, लेकिन लहरें हावी थीं।
बचाव की कोशिश नाकाम रही — क्योंकि पुल तक डूब चुका था।
जब तक कोई कुछ कर पाता — वो दोनों नदी के हवाले हो चुके थे...
🌅 अगली सुबह — जो दृश्य मिला, वो पत्थर दिल को भी पिघला दे...
जब पानी उतरा और तलाश शुरू हुई,
तो खेत के एक किनारे, झाड़ियों के पास... दो शव मिले...
राजू यादव और शिवम यादव — एक-दूसरे के गले मिले हुए...
जैसे चाचा ने आखिरी दम तक भतीजे को बचाने की कोशिश की हो,
और भतीजा चाचा के सीने से लगा, अपने आप को महफूज़ मानता रहा हो...
🙏 यह कोई फिल्म नहीं थी — यह ज़िन्दगी की एक ऐसी कहानी थी जो गाँव की मिट्टी ने खुद देखी
गाँव में सन्नाटा है, और पार्वती अब भी बह रही है…
पर इस बार उसकी लहरों में एक सच्चा बलिदान, एक रिश्ता, एक कहानी बह चुकी है…